Saturday, April 20, 2024

छत्तीसगढ़: भूमि अधिकार आंदोलन के तहत आयोजित हुआ राज्य स्तरीय सम्मेलन 

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास्टोरल सेंटर में भूमि अधिकार आंदोलन का राज्य सम्मेलन आयोजित हुआ। 28 जून को आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में देश के 14 राज्यों से आए 500 से ज़्यादा जनवादी संघर्षों के साथियों/ प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की।  

यह राज्य सम्मेलन छत्तीसगढ़ में तेज़ गति से पूंजीपतियों को केंद्र व राज्य सरकार की मिलीभगत से सौंपे जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के खिलाफ और प्रदेश में जारी जनवादी संघर्षों के समर्थन में आयोजित हुआ। जिसमें एक बात खुल कर सामने आयी कि छत्तीसगढ़ हमेशा से जनवादी आंदोलनों का क्षेत्र रहा है जिसे जनवादी आंदोलनों ने हमेशा लूट से बचाया है।  

छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग हर हिस्से में प्रकृति और आदिवासियों के सांवैधानिक अधिकारों के लिए जनवादी आंदोलन चल रहे हैं लेकिन यह देखा जा रहा है कि राज्य सरकार अपने स्तर पर न केवल इन जन आंदोलनों की आवाज़ और उनकी मांगों को अनसुना कर रही है बल्कि उन पर दमनात्मक कार्रवाइयां भी कर रही है।  

राज्य की नौकरशाही और प्रशासन पूँजीपतियों के निजी हितों के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रही हैं जिसे राज्य सरकार का खुला संरक्षण प्राप्त है।  

सम्मेलन की शुरुआत सारकेगुड़ा कांड में मारे गए 17 निर्दोष आदिवासियों को श्रद्धांजलि देकर हुआ, जो 10 साल पहले इसी दिन सुरक्षा बलों की गोलियों से मारे गए थे और जिस कृत्य के लिए अभी तक किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई है।आज छत्तीसगढ़ में चाहे अडानी के अकूत मुनाफे के लिए हसदेव अरण्य की तबाही की कीमत पर कोयला खदानों को खोले जाने की अवैध कार्रवाइयां हो रही हों या दक्षिण छत्तीसगढ़ में तथाकथित विकास और सुरक्षा के नाम पर पुलिस कैंप बनाने और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इस पूरे भू-भाग को आदिवासियों के नैसर्गिक और संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार कर इनका अवैध अधिग्रहण किया जा रहा हो।  

रावघाट में लौह अयस्क खनन के लिए आदिवासियों के हितों को जबरन कुचला जा रहा हो या नई राजधानी बनाने के लिए किसानों से अभिग्रहीत की गयी ज़मीनों के बदले स्थानीय किसानों को उचित मुआवज़े से वंचित रखा जा रहा हो और उनकी उचित मांगों और शांतिमय आंदोलन को कुचला जा रहा हो? आदिवासी और प्राकृतिक संसाधनों के नाम पर गठित इस राज्य में सबसे ज़्यादा अनदेखी केवल आदिवासियों की हो रही है। नैसर्गिक संसाधनों के साथ खिलवाड़ हो रहा है जिसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों के सामने जीने का संकट खड़ा हो रहा है।  

ऐसे में इन सभी जनवादी और प्रकृति को बचाने के आंदोलनों को न केवल पूरे देश से समर्थन मिल रहा है बल्कि इन जनवादी आंदोलनों की आवाज़ को देश के बाहर भी सुना जा रहा है। इसी कड़ी में 28 जून को भूमि अधिकार आंदोलन के राज्य सम्मेलन में इन सभी आंदोलनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और इन संघर्षों के बारे में बताया। 

भूमि अधिकार आंदोलन, इसके गठन,सन 2015 से ही ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों की इस जबरन लूट के खिलाफ देश भर में चल रहे जन आंदोलनों के साथ मजबूती से खड़ा होते आया है। भूमि अधिकार आंदोलन इस देश में ज़मीन की गैर कानूनी और जबरन लूट के खिलाफ लगातार सक्रिय भूमिका निभाते आया है।  

छत्तीसगढ़ में चल रहे सभी जनवादी आंदोलनों और इस राज्य की पूंजीवादी हितैषी राजनैतिक परिस्थितियों के मद्देनज़र भूमि आधिकार आंदोलन व छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने संयुक्त प्रस्ताव जारी किया।  

प्रस्ताव 

छत्तीसगढ़ में, पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा कानून के प्रावधानों सहित पाँचवीं अनुसूची के संरक्षात्मक प्रावधानों का अक्षरश: पालन करते हुए कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए भू हस्तांतरण पर रोक लगाई जाये। 

 हसदेव, सिलगेर, बस्तर और कोरबा सहित पूरे प्रदेश में विकास के नाम पर हो रहे आदिवासियों के विस्थापन व ज़मीनों के डायवर्जन पर पूरी तरह रोक लगाओ।  

भूमि-अधिग्रहण कानून, 2013 का शब्दश: पालन करो। बिना इस कानून को लागू किए जो भूमि अभिग्रहीत की गयी है उसे मूल किसानों को वापस किया जाये।  

बस्तर में हुए जनसंहार की जांच रिपोर्टों पर तत्काल कार्रवाई की जाए ताकि दोषियों को उचित सज़ा दी जा सके। बस्तर में हो रहे सैन्यकरण पर रोक लगाने व फर्जी मामलों में जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों की तत्काल रिहाई की मांग की गयी।    

शांतिमय और लोकतान्त्रिक जनवादी आंदोलनों के आयोजनों पर थोपी गईं गैर कानूनी पाबंदियों को वापिस करो और जनअधिकार व मानवाधिकार के लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिए जाए।  

विकास के नाम पर विस्थापन व पर्यावरण विनाश की योजनाएँ तुरंत रद्द हों और विकास जनवादी अवधारणाओं पर आधारित हो।  

संविदा कर्मियों का नियमितीकरण किया जाये और ठेका पद्धति द्वारा मजदूरों के शोषण की परिपाटी को खत्म किया जाये।  

छत्तीसगढ़ के किसानों को खाद की उपलब्धता सुनिश्चित की जाये और समर्थन मूल्य की गारंटी कानून पारित किया जाये। 

इन मुद्दों को लेते हुए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन हर जिले स्तर पर सम्मेलन और अक्तूबर माह में राज्यव्यापी आंदोलन करेगा।    

(जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।