Wednesday, April 24, 2024

सिनेमैटोग्राफ बिल: बॉलीवुड पर चाहती है सरकार एकछत्र राज

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद एक ओर जहाँ ‘बुद्धा इन ए ट्रैफिक जाम’, एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, नरेंद्र मोदी, उरी द सर्जिकल स्ट्राइक, पैडमैन, इंदु सरकार, बाटला हाउस, मणिकर्णिका जैसी प्रोपगैंडा और हिंदुत्ववादी नैरेटिव गढ़ने वाली फिल्में बननी शुरु हुईं वहीं दूसरी ओर स्टेट और उसकी मशीनरी को एक्सपोज करने वाली केदारनाथ, मोहल्ला अस्सी, पीके, हैदर जैसी फिल्मों व तांडव व पद्मावत पर भगवा गुंडों ने विरोध और हिंसा करना शुरू किया। मामला कोर्ट तक भी गया। कुछ फिल्मों में चाहकर भी केंद्र सरकार कुछ नहीं कर सकी क्योंकि केंद्र सरकार के पास सीबीएफसी के फैसले को पलटने का पॉवर नहीं था।

हालांकि फिल्म सेंसर बोर्ड के शीर्षस्थ पदों पर सरकार ने अपने लोगों को बैठा भी दिया फिर भी कुछ ऐसा था जो चाहकर भी नहीं हो पा रहा था। अतः केंद्र की भाजपा सरकार ने 6 अप्रैल, 2021 को अचानक फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्रिब्यूनल यानी  एफसीएटी को बंद कर दिया। और अब सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 2021 लेकर आई है जिसका नया ड्राफ्ट 18 जून शुक्रवार को जारी किया गया है। सरकार की मजबूरी कह लीजिये या लोकतंत्र का तकाजा सरकार ने 2 जुलाई तक ये ड्राफ्ट पब्लिक और फ़िल्म मेकर्स की राय जानने के लिए सार्वजनिक रखा है, भले ही सरकार इनमें से किसी की राय न माने और क़ानून में अपने मुआफिक़ चीजें थोप दे।

क्या है ‘सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल-2021’ में?

सिनेमैटोग्राफ एक्ट भारत में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रिलीज होने वाली फिल्मों के प्रमाणन को निर्देशित करने वाला एकमात्र कानून है।  यह सीबीएफसी को नियंत्रित करता है, जिसे भारतीय सिनेमा घरों में रिलीज होने वाली प्रत्येक फिल्म को प्रमाणित करने का अधिकार है।

अगर सरकार द्वारा प्रस्तावित नया संशोधन बिल क़ानूनी जामा पहन लेता है तो केंद्र सरकार को सीबीएफसी द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट को पुनः परीक्षण के आदेश देने की पॉवर मिल जाएगी। तब सरकार को यदि ये ज्ञात हुआ कि किसी फ़िल्म में सेक्शन 5B (प्रिंसिपल फॉर गाइडेंस इन सर्टिफाइंग फ़िल्म्स) का उल्लंघन हुआ है तो सरकार सीबीएफसी को फ़िल्म का सर्टिफिकेशन रद्द करने या बदलाव करने का आदेश दे सकेगी। केंद्र सरकार के पास फिलहाल सीबीएफसी के फैसले को पलटने की पॉवर नहीं है।

सेक्शन 5B यानी प्रिंसिपल फॉर गाइडेंस इन सर्टिफाइंग फ़िल्म्स का कहना है कि अगर कोई फ़िल्म या फ़िल्म का कोई सीन देश की अखंडता के खिलाफ़, देश की शांति के खिलाफ़, देश की नैतिकता के खिलाफ़, दूसरे देशों से संबंधों को खराब करने, देश का माहौल बिगाड़ने लायक लगता है तो सरकार इस पर रोक लगा सकती है।

हालांकि इससे पहले नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले को कायम रखने का आदेश दिया था जिसमें हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से सीबीएफसी के किसी भी फ़ैसले को ओवररूल करने या बदलने के अधिकार छीन लिए थे। इस फ़ैसले के बाद सरकार के पास सिर्फ़ इतनी पॉवर थी कि वे सीबीएफसी बोर्ड के हेड से फ़िल्म पर दोबारा विचार करने की राय दे सके। मौजूदा एक्ट में सेक्शन 6 के आधार पर सरकार के पास फ़िल्म सर्टिफिकेशन की प्रोसीडिंग की रिकॉर्डिंग देखने का भी अधिकार है।

नये सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल के ड्राफ्ट में धारा 6AA जोड़ने का प्रस्ताव है, जो अनऑथराइज्ड रिकॉर्डिंग को प्रतिबंधित करेगा। सरकार के अनुसार मौजूदा सिनेमैटोग्राफ एक्ट (1952) में पायरेसी के लिए कोई सख्त क़ानून नहीं है। इसलिए इस प्रावधान को जोड़ा गया है। इसके अनुसार फ़िल्म की बिना अधिकार रिकॉर्डिंग करने की मनाही होगी। नए प्रस्ताव के मुताबिक, उल्लंघन करने पर कम से कम तीन महीने की जेल हो सकती है, जो तीन साल तक भी बढ़ाई जा सकती है। वहीं, कम से कम 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा, जो ऑडिट ग्रॉस प्रोडक्शन कॉस्ट का 5 प्रतिशत तक हो सकता है। सजा और जुर्माना दोनों भी हो सकता है। सरकार का कहना है पायरेसी से हर साल एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का बहुत नुकसान होता है। इस बिल के ज़रिये पायरेसी करने वालों पर लगाम लगेगी।

इसके अलावा ड्राफ्ट में उम्र के आधार पर फिल्मों को सर्टिफिकेट देने का प्रस्ताव दिया गया है। नए प्रस्ताव में फिल्मों को उम्र के आधार पर बांटने को कहा गया है, जिसमें 7+ के लिए U/A, 13+ के लिए U/A और 16+ के लिए U/A सर्टिफिकेट।

गौरतलब है कि मौजूदा समय में फिल्मों को तीन कैटेगरी में बांटा जाता है- अनरिस्ट्रिक्ट पब्लिक यानि सभी के लिए U सर्टिफिकेट,  12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों जिन्हें पेरेंट्स गाइडेंस की ज़रूरत होगी, के लिये U/A सर्टिफिकेट, और एडल्ट फिल्मों के लिए A सर्टिफिकेट।

अब तक सीबीएफसी द्वारा दिए जाने वाला सर्टिफिकेशन सिर्फ़ 10 साल के लिए वैलीड होता था। लेकिन इस नए बिल के लागू होने के बाद फ़िल्म का सिर्फ एक बार ही सर्टिफिकेशन होगा और वो आजीवन वैलीड रहेगा।

कमेटियों का गठन और रिपोर्ट का कूड़ेदान में जाना

इससे पहले साल 2013 में, सिनेमैटोग्राफ एक्ट के तहत प्रमाणन से जुड़े मुद्दों की पड़ताल के लिए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के मंत्री मनीष तिवारी ने जस्टिस मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में फ़िल्म के सीन्स को ना काटने, सर्टिफिकेशन में U/A12+ और U/A15+ जैसी कैटेगरीज़ को जोड़ने और बोर्ड को सिर्फ़ फ़िल्म का सर्टिफिकेशन का काम करने के सुझाव दिये थे। लेकिन सरकार बदलने के बाद ये प्रस्ताव धरा का धरा रह गया।

साल 2016 में ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म पर सेंसर बोर्ड की कैंची चली तो फिर विवाद ने तूल पकड़ लिया।  और तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल की अध्यक्षता में अपनी एक्सपर्ट कमेटी गठित की। इस कमेटी ने भी उम्र के आधार पर प्रमाणन की मांग का समर्थन किया और सीबीएफसी की शक्तियों को सीमित करने के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की, लेकिन इनकी रिपोर्ट कूड़ेदान में डाल दी गयी।

इसके बाद साल 2019 में, सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया था, जहां पायरेसी से निपटने के उद्देश्य से अधिनियम की धारा 7 में एक नई धारा 6AA, और एक नई उप-धारा (1A) को सम्मिलित करने का प्रस्ताव किया गया था। जिसके बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 2020 में लोकसभा में सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट की समीक्षा की। नवीनतम मसौदा विधेयक उसी का परिणाम है।

फिल्मों का नैरेटिव बदलने के लिये हो रहा ये सब

सोशल मीडिया पर कुछ लोगों का मानना है कि अब सरकार फिल्मों का नैरेटिव बदलना चाहती है, फिल्मी हस्तियों को अपने पक्ष में करना चाहती है। फिल्मों में ‘राष्ट्रवाद का नवाचार’ दिखाना चाहती है। अक्षय कुमार, अजय देवगन और कंगना रनावत सरीखे चंद कलाकार सरकार के हर फैसले और अभियान में उनके पक्ष में दिखाई देते हैं, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री का एक बड़ा हिस्सा आज भी सरकार की नीतियों से दूर अपनी धुन में कला और व्यवसाय की दो पटरियों पर संतुलन बना कर आगे बढ़ता ही दिखाई देता है।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक्ट में एक प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया है, जो धारा 5B(1) (फिल्मों को प्रमाणित करने में मार्गदर्शन के सिद्धांत) के उल्लंघन पर केंद्र को रिविजनरी पावर देगा। मौजूदा क़ानून की धारा 6, पहले से ही केंद्र को किसी फिल्म के सर्टिफिकेशन के संबंध में कार्यवाही के रिकॉर्ड की जांच की अनुमति देता है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित संशोधन का मतलब है कि अगर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो केंद्र सरकार के पास बोर्ड के फैसले को उलटने की शक्ति होगी। मंत्रालय ने कानून में एक और प्रावधान शामिल करने का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत सेक्शन 5B(1) के उल्लंघन, अगर केंद्र सरकार को जरूरी लगे तो वो बोर्ड के चेयरमैन को फिल्म को दोबारा जांचने का निर्देश दे सकता है।

नये संशोधन बिल के ख़िलाफ़ आवाज़

बॉलीवुड समेत देशभर के फिल्म निर्माता और कलाकार अब इस बिल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं। इसके खिलाफ अब एक ऑनलाइन याचिका शुरू की गई है और देश भर के फिल्म निर्माताओं और कलाकारों ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। पिछले साल नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई लोकप्रिय फिल्म ‘ईब अल्ले ऊ!’ के निर्देशक प्रतीक वत्स ने इस याचिका को शुरू करने में अहम भूमिका निभाई है। सेंसर बोर्ड के फैसलों को दरकिनार कर केंद्र सरकार को शक्तिशाली बनाने वाले इस बिल के विरोध में शुरू की गई ई-याचिका के समर्थन में अब तक 1000 से अधिक फिल्म निर्माताओं, कलाकारों, लेखकों, छात्रों, शिक्षाविदों ने अपने हस्ताक्षर किए हैं। ऐसा करते हुए सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए गए हैं।

इस ऑनलाइन याचिका पर अब तक हस्ताक्षर करने वालों में अनुराग कश्यप, हंसल मेहता, दिबाकर बनर्जी, फरहान अख्तर, शबाना आजमी, जोया अख्तर, अभिषेक चौबे, वेट्री मारन, रोहिणी हट्टंगड़ी, वरुण ग्रोवर जैसे फिल्म निर्माता, कलाकार, लेखक शामिल हैं।

याचिका में एक्ट के नए प्रावधानों को फिल्म इंडस्ट्री के लिए खतरनाक बताया गया है। इसके अनुसार, “इस तरह का प्रावधान सेंसर बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और देश में फिल्मों के प्रदर्शन पर केंद्र सरकार को सर्वोच्च शक्ति प्रदान करेगा। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक विरोध को ख़तरे में डालेगा।”

सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 में संशोधन के नए प्रावधानों के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा पेश किए गए बिल के खिलाफ जारी याचिका में कहा गया है, ‘हम मांग करते हैं कि सेंसर बोर्ड द्वारा जारी फिल्म सर्टिफिकेट को वापस लेने की सरकार को शक्ति देने वाले इस प्रावधान को वापस लिया जाये।

इस याचिका के शुरू होने से पहले जाने-माने फिल्म निर्माता विशाल भारद्वाज ने अपने ट्वीट के जरिए सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 में बदलाव का कड़ा विरोध किया था और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से इस बिल का कड़ा विरोध करने की अपील की थी। इस याचिका में आगे लिखा गया है कि एक्ट में संशोधन के बाद सभी फिल्म निर्माता सरकार के हाथ में लाचार हो जाएंगे, उनकी फिल्म बनाने की आज़ादी ख़तरे में पड़ जायेगी।

इस याचिका के माध्यम से फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (FCAT) को एक बार फिर से बहाल करने की मांग भी की गई है। आपको बता दें कि इसी साल अप्रैल महीने में केंद्र सरकार ने सेंसर बोर्ड के फैसलों के खिलाफ अपील करने के लिए गठित FCAT का अस्तित्व खत्म कर दिया था। ऐसे में फिल्म निर्माताओं के पास सेंसर बोर्ड के खिलाफ कोर्ट में अपील करने का ही रास्ता बचा है।

फिल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज ने कहा है कि फिल्म प्रमाणन पर क़ानून में संशोधन का क्या अजीब प्रस्ताव है। अगर किसी की शिक़ायत पर फिल्म की दोबारा जांच की जा सकती है तो सेंसर सर्टिफिकेट का क्या मतलब है? मंत्रालय ने जनता से राय मांगी है।

उन्होंने अपील करते हुए कहा है – “भारतीय फिल्म बिरादरी और फिल्म प्रेमियों से आग्रह करता हूं कि इस अनुचित और अनुचित प्रावधान का विरोध करने के लिए [email protected] पर ईमेल करें। और 2 जुलाई की समय सीमा से पहले अपनी राय साझा करें।”

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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