कोरोना का टीका और ट्रंप !

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कोरोना के टीके के बारे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में संकेतों में कई प्रकार की बेसिर पैर की बातें की थी। एक बार अमेरिका में ‘आत्मलीनता’ (autism) के बढ़ते हुए रोग के संदर्भ में अवांतर ढंग से उन्होंने कह दिया था कि इसी वजह से वे कोरोना के टीके से सुरक्षा के लिए एक आयोग, Vaccine safety commission का गठन करना चाहते हैं । इससे स्वाभाविक तौर पर अमेरिका में भी आम लोगों के एक अंश में इस टीके के बारे में कई भ्रांतियाँ, शक-सुबहें पैदा हो गए थे । उन भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही अमेरिका के तीन पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, जार्ज बुश और बराक ओबामा ने अलग-अलग कार्यक्रमों में ऐलान किया है कि वे सार्वजनिक तौर पर कोरोना के टीके लगवाएँगे ताकि लोगों के बीच एक सकारात्मक संदेश से उन्हें आश्वस्त किया जा सके । अब देखना यह है कि इस टीके के बारे में ट्रंप क्या रवैया अपनाते हैं?

वे अभी 20 जनवरी तक व्हाइट हाउस में हैं और खुद को विजयी राष्ट्रपति बताने के सारे हास्यास्पद नाटक भी कर रहे हैं । पर दूसरी ओर, हर बीतते दिन के साथ अमेरिका में कोरोना संक्रमण और उससे मरने वालों की संख्या रेकर्ड ऊँचाई पर पहुँच रही है । वहाँ हर दिन डेढ़ लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं । कल एक दिन में संक्रमण का यह आँकड़ा दो लाख पर पहुँच गया था । राष्ट्रपति रहते हुए भी ट्रंप अपराधपूर्ण तरीक़े से वहाँ की इस गंभीर स्थिति के प्रति उदासीन बने हुए हैं । आगे वे खुद भी टीका लगवाएँगे या अपने पहले के झूठे प्रचार और कुकर्मों पर क़ायम रहेंगे, इस पर सबकी नजर टिकी हुई है ।

ट्रंप सचमुच जनतंत्र में मूर्ख और शैतान दक्षिणपंथी नेताओं का एक चरम उदाहरण है । दुनिया के तमाम दक्षिणपंथियों में ट्रंप के इस विक्षिप्त चरित्र के कई अंशों को देखा जा सकता है । जैसे हमारे प्रधानमंत्री भी इसका कई बार परिचय देते रहे हैं । प्लास्टिक सर्जरी से प्राचीन काल में गणेश जी की रचना से लेकर कोरोना के शर्तिया उपचार के लिए आयुर्वेदिक उपायों की चर्चा और आयुर्वेदिक शिक्षा से शल्य चिकित्सा, अर्थात् वैद्यों को सर्जन बनाने के उनके फ़ैसलों को भी लिया जा सकता है । भारत के डाक्टरों की सर्वोच्च संस्था आईएमए ने सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक दिन की हड़ताल का आह्वान किया है । अभी जब लाखों की संख्या में किसान अपने जीवन-जीविका के लिए सड़कों पर उतरे हुए हैं, तब दो दिन पहले हमारे प्रधानमंत्री वाराणसी में थिरकते हुए अपना वीडियो जारी करवा रहे थे । बहरहाल, अब जब अमेरिका में ही तैयार किये गए फ़ाइजर कंपनी के टीके को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता मिलने लगी है, देखना है कि राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप उसके प्रति कैसा रुख अपनाते हैं ? वे अमेरिकी जनता को इसे निश्चिंत हो कर अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं या उन्हें उग्रवादियों का आत्मघाती रास्ता सुझाते हैं ?

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और चिंतक हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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