पेंशन व्यवस्था का पतन और पूंजीवादी क्रूरता: काम के बाद जिंदा रहना भी महंगा

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पूंजीवादी व्यवस्था की बुनियादी संरचना मुनाफे पर आधारित होती है और इसका हर पहलू मानव जीवन को मुनाफे के संदर्भ में ही मापता है। जब तक व्यक्ति उत्पादन का हिस्सा रहता है, तब तक वह इस व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होता है, लेकिन जब वह श्रम करने की क्षमता खो देता है, तो उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है।

इस संदर्भ में, यूरोपीय देशों, कनाडा और भारत में पेंशन व्यवस्थाओं को कमजोर करना या समाप्त करना पूंजीवादी व्यवस्था के अमानवीय स्वरूप को उजागर करता है। ब्रिटेन और कनाडा में बुजुर्गों की पेंशन में कटौती और इच्छा मृत्यु में मदद की योजनाओं का तेजी से विकास, पूंजीवादी समाज के लिए बुजुर्गों की घटती उपयोगिता को दर्शाता है।

इसी तरह, भारत में भी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना को समाप्त करने का कदम पूंजीवादी मुनाफे की इसी मानसिकता का प्रतीक है, जहां श्रमिकों के जीवन के प्रति उदासीनता दिखाई देती है।

पूंजीवादी समाज में मानव जीवन का मूल्य तब तक होता है, जब तक वह उत्पादन कर रहा होता है। मुनाफा बढ़ाने की होड़ में पूंजीपति वर्ग और सरकारें सामाजिक सुरक्षा और कल्याण की नीतियों को लगातार कमजोर कर रही हैं।

पेंशन, जिसे पहले बुजुर्गों और कर्मचारियों के लिए आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखा जाता था, अब इसे आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाने लगा है। ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में पेंशन की कटौती और इच्छा मृत्यु की योजनाएं इसी मानसिकता का प्रतीक हैं। यह सोच केवल सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था की मूलभूत कमजोरी को दर्शाती है।

पूंजीवादी व्यवस्था का उद्देश्य मुनाफा होता है और मुनाफे के लिए मानव जीवन और उसकी गरिमा को नजरअंदाज कर दिया जाता है। पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा के साधनों को समाप्त करके पूंजीवादी व्यवस्था बुजुर्गों, विकलांगों और कमजोर लोगों को आर्थिक असुरक्षा में धकेल देती है।

इससे साफ पता चलता है कि पूंजीवाद के तहत समाज का मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ कमाना होता है, न कि लोगों के जीवन और उनकी भलाई का ध्यान रखना।

ब्रिटेन में बुजुर्गों को सर्दियों में घर गरम रखने के लिए मिलने वाली अतिरिक्त पेंशन को काटना इस बात का संकेत है कि सरकार अब समाज के कमजोर तबकों की सुरक्षा में कटौती करने के लिए तैयार है।

यह निर्णय तब लिया गया, जब ब्रिटेन में महंगाई दर बढ़ रही थी और ऊर्जा की कीमतों में भी तेजी देखी गई थी। ब्रिटेन में 2022 की महंगाई दर 9% के करीब रही, जो पिछले चार दशकों की सबसे ऊंची दर थी।

ईंधन की कीमतों में लगभग 30-40% की वृद्धि देखी गई, जिससे जीवन यापन का खर्च तेजी से बढ़ गया। इसके बावजूद सरकार ने बुजुर्गों की पेंशन में कटौती कर दी, जो उनके लिए आर्थिक कठिनाइयों का कारण बनी।

इसी तरह, कनाडा में भी बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा कमजोर की जा रही है और सरकार इच्छा मृत्यु में मदद करने के कानूनों को प्रोत्साहित कर रही है। यह नीति इस विचार पर आधारित है कि बुजुर्गों को अब आर्थिक रूप से ‘बेकार’ माना जा रहा है और उनके जीवन को बनाए रखने के बजाय, उन्हें मरने का विकल्प दिया जा रहा है।

कनाडा की इच्छा मृत्यु की योजना को मानवता के नाम पर प्रस्तुत किया गया है, लेकिन असल में यह पूंजीवाद की क्रूरता का उदाहरण है, जहां सरकारें अपने दीर्घकालिक खर्चों को बचाने के लिए बुजुर्गों को मरने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

भारत भी उसी दिशा में बढ़ रहा है, जहां पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था को पहले ही कमजोर किया जा चुका है। 2004 में भारत सरकार ने नई पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत की, जिसके तहत पुरानी पेंशन योजना (OPS) को समाप्त कर दिया गया।

पुरानी पेंशन योजना में सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का 50% पेंशन के रूप में दिया जाता था, जबकि नई पेंशन योजना में यह प्रावधान हटा दिया गया। नई योजना के तहत कर्मचारियों को अपने वेतन का एक हिस्सा पेंशन फंड में जमा करना पड़ता है और इस राशि पर बाजार आधारित रिटर्न मिलता है।

