Saturday, April 20, 2024

रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए कैसे है नाटो जिम्मेदार

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के 20 दिन बीत चुके हैं। मीडिया से प्राप्त, अब तक के ताजे अपटेड के अनुसार, यूक्रेन का दावा है कि दक्षिणी शहर मारियुपोल पर रूसी बमबारी से 2,500 से ज्यादा मौतें हुई हैं। राष्ट्रपति जेलेंस्की के सलाहकार ओलेक्सी एरेस्टोविच ने कहा कि, “मारियुपोल में हमारी सेना को कामयाबी मिल रही है। हमने कल यहां पर रूसी सेना को हराकर अपने युद्ध बंदियों को आजाद करा लिया है।” दोनों देशों की युद्ध-तकरार से यूरोप के देशों पर कोरोना का खतरा बढ़ गया है।

अब तक 20 लाख से ज्यादा यूक्रेनी शरणार्थी यूरोपीय देशों में पहुंचे हैं। इनमें से ज्यादातर का वैक्सीनेशन नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि “यूक्रेन और आस-पास के देशों में 3 से 9 मार्च के बीच कोरोना के कुल 7,91,021 नए मामले सामने आये हैं।” रूसी हमले की वजह से यूक्रेनी इंफ्रास्ट्रक्चर को अब तक 119 बिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हो चुका है।

एएफपी न्यूज एजेंसी के मुताबिक, ‘मॉस्को में यूक्रेन पर हमले के खिलाफ रविवार को बहुत बड़ा प्रदर्शन किया गया। रूसी पुलिस ने इसमें शामिल 800 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। रूस के वित्त मंत्री एंटोन सिलुआनोव ने रविवार को कहा कि विदेशी प्रतिबंधों से करीब 2.30 लाख करोड़ रुपए का फंड फ्रीज हो गया है। यह फंड रूसी सरकार के 4.91 लाख करोड़ रुपए के रेनी-डे फंड का हिस्सा था।’ अब यूक्रेन के पश्चिमी इलाके में भी लड़ाई तेज हो गई है, जो अब तक ‘सेफ हैवन’ बना हुआ था। रूसी सेना ने रविवार को नाटो  (NATO) के सदस्य देश पोलैंड सीमा से महज 12 मील दूर यावोरिव में एक मिलिट्री ट्रेनिंग बेस पर क्रूज मिसाइलें दागकर 35 लोगों को मार दिया, जबकि 134 लोग घायल हैं। रूस ने हमले में 180 विदेशी लड़ाकों को मारने का भी दावा किया है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने यूक्रेन में अपनी लड़ाई तेज करने के लिए चीन से मिलिट्री उपकरण मांगे हैं। अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अतिरिक्त आर्थिक सहयोग भी मांगा है ताकि अमेरिका, यूरोप व एशियाई देशों की तरफ से लगाए प्रतिबंधों से वह अपनी इकोनॉमी को बचा सके। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक कीव शहर के करीब हमले का शिकार हुआ मिलिट्री बेस इंटरनेशनल पीस कीपिंग सेंटर था, जहां अमेरिकी सेना एक महीने पहले तक यूक्रेन के सैनिकों को ट्रेनिंग दे रही थी।

रूस ने यहां 30 से ज्यादा क्रूज मिसाइल दागी है। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस ने भी हमले की पुष्टि की है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसने 180 विदेशी लड़ाके मारे हैं, जो यूक्रेन की तरफ से लड़ने आए थे। रूसी सेना ने यह हमला अपनी उस चेतावनी के एक दिन बाद किया है, जिसमें उसने यूक्रेन को अमेरिका व अन्य देशों से मिलने वाले हथियारों को निशाना बनाने की बात कही है।

रेड क्रॉस ने चेतावनी दी है कि मारियुपोल शहर में फंसे करीब 4 लाख लोगों की हालत बेहद खराब है और उनके लिए समय तेजी से भाग रहा है। रेड क्रॉस ने इन्हें निकालने के लिए ग्रीन कॉरिडोर की दोबारा बहाली की अपील की है। पूर्वी यूक्रेन में एक इवेक्यूएशन ट्रेन में आग लगने से कंडक्टर की मौत हो गई, जबकि कई अन्य घायल हैं। नेशनल रेलरोड कंपनी ने रविवार को बताया कि दोनस्क रीजन में ब्रूसिन स्टेशन के करीब आग का शिकार हुई ट्रेन में 100 बच्चों समेत सैकड़ों लोग सवार थे। पूर्वी यूक्रेन में रविवार को रूसी आर्टिलरी अटैक ने 16वीं सदी के एक चर्च और गुफा कॉम्पलेक्स को भारी नुकसान पहुंचाया है। आर्थोडॉक्स क्रिश्चियन समुदाय के होली डोरमिशन सिव्यातोगोर्स्क लावरा चर्च में सैकड़ों लोगों ने शरण ले रखी थी। हमले में इनमें से बहुत सारे घायल हो गए हैं। बता दें कि इस चर्च को मानने वाले यूक्रेन के अलावा रूस में भी हैं।

उपरोक्त खबरें, अखबार और मीडिया एजेंसियां, लगातार दे रही हैं। युद्ध अपटेड निरन्तर बदल रहे हैं। यह खबरें, लोगों को डरा रही हैं और दुनिया क्या फिर से एक महायुद्ध की तरफ जाने या अनजाने बढ़ने लगी है, इस पर दुनियाभर के बौद्धिक समाज में चर्चा शुरू हो गयी है। शुरुआत में, यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद जैसा कि माना जा रहा था, कि नाटो देश और उनका सरपरस्त यूएस, यूक्रेन की तरफ से मोर्चा संभाल लेगा, खुद ही युद्ध नियंत्रित करने लगेगा और यूरोप फिर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के सबसे कठिन युद्धों के दौर में आ जायेगा। और जब युद्ध बढ़ेगा तो कई समीकरण बनेंगे, बिगड़ेंगे और फिर विश्व चौधराहट के लिये जो जंग छिड़ेगी वह चीन, ईरान और भारत को भी समेट लेगी।

पर अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। पर यह ‘अभी तक’, अभी तक ही है। युद्ध भी एक उन्माद की तरह होता है। और उन्माद किस दशा या दिशा में जायेगा, इसका अनुमान लगाया जाना कठिन होता है। हर युद्ध के कारण होते हैं, और तत्काल युद्ध छिड़ जाय तो उसके तात्कालिक कारण भी होते हैं। मानव सभ्यता का इतिहास ही युद्धों का इतिहास रहा है। यदि ज्ञात इतिहास का सिलसिलेवार अध्ययन किया जाय तो, आप पाएंगे कि, मानव सभ्यता का सारा इतिहास युद्ध और युद्ध की तैयारियों से भरा पड़ा है। दो युद्धों के बीच का शांतिकाल भी एक कूलिंग काल की तरह नज़र आता है। तभी तो साम्राज्य बनते, विकसित और बिगड़ते रहे हैं। रूस यूक्रेन युद्ध के बहाने बीसवीं सदी के दो बड़े और विनाशकारी युद्धों पर टिप्पणी के साथ-साथ इस लेख में प्रसिद्ध बुद्धिजीवी नोआम चोम्स्की के एक इंटरव्यू की भी चर्चा की जा रही है।

