Wednesday, April 24, 2024

महज रकम नहीं है मुआवज़ा, खोल देगा मोदी सरकार की पोल

महामारी में मौत पर मुआवज़ा देने से क्यों कतराती रही है मोदी सरकार? क्या केंद्र सरकार के पास रकम नहीं? क्या मोदी सरकार के मंत्रियों को रकम अपने घर से देना है? क्या 4 लाख मौत पर 4-4 लाख मुआवज़े के लिए कुल रकम 16 हजार करोड़ रुपये इतनी बड़ी रकम है कि इसका इंतज़ाम नहीं हो सकता? ये सारे सवाल मिलकर यही जवाब देते हैं कि मुआवज़े की रकम कभी इतना बड़ा मुद्दा नहीं था जितना बड़ा इसे बनाकर रखा गया। मगर, अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को मजबूर कर दिया है कि वह महामारी में मौत के पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा दे।

चंदे से भी जुटाई जा सकती है मुआवज़े की रकम

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। यह मुश्किल रकम या इसका इंतज़ाम करना कतई नहीं है। मुआवज़े को लेकर मसला न रकम का था और न रकम का है। जब राम मंदिर निर्माण के लिए चंदे से एक महीने में 2500 करोड़ की रकम जुटाई जा सकती है तो 4 लाख लोगों को 4-4 लाख मुआवज़ा देने के लिए जरूरी रकम 1600 करोड़ रुपये क्यों नहीं जुटायी सकती?

असल मुद्दा है कि अगर एक बार मुआवज़े की रकम खोजने पीड़ित सड़क पर उतर आए तो जो गिनती अब तक दुनिया से छिपाई जाती रही थी वह उजागर हो जाएगी। जी हां, मौत के आंकड़ों का सच सामने आ जाएगा। यही वो चिंता है जिस वजह से मोदी सरकार मुआवज़ा नहीं देने के तमाम बहाने सुप्रीम कोर्ट में कर रही थी।

छवि की चिंता में मुआवज़े का विरोध?

छवि की चिंता सबसे बड़ी चिंता बन चुकी है। पूरी दुनिया में महामारी की पहली लहर में कोरोना को हराने का दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व मंच पर कर आए थे। भारत में बेहद कम मौत का जिक्र सबूत और उपलब्धि के तौर पर वे करते रहे। इन दावों की पोल-पट्टी खुल जाएगी।

नरेंद्र मोदी दुनिया को वैक्सीन देने का वादा भी कर चुके हैं। उसकी तो पोल-पट्टी कोरोना की दूसरी लहर आते ही खुल चुकी है। मगर, अब उस दावे की भी पोल पट्टी खुलने वाली है जिसमें कहा जा रहा था कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री ना होते तो देश में लाशों की कतारें लग जातीं।

डेथ सर्टिफिकेट लाएगा यूपी में 43 गुणा ज्यादा मौत का सच

उत्तर प्रदेश में एक आरटीआई से यह तथ्य सामने आ चुका है कि प्रदेश के सबसे ज्यादा कोविड प्रभावित 24 जिलों में मार्च 2021 तक कोरोना की पहली लहर के 9 महीने में जितनी मौत यूपी सरकार ने बतायी, उससे 43.4 गुणा मौत वास्तव में हुई।

जब कोविड से हुई मौत का सर्टिफिकेट बनना शुरू होगा तो पहली लहर में महज नौ महीने में 1.97 लाख मौतों की वजह छिपी नहीं रह पाएगी। मृतक के परिजन मुआवज़ा खोज रहे होंगे। मुआवज़े की यही चाहत मौत के आंकड़े को बेपर्द कर देगी।

यूपी में पहली और दूसरी लहर समेत अब तक कोविड से घोषित हुई मौत का आंकड़ा 22.5 हजार है। अगर पहली लहर वाली रुझान के मुताबिक मौत का वास्तविक आंकडा सिर्फ 43.4 गुणा ज्यादा ही हो, तब भी महामारी से मौत का वास्तविक आंकड़ा यूपी में 9.76 लाख होता है। यह आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है क्योंकि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मौत ने अधिक तांडव दिखाया है।

यूपी ही नहीं हर प्रदेश होगा बेनकाब

मौत के सही आंकड़ों की पोल खुलेगी तो हर प्रदेश की शासन-व्यवस्था बेनकाब होगी। लेकिन सबसे ज्यादा बेनकाब होगी केंद्र में मौजूद नरेंद्र मोदी की सरकार जिसने प्रदेशों में कोविड से हुई मौत के आंकड़ों को छिपाने की स्पर्धा को आगे बढ़ने दिया। दो और उदाहरणों पर गौर करें

  • मध्यप्रदेश में मई 2020 में 34,320 लोगों की मौत हुई थी जबकि मई 2021 में यह आंकड़ा 1,64,838 है। शिवराज सरकार ने कोविड से मौत सिर्फ 2,445 बताया।
  • बिहार में जनवरी’21 से मई’21 के बीच मौत के आंकड़े बीते वर्षों में इसी अवधि में हुई मौत के आंकड़ों के मुकाबले 75 हज़ार से ज्यादा पाई गयी।

रकम नहीं होने के तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराया

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने साफ तौर पर कह डाला था कि उसके पास मुआवज़ा देने के लिए रकम नहीं है। बाद में इस रवैये में सुधार करते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि रकम तो है लेकिन प्राथमिकता में तीसरी लहर और स्वास्थ्य सेवाओँ की बुनियादी संरचना को मजबूत बनाना है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की एक न सुनी और मुआवज़ा देने को सुनिश्चित कर दिया, मगर कितना मुआवज़ा दिया जाए इस पर फैसला केंद्र सरकार पर ही छोड़ दिया है। यहीं पर केंद्र सरकार के पास गुंजाइश भी बनती है कि वह मुआवज़े के कारण पैदा होने वाली परेशानियों का हल ढूंढ़े।

छवि की फिक्र राज्य सरकारों को भी

सवाल यह भी है कि क्या यूपी सरकार खुद मुआवज़ा बांटने और कोविड से हुई मौत का सच सामने लाने वाली इस मुआवज़े की पहल में रुचि लेगी? यूपी सरकार को भी अपनी छवि की फिक्र है। वह भी फंड का रोना रोएगी। दूसरे राज्य भी इसी मनोभावना के साथ कोविड से हुई मौत के मामले में मुआवज़े पर रुख तय करें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

एक बार फिर इस बात पर जोर देना जरूरी है कि रकम महत्वपूर्ण नहीं है। चाहे तो केंद्र और राज्य मिलकर मुआवज़े की रकम को साझा कर सकते हैं। लेकिन मुआवज़े की रकम जुटाना और मुआवज़ा देना केंद्र या राज्य सरकारों की प्राथमिकता नहीं रह गयी है। ऐसा करने पर कोरोना से हुई मौत के सच्चे आंकड़े उजागर होने लगेंगे और दोनों सरकारों के लिए यह मुसीबत की वजह हो जाएगी।

मौत का सच उजागर हुआ तो मुंह कैसे दिखाएगी मोदी सरकार?

मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता है कि मौत के आंकड़ों का सच सामने आने के बाद वह दुनिया को क्या मुंह दिखाएगी? प्रति दस लाख की आबादी में मौत की दर आज दुनिया में मोदी सरकार का चेहरा चमकाने के लिए इस्तेमाल होता है। भारत इस लिहाज से आज 107वें नंबर पर है। आंकड़ों का सच सामने आने के बाद यह स्थिति बदल जाएगी।

‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा निस्तेज हो जाएगा। मुआवज़ा मौत के छिपाए गये आंकड़ों का सच सामने ला देगी। यह सच समूचे झूठ का पर्दाफाश कर देगा। दुनिया में नरेंद्र मोदी सरकार ने पहली लहर में जो साख कमाई थी उस पर भी कफन चढ़ जाएंगे। दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी, दवा और बेड की कमी से अस्पताल के बाहर हुई मौत, श्मशान में कतारें, नदियों में तैरती-उतराती लाशें, तटों पर गाड़ी गई लाशें सरकार की पोल पहले ही खोल चुकी हैं। मगर, मुआवज़ा केंद्र सरकार के चेहरे से नकाब उतार दे सकता है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल आपको विभिन्न चैलनों के पैनल में बहस करते देखा जा सकता है।)

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