Friday, March 29, 2024

अवमानना मामले में जज अभियोजक का भी करता है कामः प्रशांत

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया है कि न्यायपालिका के बारे में चर्चा रोकने या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने की कोशिश में कोर्ट की अवमानना की शक्ति का कभी-कभी दुरुपयोग किया जाता है, क्योंकि न्यायाधीश आरोप लगाने वाले अभियोजक और न्यायाधीश दोनों के रूप में कार्य करते हैं।

प्रशांत भूषण ने कहा है कि लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक, जो न्याय प्रणाली और उच्चतम न्यायालय के कामकाज को जानते हैं, स्वतंत्र रूप से अपने विचार अभिव्यक्त करने में सक्षम होना चाहिए। दुर्भाग्य से उसे भी कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला बता कर न्यायालय की अवमानना के रूप में लिया जाता है। फॉरेन कॉर्सपोंडेंट्स क्लब ऑफ साउथ एशिया की ओर से ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भारतीय न्यायपालिका’ विषय पर आयोजित वेब सेमिनार को संबोधित करते हुए भूषण ने यह बातें कहीं।

गौरतलब है कि कोर्ट की अवमानना को लेकर उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत भूषण को हाल ही में दोषी ठहराया था और उन पर जुर्माना भी लगाया है। भूषण ने बुधवार को एक कार्यक्रम में न्यायालय की अवमानना अधिकार क्षेत्र को बहुत ही खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए।

प्रशांत भूषण ने कहा कि इसमें न्यायाधीश आरोप लगाने वाले अभियोजक और न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हैं। यह बहुत ही खतरनाक अधिकार क्षेत्र है, जिसमें न्यायाधीश खुद के उद्देश्य को पूरा करने के लिए काम करते हैं। यही कारण है कि दंडित करने की यह शक्ति रखने वाले सभी देशों ने इस व्यवस्था का उन्मूलन कर दिया है। यह भारत जैसे कुछ देशों में ही जारी है।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के बारे में मुक्त रूप से चर्चा या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने की कोशिश में न्यायालय की अवमानना की शक्ति का कभी-कभी दुरुपयोग किया जाता है। उच्चतम न्यायालय ने न्यायपालिका के खिलाफ भूषण के ट्वीट को लेकर उन पर एक रुपये का सांकेतिक जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने उन्हें जुर्माने की राशि 15 सितंबर तक जमा करने का निर्देश दिया और कहा कि ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें तीन महीने की कैद की सजा और तीन साल तक वकालत करने से प्रतिबंधित किया जा सकता है।

भूषण ने कहा कि मैं यह नहीं कह रहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ अस्वीकार्य या गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले कोई आरोप नहीं लगाए जा रहे हैं। ऐसा हो रहा है, लेकिन इस तरह की बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। लोग इस बात को समझते हैं कि ये बेबुनियाद आरोप हैं।

अपने ट्वीट के बारे में बात करते हुए भूषण ने कहा कि यह वही था, जो उन्होंने उच्चतम न्यायालय की भूमिका के बारे में महसूस किया। उन्होंने कहा कि न्यायालय की अवमानना की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और प्रख्यात पत्रकार एन राम के साथ एक याचिका दायर कर आपराधिक मानहानि से निपटने वाले कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।

प्रशांत भूषण ने कहा कि शुरुआत में यह याचिका न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष सूचीबद्ध थी और बाद में इसे उनके पास से हटा दिया गया और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के पास भेज दी गई, जिनके इस अवमानना पर विचार जग जाहिर हैं। इससे पहले भी उन्होंने मुझ पर सिर्फ इसलिए न्यायालय की अवमानना का आरोप लगाया था कि मैं पूर्व प्रधान न्यायाधीशों (सीजेआई) न्यायमूर्ति जे एस खेहर, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और उनके बारे में यह कहा था कि उन्हें हितों में टकराव के  चलते एक मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।

अरुंधति रॉय।

मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय ने भी कार्यक्रम में इस विषय पर विचार रखे। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही अफसोसनाक है कि 2020 के भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार पर चर्चा के लिए एकत्र होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के कामकाज में सर्वाधिक मूलभूत बाधा है।

लेखिका ने कहा कि पिछले कुछ साल में देश में अचानक नोटबंदी की घोषणा, जीएसएसटी लागू किया जाना, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द किया जाना और संशोधित नागरिकता कानून लाए जाने और कोविड-19 को लेकर लॉकडाउन लागू करने जैसे कदम देखे गए हैं। उन्होंने कहा कि ये चुपके से किए गए हमले जैसा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles