कोरोना के संक्रमण का दूसरा चरण और इसके साथ ही लॉक डाउन का दूसरा दौर भी समाप्त होने के कगार पर है। बंगाल में 15 मई को लॉकडाउन लगा था और 15 जुलाई को समाप्त होने की उम्मीद है। अब लॉकडाउन के तीसरे दौर की आशंका है। ऐसे में लोगों का सवाल है कि पेट को लॉक करने का तरीका भी हुजूर बता दें।
देश में निम्न मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग और भुखमरी की रेखा ,यानी बीपीएल के नीचे जीने वाले लोग ही सबसे अधिक हैं। महंगाई के इस दौर में लॉकडाउन के कारण आमदनी बंद होने के बाद सबसे ज्यादा यही लोग प्रभावित होते हैं। केंद्र सरकार ने तो अपने पांव खींच लिए हैं, लेकिन राज्य सरकारें कोरोना की चेन तोड़ने के लिए लॉकडाउन लगाती रही हैं। ऐसे में कांग्रेस के एक नेता के भाषण की दो लाइनें याद आती हैं। वे कहते थे, चढ़ जा बेटा सूली पर लेकर राम का नाम, पर खुदा के नाम पर कुछ हमें भी देता जा। यानी लॉकडाउन के दौर में तुम भूखे ही जी लो पर राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों को मीडिया के सामने यह कहने का मौका दो कि हमने कोरोना की चेन तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली है।
रोजी रोटी का उपार्जन करना लोगों का बुनियादी अधिकार है, पर जब सरकारें लॉक डाउन करके इस पर रोक लगा देती हैं तो क्या उनकी यह जिम्मेदारी नहीं बन जाती है कि लॉक डाउन के कारण लोगों को हो रहे घाटे की भरपाई करें। दूसरी तरफ महंगाई इस कदर बढ़ी है कि लोगों की कमर ही टूट गई है। यहां 2020 के 15 जून और 2021 के 14 जून का एक आंकड़ा पेश है। सरसों तेल की कीमत ₹110 प्रति लीटर से ₹180 प्रति लीटर सोयाबीन तेल ₹100 प्रति लीटर से 130 लीटर ₹64 प्रति केजी₹104 हो गई। केंद्र और राज्य सरकार की दलील है कि दुनिया के अन्य देशों में भी लॉकडाउन लगा है।
यह सच है पर उनके यहां लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई और लोगों को उनके हाल पर ही नहीं छोड़ दिया गया। हमारे प्रधानमंत्री की तरह नहीं जो सुप्रीम कोर्ट में आपदा प्रबंधन एक्ट में लिखे सैल, यानी बाध्यता, को मैं, यानी कर सकते हैं, पढ़ने की सिफारिश कर रहे हैं। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लोगों ने पेट पर पत्थर बांध करें लॉकडाउन के कहर को बर्दाश्त कर लिया। क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी निभाई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोरोना की वजह से चार लाख लोगों की मौत हुई है। पर इस पर कितना भरोसा करें। बिहार की एक नजीर पेश है। पटना हाई कोर्ट के आदेश के बाद मौत का आंकड़ा 24 घंटे के अंदर 5478 से बढ़कर 9427 हो गया। अगर प्रधानमंत्री कोरोना के पहले चरण के बाद दंभ भरने के बजाय वैक्सीन के मामले में संजीदा होते तो यह हाल नहीं होता। कोरोना का इलाज वैक्सीन है और लॉकडाउन सरकारों की नाकामी का सबूत है। कोलकाता के एक बड़े अस्पताल की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना के मरीजों में उनकी संख्या सिर्फ का फ़ीसदी है जिन्होंने वैक्सीन का कम से कम एक डोज
लिया है। कोलकाता के एम आर बांगड़ अस्पताल में अप्रैल से जून के बीच 13094 कोरोना के मरीज भर्ती हुए थे, जिनमें से कुल 521 ने वैक्सीन का एक डोज लिया था। लेकिन उनकी अवस्था गंभीर नहीं थी। इस दौरान कुल 1593 की मौत हुई थी जिनमें से छह ने ही वैक्सीन के दो डोज लिए थे। पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैक्सीन का सिंगल डोज कोरोना से मौत के मामले में 92 फ़ीसदी सुरक्षा देता है, अगर दो डोज ले रखा है तो यह बढ़कर 98 फ़ीसदी हो जाता है।
वैक्सीन के नाम पर केंद्र सरकार लोगों के जीवन के साथ किस तरह खिलवाड़ कर रही है इसका एक नमूना पेश है। जनवरी में कहा गया कि कोवीशील्ड के पहले और दूसरे डोज के बीच 28 से 42 दिनों का अंतर होना चाहिए। मार्च में इसे बढ़ाकर 42 से 56 दिन कर दिया गया। मई में इसे बढ़ाकर 84 से 112 दिन कर दिया गया। यानी वैक्सीन की कमी से निपटने के लिए पहले और दूसरे डोज के बीच के अंतर को बढ़ाते रहें। दूसरी तरफ एक स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोवीशील्ड के दो डोज के बीच मौजूदा 12 से 16 सप्ताह के अंतराल को घटाकर आठ किया जाए क्योंकि कोरोना वायरस वैरिएंट b.1.617.2 का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और उन्हें भी अपने चपेट में ले रहा है जिन्होंने वैक्सीन का एक डोज ले रखा है। अपने यहां अंतराल अभी भी 12 से 16 सप्ताह का है। अगर मोदी सरकार वैक्सीन के मामले में संजीदा होती तो मरने वालों की संख्या चार लाख के पार नहीं जाती। पर सरकार तो कोरोना को हराने का बाजा बजा रही थी।
अब सवाल राज्य सरकारों का आता है जिनके पास लॉकडाउन के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जरा इनकी भूमिका पर गौर कीजिए। कोरोना का रेम्सवेडीयर इंजेक्शन, दवाएं और ऑक्सीजन के उपकरणों का ब्लैक होता रहा। कितने लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया। एंबुलेंस का किराया आसमान छूने लगा था। कितनी एंबुलेंस के लाइसेंस रद्द किए गए, कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया। इतना ही नहीं अंतिम संस्कार के लिए भी मोटी रकम वसूली जाने लगी और इस मामले में कितने लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई। अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों तक का ब्लैक होने लगा और सरकार खामोशी से देखती रही। ऑक्सीजन के अभाव में मरीज मरते रहे और ऑक्सीजन का ब्लैक होता रहा। इस मामले में किन राज्यों में कितने लोगों की गिरफ्तारी की गई। अंतिम संस्कार के लिए मोटी रकम मांगे जाने के कारण लोगों ने अपने परिजनों के शवों को गंगा में बहा दिया या गंगा के किनारे दो फुट रेत के नीचे दबा दिया। इसके बाद कुत्ते उन लाशों को नोचते रहे और सरकार मूकदर्शक बनी रही। इन सवालों का राज्य सरकारों के पास कोई जवाब नहीं है।
दरअसल सच तो यह है कि जो लॉकडाउन लगाने का एलान करते हैं उन्हें जमीनी हकीकत की कोई खबर ही नहीं होती है। इस देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो रोजाना कमाते हैं तब जाकर उनका परिवार चलता है, लेकिन लॉकडाउन में यह बंद हो जाता है और सरकार को इसकी परवाह ही नहीं होती है। हां, अगर चुनाव कराना है तो लॉकडाउन की कोई जरूरत नहीं है। पश्चिम बंगाल की सात विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होना है ,और राज्य सरकार तत्काल चुनाव कराने की मांग कर रही है। अब लॉकडाउन का यह सिलसिला कब खत्म होगा किसी को नहीं मालूम है। यह भी किसी को नहीं मालूम कि कब तक भूखे पेट रात गुजारनी पड़ेगी।
(जेके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल कोलकाता में रहते हैं।)