पंजाब के कतिपय सिख संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन का कड़ा विरोध किया है कि दशम गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘गोबिंद रामायण’ लिखी थी। प्रधानमंत्री ने यह बात राम मंदिर की नींव का पत्थर रखने के वक्त कही थी।
नाराज सिख जत्थेबंदियों ने सख्त नाराजगी जताते हुए कहा है कि उन्होंने लोगों को गुमराह किया, जबकि दशम गुरु ने ऐसा कोई ग्रंथ नहीं लिखा है। इस बयान के लिए मोदी माफी मांगें।
सिख जत्थेबंदियों के संयुक्त पंथक तालमेल संगठन के संयोजक और भूतपूर्व जत्थेदार ज्ञानी केवल सिंह, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के भूतपूर्व प्रबंधक जसविंदर सिंह और सिख विद्वान अमरजीत सिंह ने प्रधानमंत्री के इस दावे को सिरे से रद्द किया है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन काल में ‘गोबिंद रामायण’ नाम की रामायण लिखी थी। विद्वान अमरजीत सिंह कहते हैं, “प्रधानमंत्री की ओर से कही गई यह बात भविष्य में ऐतिहासिक संदर्भ बनेगी, इसलिए इसका विरोध करना जरूरी है।”
ज्ञानी केवल सिंह कहते हैं कि, “इस बाबत सिखों का प्रतिनिधित्व करती सर्वोच्च संस्था एसजीपीसी को आवाज बुलंद करनी चाहिए, लेकिन वह खामोश है। हैरानी की बात है कि नरेंद्र मोदी की इतनी बड़ी गलतबयानी के बाद श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह भी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं।”
सिख नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री का कथन तथ्यों के एकदम विपरीत है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा अक्सर सिखों को हिंदू धर्म का हिस्सा कहता है, जबकि गुरु नानक देव जी ने जनेऊ धारण करने से इनकार करके खुद को धार्मिक तौर पर हिंदू धर्म से अलहदा कर लिया था तथा सिख पंथ की नींव रखी थी।
सिख नेताओं ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और एसजीपीसी प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल से आग्रह किया कि वे तत्काल सिख विद्वानों की बैठक बुलाएं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव बनाएं कि वह ‘गोबिंद रामायण’ संबंधी अपने गुमराह करने वाले कथन के लिए सार्वजनिक माफी मांगें।
गौरतलब है कि पंजाब की कुछ अन्य प्रमुख सिख जत्थेबंदियों ने भी ‘गोबिंद रामायण’ को दशम गुरु गोबिंद सिंह जी की रचना बताने पर तीखा रोष जाहिर किया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और जालंधर में रहते हैं।)