Friday, April 19, 2024

मीडिया पर नियंत्रण की कोशिश में सरकार की पत्रकारों के गले में पट्टा पहनाने की तैयारी

डिजिटल न्यूज़ और सोशल मीडिया को नियंत्रण करने के लिए सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदम के पीछे वह रोडमैप है जो कोविड महामारी की चरम अवस्था में सरकार द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में बताया गया था। इस रिपोर्ट को जिस मंत्रियों के समूह या जीओएम ने तैयार किया था उसमें पांच कैबिनेट स्तरीय और चार राज्यमंत्री थे। उस रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने चिंता जाहिर की थी कि, “हमारे पास एक ऐसी मजबूत रणनीति होनी चाहिए जिससे बिना तथ्यों के सरकार के खिलाफ लिख कर झूठा नैरेटिव/फेक न्यूज़ फैलाने वालों को बेअसर किया जा सके।”

इस वाक्य में शब्दों का चयन और यह अस्पष्ट रहने देना कि फेक नैरेटिव क्या है और सरकार इसकी पहचान कैसे करेगी, ये तमाम बातें गौर करने लायक हैं। हालांकि समिति के मेनडेट पर शब्दों की पर्देदारी की है लेकिन इतना तो साफ है कि सरकार मीडिया में अपनी छवि को लेकर परेशान है। रिपोर्ट में बिना लागलपेट के बताया गया है कि छवि सुधार का काम कैसे किया जाए। रिपोर्ट में इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया गया है कि उन पत्रकारों की पहचान की जाए जो निगेटिव नैरेटिव (नकारात्मक भाष्य) खड़ा करते हैं और फिर ऐसे लोगों को ढूंढा जाए जो उस नैरेटिव की काट देते हैं ताकि एक प्रभावशाली तस्वीर रच कर जनता को सरकार के पक्ष में किया जा सके।

हाल में अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 की यह कह कर आलोचना हो रही है कि यह डिजिटल मीडिया पर सरकार के नियंत्रण को बढ़ाता है। ये नियम स्पष्ट रूप से उपरोक्त रणनीति के तहत आते हैं। मुख्यधारा के मीडिया पर सरकार की पकड़ के बावजूद सरकार मीडिया में अपनी छवि को लेकर संतुष्ट नहीं है।

कारवां को हासिल रिपोर्ट के अंशों से पता चलता है कि यह साल 2020 के मध्य में मंत्रियों के समूह (जीओएम) की छह बैठकों और मीडिया क्षेत्र के विशिष्ट व्यक्तियों, उद्योग और व्यवसायिक चेंबरों के सदस्यों, अन्य विशिष्ट व्यक्तित्वों के साथ परामर्श पर आधारित है। इस रिपोर्ट की विस्तृत जानकारी सबसे पहले 8 दिसंबर, 2020 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुई थी। नकवी के अलावा मंत्रियों के समूह में संचार, इलेक्‍ट्रानिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद, कपड़ा मंत्री तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, विदेश मंत्री एस जयशंकर और राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी, अनुराग ठाकुर, बाबुल सुप्रियो और किरेन रिजिजू भी थे। इस रिपोर्ट में सरकार की इमेज क्राइसेस या छवि संकट को संबोधित करने के लिए कई सिफारिशें की गई हैं।

रिपोर्ट में ईरानी द्वारा प्रस्तावित एक सिफारिश को लागू करने की जिम्मेदारी, जिसमें 50 नकारात्मक और सकारात्मक इनफ्लुएंसर (असर डालने वाले व्यक्ति) की पहचान करने की बात है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर को दी गई है कि वह निरंतर 50 नकारात्मक इनफ्लुएंसर को ट्रैक करें। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आता है। रिपोर्ट के एक भाग, जिसका शीर्षक है “एक्शन पॉइंट्स”, में कहा गया है कुछ निगेटिव इनफ्लुएंसर झूठा नैरेटिव फैलाते हैं और सरकार को बदनाम करते हैं और इन्हें निरंतर ट्रैक करने की जरूरत है ताकि सही और यथासमय जवाब दिया जा सके। इसके साथ ही एक्शन पॉइंट्स में बताया गया है कि 50 पॉजिटिव इनफ्लुएंसर के साथ लगातार संपर्क रखा जाए और साथ सरकार के समर्थक और न्यूट्रल पत्रकारों के साथ संपर्क में रहा जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे पत्रकार न सिर्फ सकारात्मक खबरें देंगे बल्कि ये झूठे नैरेटिव का भी जवाब देंगे।

छवि को लेकर सरकार की घबराहट, रिपोर्ट में दिए गए मंत्रियों और प्रमुख मीडिया शख्सियतों के विचारों में भी झलकती है। भूतपूर्व मीडिया कर्मी और अब बीजेपी के राज्य सभा सांसद स्वप्न दासगुप्ता का जिक्र रिपोर्ट में यह सुझाते हुए किया गया है कि “2014 के बाद एक बदलाव आया है। पक्के समर्थक हाशिए पर चले गए हैं। इसके बावजूद श्री मोदी की जीत हुई। उन्होंने इन्हें नजरअंदाज किया। वह सोशल मीडिया के जरिए लोगों से प्रत्यक्ष मिले। यही वह इकोसिस्टम है जो प्रासंगिक बने रहने के लिए हमले कर रहा है।” दास ने प्रस्ताव दिया कि पर्दे के पीछे रह कर इन्हें अपने पक्ष में करने की शक्ति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। फिर उन्होंने कहा, “पर्दे के पीछे किए जाने वाले ये संवाद प्राथमिक तौर पर शुरू किए जाने चाहिए जिनमें एक सोचे-समझे तरीके से पत्रकारों को अतिरिक्त कुछ दिया जाना चाहिए।” हाल के हफ्तों में दिल्ली की अदालतों ने दो बार दिल्ली पुलिस को कुछ चयनित मीडिया चैनलों में अपनी पड़ताल (दिशा रवि और दिल्ली हिंसा षड्यंत्र मामलों में) लीक करने के लिए फटकार लगाई थी।

मीडिया कर्मी और प्रसार भारती प्रमुख सूर्य प्रकाश ने कहा, “पहले छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों को हाशिए पर कर दिया गया था। उन्हीं से यह परेशानी शुरू हो रही है।” ऐसा कहने के बाद उन्होंने बताया कि क्या किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “भारत सरकार के पास उनको नियंत्रण करने के लिए अपार शक्ति है। हमें इस बात पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है कि पिछले छह सालों में हमने मीडिया के भीतर अपने मित्रों की सूची में विस्तार नहीं किया है।”

एनडीटीवी और तहलका के साथ काम कर चुके नितिन गोखले जो अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के करीबी हैं, उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया कलर कोडिंग के जरिए शुरू की जानी चाहिए। “हरा : फेंस सिटर (जो किसा का पक्ष नहीं लेते), काला : जो हमारे खिलाफ हैं, और सफेद : जो हमारा समर्थन करते हैं। हमें अपने पक्षधर पत्रकारों का समर्थन करना और उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए।”

रिपोर्ट सुझाती है, “अच्छा तर्क करने में सक्षम व्यक्तियों की पहचान करें, एक ही तथ्यों को अलग-अलग संदर्भों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए, ऐसे माहिर स्पिन डॉक्टरों (तर्कबाजों) की पहचान की जानी चाहिए और उनका उपयोग किया जाना चाहिए जो सरकार के लिए यह कर सकते हैं।”

उपरोक्त बातें थोड़ी मजाकिया भले ही लगती हैं लेकिन सच यह है कि जब से यह रिपोर्ट तैयार हुई है तभी से इसके दो बिंदुओं को, जो डिजिटल कंटेंट के नियंत्रण से संबंधित हैं, अमली जामा पहनाया जा चुका है।

