हमारे देश में मंदिर-मस्जिद के नाम पर राजनीतिक रोटियां लंबे समय से सेंकी जा रही हैं, पर जब से देश में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनी है तब से हिंदू-मुस्लिम के नाम पर समाज में नफरत का जहर घोल दिया गया है। चाहे एनआरसी का मामला हो, सीएए का हो, धारा 370 का हो, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का हो या फिर कोरोना संक्रमण फैलने का हर मामले को हिंदू-मुस्लिम रूप देकर लोगों को भ्रमित करने का प्रयास किया गया। लव जेहाद के नाम पर तो एक धर्म विशेष के युवाओं को टारगेट किया गया। देश के गोदी मीडिया ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश में जितनी रोजी-रोटी प्रभावित हुई है, उससे कहीं ज्यादा भाईचारा प्रभावित हुआ है।
स्थिति यह हो गई कि लॉकडाउन के दौरान ठेला-पटरी वालों में भी हिंदू-मुस्लिम खोजा जाने लगा। ऐसे में हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयास होने चाहिए थे। अमेरिका में नस्लीय हिंसा के साथ ही फ्रांस में धर्म के आधार पर हिंसा हो रही है। सीरिया, इराक, ईरान, पाकिस्तान, बांगलादेश खुद अपनी कट्टरता से जूझ रहे हैं। ऐसे में भारत की अनेकता में एकता की परंपरा दुनिया को बड़ा संदेश दे सकती है। वैसे भी हमारा नारा वसुधैव कुटुंबकम का रहा है। भले ही आज की तारीख में महात्मा बुद्ध, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद जैसे समाज सुधारक न हों पर खुदाई खिदमतगार के अध्यक्ष फैसल खान का यह प्रयास किसी समाज सुधारक से कम नहीं है। उनके इस प्रयास से प्रेरणा लेकर दूसरे लोगों को भी देश में भाईचारा बनाने के लिए इस तरह के प्रयास करने चाहिए थे, पर जिन लोगों की राजनीति ही जाति और धर्म के नाम पर चल रही हो, वे भला कैसे इस तरह के प्रयास को सफल होने दे सकते हैं?
आज की तारीख में यह यह शेर बहुत सटीक बैठ रहा है,
जिस दिन मस्जिद में राम नजर आने लगे
जिस दिन मंदिर में रहमान नजर आने लगे
उस दिन बदल जाएगी दुनिया
जिस दिन इंसान में इंसान नजर आने लगे
तलब जाति और धर्म से ऊपर इंसानियत पर काम होना चाहिए। राजनीतिक दलों ने जो अपने वोट बैंक के लिए हमें जाति और धर्म के नाम पर बांट दिया है। देश में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर जो नफरत का जहर घोला जा रहा है। उसे मिटाने के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता के कारगर प्रयास होने चाहिए। मतलब देश में ऐसा माहौल बनना चाहिए कि हिंदुओं के धर्म स्थलों पर जाकर मुस्लिम नमाज अदा कर सकें और मुस्लिमों के धर्म स्थलों जाकर हिंदू पूजा कर सकें। यदि समाज में ऐसा माहौल बन जाए तो समाज से नफरत खत्म होकर भाईचारे को बढ़ाव मिलेगा। जाति और धर्म के आधार पर अपनी रोटियां सेंक रहे नेताओं को मुंह की खानी पड़ेगी।
29 अक्तूबर को फैसल खान ने अपने साथी चांद के साथ बरसाना के नंदगांव स्थित नंदबाबा मंदिर में जाकर नमाज जो पढ़ी है उनके इस काम की सराहना होनी चाहिए। ऐसे ही दूसरे संगठनों के हिंदू नेताओं को मथुरा में ही मस्जिद में जाकर पूजा करनी चाहिए, जिससे भाईचारे को बढ़ावा मिलेगा।
योगी सरकार है कि उसने तो उत्तर प्रदेश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कसम ही खा रखी है। बताया जा रहा है फैसल खान कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। यह दूसरा मामला है। यदि वह कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं तो उनके इस संक्रमण का पता तो टेस्ट के बाद ही पता चला है। इसमें भी उनका कोई दोष नहीं है। अब कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। ऐसे में इस विवाद के और बढ़ने की आशंका है।
जमीनी सच्चाई यह है कि जाति और धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे संगठनों को इसी तरह के प्रयास से ही जवाब दिया जा सकता है। चाहे मोदी सरकार हो या फिर योगी सरकार। या फिर आजादी के बाद की सरकारें सभी संविधान के अनुसार हुई चुनाव प्रक्रिया के तहत ही बनीं। क्या संविधान में किसी धर्म के व्यक्ति को दूसरे धर्म के धर्म स्थान में जाने का अधिकार नहीं है? क्या दूसरे धर्म के व्यक्ति को किसी दूसरे धर्म के स्थल में नमाज अदा करने या फिर पूजा करने का अधिकार नहीं है? यदि है तो फिर सरकार कौन होती है किसी को मंदिर में नमाज अदा करने से रोके या फिर किसी को मस्जिद में पूजा करने से रोके। अब तो पूरे देश में इसी तरह के अभियान चलाए जाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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