Wednesday, April 24, 2024

दिलीप कुमार सिनेमा के ध्रुवतारे की तरह हमारे सांस्कृतिक जगत के आकाश में हमेशा चमकते रहेंगे

आज दिलीप कुमार नहीं रहे।

उनका न रहना हमारे सिनेमा के किसी युग का अंत नहीं, बल्कि किसी विध्वंस से इसकी गंगोत्री के अपनी जगह से हट जाना है।

दिलीप कुमार से शुरू हुई धारा हमारे सिनेमा मात्र के सनातन समय की तरह आगे-पीछे के पूरे सिनेमा को एक सूत्र में पिरोती रहेगी।

जब भी कहीं सिनेमा में अभिनय और संवादों के नाटकीय तत्त्वों से उसके बनने-बिगड़ने के विषय की चर्चा होगी, दिलीप कुमार हमेशा उस चर्चा के केंद्र में एक मापदंड की तरह मौजूद रहेंगे।

सिनेमा आधुनिक जीवन का एक प्रमुख उपादान है, जिसकी छवियों से हम अपने को सजाते-संवारते हैं, जिसके चरित्रों को हम अपने अंदर जीते हैं। तमाम प्रतिकूलताओं के बीच भी साधारण आदमी के जीवन में नायकत्व के भावों को बनाए रखने, उसे जीवन के प्रति उत्प्रेरित रखने में सिनेमा ने सारी दुनिया में जो भूमिका अदा की है, उसमें दिलीप कुमार की तरह के नायक-अभिनेता और उनकी परिष्कृत संवाद-शैली को कभी कोई भुला नहीं सकता है।

दिलीप अपनी फ़िल्मों में जितने साफ़-सुथरे और स्वच्छ नज़र आते थे, उनका वास्तविक जीवन भी उसी प्रकार का रहा। आज तमाम छुद्रताओं और प्रताड़नाओं को सिनेमा के पर्दे और अपनी ज़िंदगी में भी जीने वाले अभिनेताओं के दौर में उनके सच को दिलीप कुमार की तरह के सफ्फाक व्यक्तित्व के संदर्भ में ही वास्तव में समझा जा सकता है। इस अर्थ में दिलीप कुमार के न रहने को सिनेमा की एक ख़ास धारा का अवसान भी कहा जा सकता है।

दिलीप कुमार की मृत्यु उनका अंत नहीं , बल्कि सिनेमा के जगत के ध्रुवतारे के रूप में उनका उदय कहलायेगा।

दिलीप कुमार की फ़िल्मों के चरित्र और संवाद हमारे सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं। हम जानते हैं कि उनकी मृत्यु के इस मौक़े पर उन सब पर काफ़ी चर्चा होगी।

उनका स्मरण हमारे सांस्कृतिक नवीकरण का हेतु बने, इसी भावना के साथ हम उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके सभी परिजनों के प्रति अपनी संवेदना प्रेषित करते हैं।

(अरुण माहेश्वरी लेखक-साहित्यकार एवं टिप्पणीकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles