Friday, April 19, 2024

नेता-पुलिस-अपराधी गठजोड़ के जिन्दा गवाह की हत्या है ‘एनकाउंटर’

पुलिस को किसी की जान लेने का अधिकार नहीं होता। अपनी जान बचाने के लिए उसे परिस्थितिवश किसी की जान लेनी पड़ जाती है। चाहे गिरफ्तार करते वक्त अपराधी गोली चलाने लगे या फिर हिरासत से भागते हुए अपराधी पुलिस के लिए खतरा बन जाए, तो अमूमन इन परिस्थितियों में एनकाउंटर होते हैं। एनकाउंटर उपलब्धि नहीं होती। यही वजह है कि हर एनकाउंटर की ज्यूडिशियल जांच का प्रावधान है। विकास दुबे के एनकाउंटर की भी ज्यूडिशियल जांच होगी। मगर, क्या यह ज्यूडिशियल जांच उस भारी भरकम अपराधी, पुलिस और नेताओं के गठजोड़ की साजिश पर वजनदार साबित हो सकेगी- यह महत्वपूर्ण सवाल है।

विकास दुबे का एनकाउंटर हो सकता है- इस बारे में हर कोई आशंका जता रहा था। इनमें रिटायर्ड पुलिस के डीजी तक शामिल थे। नेता और पत्रकार भी खुले तौर पर यह आशंका रख रहे थे। खुद बतौर टीवी पैनलिस्ट मैंने भी विकास दुबे के एनकाउंटर से कुछ घंटे पहले दैनिक हिन्दुस्तान के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एनकाउंटर की उन घटनाओं को अपराध तंत्र की जीत बताया था जिसमें विकास के साथी मारे गये थे।

मैंने कहा था कि विकास दुबे जैसे अपराधी पुलिस-नेता और अपराधियों के तंत्र की सच्चाई सामने ला सकते हैं। इसलिए एनकाउंटर वास्तव में इस तंत्र का बचाव है। पैनल पर मौजूद बीजेपी नेता ने मेरी इस प्रतिक्रिया पर मुझे अपराधियों का पक्ष लेने वाला करार दिया। मगर, सच को साबित होते कुछ घंटे भी नहीं लगे। विकास दुबे का एनकाउंटर हो सकता है, इस आशंका के पीछे कई वजह थी-

  • 8 पुलिसकर्मियों की शहादत के बाद विकास के 5 गुर्गों का एनकाउंटर बीते 9 दिनों में हो चुका था। 
  • यूपी पुलिस के अधिकारी की भाषा 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का बदला लेने की खुलकर थी। 
  • विकास दुबे और उसके गैंग का विस्तार पुलिस और नेताओं तक था जिसका प्रमाण पुलिस के वेष में मुखबिरी है जो 8 पुलिसकर्मियों की हत्या की असली वजह थी।

निहत्थे गार्ड और निहत्थी पुलिस के सामने निहत्थे विकास ने किया था समर्पण

जब 9 जुलाई को महाकाल मंदिर से दर्शन के बाद विकास दुबे को पुलिस ने पकड़ा तो उसकी दिलचस्प कहानी भी हम जान चुके हैं। महाकाल मंदिर का सुरक्षा गार्ड निहत्था उसे पकड़ता है। निहत्थी पुलिस विकास दुबे को अपने साथ ले जाती है। थप्पड़ मारती भी दिखती है। निहत्था विकास दुबे चीख-चीख कर दुनिया को बताता है कि वह गिरफ्तार हो चुका है। समर्पण या गिरफ्तारी से एक दिन पहले महाकाल मंदिर में डीएम और पुलिस कप्तान का आना, एसएचओ का तबादला और अगली सुबह बड़े मजे से 250 रुपये के वीवीआईपी रसीद कटाकर विकास दुबे का महाकाल दर्शन एक लिखी हुई स्क्रिप्ट पर अमल था। निश्चित रूप से विकास दुबे ने अपनी मर्जी से अपने हिसाब से खुद को पुलिस के हवाले किया था और मध्यप्रदेश शासन से जुड़े नेता और अफसर ने उसे ऐसा करने दिया या फिर इसमें उसकी मदद की।

विकास की गिरफ्तारी के साथ ही असुरक्षित हो गये थे संरक्षण देने वाले 

विकास की गिरफ्तारी से पहले तक उसे संरक्षण देने वाले असुरक्षित थे। इसलिए जो विकास दुबे चाहता था, वही हुआ। मगर, गिरफ्तारी के बाद कहानी उलट गयी। अब विकास दुबे असुरक्षित हो गया और उसके संरक्षणदाताओं की सुरक्षा की शर्त हो गयी विकास दुबे की मौत। विकास दुबे की मौत हो चुकी है। उसके सीने में और कमर पर गोलियां लगी हैं। एक दुर्घटना में गाड़ी पलटने के बाद वह पुलिसकर्मी का पिस्तौल छीनकर भागने की कोशिश कर रहा था और फिर आगाह किए जाने के बाद उसका एनकाउंटर कर दिया गया।  

