साइबर विशेषज्ञों को पेगासस जासूसी के लिए सेंध लगाने के ठोस सबूत मिले, नया हलफनामा

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पेगासस विवाद मोदी सरकार के गले की हड्डी बनता जा रहा है। अभी एक विवाद ठंडा भी नहीं होता तब तक दूसरा विवाद सतह पर आ जाता है। न्यूयॉर्क टाइम्स के खुलासे के बीच पेगासस विवाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित जस्टिस रविन्द्रन कमेटी के सामने याचिकाकर्ताओं द्वारा एक नया हलफनामा दाखिल किया गया है। इस हलफनामे में कई फोन में जासूसी को लेकर एक्सपर्ट्स की जांच रिपोर्ट का जिक्र किया गया है। दरअसल, पेगासस मामले में जांच की याचिका लगाने वाले याचिकाकर्ताओं ने अपने फोन की फोरेंसिक जांच के लिए कुछ तकनीकी एक्सपर्ट्स की मदद ली थी। दावा है कि इन विशेषज्ञों को याचिकाकर्ताओं में से कुछ के स्मार्टफोन में पेगासस की सेंध के सबूत मिले हैं। इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में दी गई है।

पेगासस सॉफ्टवेयर यूजर्स के फोन को ट्रैक करता है। वर्ष 2020-21 में कंपनी पर दुनिया भर के तमाम देशों में यूजर्स के डेटा का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था। आरोप है कि कंपनी ने डेटा को भारत समेत विभिन्न देशों की सरकारों को दिया। इस मामले में जांच के लिए उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दाखिल की गईं। उच्चतम न्यायालय ने जांच के लिए साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों की कमेटी बनाई है। पेगासस विवाद में जस्टिस रविन्द्रन कमेटी के सामने याचिकाकर्ताओं द्वारा एक नया हलफनामा दाखिल किया गया है। इस हलफनामे में कई फोन में जासूसी को लेकर एक्सपर्ट्स की जांच रिपोर्ट का उल्लेख किया गया है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा, कुछ याचिकाकर्ताओं ने सायबर सिक्योरिटी के विशेषज्ञों से जासूसी के लिए इस्तेमाल होने की आशंका वाले कुछ फोन की जांच कराई थी। हलफनामे में दो एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा गया है कि जांच के लिए उनके सामने लाए गए कई फोन में से कुछ में जासूसी के लिए सेंध लगाने के ठोस सबूत मिले हैं। हलफनामे के मुताबिक, साइबर सिक्योरिटी के एक रिसर्चर को 7 आईफोन दिए गए। उनमें से दो में पेगासस की मौजूदगी और सेंध के छेड़छाड़ मिले। इस रिसर्चर ने अपनी जांच से सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त समिति को भी हलफनामे के जरिए जानकारी दी है।

एक अन्य साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर ने याचिकाकर्ताओं में से 6 के एंड्रॉयड फोन की जांच की। इनमें से चार में तो बहुत दूर से तकनीक के जरिए संक्रमण यानी फोन के सुरक्षा घेरे में घुसपैठ के सबूत मिले,जबकि दो में तो कई बार घुसपैठ के सबूत मिले हैं।

पेगासस सॉफ्टवेयर यूजर्स के फोन को ट्रैक करता है। हाल ही में कंपनी पर दुनियाभर के तमाम देशों में यूजर्स के डेटा का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था। आरोप है कि कंपनी ने डेटा को भारत समेत विभिन्न देशों की सरकारों को दिया, जिन्होंने राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी करने में इसका इस्तेमाल किया। इसके बाद उच्चतम न्यायालय में इस मामले में जांच के लिए कई याचिकाएं दाखिल की गईं। उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 21में इस मामले की जांच के लिए रिटायर्ड जज जस्टिस आरवी रवींद्रन की अगुआई में साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों की समिति बनाई थी। समिति में साइबर सिक्योरिटी के तीन विशेषज्ञों में गांधीनगर में नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के डीन प्रोफेसर डॉ नवीन कुमार चौधरी, केरल के अमृता विश्वविद्यापीठम में प्रोफेसर पी प्रभारन और आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर अश्विन अनिल गुमाश्ते शामिल हैं।

इस जांच समिति ने जनवरी में आम जनता से जांच में सहयोग मांगा था। जांच कमेटी ने कहा था कि अगर किसी को लगता है कि उसके फोन में जासूसी हुई है, तो वे कमेटी से संपर्क कर सकते हैं। हालांकि इसी दौरान याचिकाकर्ताओं में से कुछ ने भी अपने फोन की जांच कराई।

