Thursday, April 25, 2024

बलि के बकरे और पवित्र गायें: सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के युग में अपराध और न्याय

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में 2019 में हुई हिंसा के सिलसिले में 11 विद्यार्थियों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें शरजील इमाम नामक जेएनयू का छात्र शामिल था। अन्य में सफूरा ज़रगर और आसिफ इकबाल तन्हा जैसे विद्यार्थी थे। इन सभी को डिस्चार्ज (उन्मोचित) करते हुए दिल्ली की एक अदालत ने कहा, “पुलिस असली दोषियों को पकड़ नहीं सकी और उसने इन लोगों को बलि का बकरा बनाया।”

अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस इस मामले में एक के बाद एक पूरक चालान पेश करती जा रही है, जिनमें कुछ भी नया नहीं होता। निश्चित तौर पर ऐसा केवल मामले को लम्बा खींचने के लिए किया जा रहा है ताकि इन 11 लोगों को जेल में रखा जा सके।

जहां शांति और सौहार्द की बात करने वाले उमर खालिद जैसे लोग सीखचों के पीछे हैं वहीं ‘गोली मारो’ का नारा देने वाले अनुराग ठाकुर को राज्य मंत्री से पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है।

कोविड महामारी के शुरुआती दौर में तबलीगी जमात ने दिल्ली में अपना एक सम्मेलन आयोजित किया। इसमें भाग लेने कुछ लोग विदेश से आए। गोदी मीडिया तुरंत सक्रिय हो गई। तबलीगी जमात के सदस्यों को कोरोना फैलाने के लिए ज़िम्मेदार करार दे दिया गया। उन्हें कोरोना जिहादी और कोरोना बम बताया गया। कई को गिरफ्तार भी किया गया।

लगभग उसी समय ‘नमस्ते ट्रम्प’ नाम का एक विशाल आयोजन अहमदाबाद में किया गया। उसी समय कनिका कपूर नामक गायिका ने विदेश से आकर भारत में कई शो किये। एक सिक्ख ग्रंथी भी समुद्रपार से आकर सभाएं कर रहे थे।

तबलीगी जमात के जिन सदस्यों को गिरफ्तार किया गया, उन्हें काफी कष्ट भोगने के बाद, निर्दोष घोषित कर रिहा कर दिया गया। उन्हें दोषमुक्त करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, “राजनैतिक सरकार किसी भी आपदा या महामारी के समय बलि के बकरे ढूंढने का प्रयास करती है।

परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि शायद इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था। ऊपरवर्णित परिस्थितियों और भारत में संक्रमण के ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि याचिकर्ताओं के खिलाफ यह कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए थी।”

मालेगांव, मक्का मस्जिद और अजमेर में कई बम धमाकों के बाद, बड़ी संख्या में मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया गया था। बाद में उनके खिलाफ कोई सुबूत न मिलने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया। परन्तु इस बीच उनके करियर बर्बाद हो गए और उन्हें व उनके परिवारों को भारी बदनामी झेलनी पड़ी। उस समय अनहद नामक मानवाधिकार संगठन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसका शीर्षक था, “स्केपगोट्स एंड होली काऊज (बलि के बकरे और पवित्र गाएं)”।

इसी तरह, जामिया टीचर्स एसोसिएशन की रिपोर्ट का शीर्षक था, “फ्रेम्ड, डैम्ड एंड एक्विटिड (फंसाओ, अपराधी घोषित करो, बरी कर दो)”। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि अक्सर मुसलमानों को झूठे मामलों में फंसाया जाता है, उन पर मुकदमे चलते हैं और लम्बे समय तक जेल में रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया जाता है। कई मामलों में अदालतें उनकी मददगार होती हैं।

इसी कहानी का दूसरा पक्ष भी है। कई भगवाधारी और सांप्रदायिकता प्रेमी बिना किसी डर के नफरत फैलाते हैं। इसका एक उदाहरण हैं भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर, जो मालेगांव बम धमाके मामले में ज़मानत पर हैं। उन्होंने लोगों से आव्हान किया कि वे लव जिहाद करने वालों से निपटने के लिए चाकुओं में धार करवा कर रखें।

पिछले कुछ समय से अनेक साधु-सन्यासी और यहां तक कि सत्ताधारी दल से जुड़े लोग नफरत फैलाने वाले भाषण दे रहे हैं। सार्वजनिक सभाओं में भाजपा के नेता भी विषवमन कर रहे हैं।

‘हिन्दू जनाक्रोश मोर्चा’ नामक एक संगठन ने महाराष्ट्र में 20 से अधिक रैलियां आयोजित कर धर्मपरिवर्तन और ‘लव जिहाद’ को लेकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ ज़हर उगला। संगठन ने 6 फरवरी को मुंबई में रैली आयोजित करने की घोषणा की थी जिसमें धर्मपरिवर्तन और लवजिहाद के मामले उठाने के अलावा, मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार का आव्हान भी किया जाना था।

इस आयोजन के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की गई। अदालत ने पुलिस को ‘हेट स्पीच’ के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के अंतर्गत कार्यवाही करने का आदेश दिया। जब यह प्रावधान है तो पुलिस ने पहले इसका उपयोग क्यों नहीं किया?

