दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025, आप पार्टी के लिए जहां अस्तित्व का सवाल है, वहीं भाजपा के लिए अपनी छवि बचाने का। आप पार्टी अगर दिल्ली में हारती है तो उसका राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पड़ेगा और पंजाब में भी वह कमजोर होगी। भाजपा 26 सालों से दिल्ली की सत्ता से दूर है। मोदी के तीसरे कार्यकाल में भी अगर भाजपा दिल्ली में नहीं आती तो मोदी की साख पर भी प्रभाव पड़ेगा।
दिल्ली की हार-जीत दूसरे राज्यों से अलग होती है, क्योंकि मीडिया और पूरे भारत में यहां का चुनाव चर्चा का विषय रहता है। दिल्ली की हार भाजपा के कार्यकर्ताओं के मनोबल को घटाएगी, वहीं विपक्ष के मनोबल को मजबूत बनाएगी। यही कारण है कि भाजपा के भातृत्व-मातृत्व संगठन अलग-अलग तरीके से इस चुनाव में भाजपा को जिताने में लगे हुए हैं।
2020 में अमित शाह ने चुनाव को जिताने के लिए कई पद यात्राएं और रैलियां की थीं, जबकि नरेन्द्र मोदी ने कुछ ही चुनाव रैलियां की थीं। तब 2020 के चुनाव को एक साम्प्रदायिक रंग में रंगने की कोशिश की गई थी। केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा चुनाव में ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’ जैसे नारे लगवाये गए थे। इसके बावजूद भाजपा की सीटों की संख्या दहाई अंक तक नहीं पहुंच पाई। वे आठ सीटों तक ही पहुंच पाए।
2025 विधानसभा के चुनाव में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुख्य चेहरे के रूप में मैदान में उतारा गया है। प्रधानमंत्री दिल्ली में लगातार रैलियां और प्रचार करते हुए नजर आ रहे हैं। साथ ही भाजपा के केन्द्रीय मंत्रियों सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों और स्वयंसेवकों को भी लगाया गया है।
भाजपा कल्याणकारी योजनाओं को लगातार उठा रही है। इस चुनाव में भाजपा ने तीन बार संकल्प पत्र (घोषणा पत्र) जारी किया और अनेकों लोक लुभावने वादे किये हैं। उसने कमजोर वर्ग के हरेक तबके को लुभाने की कोशिश की है।
वह आप पार्टी के मजबूत वोटरों के बीच पैठ बनाने में लगी है। झुग्गी-झोपड़ियों में पांच रू. में पौष्टिक भोजन कराने का वादा किया गया है। साथ ही ऑटो, टैक्सी ड्राइवरों और घरेलू महिला कामगारों को दस लाख रू. का बीमा और छह माह का मातृत्व लाभ की छुट्टी देने की घोषणा की गई है।
उसने गर्भवती महिलाओं को 21 हजार रू. देने और केजी से पीजी तक पढ़ाई को मुफ्त करने का वादा भी किया है। भाजपा दिल्ली की सत्ता पाने के लिए सभी हथकंडे अपना रही है. 2020 के दिल्ली दंगों पर बनी फिल्म ‘2020 दिल्ली’ भी 2 फरवरी को रिलीज होनी है जिसको लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला आना है।
आप पार्टी के आठ विधायक 31 जनवरी को एक साथ पार्टी छोड़ने की घोषणा करते हैं, जबकि उनका टिकट एक माह पहले कट चुका है। इस बार साम्प्रदायिकता को भाजपा उस तरह से नहीं उठा रही है जैसे पिछले चुनाव या अन्य राज्यों में उठाती रही है। इस बार यह काम उनके मातृत्व संगठन और भातृत्व संगठनों द्वारा किया जा रहा है। वह यह खुले रूप से नहीं बल्कि धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर कर रही है।
उधर विपक्ष के कई नेता आम आदमी पार्टी के लिए रैलियां और रोड शो करने वाले हैं जिसमें सपा और तृणमूल कांग्रेस मुख्य हैं। आम आदमी पार्टी का मुख्य चेहरा केजरीवाल हैं जिनके दम पर ‘आप पार्टी’ चुनाव जीतने में लगी है। आप पार्टी द्वारा घोषित की गई कल्याणकारी योजनाओं की चर्चा है।
बिजली-पानी फ्री वाली स्कीम भाजपा के वोटरों और मध्यमवर्ग के छोटे तबकों को भी लुभा रही है। इसलिए भाजपा और कांग्रेस पार्टी सहित दूसरे पार्टी और स्वतंत्र उम्मीदवार भी बिजली, पानी फ्री की घोषणा जोर-शोर से कर रहे हैं। गरीबों को बिजली-पानी, महिलाओं के लिए फ्री बस की सुविधा, स्कूलों का अच्छा होना, मोहल्ला क्लिनिक जैसी सुविधाएं लोगों को आकर्षित कर रही हैं।
आप पार्टी ने ‘केजरीवाल की गारंटी’ शीर्षक घोषणा पत्र जारी किया है। केजरीवाल ने ऐसे ‘गांरटी कार्ड’ पर हस्ताक्षर किए हैं जिनमें महिलाओं को 2100 रू. सहित 15 लुभावने वादे किए गये हैं।
आप पार्टी की कल्याणकारी योजनाओं से भाजपा डरी हुई है। यही कारण है कि ‘‘चल रही योजनाओं को जारी रखा जायेगा और उसे अधिक प्रभावी बनाया जायेगा’’ से भाजपा के संकल्प पत्र की शुरूआत होती है। प्रधानमंत्री मोदी को भी बार-बार चल रही योजनाओं को जारी रखने की बात कहनी पड़ रही है।
प्रधानमंत्री मोदी जिन चीजों को रेवड़ी बांटना कहकर प्रचारित करते थे आज उसी रेवड़ी के सहारे वे चुनाव जीतने में लगे हैं। भाजपा के तीसरे संकल्प पत्र में 15 लोक-लुभावने वादे किए गए हैं। साथ ही कहा गया है कि वे 1700 अनाधिकृत कॉलोनियों को पूर्ण स्वामित्व प्रदान करेंगे। इस तरह के वादे 2015 और 2020 के चुनावों में भी किए गए थे।
कांग्रेस पार्टी भी कल्याणकारी योजनाओं के वादों की घोषणा करने के जरिए अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने में लगी हुई है। उसने महिलाओं को 2500 रूपये देने के वादे के साथ एससी, एसटी और विकलांग समुदायों के वित्तीय विकास को मजबूती देने की बात की है।
साथ ही पंजाबी, उर्दू, भोजपुरी टीचरों की भर्ती करने का वादा भी किया है। उसने अल्पसंख्यकों के लिए सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर ध्यान देने के साथ-साथ पंजाबी अकादमी को पुनर्जीवित करने और जैन वेलफेयर बोर्ड की स्थापना की बात भी की है।
कांग्रेस पार्टी पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भरोसा है लेकिन वह सत्ता में आती नहीं दिख रही है तो उसको उस तरह के वोट नहीं मिल रहे हैं। कांग्रेस मजबूत स्थिति में होती तो मुस्लिम वोट में बढ़ोतरी होती। कांग्रेस तीन-चार सीटों पर मुकाबले में है लेकिन वह पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार की अपनी छवि के बल पर।
वह इस बार आप पार्टी को नुकसान पहुंचाते हुए दिख रही है। वह सत्ता में वापसी के लिए नहीं लड़ रही बल्कि वस्तुतः अपने कोर वोटरों की संख्या देखना चाहती है कि अभी उसके कितने वोट प्रतिशत दिल्ली जैसे महानगरों में बचे हुए हैं।
आप पार्टी की कल्याणकारी योजनाओं से भाजपा जैसी ताकतवर पार्टी को भी डर लग रहा है। लोगों को केजरीवाल के 2100 रू. पर ज्यादा भरोसा है। भाजपा के कोर वोटरों के पास मीडिया के द्वारा गढ़ी हुई छवि है कि विदेशों में भारत का नाम हो रहा है।
लोगों का कहना है कि महिलाओं को पैसे देने की घोषणा पहले केजरीवाल ने शुरू की थी। बाद में यह भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों की मजबूरी बन गई। लोगों का कहना है कि उन्हें विश्वास इसलिए हो रहा है कि ‘‘केजरीवाल ने जो कहा है वो किया है। मोदी ने 15 लाख देने का वादा किया था दिया नहीं बल्कि अमित शाह ने तो इंटरव्यू में साफ़ बोल दिया कि यह जुमला है।’’
व्यक्तिगत बातचीत में लोग महंगाई और रोजगार की बात कर रहे हैं लेकिन यह किसी भी पार्टी के लिए चुनावी मुद्दा नहीं है। भाजपा द्वारा उठाए गए शीश महल या शराब घोटाला जैसे मुद्दे भाजपा के कोर वोटरों तक ही सीमित हैं। आम जनमानस यह मान चुका है कि सभी नेता ऐशो-आराम से रहते हैं और एक-दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालने का काम करते हैं। सही में कहें तो भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए हर तरीके का दम-खम लगा चुकी है।