आज दुनियाभर में, नोआम चॉम्स्की को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीवित सबसे महत्वपूर्ण बुद्धिजीवियों में से एक माना जाता है। अक्सर उनके बौद्धिक कद और मेधा की तुलना गैलीलियो, न्यूटन और डेसकार्टेस से की जाती है, क्योंकि उनका अध्ययन और उपलब्धियों का विस्तार, भाषा विज्ञान, तर्क और गणित, कंप्यूटर विज्ञान, मनोविज्ञान, मीडिया अध्ययन, दर्शन सहित विद्वानों और वैज्ञानिक जांच के विभिन्न क्षेत्रों तक है। उन्होंने अपने विचारों से इन सभी विषयों पर अपनी जबरदस्त छाप छोड़ी है। लगभग 150 पुस्तकें, उनके द्वारा लिखी गयी हैं। वे सिडनी शांति पुरस्कार और क्योटो पुरस्कार (जापान के नोबेल पुरस्कार के समकक्ष) और दुनिया के सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों से दर्जनों मानद डॉक्टरेट की उपाधि सहित अत्यधिक प्रतिष्ठित पुरस्कारों के सम्मानित हैं। चॉम्स्की, अमेरिका के एमआईटी संस्थान के प्रोफेसर एमेरिटस हैं और वर्तमान में एरिज़ोना विश्वविद्यालय में पुरस्कार विजेता प्रोफेसर हैं।

“यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने पूरी दुनिया को चकित कर दिया। यह एक अकारण और अनुचित हमला है जो इतिहास में 21 वीं सदी के प्रमुख युद्ध अपराधों में से एक के रूप में, याद रखा जाएगा।” यह तात्कालिक प्रतिक्रिया है, नोआम चोम्स्की की, जब वे ट्रुथआउट वेबसाइट के लिए एक विशेष साक्षात्कार में अपनी बात कह रहे थे।

पर चोम्स्की के इस तर्क और विचार को जानने के पहले बीसवीं सदी के दो प्रमुख महायुद्धों और उनके बाद की स्थितियों की संक्षिप्त चर्चा करनी ज़रूरी है। दोनों ही महायुद्धों में जर्मन राष्ट्रवाद की एक प्रमुख भूमिका रही है। प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण, भले ही, 28 जून 1914 को, सेराजोवा में ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या रही हो, और इस घटना के बाद, ऑस्ट्रिया द्वारा सर्बिया पर युद्ध कर देना रहा हो, पर यह एक तात्कालिक कारण था, युद्ध के साजो सामान में एक इग्नीशन की तरह था। पर साजो सामान को यूरोपीय साम्राज्यवादी उपनिवेशवादी देशों ने इसके पहले से इकट्ठा करना शुरू कर दिया था।

युद्ध की पीठिका शांतिकाल में ही आकार लेती है और जब सब, तहस-नहस हो जाता है तो फिर अफसोस किये जाते हैं, बर्बादी की दास्तान सुनाई जाती है, युद्ध विरोधी हृदयविदारक साहित्य रचे जाते हैं, और शांति के लिये लीग ऑफ नेशन्स और यूनाइटेड नेशंस ऑर्गनाइजेशन जैसी अंतरराष्ट्रीय पंचायतें आकार लेने लगती हैं। पर, दुर्भाग्य से फिर कोई वैश्विक युद्धोन्माद उभरता है तो यह संस्थायें अक्सर बेबस नज़र आती हैं। रूस यूक्रेन युद्ध में, आज यूएनओ की भूमिका और उसके दखल से उसकी हैसियत क्या है, इसे आप प्रत्यक्ष देख रहे हैं।

ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध जब घोषित किया तो, रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की और इस तरह यूरोप का यह पहला विश्वयुद्ध था। 1919 में भयंकर तबाही के बाद, यह युद्ध समाप्त हुआ, जर्मनी पराजित हुआ पर जर्मन राष्ट्रवाद ने खुद को आहत महसूस किया और वह अंदर ही अंदर उद्वेलित होता रहा, उफनता रहा। इसी बीच तमाम उथल-पुथल के बाद जर्मनी में हिटलर आया और हिटलर का एक ही उद्देश्य था प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित जर्मनी का प्रतिशोध लेना। प्रतिशोध के लिये सैन्य तैयारियां तो हो ही रही थीं, पर जनता को भी युद्ध की ज़रूरत, प्रतिशोध की आवश्यकता, जर्मनी की प्रतिष्ठा स्थापित करने का औचित्य आदि बातें समझानी थीं और उसे मानसिक रूप से तैयार भी करना था।

