Friday, March 29, 2024

दिल्ली में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा: क्या विज्ञापनों से बेहतर नहीं है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का यह तरीका?

बस में यात्रियों के चढ़ते ही बस कंडक्टर ने सबसे पहले गुलाबी टिकट निकाल कर आवाज दी, “अपने अपने पास लेते हुए जाना।” इसका कारण भी है। कई महिलाओं को नहीं पता कि एक बार इस पिंक टिकट को लेने भर से काम नहीं चलता, बल्कि जितनी बार भी बस में सफर करेंगे, उतनी बार ही टिकट लेना होगा, जिसका रिकार्ड डिपो में देना होता है, और उसके आधार पर ही दैनिक स्तर पर 10 रूपये प्रति टिकट के हिसाब से डीटीसी और डिम्स् को सरकार की ओर से सब्सिडी मिलेगी।

फिर एक निगाह डालकर उसने झट से चढ़ती हुई महिलाओं की संख्या गिनी और टिकट फाड़कर महिलाओं को या टिकट के लिए खड़े यात्रियों के हाथ आगे भिजवा दी, और फिर पुरुष यात्रियों के लिए 5-10-15 रूपये के टिकट फाड़ने और पैसे इकट्ठे करने शुरू कर दिए।

शाम की इस बेला में अधिकतर लोग 5 या 10 रुपये के टिकट लेकर आगे बढ़ रहे थे। भैया दूज के अवसर पर 29 अक्टूबर से शुरू इस योजना के मद में अगले 5 महीनों के लिए अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने 140 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है, जो 31 मार्च 2020 तक जारी रहेगी। इसके आगे के लिए बजट प्रावधान नई सरकार के जिम्मे होगा। दिल्ली की सार्वजनिक बस सेवा डीटीसी और डिम्ट्स के अंतर्गत आती हैं, और दिल्ली सरकार ने प्रावधान किया है कि हर पिंक टिकट पर डीटीसी/डिम्ट्स को 10 रूपये की सब्सिडी दी जाएगी।

प्रतिदिन औसतन डीटीसी सेवा का 42 लाख लोग इस्तेमाल करते हैं और एक अनुमान के अनुसार इसमें करीब एक तिहाई संख्या महिला सवारियों की होती है। पहले दिन के आंकड़ों में मात्र 2.20 लाख महिलाओं ने इस सेवा का लाभ उठाया था। लेकिन आने वाले दिनों में इस संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी होने का अनुमान है।

दोपहर में बस कंडक्टर ने टिकट बांटते हुए जो जुमला फेंका वह अपने आप में मर्दवादी सोच को उजागर करने के लिए पर्याप्त है, “अब तो महिलाएं ही घर से बाहर निकलेंगी और मर्द घर के अंदर काम-धाम करेंगे।” लेकिन तुरंत ही खुद को सुधारते हुए वह आगे जोड़ता है कि “स्त्रियों के लिए यह सुविधा मिलनी ही चाहिए, बहुत अच्छा काम किया है दिल्ली सरकार ने।”

इसी प्रकार न्यूज़क्लिक से सम्बद्ध वरिष्ठ पत्रकार मुकुल सरल ने बताया कि किस प्रकार बस में एक सहयात्री ने जब यह कहा कि “ महिलाओं को यह सुविधा देना पूरी तरह से गलत है, गरीब आदमी जो घर चलाता है उसे यह सुविधा न देकर केजरीवाल सरकार मूर्ख बना रही है।” इस पर जब उसे ध्यान दिलाया गया कि महिला-पुरुष हर घर में होते हैं, और अगर महिलाओं और बच्चियों को मुफ्त सार्वजनिक परिवहन की सुविधा मिलती है, तो परोक्ष रूप में यह परिवार के ही बजट में एक प्रकार से मदद हुई, तब जाकर वह सज्जन चुप हुए।

शेख सराय से साकेत की ओर जाती बस का एक दृश्य, जिसमें अधिकतर मध्य वर्ग की महिलाएं बैठी हैं। फोटो- रविंद्र पटवाल।

इस बात का जिक्र अरविन्द केजरीवाल ने अपने ट्वीट में भी किया है कि “किस प्रकार कई घरों में स्कूल और कालेज जातीं छात्राओं को किराये के चलते कई बार पढ़ाई करने से परिवार रोक देता है। इस स्कीम के कारण दिल्ली की बच्चियों के भविष्य में गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा।”

इस पूरे प्रकरण से दिल्ली के अंदर एक नई बहस छिड़ गई है, जो शुरू तो दिल्ली से हुई है लेकिन इसका दूरगामी असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ सकता है।

एक बात और गौर करने वाली दिखी, वह यह कि न सिर्फ गरीब और साधारण आर्थिक हैसियत वाली महिलाएं ही इस सेवा का लाभ उठा रही हैं, बल्कि मध्य वर्गीय और सभ्रांत परिवारों की महिलाओं ने भी इस सुविधा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। अपनी यात्रा के दौरान जिसमें करीब 40 महिलाओं ने ऑफिस और अन्य काम से वापस घर वापसी में बस यात्रा की, उसमे से करीब 10-12 महिलाएं ऐसी थीं जो मध्य या उच्च मध्यवर्ग से आती होंगी, और उनमें से मात्र एक ने टिकट के बदले पैसे देने का आग्रह किया, लेकिन जब बस कंडक्टर ने उसे बताया कि महिलाओं के लिए अब यात्रा मुफ्त है तो उसने भी टिकट के बदले पैसे देने की जिद नहीं की।

महिलाओं को मिले इस अधिकार के समाज की संरचना पर क्या दूरगामी प्रभाव होंगे और यह किस प्रकार व्यवसाय और परिवारों में उनकी हैसियत में इजाफा करेगी यह अभी देखना बाकी है लेकिन यह अवश्य है कि पितृसत्तात्मक समाज में जहां हर बात पर लड़कों के भविष्य के लिए चिंता की जाती है, वहां सरकार के इस प्रयास से महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बदलाव की अनंत सम्भावनाएं छिपी हैं।

इस सेवा ने 4-6000 रुपये प्रतिमाह वेतन पर काम करने वाली हजारों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सफाई कर्मचारी, छोटे मोटे उद्योग धंधों में कार्यरत लाखों दिहाड़ी मजदूर-स्त्रियों के साथ साथ उन घरेलू महिलाओं के लिए घर के अंदर ही व्यवसाय शुरू करने के लिए और अपने पांवों पर खड़े होने की सम्भावनाओं के द्वार खोल दिए हैं, जिसमें सिलाई कढ़ाई, सौन्दर्य साधनों और, स्कूली किताबों कापियों से लेकर सिले सिलाए वस्त्रों की दुकानदारी के जरिये उनकी घर के पुरुषों पर निर्भरता को कम करने में मदद अवश्य मिल सकती है। अब वे आजादी के साथ दिल्ली के बाजारों का जायजा ले सकती हैं और घर के अंदर अपने आर्थिक योगदान को बढ़ाकर अपनी सामाजिक हैसियत में बढ़ोत्तरी ही करेंगी।

यह भविष्य के स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में समानता को बढ़ाने में योगदान देने वाला कदम साबित हो सकता है, साथ ही यह यूपी, हरियाणा और बिहार जैसे उन पिछड़े और दकियानूसी राज्यों के लिए एक सबक है, जहां बीजेपी सरकारें “बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ” के विज्ञापनी ढोल तो बजा रहे हैं, लेकिन उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है। शायद यह भी एक कारण हो, जो मजबूर कर रही है कि इस सवाल पर चाय की दुकानों, सोशल मीडिया की बहसों और बसों में इसे तीन महीने की चुनावी शोशेबाजी कहकर हंसी उड़ाई जा रही है, जो मर्दवादी इगो को मरहम लगाने का काम कर रही है।

30 अक्टूबर को बस कंडक्टर ने कुल 170 पिंक टिकट का हिसाब अपने डिपो में दिया था। इस हिसाब से डीटीसी को उस बस से उस पारी में 1700 रूपये की सब्सिडी मिलेगी।

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles