Friday, March 29, 2024

सत्ता की टकसाल में ढाले जाएंगे लेखक

जी हां, हमारी सरकार के मंसूबे बहुत बुलंद हैं और उसने देश में एक ऐसी युवा  लेखकों की फौज बनाने की पिछले नौ जून को घोषणा भी कर दी है। इस फौज में आज़ादी के 75वें सालगिरह में पहले जत्थे में 75 सुयोग्य युवा लेखक तैयार होंगे जो कथित तौर पर प्रगतिशील लेखकों के लेखन की तुलना में भारतीय संस्कृति और पुरातन पहलुओं को सामने लाकर उसे ना केवल देश में बल्कि दुनिया में प्रकाशित कर पहुंचाने में सक्रिय भागीदारी निभायेंगे ताकि भारत पुनः विश्वगुरू की हैसियत प्राप्त कर सके।

सरकार का ख्याल है कई लोगों को पढ़ने-लिखने का काफी शौक होता है। उसमें से कुछ लोग लेखक भी बनना चाहते हैं, लेकिन उचित प्लेटफॉर्म नहीं मिलने की वजह से उनकी यह हसरत पूरी नहीं हो पाती है। प्रधानमंत्री ने इस बार एक योजना लॉन्च की है, जिसमें यदि आपकी उम्र 30 वर्ष से कम है तो हिस्सा ले सकते हैं। केंद्र सरकार की इस योजना का नाम YUVA है। इसके जरिए से युवा लेखकों को लेखन के जरिए से भारतीय विरासत, संस्कृति और इतिहास को बढ़ावा देना होगा। इस योजना के तहत चयनित लेखकों को 50 हजार रुपये प्रति माह दिए जाएंगे। ये न केवल विविध विषयों पर लिख सकेंगे बल्कि इच्छुक युवाओं को अपनी मातृभाषा में लिखने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने का एक अवसर भी प्रदान करेंगे।

इस योजना के तहत भारतीय साहित्य के नए प्रतिनिधियों को तैयार करने की परिकल्पना की गई है। हमारा देश पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में तीसरे स्थान पर है, और स्वदेशी साहित्य की इस निधि को आगे बढ़ाने देने के लिए, यह जरूरी है कि हम इसे वैश्विक स्तर पर पेश करें।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित समाचार में कहा गया है अब लेखकों का जो समुदाय   कभी अवार्ड वापसी करके, कभी ‘लिटरेरी नक्सल’ की भूमिका में उतर कर अपनी प्रतिरोधी उपस्थिति दर्ज कराता था, सत्ता उसके बरक्स ‘देशभक्त’ लेखकों का अपना समुदाय तैयार करेगी। इसे सरकार रोजगार के नए स्रोत के रूप में भी प्रचारित कर रही है। यानि अब सत्ता की टकसाल से लेखक निकलेंगे।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस खतरनाक आहट को राहुल देव ने लगभग तीन वर्ष पहले भांप लिया था और ‘भविष्यकाल’ शीर्षक कहानी लिखी थी। इस विषय पर जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष मशहूर कवि राजेश जोशी कहते हैं- यह लेखक बनाने के कारखाने नया उद्योग हो सकता है। ये एक नये तरह की कोचिंग क्लास भी हो सकती है। इस पर मप्र प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं यह कोचिंग क्लास ही है। स्टाइपेंड भी मिलेगी । याद करो तो साक्षरता अभियान भी याद आ जायेगा। न जाने कितने प्रतिभाशाली लेखकों और रंगकर्मियों को निगल गया। सामूहिकता के नाम पर एक पूरी पीढ़ी को स्वार्थी और भ्रष्टाचारी बना कर फेंक दिया गया।

देखा जाए तो कुल मिलाकर यह कवि अनिल खम्परिया की नज़र में संघ का सुनियोजित एजेंडा है। बात एकदम सटीक लगती है। इसके लिए कम से कम प्रांत प्रचारक जी की संस्तुति चाहिए होगी। राजीव ध्यानी की यह टिप्पणी स्पष्ट संकेत देती है इस कार्य में संघ से जुड़े युवाओं और प्रचारकों को महत्व मिलेगा। वहीं दयाशंकर राय बताते हैं कि संघी आईटी सेल पहले ही ऐसों की एक फ़ौज तैयार कर चुका है! अब बस उनमें से 75 सर्वाधिक “काबिलों” को 50-50 हजार देकर पुख्ता भक्त बनाने पर अमल करना बाकी है। एक नयी फौज। लेखकीय हिटलरी मंसूबे बृजमोहन सिंह इसे इस रूप में देखते हैं।

वस्तुत: भाजपा आईटी सेल के कपोल कल्पित समाचारों की जिस तरह पोल खुल रही है और जनता में छवि गिर रही है उसके पुनर्निर्माण का प्रयास इन कथित युवा लेखकों के ज़रिए किए जाने का यह ऊंचा खेल है जिनके लेख सरकार की छवि निर्माण हेतु तैयार  होंगे। इस प्रशिक्षण के बाद ये भविष्य के अच्छे चुनाव प्रवक्ता भी बन सकते हैं क्योंकि हर हाल में चुनाव जीतना इनका मक़सद है। संघ के कई आनुषांगिक संगठनों में YUVA और जुड़ जायेगा। एक नई युवा लेखकों की फ़ौज।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles