Friday, March 29, 2024

इतिहास, कविता और अनुवाद से लेकर प्रशासन बेहद विस्तृत था वीरेंद्र बरनवाल का फलक

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और आधुनिक भारत के राजनीतिक व्यक्तित्वों के गंभीर अध्येता, साहित्यकार-अनुवादक वीरेंद्र कुमार बरनवाल का कल 12 जून को निधन हो गया। वीरेंद्र बरनवाल ने जहाँ ‘हिन्द स्वराज : नव सभ्यता-विमर्श’, ‘मुस्लिम नवजागरण और अकबर इलाहाबादी का गांधीनामा’ तथा ‘जिन्ना : एक पुनर्दृष्टि’ जैसी गंभीर और शोधपरक किताबें लिखीं। वहीं उन्होंने वोले शोयिंका सरीखे विश्व साहित्यकारों के साथ नाइजीरियाई, जापानी और रेड इंडियन समुदाय के कवियों की रचनाओं के हिंदी अनुवाद भी किया।

आजमगढ़ के फूलपुर में पैदा हुए वीरेंद्र कुमार बरनवाल के स्वतन्त्रता सेनानी पिता दयाराम बरनवाल ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था और वे समाजवादी आंदोलन से भी जुड़े रहे। वीरेंद्र बरनवाल ने अपनी उच्च शिक्षा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से हासिल की। भारतीय राजस्व सेवा में नियुक्त होने से पूर्व उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई भी की।

वीरेंद्र बरनवाल ने ‘हिन्द स्वराज : नव सभ्यता-विमर्श’ में महात्मा गांधी के विचारों और इक्कीसवीं सदी में हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता का गहन विश्लेषण तो किया ही। साथ ही, उन्होंने गांधी के चिंतन पर जॉन रस्किन, टॉल्स्टॉय, हेनरी डेविड थोरो, राल्फ वाल्डो एमरसन, दादा भाई नौरोजी, आरसी दत्त, गोपाल कृष्ण गोखले, महादेव गोविंद रानाडे सरीखे विचारकों के प्रभाव की भी व्याख्या की। इसके साथ उन्होंने बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग, क्वामे एनक्रुमा, केनेथ क्वांडा, डेसमंड टुटु, वाक्लाव हैवेल, जूलियस न्येरेरे, इमरे नागी सरीखे व्यक्तित्वों के अहिंसक संघर्षों में गांधी के विचारों की प्रेरणा को भी रेखांकित किया।

‘मुस्लिम नवजागरण और अकबर इलाहाबादी का गांधीनामा’ में वीरेंद्र बरनवाल ने अकबर इलाहाबादी की कालजयी रचना ‘गांधीनामा’ के ऐतिहासिक महत्व के बारे में लिखने के साथ ही भारत में मुस्लिम नवजागरण की परंपरा पर भी लिखा। उल्लेखनीय है कि ‘गांधीनामा’ अकबर इलाहाबादी की अंतिम कृति थी और वह वर्ष 1921 में उनकी मृत्यु के सत्ताईस वर्षों बाद 1948 में किताबिस्तान (इलाहाबाद) से प्रकाशित हुई थी। ‘गांधीनामा’ में ही अकबर इलाहाबादी ने ये प्रसिद्ध पंक्तियाँ लिखी थीं : 

इंक़लाब आया नई दुनिया नया हंगामा है

शाहनामा हो चुका अब दौर-ए-गांधीनामा है।

इस पुस्तक में उन्होंने अकबर इलाहाबादी की रचनाओं में उभरने वाले उनके उपनिवेशवाद विरोधी स्वर को रेखांकित किया। आज़ादी से पहले के हिंदुस्तान में मुस्लिम नवजागरण की ऐतिहासिक परिघटना के बारे में लिखते हुए वीरेंद्र बरनवाल ने शाह वलीउल्लाह, मिर्ज़ा अबू तालिब, मौलवी मुमताज़ अली, सैयद अहमद खाँ और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आदि विचारकों के योगदान का भी विश्लेषण किया।

‘जिन्ना : एक पुनर्दृष्टि’ वीरेंद्र बरनवाल की सबसे चर्चित किताबों में से एक है। इस पुस्तक में मुहम्मद अली जिन्ना के जीवन पर पुनर्दृष्टि डालने के साथ ही वीरेंद्र बरनवाल ने जिन्ना की पत्नी रत्ती के साथ जिन्ना के संबंधों का विवरण तो दिया ही। गांधी, इक़बाल, मोतीलाल और जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह जैसी समकालीन शख़्सियतों से जिन्ना के संपर्क और संबंध के बारे में भी लिखा। ‘जिन्ना : एक पुनर्दृष्टि’ में लिखी उनकी ये पंक्तियाँ उनकी इतिहासदृष्टि की बानगी देती हैं :

‘इतिहास मात्र घटनाओं का संकुल और महत्वाकांक्षियों की नियति के उतार-चढ़ाव का दस्तावेज़ ही नहीं है। उसके विराट मंच पर उभरे काल-प्रेरित अभिनेताओं के मनो जगत की उथल-पुथल से संरचित व्यक्तियों के समझौते-टकराव और घात-प्रतिघात उसकी धारा को प्रभावित करने में निर्णयात्मक भूमिका निभाते हैं।’

(लेखक शुभनीत कौशिक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास के छात्र हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेस से साभार लिया गया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles