नरसंहार के आह्वान के बाद कल केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का एक बयान दिखा, जिसमें वे कह रहे हैं, धर्म संसद के बयानों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है। यह बयान तब आया, जब उस तथाकथित धर्म संसद के बयानों पर पहले पांच पूर्व सेनाध्यक्षों सहित सुरक्षा बलों के रिटायर्ड प्रमुखों और वरिष्ठ अधिकारियों ने आपत्ति दर्ज कराई, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और इन घृणावादी भगवाधारी आतंकी और भड़काऊ बयान देने के वाले गिरोह के लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करने के लिये सरकार से आग्रह किया।
बाद में फिर इस निहायत गैर कानूनी और संविधान विरोधी हरकत पर, सरकार से कार्यवाही करने के लिये वकीलों और सिविल सोसायटी के लोगों ने भी आवाज़ उठाई और पत्र लिखे। क्या यह आप को असामान्य नहीं लगता कि, दिल्ली, हरिद्वार और रायपुर में खुल कर धर्म के आधार पर नरसंहार के आह्वान और देश को तोड़ने वाली शपथ दिलाने के बाद भी न तो प्रधानमंत्री ने इस पर कोई आपत्ति जताई और न ही भाजपा और आरएसएस के नेताओं और पदाधिकारियों ने। और इतने दिनों बाद, जब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का बयान आता भी है तो, यह कि, इसे गम्भीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है ! कितना गैर जिम्मेदार और हास्यास्पद बयान है यह।
सिविल सोसायटी के लोगों, वकीलों, सेना के पूर्व अधिकारियों द्वारा प्रधानमंत्री को इस आतंकी बयान पर कार्यवाही करने लिये पत्र लिखने के बाद, आईआईएम अहमदाबाद और बैंगलोर के 183 फैकल्टी सदस्य और छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर कहा है कि हाल ही में दिल्ली, हरिद्वार और रायपुर में हुए धर्म संसद के नाम पर घृणा सभा में सामूहिक नरसंहार और समाज को बांटने के लिये भड़काऊ शपथ के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी आश्चर्यजनक है। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गए, इस पत्र में 183 हस्ताक्षरकर्ता हैं, जिनमें आईआईएम बैंगलोर के 13 संकाय सदस्य और आईआईएम अहमदाबाद के तीन संकाय सदस्य भी शामिल हैं। बेंगलुरु और अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थानों के छात्रों और संकाय सदस्यों के समूह ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह पत्र लिखा था। अभद्र भाषा और अल्पसंख्यकों पर हमलों के आह्वान पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि, ‘प्रधानमंत्री की चुप्पी नफरत की आवाजों का साहस बढ़ाती है’।
पत्र के कुछ अंश पढ़ें,
“हमारे देश में बढ़ती असहिष्णुता पर आपकी चुप्पी, माननीय प्रधानमंत्री जी, हमारे और उन सभी के लिए निराशाजनक है, जो हमारे देश के बहुसांस्कृतिक ताने-बाने का महत्व समझते और उसे मानते हैं। आप की यह चुप्पी, माननीय प्रधानमंत्री, नफरत से भरी आवाजों को बढ़ावा देती है और हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है।”
पत्र में कहा गया है कि, प्रधानमंत्री जी, देश को “विभाजित करने की कोशिश करने वाली ताकतों” से दूर रखना आप का दायित्व है और यह हमारा आग्रह भी है।
इस पत्र का मसौदा, आईआईएम बैंगलोर के पांच संकाय सदस्यों, प्रतीक राज (असिस्टेंट प्रोफेसर स्ट्रेटजी) दीपक मलघन (एसोसिएट प्रोफेसर, पब्लिक पॉलिसी), दल्हिया मणि (एसोसिएट प्रोफेसर, उद्यमिता); राजलक्ष्मी वी मूर्ति (एसोसिएट प्रोफेसर, डिसीजन साइंसेस) और हेमा स्वामीनाथन (एसोसिएट प्रोफेसर, पब्लिक पॉलिसी) ने तैयार किया है। डॉ दीपक मालघन एक प्रमुख पारिस्थितिक अर्थशास्त्री भी हैं। डॉ प्रतीक राज ने कहा कि, ‘छात्रों और शिक्षकों के एक समूह ने, यह महसूस करने के बाद, इस घृणा अभियान के बारे में, प्रधानमंत्री की चुप्पी पर, उन्हें पत्र लिख कर अपनी बात कहने की पहल की, क्योंकि, अब “चुप रहना, कोई विकल्प नहीं है”। द इंडियन एक्सप्रेस ने आईआईएम अहमदाबाद और बेंगलुरु के फैकल्टी और छात्रों द्वारा लिखे गए इस पत्र के बारे में विस्तार से डॉ प्रतीक राज से बात भी की है।
प्रधानमंत्री को भेजे गए इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले आईआईएम बैंगलोर के संकाय सदस्यों में ईश्वर मूर्ति हैं जो डिसीजन साइंसेज के प्रोफेसर हैं:, कंचन मुखर्जी (प्रोफेसर, संगठनात्मक व्यवहार और मानव संसाधन प्रबंधन); अर्पित एस (सहायक प्रोफेसर, सार्वजनिक नीति), राहुल डे (प्रोफेसर, सूचना प्रणाली); साईं यायवरम (स्ट्रेटजी के प्रोफेसर); राजलक्ष्मी कामथ (एसोसिएट प्रोफेसर, पब्लिक पॉलिसी), ऋत्विक बनर्जी (एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान); और मनस्विनी भल्ला (एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान) भी हैं। राहुल डे संस्थान के कार्यक्रमों के डीन और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कार्यालय के अध्यक्ष हैं। मनस्विनी भल्ला अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान अनुभाग की अध्यक्ष हैं।
अहमदाबाद में पढ़ाने वाले हस्ताक्षरकर्ता प्रोफेसर अंकुर सरीन (पब्लिक सिस्टम ग्रुप), प्रोफेसर नवदीप माथुर और प्रोफेसर राकेश बसंत (अर्थशास्त्र) हैं। इस संबंध में, प्रो बसंत ने कहा कि पत्र हस्ताक्षरकर्ताओं की स्थिति और उनकी मनोदशा को स्पष्ट करता है और वह इसमें अपनी तरफ से कुछ और नहीं कहना चाहेंगे। प्रो बसंत, आईआईएम में एल्युमनी और एक्सटर्नल रिलेशंस के डीन होने के साथ-साथ जेएसडब्ल्यू चेयर प्रोफेसर ऑफ इनोवेशन एंड पब्लिक पॉलिसी भी हैं। वे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने विषय के विशेषज्ञ माने जाते हैं। इस पत्र के बारे में डॉ राज ने कहा कि हस्ताक्षरकर्ताओं का उद्देश्य इस तथ्य को सबके सामने लाना है कि, “अगर नफरत की आवाजें तेज हो रही हैं तो, उनके विरोध में भी लोगों को खड़ा होना चाहिए।’ डॉ राज की बात, धर्मांधता के इस अंधकार में, उम्मीद की एक किरण की तरह है। प्रबुद्ध नागरिकों का यह दायित्व और कर्त्तव्य है कि वे हर उस आवाज़ के खिलाफ, मज़बूती से उसके प्रतिरोध में खड़े हों, जो देश के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने के लिये स्वार्थ वश उठाई जा रही हो।
