आजकल, एक बड़े पूंजीपति अडानी और उनकी कंपनियों के बारे में लगभग रोजाना ही कोई न कोई खबर आ रही है। वह इतना ताकतवर और व्यापक है कि भारत के 28 में से 22 राज्यों में, तमाम उद्योगों में उनका पैसा लगा हुआ है, जिनमें बंदरगाहों, हवाई अड्डों, गैस कंपनियों, बिजली कंपनियों, टीवी चैनलों व सीमेन्ट उद्योग सहित काफी कुछ शामिल है। दरअसल, एक अमरीकी एजेन्सी, हिण्डनबर्ग, जो कि शेयर बाजार में होने वाले लेन-देन की जांच करती है, ने एक दस पन्नों की रिपोर्ट तैयार की। 24 जनवरी को जारी होने वाले इस दस्तावेज ने यह खुलासा किया कि इस ताकतवर पूंजीपति के तमाम प्रतिष्ठान वित्तीय धोखाधड़ी में लिप्त हैं। इस जांच रिपोर्ट में आखिर क्या नतीजे सामने आए हैं?
(1) कंपनी के 74 फीसदी शेयरों पर अडानी के करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों का मालिकाना हक था। बाकी बचे शेयरों में से ज्यादातर ‘शैल कंपनियों’ (जिन्हें मुखौटा कंपनी भी कहते हैं, जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं होता) के पास हैं। (2) अडानी के रिश्तेदारों, सहयोगियों, दलालों और शैल कंपनियों ने बाजार में शेयरों की फर्जी माँग पैदा करने के लिए छद्म लेनदेन के जरिए ऊँचे दामों पर शेयर खरीदे थे। (3) शुरुआत में तय की गई शेयरों की कीमतों को तमाम तिकड़मों के जरिए दिखावटी तौर पर बेतहाशा बढ़ा दिया गया था।
(4) शेयरों की बढ़ी हुई कीमतों के बूते, अडानी की कंपनियों का सम्पत्ति मूल्य गैर आनुपातिक तरीके से कई गुना बढ़ा दिया गया। (5) अपने प्रतिष्ठानों का बढ़ा हुआ मूल्य दिखाकर, अडानी ने बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं से भारी कर्ज ले लिया। असल में, अडानी की कंपनियों का सम्पत्ति मूल्य कम था, और उनका लिया हुआ कर्ज कहीं ज्यादा था! (6) अडानी की कंपनियों के उच्च अधिकारियों का वित्तीय धाँधलियों के जुर्म में जेल जाने का इतिहास रहा है। यानि हिण्डनबर्ग की रिपोर्ट का कुल जमा सार यह है कि अडानी की कंपनियों ने उनके शेयर खरीदने वाले अनेकों लोगों और कर्ज देने वाली एलआईसी जैसी सरकारी एजेन्सियों व बैंकों के साथ बेईमानी की है।
हालांकि अडानी की कंपनियां वित्तीय कदाचार में लिप्त रही हैं, लेकिन सरकार को और शेयर बाजार पर चौकसी रखने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों व संस्थाओं को, जरा सी भी समस्या नहीं हुई। इसका कारण यह है कि यह चालाक अडानी दरअसल मोदी का बेहद करीबी सहयोगी है। इन दोनों का रिश्ता इतना खास है कि सन 2014 में बतौर प्रधानमंत्री, अपने शपथ ग्रहण समारोह में अहमदाबाद से दिल्ली के लिए, मोदी का अडानी के प्राईवेट जेट में जाना काफी चर्चित हुआ था। इससे भी पहले, इनकी घनिष्टता तब भी सबके सामने उजागर थी जब मोदी ने कई वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री के बतौर कार्यभार संभाला हुआ था। द फाइनेन्शियल टाइम्स का आकलन है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अडानी की सम्पत्ति में 232 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।
हिण्डनबर्ग की दस पन्नों की रिपोर्ट पर अडानी की क्या प्रतिक्रिया थी? अडानी ग्रुप ने इस रिपोर्ट का खण्डन करते हुए 413 पन्नों का पुलिंदा जारी कर दिया। अडानी ने कुछ और कदम आगे बढ़ते हुए कहा, ‘‘यह रिपोर्ट भारत की छवि खराब करने के लिए विदेशी तत्वों की साज़िश है’। इस तरह, उन्होंने खुद को भारत के समकक्ष ला खड़ा किया। लेकिन उनके खुद को देश घोषित कर देने के बावज़ूद, उनकी कंपनियों के शेयरों के दाम गिरने शुरू हो गए।
अडानी की कंपनियों के शेयर घोटाले को समझने के लिए हमें शेयर बाज़ार के कुछ पहलुओं की पड़ताल करनी होगी। (1) थोक व्यापारी, बाजार में उत्पादों की कमी पैदा करने के लिए आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी करते हैं और उनकी कीमतें बढ़ा देते हैं; यही तिकड़म शेयर बाज़ार में भी इस्तेमाल की जा सकती है। ‘प्राइस रिगिंग’, यानि ‘कीमतों में हेराफेरी’ ही वह आवश्यक चालबाजी है जो शेयरों की कीमतों में व्यवस्थित वृद्धि करती है। (2) पूंजीपति और दलाल, शेयरों की कीमतों को कृत्रिम तौर पर बढ़ाने के लिए कई बार बड़े ही नाटकीय रूप से अपने परिजनों और करीबी सहयोगियों से काफी ऊँचे दामों पर शेयर खरीदवाते हैं।
आम खरीददार शेयरों की इस बढ़ती मांग को देखकर खुद ही इन्हें खरीदने के लिए उमड़ पड़ते हैं। क्या ऐसे निवेशक यह नहीं जानते कि ऐसे शेयरों के अस्थिर मूल्य कभी न कभी किसी घोटाले के चलते धड़ाम हो सकते हैं? मार्क्स का कहना है कि वे यह बात जानते हैं – ‘‘जब कभी सटोरियों की धोखाधड़ियों के कारण शेयरों के भाव तेजी से बढ़ने लगते हैं, तो हर आदमी जानता है कि किसी भी समय बाजार यकायक ठप्प हो जाएगा और भाव एकदम गिर जाएंगे, लेकिन हर कोई यही उम्मीद लगाए रहता है कि यह आने वाली मुसीबत उसके पड़ोसी के सिर पर पड़ेगी, जबकि वह खुद इसके पहले ही अपनी थैली भरकर किसी सुरक्षित स्थान पर भाग जाएगा।’’ (3) प्राइस रिगिंग जैसे घोटाले करने के लिए, अपनी जरुरत के समय, दलालों को भारी मात्रा में धन का इंतजाम करना होता है। उन्हें कुछ लाख शेयरों की जमाखोरी करने के लिए करोड़ों रुपयों की जरूरत पड़ सकती है। बैंक, दलालों को इस तरह के फण्ड की आपूर्ति कर सकते हैं।
दलाल बैंकों से लिए गए कर्ज की सुरक्षा के तौर पर अपने शेयर गिरवी रख देते हैं। यह प्रक्रिया ‘क्रेडिट सिस्टम’ यानि ‘उधारी व्यवस्था’ के विकास का परिणाम है। इस परिघटना पर टिप्पणी करते हुए मार्क्स कहते हैं – ‘‘उधार पद्धति के विकास के साथ-साथ विशाल संकेन्द्रित द्रव्य बाजारों का निर्माण होता है, जैसे लंदन, जो साथ ही साथ इस कागज में व्यापार के प्रधान केन्द्र भी होते हैं। बैंकर जनता की द्रव्य पूंजी की विराट राशियां कारोबारियों की इस ग़लीज़ भीड़ के प्रयोजनार्थ रख देते हैं और इस तरह से जुआरियों का यह झुण्ड बढ़ता ही जाता है।’’ (4) शेयरों की खरीद से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे उद्योगों को पूंजी की आपूर्ति हो रही हो। इसी तरह, शेयर बाजार को कर्ज देने से ऐसा लगता है जैसे कि बैंक उद्योगों के विकास के लिए काम कर रहे हों। लेकिन असल में, इस धन का केवल एक बहुत छोटा सा हिस्सा ही उद्योगों के पूँजी निवेश में जाता है। कितना हिस्सा? सिर्फ शेयरों के शुरुआती दाम (मूल कीमत) के बराबर तक का हिस्सा! शेयरों के मूल्य की अतिरिक्त राशि, जो मूल कीमत से ऊपर होती है, पूँजी निवेश में नहीं जाती। यह अतिरिक्त राशि ‘उत्पादक’ पूंजी के तौर पर काम करने की बजाय ‘काल्पनिक’ पूँजी बनी रहती है।
(5) जब कंपनियों का माल बाजार में नहीं बिक पाता, तो उन कंपनियों के शेयर गिर जाते हैं और शेयर बाजार में भी एक आर्थिक संकट पैदा हो जाता है। जिन दलालों ने सट्टेबाजी के चक्कर में शेयरों की जमाखोरी करने के लिए बैंकों से पैसे की भारी-भरकम राशि का कर्ज लिया हुआ होता है, वे इस कर्ज को चुका नहीं पाते क्योंकि शेयरों के दाम गिर चुके होते हैं। इसके नतीजे में, बैंकों को दिवालिया होने की हद तक वित्तीय घाटा हो सकता है! इसीलिए, मार्क्स शेयरों के व्यापार की तुलना जुए से करते हैं – ‘‘चूंकि सम्पत्ति यहाँ स्टॉक के रूप में होती है, इसलिए उसकी गतियां और अंतरण महज शेयर बाजार में जुए का नतीजा बन जाते हैं।’’
किसी कंपनी की सम्पत्ति का आकलन उसके शेयर की कीमत के आधार पर होता है। इसी वजह से, हम इस तरह की खबरें सुनते हैं कि अडानी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में पूर्व में हासिल किए गए चौथे स्थान से फिसलकर सोलहवें या सत्रहवें स्थान पर चले गये हैं।
अब एक आखिरी मसला और, जिसके बारे में हमारी राय एकदम स्पष्ट होनी चाहिए। किसी कंपनी के शेयर जो आमदनी कमाते हैं, उसका स्रोत शेयर खरीदने वालों की मेहनत नहीं होती। इसका स्रोत होता है कंपनी के मजदूरों द्वारा पैदा किया गया अतिरिक्त मूल्य। मजदूरों के अतिरिक्त मूल्य को कम से कम सात किस्म के लोग आपस में बांट लेते हैं: (1) बैंक के जमाकर्ता। बैंकों में जमा किया गया धन दलालों को कर्ज के रूप में दे दिया जाता है। बैंक जो कमाई करते हैं, वह जमाकर्ताओं को ब्याज के तौर पर दे दी जाती है। (2) ब्याज कमाने के लिए धन उधार देने वाला बैंक। (3) बाजार में शेयर जारी करने वाली कंपनी। (4) कंपनी के प्रमोटर (5) शेयर खरीदने वाले ग्राहक (6) शेयर ब्रोकर (दलाल), और (7) स्टॉक एक्सचेन्ज। ये सब लोग मजदूरों के श्रम पर अपना जीवन चला रहे हैं। यह दुनिया कैसे सिर के बल खड़ी है न!
(रंगनायकम्मा यह मूल लेख 18 फरवरी के दैनिक आन्ध्र प्रभा में प्रकाशित हुआ। इसका अनुवाद सौरभ चतुर्वेदी ने किया है।)
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