कभी सुलगी हुई को लहकाने के लिए, कभी लहकी हुई को भड़काने के लिए और कभी भड़की हुई में घी डालने के लिए हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करने वालों की ओर से अक्सर बारूदी-बयान दाग दिए जाते हैं। हिंसा की बारिश से वोटों की फसल काटना इस देश के सियासतदानों का पुराना शगल है। धार्मिक अनुष्ठानों में भी कुछ भी शुद्ध-देसी झूठ-सच परोस कर निकल जाना अब आम बात हो गई है। पिछले दिनों अयोध्या में राम जन्मभूमि पूजन करने गए प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ ऐसा ही कह दिया, जिससे समूचे सिख समुदाय में रोष की लहर दौड़ गई है।
राम जन्मभूमि पूजन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह के बारे में कह दिया, “गुरु गोविंद सिंह ने खुद गोविंद रामायण लिखी है।” उसके बाद मीडिया में यह बयान इस तरह से फैला जैसे जंगल में आग फैलती है। अधिकांश सिख विद्वान इस बार को लेकर नाराज हो गए हैं कि दशम गुरु की यह रचना ‘गोविंद रामायण’ कहां से अवतरित हो गई? सवाल तो यह भी उठ रहा है कि ‘गोविंद रामायण’ का शोशा छोड़ने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की क्या मंशा हो सकती है?
एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा। उधर राम जन्मभूमि पूजन के मौके पर विशेष रूप से आमंत्रित पटना साहिब गुरुद्वारा के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह ने भी लगी आग में घी डालने का काम यह कहकर कर दिया कि सिखों के पहले गुरु नानक और दशम गुरु गोबिन्द सिंह, भगवान श्री राम के बेटों लव-कुश के ही वंशज हैं। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है। धर्म को कलंकित करता सत्ता का बाज़ारवाद ऐसी अनेकों मिसालों से भरा पड़ा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और ज्ञानी इकबाल सिंह के रिश्ते भी बहुत पुराने बताए जाते हैं और वह ऐसे विवादास्पद बयान पहले भी देते रहे हैं। एक बार पहले भी ज्ञानी इकबाल सिंह को अकाल तख़्त पर तलब किया गया था, तो उन्होंने साफ कह दिया था, ठीक है बुलाते हो तो आ जाता हूं, लेकिन वहां आकर बादल परिवार के कच्चे चिट्ठे भी खोल दूंगा। मामला तुरंत से पहले ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। मंदिर की सीढ़ियों से आवाज़ आई: हुई है वही जो राम रची राखा…..।
सिख इतिहासकार डॉ. सुखप्रीत सिंह उधोके का कहना है कि मोदी का यह बयान किसी दूरगामी प्रभाव को ध्यान में रखकर एक षड्यंत्र के तहत दिया गया बयान है। अल्पसंख्यक विरोध का पर्याय बन चुका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मानता है कि भारत-भूमि पर रहने वाले सभी लोग हिंदू हैं, भले ही उनकी पूजा-पद्धति कोई भी हो। जन्मभूमि पूजन स्थल पर सिखों के बारे में जिस तरह की प्रचार सामग्री बांटी गई है, उसके मुताबिक तो राम जन्मभूमि अयोध्या की रक्षा के लिए गुरु गोबिन्द सिंह की निहंग सेना और मुगलों की शाही सेना का भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें मुगलों की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था।
इस प्रचार सामग्री में यह भी दावा पेश किया गया है कि सिखों का ‘हरिमंदिर साहिब’ दरअसल हिंदुओं का विष्णु मंदिर है, अब उसका उद्धार किया जाएगा। सिख विद्वान इस बात से भी इंकार करते हैं और उनका कहना है कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का रचा हुआ एक काल्पनिक इतिहास है, जिसका कोई प्रामाणिक आधार नहीं है और सिखों को हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा मान लेने के लिए की जा रही साजिश का एक हिस्सा है।
सिख विद्वान मानते हैं कि गुरु गोबिन्द सिंह की रचना ‘दसम ग्रंथ’ के एक अध्याय ‘विष्णुवतार’ का अनुवाद ‘रामवतार’ ही था और उनकी ‘गोविंद रामायण’ नाम की कोई रचना नहीं है। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि सिखों का एक हिस्सा दशम ग्रंथ को गुरु गोबिन्द सिंह की रचना मानता है जबकि दूसरा धड़ा नहीं मानता। सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त या शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (जिस पर अकाली दल दल का अच्छा खासा नियंत्रण है) के जत्थेदार इस दुविधा में थे कि मोदी के इस बयान का खंडन किया जाए या नहीं, क्योंकि अकाली दल बादल अभी भी मोदी के साथ हैं और उनकी बहू मोदी सरकार में मंत्री हैं।
सिख समाज में हो रही सख़्त आलोचना को देखते हुए अंततः अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को सरबत खालसा के सामने आखिर फैसला लेना ही पड़ा। सरबत खालसा के सिंह साहिबान ने यह घोषणा कर दी है कि राम जन्मभूमि पूजन के मौके पर पटना साहिब गुरुद्वारा के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह ने गुरु साहिबान को लव-कुश की औलाद बताकर सिख कौम का निरादर किया है। पांचों सिंह साहिबान की ओर से ज्ञानी इकबाल सिंह को आदेश दिया गया है कि वे 20 अगस्त तक श्री अकाल तख़्त साहिब के सामने पेश होकर अपना स्पष्टीकरण दें।
स्पष्ट शब्दों में सरबत खालसा के कार्यकारी जत्थेदार ध्यान सिंह मंड ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कह दिया है कि उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रामायण लिखे जाने की बात कह कर सिख कौम का अपमान किया है। इस बयान से सिख भावनाओं को गहरी ठेस पहुंची है, इसलिए प्रधानमंत्री के ओहदे पर बैठे किसी गैर-सिख व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं है कि वह सिखों के अंदरूनी मामलों में दखलंदाज़ी करे। इसलिए पांच सिंह साहिबान गुरुमत की रोशनी में नरेंद्र मोदी को आदेश देते हैं कि वह 15 दिनों के अंदर अपना बयान वापस लें और सिख कौम से माफ़ी मांगे। नहीं तो पांच सिंह साहिबान फिर से ‘गुरुमता’ करके सिख संगत से अपील करेंगे कि वे भारतीय संविधान और कानून के अनुसार नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ धारा 295 के अधीन मुकदमे दर्ज करवाएं।
यहां याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि खालिस्तानी आंदोलन की शुरुआत भी इसी तरह के सिख कौम के ‘अपमान’ जैसे मुद्दे से ही शुरू हुई थी और उसके चलते फैली हिंसा में हजारों बेकसूर पंजाबवासियों ने अपना खून बहाया था और उस आग में तबाह हुई पंजाब की खुशहाली उसके बाद आज तक नहीं लौटी।
अकाल तख़्त बेशक आकलियों के नियंत्रण में है इसलिए मोदी को माफ़ी झटपट मिल जाने की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन अब सारे देश के सामने यह सवाल खड़ा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी सिख कौम से माफ़ी मांगेंगे? अगर मोदी की ओर से कोई माफीनामा नहीं आता तो क्या अकाली दल भाजपा गठबंधन से बाहर हो जाएगा? क्या सिख, नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ धारा 295 के अधीन मुकदमे दर्ज करवाएंगे? क्या उम्मीद की जा सकती है मोदी के खिलाफ़ दर्ज मुकदमों की सुनवाई होगी? क्या अब तक चल रही हिंदू-मुस्लिम राजनीति को मोड़ देकर देश को फिर एक बार अब हिंदू-सिख हिंसा की आग में झोंक दिया जाएगा? क्या पंजाब फिर से इस आग को झेलने के लिए तैयार है?
सवाल-दर-सवाल है, हमें जवाब चाहिए।
(देवेंद्र पाल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल लुधियाना में रहते हैं।)
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