एक तरफ बेंगलुरु आईआईएम के कुछ फैकल्टी सदस्य और छात्र, देश मे फर्जी भगवा वेषधारी साधुओं द्वारा आयोजित धर्म संसद की आड़ में खुलेआम हत्या और संगठित अपराध के आह्वान के खिलाफ अपनी आवाज़ उठा रहे हैं वहीं दूसरी ओर, उसी बेंगलुरु के भाजपा सांसद, तेजस्वी सूर्य हिंदुओं को मुसलमानों और ईसाइयों को, हिंदू धर्म में परिवर्तन के लिये टाइम टेबल की घोषणा कर रहे हैं। यह अलग बात है कि, उन्होंने अपने इस विवादास्पद बयान और कार्यक्रम के लिये माफी मांग ली है। पर यह उनका हृदय परिवर्तन नहीं है और न ही यह उनकी सुबुद्धि का जगना है, बल्कि यह उनका भय है और वह यह बात भी अच्छी तरह से जानते हैं कि, इस विभाजनकारी एजेंडे में वे आगे चल कर बुरी तरह विफल होंगे।
पत्र के एक अंश में लिखा है, “हमारा संविधान, हमें बिना किसी डर के, बिना शर्म के, अपने धर्म को सम्मान के साथ निभाने का अधिकार देता है। हमारे देश में अब भय की भावना है। हाल के दिनों में चर्चों सहित पूजा स्थलों में तोड़फोड़ की जा रही है, और हमारे मुस्लिम भाइयों और बहनों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान किया गया है। और यह सब बिना किसी डर के किया जा रहा है।”
पत्र के अंत में, प्रधानमंत्री से अनुरोध किया गया है कि, नागरिकों को धर्म के आधार पर विभाजित करने की कोशिश करने वाली ताकतों के खिलाफ वे मजबूती से खड़े हों और खड़े दिखें भी।
पत्र में कहा गया है, “हम आपके नेतृत्व से, एक राष्ट्र के रूप में, हमारे लोगों के खिलाफ घृणा को भड़काने से दूर करने के लिए हमारे दिमाग और दिलों को मोड़ने के लिए, आग्रह करते हैं। हम मानते हैं कि एक समाज रचनात्मकता, नवाचार और विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, या समाज अपने भीतर विभाजन पैदा कर सकता है। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते हैं जो विश्व में और विविधता के उदाहरण के रूप में खड़ा हो। हम, भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर (IIMB) और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (IIMA) के अधोहस्ताक्षरी संकाय, कर्मचारी और छात्र, आशा और प्रार्थना करते हैं कि आप सही विकल्प बनाने में देश का नेतृत्व करेंगे।”
नितिन गडकरी का यह बयान कि, इसे गम्भीरता से न लिया जाय, सरकार का अपनी जिम्मेदारी से भागना ही है। खुले आम अल्पसंख्यकों के नरसंहार की कसमें खायी जा रही हैं, महात्मा गांधी के प्रति अपशब्द कहे जा रहे हैं, समाज को बांटने की साज़िश रची जा रही है, और सरकार के कैबिनेट मंत्री बजाय इस पर कोई कानूनी कार्यवाही करने, देश को आश्वस्त करने, कानून और व्यवस्था बनाये रखने के प्रति संकल्पित होने के, इस तरह के अत्यंत भड़काऊ और दंगाई बयान पर कह रहे हैं कि, इसे नज़रअंदाज़ किया जाय !