ये पहली बार नहीं है कि इसराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाईवेयर का जिक्र पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाने बनाने को लेकर हुआ है। ये सॉफ़्टवेयर किसी के स्मार्टफोन में बिना यूजर की जानकारी के डिजिटल सेंधमारी कर सकता है और उसकी तमाम जानकारियां दूर से चुरा सकता है। साल 2019 में जब व्हॉट्सऐप ने इस बात की पुष्टि की उसके कुछ यूजर्स को स्पाईवेयर के जरिए टारगेट किया गया था तो भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में इसे लेकर हंगामा मचा था। तब हैकिंग की इस घटना में भारत के 121 यूजर्स को टारगेट किया गया था जिनमें ऐक्टिविस्ट, स्कॉलर और पत्रकार लोग शामिल थे। विशेषज्ञों का कहना था कि भारत में इस घटना के पीछे सरकारी एजेंसियों की भूमिका हो सकती है।

गौरतलब है कि भारत में केंद्र और राज्य सरकार के गृह मंत्रालय के वरिष्ठतम अधिकारी के आदेश से ही ‘देश की संप्रुभता और एकता के हित में’ फोन टैपिंग की जा सकती है। भारत में लगभग दस एजेंसियां ऐसी हैं जिन्हें क़ानूनी तौर पर लोगों के फोन टैप करने का अधिकार है। इनमें सबसे ताक़तवर है 134 साल पुरानी सरकारी एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो है। ये देश की सबसे बड़ी और सबसे ताक़तवर खुफिया एजेंसी है और इसके पास व्यापक शक्तियां हैं।

द वायर द्वारा की गई जांच में बताया गया था कि संभावित लक्ष्यों की सूची में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, अब सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (जो एक मंत्री नहीं थे, जब कथित निगरानी के बारे में कहा जाता है), कई अन्य प्रमुख नामों के साथ सूची में द इंडियन एक्सप्रेस के तीन संपादकों- दो वर्तमान और एक पूर्व सहित लगभग 40 पत्रकारों की संख्या का भी उल्लेख है। जिसमें झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह और उनकी पत्नी ईप्सा सताक्षी भी शामिल थीं। जस्टिस रवींद्रन समिति के सामने उन्होंने अपना पक्ष रखा था। उनका यह बयान 20 जनवरी को ऑन लाइन दर्ज हुआ था। रूपेश कुमार सिंह का कहना है कि “जस्टिस रवींद्रन ने उनसे पूछा कि आपका मामला तो राज्य केंद्रित लगता है इस पर मैंने कहा ऐसा नहीं है। राज्य से संबंधित किसी मामले में मैं निशाने पर नहीं हूं। बल्कि यह पूरी तरह से केंद्र से जुड़ा मामला लगता है।” इस मौके पर उनकी पत्नी ईप्सा सताक्षी ने भी अपना बयान दर्ज कराया था। रूपेश ने जनचौक से बातचीत में बताया कि उन्होंने भी अपना मोबाइल जांच के लिए भेजा है।

पेगासर स्पाईवेयर पर संसद को गुमराह करने के खिलाफ कांग्रेस बजट सत्र में आईटी मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाएगी। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है। चौधरी ने पत्र में मांग की है  कि पेगासस मुद्दे पर सदन को जानबूझकर गुमराह करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव शुरू किया जाए। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के एक दिन बाद यह पत्र भेजा है। अखबार की खबर में दावा किया गया था कि इजराइली स्पाईवेयर पेगासस और एक मिसाइल प्रणाली का सौदा 2 अरब डॉलर का मुख्य हिस्सा थे।

इस बीच एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के जांच पैनल को लिखा है कि वह पेगासस पर न्यूयॉर्क टाइम्स की हालिया रिपोर्ट के दावों की जांच करे और भारतीय नागरिकों के खिलाफ स्पाइवेयर के कथित इस्तेमाल की भी जांच करे। गिल्ड ने एक बयान में कहा कि उसने रिपोर्ट में किए गए दावों को बड़ी चिंता के साथ नोट किया है कि भारतीय और इजराइली सरकारें लगभग 2 अरब डॉलर के हथियार सौदे पर सहमत हुई थीं। इसी सौदे में पेगासस और एक मिसाइल प्रणाली खरीदी गई थी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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