Friday, March 29, 2024

5 स्टार में बैठकर किसानों को दोष मत दें; गैस, उत्सर्जन और हाईफाई कारों से प्रदूषण अधिक : सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को किसानों को दिल्ली के प्रदूषण में योगदान देने के लिए उनकी दुर्दशा और उनकी परिस्थितियों पर विचार किए बिना दोषी ठहराए जाने के खिलाफ कड़ी मौखिक टिप्पणी की। चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की कि 5 स्टार में बैठे लोग किसानों को दोष देते हैं। गैस, उत्सर्जन, हाई फाई कारों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं । याचिका में राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए तत्काल उपाय करने की मांग की गई है। किसानों द्वारा पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण के प्रतिशत के संबंध में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलों के जवाब में आलोचनात्मक टिप्पणी की गई।

जस्टिस सूर्यकांत ने पिछली सुनवाई के दौरान उल्लेख किया था कि वह खुद एक किसान परिवार से हैं। उन्होंने अफसोस जताया कि किसी को भी किसानों की दुर्दशा से कोई सरोकार नहीं है। वे कौन सी परिस्थितियों में पराली जलाने के लिए मजबूर हैं और कौन से कारणों से वे सरकारों द्वारा सुझाई जा रही इन वैज्ञानिक रिपोर्टों का पालन करने में असमर्थ हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि दिल्ली में 5 स्टार में बैठे लोग किसानों को दोष देते रहते हैं और 4%, 5% उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाता है। कृषि कानूनों के बाद उनकी जोत का क्या हुआ? इतनी छोटी जोत के साथ क्या वे इन मशीनों को खरीद सकते हैं? यदि आपके पास वास्तव में कोई वैज्ञानिक वैकल्पिक है, इसे उन्हें प्रस्तावित करें, वे उन्हें अपनाएंगे।

पीठ ने कहा कि जबकि केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों ने यह स्वीकार किया है कि परिवहन जैसे स्रोत प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत हैं, “गैस गेजर्स और हाई फाई कारें” अभी भी दिल्ली की सड़कों पर चल रही हैं और कुछ भी नहीं किया जा रहा है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप सभी अपने सभी हलफनामों में स्वीकार कर रहे हैं, उदाहरण के लिए, परिवहन एक प्रदूषण स्रोत है। हम जानते हैं कि दिल्ली में हर मार्ग पर गैस गेजर, ट्रैक्टर, हाई फाई कारें चल रही हैं। आप कह रहे हैं कि आप इसे रोकने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करेंगे। अब आप कैसे करेंगे? और कौन प्रोत्साहित करेगा और कौन स्वीकार करेगा?

चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि अन्य चीजों के बारे में क्या? निर्माण पूरे वर्ष होता है। अन्य औद्योगिक गतिविधियां 365 दिनों में होती हैं और इसका मौसम से कोई लेना-देना नहीं है। न्यायालय ने कहा कि वह किसानों को दंडित नहीं करना चाहता और सुझाव दिया है कि उन्हें पराली जलाने से रोकने के लिए राजी किया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम किसानों को दंडित नहीं करना चाहते हैं। हमने राज्यों से किसानों को पराली न जलाने के लिए मनाने का अनुरोध किया है। आप इसे बार-बार क्यों उठा रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि दिल्ली सरकार के अनुसार कार्यालयों को बंद करने वाहनों पर प्रतिबंध लगाने आदि से वाहनों के उत्सर्जन को कम करने के उपाय तभी उपयोगी होंगे जब एनसीआर क्षेत्र के पड़ोसी राज्य भी इसे लागू करेंगे। उन्होंने इस पर असंतोष व्यक्त किया कि आयोग (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग) द्वारा इस संबंध में कोई उपाय नहीं किया गया है।

सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि केंद्र के हलफनामे में जो कदम उठाए गए हैं, वे आयोग द्वारा सुझाए गए हैं और 21 नवंबर को उनकी समीक्षा की जाएगी। दिल्ली सरकार के वर्क फ्रॉम होम शुरू करने के फैसले का जिक्र करते हुए बेंच ने यह भी सुझाव दिया कि केंद्र सरकार के कार्यालयों में कर्मचारियों को कम किया जा सकता है और उन्हें निजी आवागमन के बजाय सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का उपयोग करने के लिए कहा जा सकता है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि आपको अपने 100% कर्मचारियों की आवश्यकता नहीं है। कोविड के समय में आपने कार्यालयों में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया है। आप संख्या कम कर सकते हैं। 100 के बजाय आप कह सकते हैं कि 50 लोग आ सकते हैं।

जस्टिस सूर्यकांत ने यह भी सुझाव दिया कि दिल्ली में कई सरकारी इलाकों में रहने वाले कर्मचारी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए काम पर सकते हैं। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी राज्य में घर से काम शुरू करने का केवल उस स्थान पर निहितार्थ हो सकता है, केंद्र सरकार के कार्यालयों में इसे शुरू करने से अखिल भारतीय प्रभाव हो सकता है।

रिट याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगले साल के शीतकालीन संकट की योजना अभी से शुरू होनी चाहिए। वायु प्रदूषण एक स्थानिक समस्या है। सुप्रीम कोर्ट सरकार से पूछता है और सरकारें कहती हैं कि हम यह और वह करेंगे, लेकिन कुछ नहीं होता है। यह गलत तरीके से बताया गया है कि वायु प्रदूषण में पराली का योगदान केवल 10 प्रतिशत है। यह हो सकता है चालू सीजन के दौरान 50 प्रतिशत तक हो। हम किसान को कोसना नहीं चाहते ,लेकिन पराली जलाना एक गंभीर समस्या है।

तुषार मेहता ने कहा कि मेरे बारे में मीडिया में कहा गया कि मैंने पराली जलाने को लेकर गलत जानकारी दी, मैं इस पर स्पष्टीकरण देना चाहता हूं। चीफ जस्टिस ने इस पर कहा कि पब्लिक ऑफिस में ऐसी आलोचना होती रहती है, इसे भूल जाइए।

मामले की अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी।पीठ ने आज केंद्र सरकार के इस सुझाव को मान लिया कि दिल्ली एनसीआर प्रदूषण मामले पर कोई आदेश देने से पहले कोर्ट 21 नवंबर तक इंतजार करे। केंद्र का कहना था कि मौसम विभाग की रिपोर्ट है कि उसके बाद से स्थितियों में सुधार होना शुरू होगा। हालांकि पीठ ने सुनवाई को 23 नवंबर तक डालते हुए कहा कि फिलहाल कोई आदेश जारी करने का मतलब यह नहीं है कि कोर्ट मामले पर गंभीर नहीं है केंद्र और राज्यों के ठोस कदम उठाने की हमें उम्मीद है।

आज की सुनवाई के दौरान पीठ ने बार-बार इस बात पर असंतोष जताया। इस मामले से जुड़े सभी पक्ष जिम्मेदारी लेने के बजाय उसे दूसरे पर डालने की कोशिश कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि पंजाब सरकार यह कह रही है कि उसने पराली जलाने वाले किसानों के खेत में पानी छिड़क कर उसे बुझा दिया। लेकिन किसानों की मदद कौन करेगा? उन्हें गेहूं बोने को खेत तैयार करने के लिए सिर्फ 15-20 दिन का समय मिलता है।

पीठ ने कहा कि उन्हें यह आंकड़े प्रभावित नहीं करते कि दिल्ली सरकार ने सड़क सफाई की कितनी मशीनें खरीदी हैं। अगर 15 मशीन खरीद भी ली गई तो क्या उनसे 1000 किमी सड़क साफ हो जाएगी। पीठ ने हरियाणा सरकार को भी फटकार लगाते हुए कहा कि आप कह रहे हैं कि एनसीआर में पड़ने वाले 4 ज़िलों में वर्क फ्रॉम होम का आदेश दिया गया है। क्या आप दावा कर सकते हैं कि अब वहां गाड़ियां नहीं चल रहीं? आपने लोगों को उनकी मर्जी से काम करने की छूट दे रखी है।

सोमवार,15 नवंबर को कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि प्रदूषण में प्रमुख योगदान औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन परिवहन, बिजली संयंत्र और निर्माण गतिविधियों के कारण है और पराली जलाने का योगदान तुलनात्मक रूप से कम है। कोर्ट ने तब केंद्र को इन मुद्दों के समाधान के लिए आपातकालीन कदम उठाने का निर्देश दिया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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