यह पहला उदाहरण नहीं है कि, जब सरकार, विभाजनकारी एजेंडे और समाज में हिंसा फैलाने वाले बयानों और कृत्यों पर साजिशन चुप रही हो। चाहे, गौरक्षा से जुड़े गुंडों द्वारा फैलाई गई अराजक हिंसा का मामला हो, या बुल्ली बाई एप के बहाने मुस्लिम महिलाओं की शर्मनाक नीलामी का मामला हो या क्रिसमस के अवसर पर भाजपा शासित राज्यों में चर्चों में तोड़फोड़ का मामला हो, ऐसा कभी नहीं लगा कि, केंद्र सरकार जानबूझकर फैलाये जा रहे इन नफरती एजेंडे के खिलाफ खड़ी है। ऐसा नहीं है कि इन सब अपराधों के लिये पुलिस ने मुक़दमे दर्ज नहीं किये, बल्कि पुलिस ने मुक़दमे भी दर्ज किए और कार्यवाही भी कर रही है, पर देश में अराजकता और सामाजिक वैमनस्यता का वातावरण बनाने वाली इन गतिविधियों के बारे में केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री का कोई सख्त रवैया नहीं दिखा। दुर्भाग्य से ऐसे मामलों पर वे चुप हैं। एक अपवाद अवश्य है। जब गौरक्षा के नाम पर देशभर में गुंडई और मारपीट की घटनाएं बढ़ने लगीं तब ज़रूर उन्होंने उन पर टिप्पणी की थी। पर उसी दौरान होने वाली भीड़ हिंसा की अनेक घटनाओं पर प्रधानमंत्री खामोश बने रहे। यहां तक कि, एक मंत्री द्वारा मॉब लिंचिंग के अभियुक्तों के सार्वजनिक स्वागत पर भी, वे खामोश बने रहे।
आखिर वे बोलते किसके खिलाफ और रोकते किसको ? यह सब करने वाले तो सत्तारूढ़ दल, भाजपा और आरएसएस से ही जुड़े लोग हैं। अभी बुल्ली बाई ऐप के बारे में मुंबई और दिल्ली पुलिस ने 7 ऐसे युवाओं को गिरफ्तार किया है, जो अच्छे कॉलेजों में पढ़ रहे हैं, पर पिछले लंबे समय से चले आ रहे मुसलमानों के प्रति संगठित रूप से फैलाये जा रहे घृणावादी दुष्प्रचार की चपेट में आकर, वे ऐसे जघन्य आपराधिक जाल में फंस गए हैं कि, उन्हें शायद खुद ही यह अहसास न हो कि, वे क्या कर बैठे हैं। यह दुष्प्रचार और घृणा एक मनोरोग के रूप में संक्रमित हो रही है जिसके शिकार युवा मस्तिष्क तेजी से हो रहे हैं।
क्या प्रधानमंत्री को समाज में फैल रहे इस घातक संक्रमण के खिलाफ सामने आकर अपनी बात नहीं कहनी चाहिए ? प्रधानमंत्री कम से कम अपने मासिक उद्बोधन, ‘मन की बात’ में तो वे युवाओं को, ऐसे नफरती वातावरण से बचने की अभिभावकीय राय तो दे ही सकते हैं। हरिद्वार धर्म संसद में जो कुछ कहा गया वह पूरी दुनिया के अखबारों और सोशल मीडिया पर छपा। इस खबर को पढ़ने और जानने वाले अधिकांश, दुनिया के एक तार्किक, दर्शन की विविधताओं से भरे हुए, तमाम धार्मिक संकीर्णताओं से मुक्त हिंदू धर्म के इन नए अराजक साधुओं की यह सभा और उनके बयानों को सुनकर हैरान हैं। आधुनिक पश्चिम ने हिंदू धर्म को, विवेकानंद, अरविंदो, प्रभुपाद, रमण महर्षि, कृष्णमूर्ति, योगानंद परमहंस जैसे धर्म के प्रतिनिधियों के माध्यम से देखा और समझा है और अब वे यूरोपीय फासिज़्म से प्रेरित धार्मिक राष्ट्रवाद के हिन्दुत्व के इस नए रूप, जो तालिबानी आवरण में पल रहा है, को देख रहे हैं। हिंदू धर्म का यह दुर्भाग्यपूर्ण और आपराधिक रूपांतरण, उनके लिये एक अजूबा ही है।
प्रधानमंत्री की चुप्पी सच में हैरान करने वाली है और जैसा कि आईआईएम अहमदाबाद और बेंगलुरु के फैकल्टी सदस्य और छात्रों ने कहा है कि, उनकी चुप्पी नफरत की आग फैलाने वाले तत्वों का और साहस ही बढ़ाएगी। आज ज़रूरत है, समाज के सभी वर्गों को देश को तोड़ देने वाले इस घातक आह्वान और संविधान विरोधी शपथ के खिलाफ खड़े होने की अन्यथा, हम एक बीमार, और घृणा से बजबजाते समाज मे बदल जाएंगे। यह जहर, सड़कों चौराहों से पसर कर घरों में आ गया और युवा मन मस्तिष्क को बुरी तरह से संक्रमित कर रहा है।
(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)
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