रिपोर्ट के एक भाग का शीर्षक है “पॉजिटिव इनीशिएटिव्स इन बोग” (सकारात्मक पहल जो प्रचलित हैं)। इसमें कहा गया है कि “ऐसे कदम उठाए गए हैं जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि डिजिटल मीडिया में रिपोर्टिंग पूर्वाग्रह से प्रेरित न हो जो विदेशी निवेश के कारण होती हैं। यह तय किया गया है कि विदेशी निवेश की सीमा 26% रखी जाए और इसे लागू करने की प्रक्रिया जारी है।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म को अधिक जिम्मेदार बनाने के लिए नए संयंत्र को तैयार करने की आवश्यकता है।

अगस्त 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डिजिटल मीडिया में 26% विदेशी निवेश की सीमा निर्धारित की थी और न्यूज संस्थानों को इसका पालन करने के लिए अक्तूबर, 2020 तक की समय सीमा दी थी। इस समयावधि के समाप्त होने के अगले महीने हफिंगटन पोस्ट, जो केंद्र सरकार से संबंधित कई आलोचनात्मक खबरें कर रहा था, ने भारत में अपना काम बंद कर दिया। हफिंगटन पोस्ट के भारत में बंद होने से पहले इसका अधिग्रहण करने वाली कंपनी बजफीड के सीईओ जोना परेटी ने कहा कि उन्हें ब्राजील और भारतीय संस्करणों को कानूनी तौर पर अधिग्रहीत करने की अनुमति नहीं दी गई है क्योंकि विदेशी कंपनियों को समाचार संगठनों पर नियंत्रण करने की अनुमति नहीं है। 2021 के आईटी नियम सरकार को नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम वीडियो जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर अधिक नियंत्रण की शक्ति देते हैं।

डिजिटल मीडिया को लेकर सरकार की चिंता पूरी रिपोर्ट में दिखाई देती है। रिलायंस द्वारा फंडेड थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के डिस्टिंग्विश्ड (विशिष्ट) फेलो कंचन गुप्ता ने रिपोर्ट में सरकार को बताया है कि वह किस पर फोकस करे। उन्होंने कहा है, “गूगल द प्रिंट, वायर, स्क्रॉल, हिंदू आदि को प्रमोट करता है जो ऑनलाइन न्यूज प्लेटफॉर्म हैं। इन्हें कैसे हैंडल करना है इसके लिए अलग से चर्चा की जरूरत है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऑनलाइन मीडिया की पहुंच अधिक लोगों तक है और हमें यह पता होना चाहिए कि ऑनलाइन मीडिया को कैसे प्रभावित करना है, या फिर हमें खुद का ग्लोबल कंटेंट वाला ऑनलाइन पोर्टल चलाना चाहिए।”

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने नैरेटिव पर नियंत्रण न रख पाने की अपनी बेचैनी जाहिर की। उन्होंने कहा, “हालांकि हमें सटीक सुझाव मिलते हैं लेकिन यह समझ नहीं आता कि सरकार में होने के बावजूद स्क्रॉल, वायर और कुछेक क्षेत्रीय ऑनलाइन मीडिया की बराबरी क्यों नहीं कर पाते। मीडिया पर हमारा दखल विस्तारित नहीं हो रहा है।”

सरकार ने नैरेटिव पर पकड़ कायम करने की अपनी रणनीति को एक नाम भी दिया है : “पोखरण इफेक्ट”। (यह नाम 1974 में इंदिरा गांधी ने और फिर 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कराए गए परमाणु परीक्षणों से लिया गया है। दोनों परीक्षणों ने सरकारों की छवि को मजबूत किया था।)

पोखरण इफेक्ट का विचार आरएसएस के विचारक एस गुरुमूर्ति ने दिया है। गुरुमूर्ति रिपोर्ट में बताए गए विशिष्ट व्यक्तित्वों में से एक हैं। गुरुमूर्ति ने विस्तार से बताया है कि कैसे पोखरण की तर्ज पर “इको सिस्टम” को बदला जाना चाहिए, कैसे मीडिया की शत्रुता को हैंडल करना चाहिए और कैसे मेन लाइन मीडिया की चिंता करनी चाहिए? इन सभी बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने बिहार और ओड़िशा के गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों को, जो बीजेपी के सहयोगी हैं, नैरेटिव बदलने के लिए इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा, “नियोजित संवाद सामान्य अवसरों के लिए अच्छा है लेकिन पोखरण इफेक्ट बनाने के लिए श्री नीतीश कुमार या श्री नवीन पटनायक को बात करने दें। यह रिपब्लिक द्वारा किया जा रहा है लेकिन रिपब्लिक स्वीकार नहीं किया जाता। हमें नैरेविट बदलने के लिए पोखरण की जरूरत है।”

शायद केवल इसी तरह के लेंस के जरिए हम सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर नोटबंदी तक मोदी सरकार के शासन काल में समय-समय पर होने वाली नौटंकी को समझ सकते हैं। प्रसाद ने रिपोर्ट में कहा है: “पोखरण इफेक्ट की अवधारणा अच्छी है और इसका उपयोग अन्य संदेशों में भी किया जाना चाहिए।”

कानून मंत्री ने सिफारिश की कि “कुछ प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, कुलपतियों, सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारियों आदि की पहचान की जानी चाहिए जो हमारी उपलब्धियों को लिख सकें और हमारे नजरिए को पेश कर सकते हैं।” इस तरह के लेख लिखने के लिए सरकार से बाहर किसी को देखने की जरूरत जिस धारणा से उपजी थी उसे विदेश मंत्रालय में नीति सलाहकार या एमईए अशोक मलिक ने रिपोर्ट में लिखा है। मलिक लिखते हैं, “मंत्रियों, शीर्ष नौकरशाहों के ओ-पेड लेख बंद कीजिए क्योंकि यह एक महामारी बन चुका है इसके बुरे नतीजे आ रहे हैं क्योंकि यह प्रचार की तरह लगता है और इसे पढ़ा भी नहीं जा रहा है।”

सूचना प्रसारण मंत्रालय को ऐसे लोगों को खोजने की जिम्मेदारी देते हुए जो सरकार के अपने मंत्रियों और नौकरशाहों की तुलना में बेहतर कर सकते हैं, रिपोर्ट ईमानदार और दो टूक भाषा में काम को सूचीबद्ध करती है। रिपोर्ट सुझाती है, “अच्छा तर्क करने में सक्षम व्यक्तियों की पहचान करें, एक ही तथ्यों को अलग-अलग संदर्भों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए, ऐसे माहिर स्पिन डॉक्टरों (तर्कबाजों) की पहचान की जानी चाहिए और उनका उपयोग किया जाना चाहिए जो सरकार के लिए यह कर सकते हैं।”

इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 26 जून, 2020 को राज्य मंत्री किरेन रिजिजू के आवास पर नकवी के साथ मुलाकात के दौरान “मीडिया क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों” से परामर्श किया गया। रिपोर्ट में पत्रकार “आलोक मेहता, जयवीर घोषाल, शिशिर गुप्ता, प्रफुल्ल केतकर, महुआ चटर्जी, निस्तुला हैबर, अमिताभ सिन्हा, आशुतोष, राम नारायण, रवीश तिवारी, हिमांशु मिश्रा और रवींद्र” का नाम उनकी संस्थागत संबद्धताओं की पहचान के बिना दर्ज है। उत्सुकतावश जब कारवां ने इनसे संपर्क किया, तो कई पत्रकारों ने कहा कि सरकारी संचार पर जीओएम के साथ परामर्श के लिए ऐसी किसी बैठक की बात नहीं थी। बल्कि, उन्होंने बताया कि इसे चीन के साथ तनाव के वक्त सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों, जिसमें विदेश मंत्री जयशंकर शामिल थे, के साथ एक अनौपचारिक बातचीत माना गया था।

फिर भी, रिपोर्ट में बिना पत्रकार विशेष का नाम लिए पत्रकारों के लिए कहा गया है :

लगभग 75% मीडियाकर्मी श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व से प्रभावित हैं और पार्टी के साथ वैचारिक रूप से जुड़े हुए हैं।

हमें इन व्यक्तियों के अलग-अलग समूह बनाने चाहिए और नियमित रूप से उनसे संवाद करना चाहिए।

सरकार को बेहतर प्रचार के लिए किसी भी बड़े कार्यक्रम के शुभारंभ से पहले और उसके फॉलोअप के दौरान समर्थक मीडिया को सहायक पृष्ठभूमि से संबंधित साहित्य उपलब्ध कराना चाहिए।

सहयोगी संपादकों, स्तंभकारों, पत्रकारों और टिप्पणीकारों को मिलाकर समूह का गठन किया जाना चाहिए और उन्हें नियमित रूप से काम में लगाए रहना चाहिए।

विदेशी मीडिया के साथ संवाद बंद होना चाहिए क्योंकि इससे बुरा असर पड़ा है।

जिन पत्रकारों का जिक्र किया गया है उनमें इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू जैसे संस्थानों के वरिष्ठ संवाददाता भी शामिल हैं। कारवां ने रिपोर्ट में बताए गए इन पत्रकारों में से कइयों से संपर्क किया। हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता ने कोई जवाब नहीं दिया। जबकि दूसरों ने खुद उपरोक्त टिप्पणियों से खुद को दूर रखा लेकिन अपना नाम जाहिर न करने को कहा।

बस जयंत घोषाल ही खुलकर सामने आए। घोषाल पहले इंडिया टीवी के राजनीतिक संपादक थे और अब पश्चिम बंगाल सरकार के साथ काम करते हैं। घोषाल ने कहा, “हम वहां जयशंकर से मिलने गए थे। हमें सरकारी संचार को लेकर जीओएम के साथ किसी भी बातचीत के बारे में सूचित नहीं किया गया था और इस तरह की कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई थी। वहां मौजूद किसी मंत्री ने कोई नोट नहीं लिया। मुझे नहीं पता कि ये टिप्पणियां वे कहां से लेकर आए।”

पत्रकारों ने विदेशी मीडिया के साथ बातचीत बंद करने का सुझाव दिया था लेकिन रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सरकार ने विदेश मंत्रालय और सूचना प्रसारण मंत्रालय को “विदेशी मीडिया के साथ संबंध” बनाने का काम सौंपा है। रिपोर्ट में कहा गया है, “अंतर्राष्ट्रीय मंच में सरकार का पक्ष ठीक से रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पहुंच महत्वपूर्ण है। विदेशी मीडिया के पत्रकारों के साथ नियमित रूप से बातचीत से सरकार की सही जानकारी, खासकर संवेदनशील मुद्दों पर, और परिप्रेक्ष्य को प्रसारित करने में मदद मिलेगी।”

मौजूदा सरकार अपने लोगों का ध्यान रखती है। इसीलिए तो ओपइंडिया की संपादक नूपुर शर्मा ने निःसंकोच सिफारिश की, “ओप-इंडिया जैसे ऑनलाइन पोर्टल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।” अभिजीत मजूमदार, जो पहले मेल टुडे में थे, ने यह कहने के बाद कि ऑल्ट न्यूज “शातिराना” है, शर्मा का साथ देते हुए कहा, “ओप-इंडिया की मदद करें और ओप-इंडिया के ट्वीट्स को री-ट्वीट करें।” ओप-इंडिया एक दक्षिणपंथी वेबसाइट है जो फर्जी समाचार और सरकारी प्रोपगेंडा के लिए बदनाम है। ऑल्ट न्यूज एक फैक्ट चेकिंग वेबसाइट है जिसने ओपइंडिया द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं को बार-बार उजागर किया है।

जीओएम ने दोनों के सुझावों को नोट किया और लागू करने का जिम्मा एमआईबी को सौंप दिया। रिपोर्ट में कहा गया है, “ऑनलाइन पोर्टलों को बढ़ावा दें। (ओप इंडिया जैसे) ऑनलाइन पोर्टल को बढ़ावा देना और उसका समर्थन करना आवश्यक है क्योंकि मौजूदा ऑनलाइन पोर्टलों में से अधिकांश सरकार के प्रति आलोचनात्मक हैं।”

(हरतोष सिंह बल कारवां के राजनीतिक संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं। यह रिपोर्ट कारवां के वेब पोर्टल से साभार ली गयी है।)

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