NPS की इस व्यवस्था में कर्मचारियों की पेंशन पूरी तरह से बाजार की अनिश्चितताओं पर निर्भर हो गई है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण यह संभव है कि किसी कर्मचारी की पेंशन राशि उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त न हो।

इसके विपरीत, OPS निश्चित और स्थिर आय प्रदान करती थी, जिससे कर्मचारियों को अपने बुढ़ापे के लिए आर्थिक सुरक्षा मिलती थी।

पुरानी पेंशन योजना को समाप्त करना पूंजीवादी व्यवस्था के उस पहलू को उजागर करता है, जहां सरकारें अपने खर्चों को कम करने के लिए श्रमिकों की सुरक्षा को खत्म करने में लगी हैं। यह कदम इस विचार पर आधारित है कि सरकार को अपने कर्मचारियों की बुढ़ापे की जिम्मेदारी नहीं उठानी चाहिए, बल्कि इसे बाजार की अनिश्चितताओं पर छोड़ देना चाहिए।

भारत में महंगाई दर लगातार बढ़ रही है। 2022 में भारत की औसत महंगाई दर 6.7% रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य से ऊपर थी। 2023 में भी महंगाई दर लगभग 6.8% के आसपास बनी रही।

खाद्य पदार्थों की कीमतें और ईंधन की दरों में भी लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 2021 में लगभग 20-30% तक बढ़ीं, जिससे मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों के लिए जीवन यापन का खर्च और अधिक बढ़ गया।

इस बढ़ती महंगाई के बीच, कर्मचारियों के लिए पेंशन व्यवस्था का कमजोर होना उनके भविष्य को असुरक्षित बना रहा है। बढ़ती महंगाई के साथ-साथ बेरोजगारी भी बढ़ रही है।

2023 में भारत की बेरोजगारी दर 7.5% रही, जबकि युवा बेरोजगारी दर 20% से अधिक दर्ज की गई। ऐसे समय में, जब रोजगार और आमदनी अस्थिर हैं, पेंशन जैसी सुरक्षा व्यवस्था का खत्म होना श्रमिकों के लिए दोहरी मार है।

पूंजीवादी व्यवस्था का यह चरित्र हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह व्यवस्था मानवता की बात करती है या केवल मुनाफे की। ब्रिटेन, कनाडा और भारत में पेंशन व्यवस्थाओं का कमजोर होना इस बात का संकेत है कि पूंजीवादी सरकारें अपने दीर्घकालिक खर्चों को बचाने के लिए सामाजिक सुरक्षा को समाप्त कर रही हैं।

श्रमिक, जो अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा उत्पादन में लगाते हैं, जब श्रम करने की उम्र से बाहर हो जाते हैं, तो उन्हें समाज के लिए ‘बेकार’ समझा जाता है।

यह अमानवीयता पूंजीवादी व्यवस्था की जड़ में बसी हुई है, जहां मानव जीवन की उपयोगिता केवल तब तक है, जब तक वह मुनाफा पैदा कर रहा है। जब श्रमिक मुनाफा देने योग्य नहीं रहते, तो उन्हें या तो मरने के लिए छोड़ दिया जाता है या उन्हें इच्छा मृत्यु जैसी योजनाओं का विकल्प दिया जाता है, जैसा कि हम कुछ देशों में देख रहे हैं।

भारत में पेंशन व्यवस्था का कमजोर होना और श्रमिकों के अधिकारों का ह्रास, पूंजीवादी व्यवस्था की अमानवीयता का एक और उदाहरण है। पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी का विषय है।

यह सरकार का कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपने श्रमिकों को बुढ़ापे में सम्मानजनक जीवन प्रदान करे, न कि उन्हें बाजार की अनिश्चितताओं के हवाले कर दे।

भारत को इस दिशा में पुनर्विचार करने की जरूरत है। कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना, श्रमिकों के लिए स्थिर और सुरक्षित पेंशन व्यवस्था बनाना और सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं को मजबूत करना अनिवार्य है। इसके लिए जरूरी है कि सरकारें पूंजीवादी मानसिकता से बाहर निकलकर समाज के कमजोर तबकों की भलाई के लिए काम करें। 

संवैधानिक तौर पर भी हम भारत के लोगों ने भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित कराने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर संविधान अपनाया था।

संविधान के अनुच्छेद-21 में भी ‘जीवन’ शब्द का अर्थ गरिमापूर्ण जीवन है न कि केवल बायोलॉजिकल जीवन। इसलिए राज्य का यह दायित्व है कि व्यक्ति को गरिमामय जीवन जीने को सुलभ कराने के उपाय करे न कि चंद पूंजीपतियों के हितों के लिए देश की अधिकांश आबादी के जीवन को ही दांव पर लगा दे।

(मनोज अभिज्ञान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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