मीडियाकर्मी नहीं बन सके दुर्घटना और एनकाउंटर के गवाह

पुलिस की इस कहानी में सबसे बड़ा लोचा हैं खुद मीडियाकर्मी। विकास दुबे जिस गाड़ी पर सवार था उसके साथ कुल 10 वाहनों का काफिला चल रहा था। मीडिया की गाड़ियां भी उनके पीछे-पीछे चल रही थीं। एनकाउंटर से ठीक पहले मीडिया की गाड़ियों को चेक नाके पर रोक दिया गया। जाहिर है एनकाउंटर की कहानी मीडिया के कैमरे में कैद नहीं हो सकी और न ही दुर्घटना ही। 

10 गाड़ियों के काफिले में सिर्फ एक गाड़ी का दुर्घटनाग्रस्त होना और गाड़ी वही जिसमें विकास दुबे हो, तो इसे उसकी फूटी किस्मत ही समझ लीजिए। अखिलेश यादव ने बहुत बड़ा बयान दिया जब उन्होंने कहा कि विकास की गाड़ी नहीं पलटी है बल्कि योगी सरकार की गाड़ी को पलटने से बचाया गया है। इस बयान से साफ है कि एक की मौत कई प्रभावशाली लोगों की जिन्दगी का टॉनिक बन गयी।

एनकाउंटर नहीं, अपराध तंत्र के जिन्दा गवाहों की हत्या हुई 

बहस इस बात पर होगी कि एनकाउंटर सही था या गलत। एनकाउंटर करने वाली पुलिस को बधाई भी दी जा रही है। उसके शौर्य का बखान भी हो रहा है। योगी सरकार की ओर से भी अपराधियों के लिए कठोर संदेश देने की बात कही जा रही है। वहीं, जो लोग एनकाउंटर पर सवाल उठाएंगे, उन्हें भी सवालों के कठघरे में खड़ा किया जाएगा। मानवाधिकार जैसे शब्द को अब बदनाम कर दिया गया है। सवाल उठाने वालों को ही अपराधियों का साथी बता दिया जाता है। मगर, वास्तव में सच्चाई क्या है? 

विकास दुबे का चचेरा भाई अतुल दुबे, मामा प्रेम प्रकाश पांडे और विकास के साथियों बउआ दुबे, प्रभात मिश्रा और अमर दुबे सभी का एनकाउंटर 2 जुलाई से 9 जुलाई के बीच हो गया। श्याम वाजपेयी और दयाशंकर अग्निहोत्री खुशनसीब हैं जिनका एनकाउंटर नहीं हुआ। इसके अलावा विकास दुबे और उसके साथियों के घरवालों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। विकास दुबे समेत 6 अपराधियों का एक हफ्ते में एनकाउंटर संयोग नहीं हो सकता। इसे पुलिस की बहादुरी की घटना नहीं कह सकते। 

विकास दुबे समेत उसके साथियों के कथित एनकाउंटर की ये घटनाएं अपराधियों का एनकाउंटर नहीं हैं यह अपराध तंत्र के गवाहों की हत्या की घटनाएं हैं। अगर ये अपराधी और अपराध तंत्र के ये गवाह जिन्दा बचे रहते तो वो सारे नाम सामने आते, जो अब कभी नहीं आएंगे। इन नामों में वे मुखबिर भी होते जो पुलिस की वर्दी पहने हुए विकास दुबे गैंग के लिए काम कर रहे थे। जो मुखबिर पकड़े भी गये हैं अब उनके बचने का रास्ता निकल आएगा।

पुलिस, नेता और अपराधियों के गठजोड़ के लिए एनकाउंटर रक्षा कवच बनकर सामने आया है। जिस विकास दुबे को पुलिस पकड़ नहीं सकी, वह विकास दुबे पुलिस की पकड़ से भाग निकलने की कोशिश कर रहा था, पुलिस से पिस्तौल छीन चुका था! यह घटना बताती है कि पुलिस कितनी बहादुर है! पुलिस और खुफियातंत्र की नाकामी देखिए कि विकास दुबे कोरोना काल में भी उत्तर प्रदेश की सीमाएं लांघता हुआ हरियाणा, राजस्थान होते हुए मध्यप्रदेश पहुंच गया। वास्तव में यह नाकामी नहीं, विकास दुबे को उसके अंत तक पहुंचाने की सुनियोजित साजिश का हिस्सा अधिक है। अपराधियों के तंत्र ने अपने ही एक गुर्गे को मार डाला है जिसका नाम विकास दुबे है। विकास दुबे का अंत एक अपराधी का अंत जरूर है मगर अपराध तंत्र के विकास की कहानी है जो निरंतर मजबूत होता दिख रहा है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आप को आजकल न्यूज़ चैनलों के पैनलों में बहस करते देखा जा सकता है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।