सत्ता पर काबिज होने के लिए महिला मतदाताओं पर निर्भरता सभी पार्टियों की है। केन्द्र में मोदी सरकार हो या राज्यों की सरकारें, सभी जगह सत्ता दिलाने में महिला मतदाताओं की भूमिका अहम है। इसलिए भाजपा की ‘कमल सखी’ और आप की ‘महिला मोर्चा’ घर-घर जाकर महिलाओं को अपनी-अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने में लगे हुए हैं।
इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट माध्यमों के जरिए भाजपा का ज्यादा प्रचार दिखाई दे रहा है। न्यूजपेपर से लेकर तरह-तरह के वेबसाइटों, सोशलसाइटों और टीवी तक, हर जगह भाजपा का प्रचार आ रहा है। इस प्रचार का कारण यह है कि सबसे ज्यादा चंदा भाजपा के पास आता है। हाल ही में चुनाव आयोग के पास भेजी वार्षिक रिपोर्ट में भाजपा ने बताया है कि 2023-24 में उसे मिली राशि 4340.5 करोड़ है।
दूसरी ओर, राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को 2023-24 में 1225 करोड़ रू. मिले हैं। 2022-23 में भाजपा की सालाना कमाई 2360.8 करोड़ रू. थी, जो इस साल 4304.5 करोड़ हो गई है। उधर कांग्रेस की जो कमाई 2022-23 में 452.4 करोड़ रू. थी वह 2023-24 में 1225 करोड़ हो गई है।
2024 में भाजपा ने 2211.17 करोड़ रू. खर्च किए जिसमें से 1754 करोड़ रू. चुनाव और सामान्य प्रचार पर खर्च किए गए। इतनी बड़ी रकम खर्च करने की वजह से भाजपा विज्ञापनों के प्रचार में आगे दिखती है लेकिन जमीनी स्तर पर आप पार्टी प्रचार में भाजपा को टक्कर दे रही है।
सभी पार्टियां ‘महिला सम्मान’ की बात करती हैं। अगर महिलाओं को इतना सम्मान देना ही है तो उन्हें अपने उम्मीदवारों को महिला सम्मान करने की सीख देनी चाहिए।
एपीडीआर की रपट के अनुसार दिल्ली में चुनाव लड़ रहे 12 फीसद उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें से 13 उम्मीदवारों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामले हैं, दो पर हत्या के आरोप हैं और पांच उम्मीदवारों पर हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं। ऐसे उम्मीदवारों को पार्टियां टिकट क्यों देती हैं?
बस में महिलाओं पर छींटाकशी की जाती है कि वे फ्री में चल रही हैं। महिला सीटों पर पुरुष कब्जा जमाये बैठे रहते हैं। ये सभी पुरुष किसी-न-किसी पार्टी के वोटर हैं। पार्टियों को अपने उम्मीदवारों और समर्थकों को सिखाने/बताने की जरूरत है कि महिलाओं का सम्मान करो।
2025 का चुनाव यह दिखा रहा है कि महंगाई, रोजगार जैसे जनता के मूल मुद्दे किसी भी पार्टी के लिए मुद्दा नहीं हैं। 2013 के दिल्ली चुनाव में जो मुख्य मुद्दा था ‘जहां झुग्गी वहां मकान’ वह भी पार्टियों के हाल के लोक-लुभावने वादों में भुला दिया गया।
2014 से चुनाव में रेवड़ी बांटने और जनता को बरगलाने का काम हो रहा है। सभी पार्टियों में होड़ लगी है कि कौन कितना जुमला फेंक सकता है। दिल्ली में किसी भी पार्टी की सत्ता आए जनता को उसके अधिकार नहीं मिलेंगे। उसको तो बस सरकार के रहमो-करम पर जीना होगा।
अतः आज चुनाव में जनता का मुख्य मुद्दा होना चाहिए भीख नहीं हमें अधिकार चाहिए। हमें हर हाल में सम्मान पूर्वक जिन्दा रहने का अधिकार, अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार, साफ हवा-साफ पानी का अधिकार, वैज्ञानिक शिक्षा का अधिकार, अच्छे आवास का अधिकार चाहिए।
इन अधिकारों से ही हम एक स्वतंत्र नागरिक और स्वतंत्र विचार पैदा कर सकते हैं और यही चीज हमें सही स्वतंत्रता दिला सकती है। अभी तो बस लोगों को अधिकार देने की जगह सरकार के रहमो-करम पर जिन्दा रहने की सीख दी जा रही है।
(सुनील कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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