दिल्ली के जंतर-मंतर पर 5 फरवरी 2023 को विभिन्न हिंदुत्व संगटनों ने एक रैली आयोजित की जिसमें मुसलमानों और ईसाईयों को मारने के लिए हथियार इकठ्ठा करने का आव्हान किया गया। ‘द स्क्रोल’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, “एक वीडियो, जिसे सोशल मीडिया पर जम कर शेयर किया गया, में एक साधु हिन्दुओं से आव्हान कर रहा है कि वे ईसाईयों और मुसलमानों को मारने के लिए हथियार एकत्रित करें।

एक अन्य वीडियो में भारतीय जनता पार्टी के नेता सूरज पल अमु हिंसा करने की बात कह रहा है। कुछ इसी तरह के आव्हान यति नरसिंहानंद एंड कंपनी धर्मसंसदों में करते आए हैं। इन सभी को सरकार का संरक्षण प्राप्त है और कुछ भी कहने की स्वतंत्रता भी।

यति, जो जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर हैं, के खिलाफ हरिद्वार में आयोजित धर्मसंसद में महिलाओं के बारे में टिप्पणियों के सिलसिले में और अन्य मामलों में एफआईआर दायर की गईं। उन्हें गिरफ्तार भी किया गया परन्तु उन्हें आसानी से जमानत मिल गई।

अब ज़रा क्रोनोलोजी समझिये। मुस्लिम युवकों को अक्सर यूएपीए (गैर-क़ानूनी गतिविधियां निरोधक अधिनियम) व अन्य सख्त कानूनों के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाता है जिनमें ज़मानत मिलना अपेक्षाकृत कठिन होता है। उन्हें ज़मानत न मिल सके और वे ज्यादा से ज्यादा समय जेल में बिताएं इसके लिए सभी ज़रूरी इंतजाम किये जाते हैं। हिन्दुत्व के झंडाबरदारों, भाजपा के नेताओं और भगवाधारियों के खिलाफ मामूली धाराओं में मामले दर्ज होते हैं और उन्हें यदाकदा ही जेल जाना पड़ता है।

सांप्रदायिक राजनीति के उभार के साथ हमारे देश में दो अलग-अलग न्याय प्रणालियां विकसित हो गईं हैं। ज़बरदस्त दुष्प्रचार ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ पूर्वाग्रह और उनके बारे में अनेक गलतफहमियां लोगों के मन में बैठा दीं हैं। मीडिया का एक बड़ा तबका, आईटी सेल और व्हाट्सएप ग्रुप नफरत फैला रहे हैं।

शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह, राणाप्रताप आदि के बहाने अलाउद्दीन खिलजी, अकबर, औरंगजेब और अन्य मुस्लिम शासकों के बारे में बेबुनियाद बातें आरएसएस के शाखाओं में स्वयंसेवकों को सिखाई जा रहीं हैं। प्रचारक के स्तर पर महीनों लम्बे प्रशिक्षण के ज़रिये स्वयंसेवकों को हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा का कट्टर समर्थक बनाया जा रहा है।

यह तो हुई ज़मीनी स्तर की बात। जैसे-जैसे ये प्रचारक आरएसएस की राजनैतिक व अन्य शाखाओं में उच्च स्तर पर पहुंचते जाते हैं, उन्हें अपने अन्दर भरी नफरत को मीठी चाशनी में लपेट कर परोसना सिखाया जाता है। इसी के चलते आरएसएस के मुखिया कहते हैं कि देश के सभी निवासी हिन्दू हैं और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना पर जोर देते हैं।

यहां तक कि इससे प्रभावित होकर कई चिंतकों और अध्येताओं को लगने लगता है कि आरएसएस के साथ संवाद स्थापित किया जाना चाहिए। योगी आदित्यनाथ सनातन हिन्दू राष्ट्र की बात करते नज़र आते हैं।

भावनात्मक मुद्दों को उठाकर हालात को और गंभीर बनाया जा रहा है। राममंदिर, बीफ और जिहाद की अलग-अलग किस्मों के नाम पर समाज को बांटा जा रहा है। इन्हीं मुद्दों और नफरत के सहारे सांप्रदायिक राष्ट्रवादी विचारधारा अपने को मज़बूत कर रही है। इस स्थिति को बदलने के लिए भाईचारे को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। लोगों और विशेषकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को भारत की बहुवादी और समावेशी संस्कृति से परिचित करवाया जाना भी आवश्यक है।

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया; लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी अवॉर्ड से सम्मानित हैं)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles