अभी भारत सरकार महाकुम्भ त्रासदी को लेकर सदन में प्रज्ज्वलित आग को ठंडा करने की जुगत में लगी ही थी कि एक और वज्रपात अमेरिका ने कर दिया। उसने इत्तिला कर दी कि वह अपने यहां से भारत के अवैध 205 प्रवासियों को यहां से रवानगी दे चुका है वे भारत पहुंचने वाले हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति इतनी जल्दी ये कार्रवाई कर देंगे इसकी कल्पना मोदी ने नहीं की थी। वे उनसे मिलने शीघ्र जाने वाले थे।
बहरहाल सुनते हैं कि वे सदमे में आ गए और पहली बार लंबे कालखंड में बुखार से ग्रस्त हो गए। इधर उन प्रवासियों का जो वीडियो सामने आया है वह अमेरिकी नीति का खुलासा करता है। वे तमाम अवैध प्रवासी बेड़ियां पहने हुए हैं। मुंह पर मास्क है और पैर बंधे हुए हैं। एक दृष्टि से ये व्यवहार उचित प्रतीत होता है क्योंकि आखिरकार वे अपराधी तो हैं ही। भारत सरकार को भी नियमानुसार भारत से अवैध तौर पर भागने पर ऐसी ही कार्रवाई करनी चाहिए। पर यहां ऐसा संभव नहीं होगा। क्योंकि यहां अपराध का सम्मान होते हम देख रहे हैं।
समस्या ये है कि अभी सिर्फ 205 आए हैं। 18000 भेजे जाने की प्रतीक्षा सूची में हैं वे शीघ्र भारत भेजे जाएंगे। प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में अमेरिका में करीब 7,25,000 भारतीय अवैध प्रवासियों के रूप में रह रहे थे, जो अमेरिका में तीसरी सबसे बड़ी ‘अनधिकृत प्रवासी’ आबादी का हिस्सा थे।
कल्पना कीजिए कि यदि ये सब एक दो वर्षों में भारत भेज दिए जाते हैं तो इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर कितना और कैसा असर पड़ेगा। तिब्बत, बांग्लादेश और रोहिंग्या शरणार्थियों से ये कई गुनी ज्यादा संख्या है। भारत में अभी इन पर गर्मागर्म बहस चलती रहती है। क्या भारत भी ऐसी कोई नीति बनाएगा? यह सवाल चर्चा बनने वाला है। इतना तो तय है कि अमेरिका से वापस आए लोग देश के लिए नई मुसीबत बनेंगे।
एक बात सच है देश में मोदी सरकार आने के बाद से पिछले कुछ वर्षों में नागरिकता छोड़ने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। साल 2021 में 1.63 लाख का यह आंकड़ा 2022 में 2.25 लाख तक पहुंच गया।
गुरुवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राज्य सभा को बताया कि मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, अपनी भारतीय नागरिकता त्यागने वाले भारतीयों की संख्या 2015 में 1,31,489; 2016 में 1,41,603; 2017 में 1,33,049; 2018 में 1,34,561; 2019 में 1,44,017; 2020 में 85,256; 2021 में 1,63,370 और 2022 में 2,25,620 रही।
इसके अलावा यह आंकड़ा 2011 में 1,22,819; 2012 में 1,20,923; 2013 में 1,31,405; 2014 में 1,29,328 था। यानि भारत से बड़ी तादाद में प्रतिभा पलायन भी हुआ है जिसमें सर्वाधिक प्रवाह अमेरिका के लिए, दूसरा कनाडा और तीसरा आस्ट्रेलिया के लिए हुआ है।
ट्रम्प-मोदी की दोस्ती ने युवाओं को अवैध प्रवास हेतु निश्चित तौर पर प्रोत्साहित किया है। अब यह अवैध प्रवास और प्रतिभा पलायन भारत की दुर्दशा को अभिव्यक्त करता है।
दूसरी ओर उधर भाजपाध्यक्ष के चयन पर संघ का रुख़, अमेरिका से खटास, बांग्लादेश के हिंदुओं पर बढ़ता ख़तरा, सीजेआई के सरकार के ख़िलाफ़ फैसले, सदन में प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी का बढ़ता दबदबा, नीतीश कुमार की पलायन वादी नीति, महाकुम्भ में मिली नाकामी, अम्बेडकर अपमान और संविधान के प्रति लोगों की जागरूकता तथा शिथिल होती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारों का बढ़ता आक्रोश, किसानों की चेतना और बढ़ती महंगाई से सरकार का दम टूटा जा रहा है।
ऐसे हालात में नवयुवकों की, ये अमरीका से आती खेपों का देखना है भारत सरकार कैसा स्वागत करती है। उन्हें भारत में रोज़गार मिल जाए तो बात बन जाए। क्योंकि इनमें बहुतायत ऐसे युवाओं की है जिन्होंने अमेरिका में हाऊडी मोदी इवेंट को खूबसूरती दी थी और डोनाल्ड ट्रम्प को पहली दफा राष्ट्रपति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
ट्रम्प भले उनका अवदान विस्मृत कर दें पर मोदी जी को उनको सर आंखों पर बैठा के रखना चाहिए। 2029 के चुनाव में अमेरिका से वापस आए अवैध प्रवासी ज़रूर जिताएंगे। अपराधियों की कद्र करने में भाजपा माहिर है। गंगा भले पाप ना धो पाए पर भाजपा की वाशिंग पर पूरा भरोसा है।आइए दिल खोलकर इन भारत के कर्मवीरों का स्वागत करें।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट।)
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