जनमानस में, हिटलर की अजेयता और उसकी विकल्पहीनता सिद्ध करने के लिये जर्मनी में जो कुछ किया गया वह एक ऐसी विचारधारा बनी, जिसका आधार ही घृणा, झूठ, फरेब और उन्माद था। जिस आक्रामक और घृणा आधारित राष्ट्रवाद की नींव हिटलर और उसके लोग रख रहे थे, अंततः वही उसके विनाश का कारण बनी। पर जब युद्ध होता है, तो बर्बाद, आम जन होते हैं, देश की अर्थव्यवस्था होती है, समाज का तानाबाना मसकता है, विकास और जनिहित के कार्य नष्ट हो जाते हैं, भुखमरी, बेरोजगारी और अन्य मुसीबतें सर उठा लेती हैं और हवा में बारूद की गंध लम्बे समय के लिये फैल जाती है। यह बात भी कुछ हद तक सही है कि राष्ट्र नायक, इस विनाश के बाद, राष्ट्र खलनायक के रूप में देखा जाने लगता है, और जनता ठगी हुयी उन कारणों के पड़ताल में लग जाती है कि, क्या वह प्रतिशोध के उन्माद में अपना विवेक खो कर एक रोबोट संचालित भीड़ बन गयी थी ?

अब आते हैं, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की स्थितियों पर। युद्ध में कोई नहीं जीतता है खास कर ऐसे विनाशकारी युद्धों के बाद। ऐसे ही युद्धों के लिए अंग्रेजी में एक शब्द है( pyrrhic victory) पिरिक विक्ट्री, जिसका अर्थ है, विनाशकारी विजय। एक ऐसी विजय जो जीत का आह्लाद तक नहीं खुलकर लेने देती और जीत एक मनोवैज्ञानिक युद्धोन्माद की संतुष्टि जैसी रह जाती है। यही हाल ब्रिटेन का हुआ। उसके उपनिवेश बिखरने लगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फिर एक अंतरराष्ट्रीय पंचायत यूएनओ के रूप में सामने आयी। पर युद्ध की समाप्ति के चार साल बाद ही अंतरराष्ट्रीय गोलबंदी और सैन्य समझौते होने लगे। दरअसल, सोवियत रूस और अमेरिका भले ही द्वितीय विश्वयुद्ध में धुरी राष्ट्रों के खिलाफ एक रहे हों, पर वह समझौता एक साझे शत्रु से निपटने तक के लिये ही था।

वह साझा शत्रु हिटलर था, मुसोलिनी था, उनकी संकीर्ण फासिस्ट सोच थी और उनका खतरनाक स्तर तक बढ़ा हुआ युद्धोन्माद था। जब वह कॉमन शत्रु निपट गया तो तो जो यूएस सोवियत रूस का मूल वैचारिक विरोध था, वह फिर दोनों के बीच सतह पर, आ गया। अब तकनीक बदल गयी थी। युद्ध के तब तक के सबसे विनाशकारी हथियार का दुखद परीक्षण हो चुका था, तो युद्ध की एक नई शैली सामने आई, जिसे कोल्ड वार यानी शीत युद्ध कहा गया। इस काल में दुनिया दो ध्रुवों में बंटी और भारत के नेतृत्व में नवस्वतंत्र एशियाई और अफ्रीकी मुल्कों ने इन गुटों से अलग हट कर एक नया समूह बनाया जो सफलतापूर्वक लम्बे समय तक चला और अपनी हैसियत भी समय समय पर प्रदर्शित की। यह समूह था, गुट निरपेक्ष संगठन।

1990 तक सोवियत रूस बिखरने लगा। उसके बहुत से कारण हैं, उनमें जाना विषयांतर हो सकता है। पर जब सोवियत टूटा तो यूक्रेन और अन्य बहुत से देश जो स्टालिन के समय में सोवियत रूस में थे वे अलग हो गए। रूस आर्थिक रूप से कमजोर भी हो गया था। अमेरिका के नेतृत्व में एक ध्रुवीय विश्व बन रहा था। सन्तुलन की अब आवश्यकता ही नहीं रही तो गुट निरपेक्ष संगठन भी धीरे-धीरे अप्रासंगिक होने लगे। अमेरिका ने रूस के चारों तरफ अपना अधिकार बढ़ाना शुरू कर दिया। उसी क्रम में जब उसकी महत्वाकांक्षा यूक्रेन तक आयी तो रूस जो धीरे धीरे सम्भल चुका था और अमेरिका को समझ भी गया था, इस पर सशंकित हुआ और यूरोप में युद्ध की एक नयी पीठिका बनने लगी। फिर अचानक यह युद्ध छिड़ गया।

अमेरिका को लगता था कि रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा पर यह हमला हुआ, यूक्रेन को लगता था, उस पर हमला होगा तो नाटो देश उसके पक्ष में बम बरसाने लगेंगे पर ऐसा बिल्कुल अभी तक तो नहीं हुआ चीन को लगा कि युद्ध तो मज़बूत से मज़बूत देश को भी कमजोर कर देता है, अमेरिका इससे कमज़ोर ही होगा, उस शून्य को भरने के लिये वह मानसिक और आर्थिक रूप से तैयार हो ही रहा था, साथ ही रूसी राष्ट्रवाद के विस्तार की नज़ीर में वह ताइवान और दक्षिण एशिया में अपने एजेंडे को पूरा करने के मंसूबे बांधने लगा, अभी यह होगा या नहीं यह भविष्य में ही तय होगा और भारत क्या कर रहा है, यह सबको पता ही है। हमने इस युद्ध में किसी की तरफ न रहने का निर्णय लिया, यह निर्णय अच्छा है या बुरा इसका निर्णय कूटनीतिक विशेषज्ञ ही कर सकते हैं।

अब एक नज़र रूस यूक्रेन के वर्तमान विवाद पर भी ज़रा विस्तार से डालते हैं। क्या रूस-यूक्रेन युद्ध अब तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा है ? अभी इस पर कोई स्वीकारात्मक टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। रूस ने अपने और यूक्रेन के बीच हो रहे इस युद्ध में बीच में पड़ने वालों को धमकी दी है तो वहीं अमेरिका ने भी सख्त चेतावनी के साथ कहा है कि इस युद्ध का परिणाम बहुत बुरा होगा और रूस को इसकी कीमत चुकानी होगी।

ब्रिटेन और दूसरे देश भी रूस के खिलाफ खड़े हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जंग के पीछे की वजह इस बार नाटो को माना जा रहा है।नाटो (NATO) यानी नार्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाईजेशन( North Atlantic Treaty Organization) जिसे साल 1949 में शुरू किया गया था। यूक्रेन नाटो( NATO) में शामिल होना चाहता है लेकिन रूस ऐसा नहीं होने देना चाहता था। यह जानना जरूरी है कि आखिर इस विवाद की जड़ क्या है? सोवियत संघ के जमाने में कभी मित्र रहे ये प्रांत दो देश बनने के बाद एक दूसरे के खिलाफ क्यों हो गए ?

अब इसके इतिहास में जाकर कुछ पुरानी घटनाओं को देखते हैं। यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ी है। 1991 तक यूक्रेन पूर्ववर्ती सोवियत संघ (USSR) का हिस्सा था। अलग होने के बाद भी यूक्रेन में रूस का प्रभाव काफी हद तक दिखाई देता था। यूक्रेन की सरकार भी रूसी शासन के आदेश पर ही काम करती थी। लेकिन, बिगड़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और अल्पसंख्यक रूसी भाषी लोगों के बहुसंख्यक यूक्रेनी लोगों पर शासन ने विद्रोह की चिंगारी सुलगा दी।

अब यह क्रोनोलॉजी देखें,

● 1991 यूक्रेन ने रूस से आजादी का ऐलान किया। यह वह समय था, जब सोवियत रूस का विखराव शुरू हो गया था। यूक्रेन में जनमत संग्रह हुआ लियोनिद क्रावचुक वहां के राष्ट्रपति बने।

● 1994 में फिर वहां चुनाव हुआ और लियोनिद कुचमा ने लियोनिद क्रावचुक को चुनाव में हरा दिया।

● 1999 के चुनाव में, कुचमा एक बार फिर से राष्ट्रपति चुने गए। लेकिन इस चुनाव में उनकी सरकार पर अनियमितता और धांधली के कई आरोप लगे।

● 2004 के चुनाव में, रूस के पक्षधर विक्टर यानूकोविच विजयी हुए और वे नए राष्ट्रपति बने। उन पर चुनाव में धांधली का आरोप लगा और इस व्यापक अनियमितता पर यूक्रेन में देश भर में प्रदर्शन हुए। इस व्यापक जनप्रदर्शन को यूक्रेन के इतिहास में ऑरेंज रिवोल्यूशन के नाम से जाना जाता है। विक्टर यूस्चेन्को को पश्चिमी देशों यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस का पक्षधर कहा जाता था। विक्टर यूनोकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति तो बन गए थे, पर यह दुनिया का पहला देश रहा होगा जहां पर किसी देश के राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक कैंडिडेट के प्रचार में राजधानी कीव में अमेरिका और यूरोप के नेता वोट मांग रहे थे, तो दूसरी तरफ़ दूसरे कैंडिडेट के लिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन वोट मांग रहे थे। चुनाव हारने के बाद विक्टर को चुनावी धांधली का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव रद्द कर दिया। इस बीच विपक्षी राष्ट्रपति उम्मीदवार यूसचें को को डॉक्सिन ज़हर देकर मार डालने की कोशिशों का आरोप रूस पर लगा जिसे रूस ने पश्चिम देशों का प्रोपोगांडा बताया। 2005 से लेकर 2010 लाख यूक्रेन रूसी विरोधी अमेरिका और यूरोप की नीतियों का केन्द्र रहा।

● 2005 में यूस्चेन्को ने रूस का दबदबा कम करने का संकल्प लिया और खुल कर, यूक्रेन को नाटो और यूरोपीय यूनियन में शामिल करने की बात अमेरिकी लॉबी में चलाई। वे रूस से दूर हट रहे थे और उनके इस कदम ने रूस को यूक्रेन के प्रति बेहद सन्देहास्पद बना दिया था।

● 2008 में नाटो ने यूक्रेन को आश्वासन दिया कि वह यूक्रेन को नाटो संगठन में शामिल कर लेगा।

● 2010 में जब चुनाव हुआ तो यानूकोविच ने राष्ट्रपति चुनाव में यूलिया टिमशेंको को हराया। यह रूस समर्थित खेमा था।

● 2013 में, यानूकोविच ने अमेरिका के साथ पहले से चल रही व्यापार वार्ता को स्थगित कर दिया। उन्होंने रूस के साथ आपसी व्यापार समझौते किए। इसे लेकर कीव में एक बड़ा प्रदर्शन भी हुआ।

● 2014 में 14 हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत कानून व्यवस्था के कारण हुयी। संसद ने यानूकोविच को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पारित किया। यानूकोविच यह प्रबल जनविरोध झेल नहीं पाए और वह यूक्रेन छोड़ कर रूस भाग गए। रूसी समर्थक लड़ाकों ने यूक्रेन के क्रीमिया में संसद पर रूसी झंडा फहराया। 16 मार्च को रूस ने इसे एक जनमतसंग्रह के माध्यम से रूस में शामिल कर लिया।

● 2017 में यूक्रेन और यूरोपीय यूनियन के बीच मुक्त बाजार संधि हुयी।

● 2019 में, यूक्रेन के ऑर्थोडॉक्स चर्च को आधिकारिक मान्यता मिली। रूस ऑर्थोडॉक्स चर्च की मान्यता नहीं चाहता था, वह नाराज हुआ। उसका विरोध और बढ़ा।

● जून 2020 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ ने 5 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता यूक्रेन को दी।

● जनवरी 2021 में यूक्रेन ने अमेरिका से नाटो में शामिल होने की अपील की।

● अक्टूबर 2021 में यूक्रेन ने बेरेक्टर टीबी 2 ड्रोन का इस्तेमाल किया। रूस ने इससे उत्तेजित करने वाली कार्यवाही बतायी। ड्रोन के इस्तेमाल से रूस नाराज हुआ।

● नवंबर 2021 में, रूस ने यूक्रेन की सीमा पर अपनी सेनाओं की तैनाती बढ़ाई। अब एक खतरनाक स्थिति बन रही थीं।

● 7 दिसंबर 2021 को सीमा पर, रूसी सैनिकों की संख्या बढ़ाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की रूस को चेतावनी दी और कहा कि, रूस ने यूक्रेन पर यदि हमला किया तो, उस पर आर्थिक पाबंदियां लगेंगी।

● 10 जनवरी 2022, यूक्रेन-रूस तनाव के बीच यूएस और रूस के राजनयिकों की वार्ता हुयी जी विफल हो गयी। इसे विफल होना ही था।

● 14 जनवरी 2022 को, यूक्रेन पर रूस ने, साइबर हमले की चेतावनी दी

● 17 जनवरी 2022 को, रूस की सेना बेलारूस पहुंचनी शुरू हुई।

● 24 जनवरी 2022 को, नाटो ने अपनी सेना को स्टैंडबाई यानी तैयारी की हालत में रखा।

● 28 जनवरी 2022 को, रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कहा- रूस की मुख्य मांग है, उसकी सुरक्षा, जो पश्चिमी देशों द्वारा स्वीकार नहीं की गई।

● 2 फरवरी 2022 को, अमेरिका ने 3000 अतिरिक्त सैनिकों को पोलैंड, रोमानिया भेजने के लिये कहा।

● 4 फरवरी 2022 को, पुतिन को चीन का समर्थन मिला। चीन ने रूस के पक्ष में बयान जारी किया कि यूक्रेन को नाटो का हिस्सा नहीं होना चाहिए।

● 7 फरवरी 2022 को, पुतिन से फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने मुलाकात की और मैक्रों ने बयान जारी किया, “पुतिन मान गए” पर, पुतिन ने, इसका खंडन करते हुए कहा, ” रूस से कोई डील नहीं हुई है।”

● 9 फरवरी 2022 को, जो बाइडेन ने कहा, ‘यूक्रेन पर रूस कभी भी हमला कर सकता है।’ इसके बाद, अमेरिका ने अमेरिकी लोगों से यूक्रेन छोड़ कर वापस आने की बात कही।

● 15 फरवरी 2022 को, रूस ने कहा कि वह अपनी कुछ सेना वापस बुला रहा है। यह पीछे लौटना नहीं था, बल्कि एक सामरिक रणनीति थी।

● 18 फरवरी 2022 को यूएस राजदूत ने कहा, ‘रूस ने यूक्रेन सीमा पर पुनः सैनिक बढ़ा दिये हैं।’

● 19 फरवरी 2022 को, रूस की सेना ने परमाणु हथियारों का एक युद्धपूर्व पूर्वाभ्यास किया।

● 21 फरवरी 2022 को, रूस ने यूक्रेन के दो हिस्सों- लोहान्स्क-दोनेत्स्क को मान्यता दे दी। यह रूसी बहुल इलाके थे।

● 24 फरवरी 2022 रूस ने यूक्रेन पर सैन्य ऑपरेशन का ऐलान किया और फिर जंग शुरू हो गई।

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

(क्रमशः)

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