Sunday, May 28, 2023

दिल्ली कोर्ट ने दिए एक्टिविस्ट देवांगना, नताशा और आसिफ की तत्काल रिहाई के आदेश

दिल्ली कड़कड़डूमा कोर्ट में दिल्ली पुलिस को उस समय मुंह की खानी पड़ी जब दिल्ली पुलिस के इस तर्क को खारिज करते हुए कि आरोपियों के पतों और उनके ज़मानत को सत्यापित करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है, कोर्ट ने कहा है कि नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को कैद में रखने के लिए तर्कसंगत कारण नहीं हो सकता है। कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 15 जून को दी गई जमानत के अनुसार तत्काल रिहा करने के आदेश जारी किए हैं।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आवेदनों को खारिज कर दिया, जिसमें कार्यकर्ताओं के पते और उनके जमानतदारों की जांच के लिए और समय की मांग की गई थी। कोर्ट ने आगे कहा कि सभी जमानतदारों की जांच रिपोर्ट कल दोपहर 1 बजे से पहले दाखिल की जानी चाहिए क्योंकि वे सभी दिल्ली के निवासी हैं। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने आदेश दिया कि आरोपी को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया जाता है। चूंकि आरोपी के स्थायी पते की जांच के लिए कुछ समय की आवश्यकता होगी। इस संबंध में रिपोर्ट जांच अधिकारी द्वारा संबंधित अदालत के समक्ष 23 जून2021 को दोपहर 2:30 बजे या उससे पहले दायर की जाए।

अदालत ने कहा कि रिहाई वारंट तत्काल तैयार कर जेल अधीक्षक को ईमेल के जरिए भेजा जाए। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने इससे पहले दिल्ली पुलिस द्वारा आरोपियों और जमानतदारों के पते की जांच करने के लिए समय मांगने के बाद उनकी रिहाई पर आदेश टाल दिया था।

दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में 15 जून को दिल्ली दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत पाने वाली छात्र कार्यकर्ता देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा ने इस बीच निचली अदालत में उनकी रिहाई को टालने के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

इसके पहले जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ (जिसने जमानत दी) ने कहा कि निचली अदालत को इस मामले पर तेजी से विचार करना चाहिए और पक्षों को आज दोपहर 12 बजे निचली अदालत में पेश होने को कहा है। हाईकोर्ट को आज दोपहर साढ़े तीन बजे इस मामले पर विचार करना था। निचली अदालत ने कल नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा की रिहाई पर आदेश सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली पुलिस द्वारा उनके पतों की जांच और उनके जमानतदारों के आधार कार्ड की जांच के लिए कुछ और समय मांगने के लिए आवेदन करने के बाद हेवी बोर्ड का हवाला देते हुए आज सुबह 11 बजे की रिहाई का आदेश टाल दिया था।

दिल्ली पुलिस ने कहा था कि छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार उनकी रिहाई के उद्देश्य से उनके बाहरी स्थायी पते को जांच करने की आवश्यकता है। दिल्ली पुलिस ने अदालत के समक्ष दायर आवेदन में कहा था किसी भी आरोपी व्यक्ति का बाहर का स्थायी पता की जांच लंबित है और समय की कमी के कारण पूरा नहीं किया जा सका है। दिल्ली पुलिस ने मामले में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय मांगते हुए कहा था कि चूंकि आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवनागा कलिता झारखंड, असम और रोहतक के स्थायी निवासी हैं, इसलिए जांच एजेंसी को उक्त जांच रिपोर्ट दाखिल करने में समय लगेगा। दिल्ली पुलिस ने इसके अलावा जमानतदारों के आधार कार्ड के विवरण की जांच करने के लिए यूआईडीएआई को निर्देश देने की भी मांग की थी। हाईकोर्ट ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को 15 जून को जमानत दी थी।

दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दिल्ली दंगों के एक मामले में आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है।

दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली दंगों के एक मामले में आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए बुधवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया।याचिका में कहा गया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक जांच किसी भी तरह यह स्थापित करने के लिए थी कि विरोध केवल असंतोष था।

याचिका में कठोर शब्दों में उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण की निंदा करते हुए कहा गया है कि न्यायिक जांच किसी तरह यह स्थापित करने के लिए थी कि वर्तमान मामला छात्रों के विरोध और उस समय की सरकार द्वारा असंतोष को दबाने का मामला था। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का निष्कर्ष बिना किसी आधार के है और चार्जशीट में एकत्रित और विस्तृत सबूतों की तुलना में सोशल मीडिया पर अधिक आधारित है।

दिल्ली पुलिस ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि हाईकोर्ट ने इस मामले का फैसला पूर्व-कल्पित और पूरी तरह से गलत भ्रम पर किया जैसे कि वर्तमान मामला छात्रों के विरोध का एक सरल मामला था। उच्च न्यायालय ने अपने सामने पेश किए गए सबूतों और बयानों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया और उन सबूतों को खारिज करते हुए फैसले पर पहुंचे, जो स्पष्ट रूप से अभियुक्तों द्वारा रचे जा रहे बड़े पैमाने पर दंगों की एक भयावह साजिश थी। आतंकवादी गतिविधि के सबूत थे लेकिन  हाईकोर्ट ने सबूतों पर नहीं विचार नहीं किया। उच्च न्यायालय ने मामले के रिकॉर्ड पर मौजूद ठोस सबूतों का विश्लेषण नहीं किया और प्रतिवादी और अन्य सह-साजिशकर्ताओं को जमानत देते समय अप्रासंगिक विचारों को लागू किया।

याचिका में आगे कहा गया है कि तीनों आरोपियों के मामलों के लिए उच्च न्यायालय ने एक ही दृष्टिकोण अपनाया था। हाईकोर्ट ने यह माना कि यूएपीए के प्रावधानों को केवल भारत की रक्षा पर गहरा प्रभाव वाले मामलों से निपटने के लिए लागू किया जा सकता है, न ही इससे ज्यादा और न ही कम। दिल्ली पुलिस ने कहा कि प्रतिवादी को जमानत देने के लिए एक अप्रासंगिक विचार है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

सरकार नाटक वाले वीडियो बनवा कर दिखाने की बजाए दस्तावेज दिखाए: राजमोहन गांधी

‘राजाजी’, यानि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाती और महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने...