Saturday, April 20, 2024

कोरोना एक नए युग की महामारी है

कोरोना महामारी का असर बताता है कि आज की दुनिया किस कदर आपस में गुंथ चुकी है। तमाम आबादियों के बीच अविभाज्य संपर्क तैयार हो चुके हैं। राष्ट्रीय राज्यों की सीमाएं वास्तव में टूट चुकी हैं। दुनिया का कोई कोना अब पहले के जमाने की तरह अलग-थलग, कटा हुआ नहीं रह गया है।

महामारियों ने मनुष्यों के बीच आपसी व्यवहार और सभ्यता के इतिहास पर पहले भी बड़ा असर डाला है, लेकिन कोरोना के असर की गहराई और व्यापकता से पहले की किसी भी महामारी से इसीलिए तुलना नहीं की जा सकती है, क्योंकि आज की दुनिया एक बदली हुई दुनिया है। परस्पर निर्भरशीलता इस दुनिया की एक ठोस सचाई है।

इसीलिए कोरोना के आर्थिक-सामाजिक प्रभावों का अभी कोई भी पूरा अनुमान नहीं लगा सकता है। मानव सभ्यता के सामने अस्तित्व के इस नए संकट में ही वैश्विक मनुष्य की श्रेष्ठ नैतिकता और संहिता को सामने आना है। यह आज के काल की सबसे बड़ी चुनौती है।

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लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

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