Friday, March 29, 2024

अदालती फैसलेः मास्क के लिए सड़क पर कार पब्लिक प्लेस, एनडीपीएस के लिए निजी वाहन

कुछ दिनों पहले ही मास्क को लेकर सुनवाई कर रहे दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि आपकी कार में एक ही आदमी क्यों न हो लेकिन अगर वो सड़क पर है तो उसे पब्लिक प्लेस ही माना जाएगा, लेकिन अब उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोई निजी वाहन सार्वजनिक स्थल की परिभाषा के तहत नहीं आता है। उच्चतम न्यायालय के जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा है कि मादक पदार्थ निरोधक कानून (एनडीपीएस) के तहत दिये गए स्पष्टीकरण के तहत कोई निजी वाहन सार्वजनिक स्थल की परिभाषा के तहत नहीं आता है।

दरअसल कुछ दिनों पहले ही मास्क को लेकर सुनवाई कर रहे दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि आपकी कार में एक ही आदमी क्यों न हो लेकिन अगर वो सड़क पर है तो उसे पब्लिक प्लेस ही माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा था कि भले ही कार में एक ही व्यक्ति हो, लेकिन है तो यह पब्लिक स्पेस ही। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर निर्णय करते हुए उच्चतम न्यायालय ने  एनडीपीएस कानून के तहत आरोपी की दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करते हुए कहा कि एनडीपीएस के तहत दिये गए स्पष्टीकरण के तहत कोई निजी वाहन सार्वजनिक स्थल की परिभाषा के तहत नहीं आता है। आरोपियों के पास से अफीम की भूसी के दो बैग बरामद हुए थे जब वे एक सार्वजनिक स्थान पर एक जीप में बैठे हुए थे।

पीठ ने कहा कि एक निजी वाहन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 की धारा 43 में दी गई व्याख्या के अनुसार ‘सार्वजनिक स्थान’ की अभिव्यक्ति में नहीं आएगा। पीठ ने कहा कि धारा 42 का पूरा गैर-अनुपालन असंभव है, हालांकि इसकी कठोरता कुछ स्थितियों में कम हो सकती है। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं को तत्काल रिहा किया जाए जब तक कि उनकी हिरासत किसी अन्य अपराध के संबंध में आवश्यक नहीं हो। एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 के तहत किसी निर्दिष्ट अधिकारी को किसी संदिग्ध मादक पदार्थ मामलों में प्रवेश, तलाशी, जब्ती या गिरफ्तार करने की शक्तियां हैं।

आरोपियों की सजा को बरकरार रखते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था कि आरोपी के मामले को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 43 द्वारा कवर किया जाएगा और धारा 42 द्वारा नहीं। धारा 42 बिना वारंट और प्राधिकार के प्रवेश, तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित है, जबकि धारा 43 सार्वजनिक स्थान पर जब्ती और गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित है।

पीठ ने कहा, “वाहन का पंजीकरण प्रमाणपत्र, जिसे रिकॉर्ड पर रखा गया है, यह नहीं बताता है कि यह सार्वजनिक परिवहन वाहन है। धारा 43 के स्पष्टीकरण से पता चलता है कि एक निजी वाहन एनडीपीएस अधिनियम की धारा 43 में उल्लेखित ‘सार्वजनिक स्थान’ की परिभाषा के भीतर नहीं आएगा।” पीठ ने कहा कि इस अदालत के निर्णय के आधार पर संबंधित प्रावधान एनडीपीएस अधिनियम की धारा 43 नहीं होगी, लेकिन मामला एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 के तहत आएगा।

पीठ ने कहा कि यह स्वीकार किया गया है कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 की आवश्यकताओं का पूरी तरह से गैर-अनुपालन था, इसलिए हम इस अपील को स्वीकार करते हैं, उच्च न्यायालय द्वारा अपनाये गए दृष्टिकोण को दरकिनार करते हैं और अपीलकर्ताओं को उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी करते हैं।

इसके पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार सात अप्रैल 2021 को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही आप अपनी कार में अकेले हों, लेकिन मास्क पहनना अनिवार्य है, क्योंकि आपकी कार पब्लिक प्लेस में होती है तो आपको और आपसे दूसरों को कोरोना वायरस फैलने का खतरा बना रहता है। कार में अकेले होने पर भी जुर्माना झेलने वाले लोगों की तरफ से याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने कहा कि कोरोना के चलते भले ही आप अपने वाहन में अकेले हों या कई लोग हों, मास्क या फेसकवर पहनना जरूरी है। एकल पीठ का तर्क था कि अगर आपकी निजी कार भी सार्वजनिक सड़क या पब्लिक स्पेस में है, तो उसे पब्लिक स्पेस ही माना जाएगा।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने ‘पब्लिक प्लेस’ को लेकर कहा कि इसे यूनिवर्सली एक परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता। उन्होंने मोटर व्हीकल एक्ट, सीसीपी, इमोरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट, नारकोटिक्स एक्ट और पब्लिक प्लेस में धूम्रपान निषेध जैसे कई कानूनों में ‘पब्लिक प्लेस’ की परिभाषा की चर्चा करते हुए कहा कि हालात और मामले के मुताबिक ही पब्लिक प्लेस को समझा जा सकता है। जस्टिस प्रतिभा सिंह ने हवाला दिया कि ‘पब्लिक प्लेस’ को लेकर उच्चतम न्यायालय ने यही रूलिंग रखी है कि कोई भी पब्लिक प्रॉपर्टी इस परिभाषा में है और वो प्राइवेट प्रॉपर्टी भी जो पब्लिक की पहुंच में हो।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने पब्लिक प्लेस की परिभाषा को बिहार के मामले में उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अगर पब्लिक रोड पर कोई आदमी प्राइवेट कार में जा रहा हो तो भी वह पब्लिक प्लेस ही माना जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि प्राइवेट कार में लोगों की पहुंच नहीं हो सकती, क्योंकि ये प्राइवेट वाहन में बैठे लोगों का अधिकार है, लेकिन पब्लिक रोड पर चलने वाली प्राइवेट गाड़ी पब्लिक प्लेस है और उसे अप्रोच किया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने बिहार के एक मामले में शराब पीकर गाड़ी में चलने या ड्राइव करने पर पुलिस की कार्रवाई को सही माना है। उच्चतम न्यायालय का यह आदेश पटना हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान आया।

याचिकाकर्ता ने बिहार के एक्साइज एक्ट के प्रावधान को चुनौती दी थी। इस कानून के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ संज्ञान लिया गया था, जिसे खारिज करने की मांग पटना हाई कोर्ट ने ठुकरा दी थी। इसके बाद मामला उच्चतम न्यायालय के सामने आया था। 

याचिकाकर्ता कुछ लोगों के साथ 25 जून, 2016 को पटना से झारखंड के गिरडीह जा रहे थे। बिहार के नवादा जिले में एक पुलिस चौकी पर उनका वाहन चेकिंग के तहत रोका गया। जांच में पाया गया कि वे नशे में थे। वैसे वाहन में शराब की कोई बोतल नहीं थी। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिन जेल में भी रहे। बिहार में शराबबंदी लागू है। उन लोगों ने मजिस्ट्रेट के आदेश को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। पटना हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को दरकिनार करने की मांग संबंधी उनकी अर्जी खारिज कर दी। मजिस्ट्रेट ने उनकी इस हरकत (शराब पीकर सफर करने को) बिहार आबकारी (संशोधन) अधिनियम, 2016 के तहत दंडनीय अपराध के रूप में संज्ञान लिया था।

उनकी दलील थी कि उन्होंने बिहार की सीमा में अल्कोहल का सेवन नहीं किया था, जहाँ शराबबंदी लागू थी, और दूसरी दलील ये थी कि उन्होंने पब्लिक स्पेस में नहीं बल्कि अपनी प्राइवेट कार में शराब पी थी। सुनवाई के दौरान पहले तर्क को तो उच्चतम न्यायालय ने माना और सिंह से इत्तेफाक जताया, लेकिन दूसरी दलील को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा था कि ये सही है कि किसी को अधिकार नहीं है कि बगैर इजाज़त किसी प्राइवेट वाहन को अप्रोच करे, लेकिन यह भी सही है कि पब्लिक रोड पर प्राइवेट वाहन हो तो लोग उसके संपर्क में आते हैं। इसलिए सड़क पर खड़े या चल रहे प्राइवेट वाहन को पब्लिक स्पेस ही माना जाएगा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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