कैसे बचेगा पंजाब का अस्तित्व?

गुरुबाणी के संदेश ‘पवन गुरु, पानी पिता, माता धरा सामान’ में आस्था रखने वाले पंजाबियों के लिए वैज्ञानिकों ने दो साल पहले भविष्यवाणी की थी कि 2025 तक पंजाब के भूजल संसाधन सूख जाएंगे और अगले कुछ सालों में पंजाब रेगिस्तान में बदल जाएगा। इस चेतावनी पर किसी राजनीतिक दल या सरकार ने ध्यान नहीं दिया। यदि लंबे समय तक किसी समस्या का समाधान न किया जाये तो वह संकट बन जाती है। पंजाब का जल संकट मौजूदा सरकार के सामने भी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जल समस्त सृष्टि का आधार है और जल का कोई विकल्प नहीं है। सृष्टि को जीवन देने वाला जल एक ऐसा तत्व है जिससे जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों आदि में जीवन का प्रवाह चलता रहता है और जल के अभाव में यह कभी भी संभव नहीं हो सकता। नव-निर्वाचित मान सरकार को जितनी जल्दी हो सके इस बात का एहसास हो जाये अच्छा है कि प्राथमिकता के अधर पर भूजल संकट का समाधान करके ही इससे जुड़ी अन्य तमाम समस्याओं से निजात पायी जा सकती है।

पंजाब में एक तरफ भूजल का स्तर गिर रहा है तो दूसरी तरफ जो उपलब्ध पानी निरंतर प्रदूषित हो रहा है। नदियों का पानी भी जिसे हम पवित्र कहते हैं, अब पीने योग्य नहीं है। सभी कुओं और तालाबों का पानी प्रदूषित हो रहा है। पानी को प्रदूषित करने के लिए जितनी पंजाब की फैक्ट्रियां जिम्मेदार हैं, उतनी ही सरकारें और वैज्ञानिक/व्यापारी भी हैं जिन्होंने ‘हरित क्रांति’ की आड़ में पंजाब को एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया और किसानों को रासायनिक खाद और कीटनाशकों के चक्र में फंसाया। इस प्रयोग ने न केवल भूजल का अंधाधुंध दोहन किया है बल्कि नदियों, धाब, वेणी, चो (पहाड़ों से बहकर आने वाली अस्थायी जल-धारा), कुओं और अन्य सभी प्राकृतिक संसाधनों के अस्तित्व को भी नष्ट कर दिया है या यों कहें उनमें जहर घोल दिया गया है। पंजाब के अधीन भारत के 1.5 प्रतिशत क्षेत्र हैं लेकिन पूरे देश में इस्तेमाल हो रहे कुल कीटनाशकों का 18 प्रतिशत और रासायनिक उर्वरकों की14 प्रतिशत खपत सिर्फ पंजाब में होती है।

इस तथ्य का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि पंजाब में लगभग 36,000 हेक्टेयर क्षेत्र में 10,000 मीट्रिक टन जहर घोलने का प्रबंधन पंजाब सरकार ही करती है। एजेंसी, सहकारी समितियों और पंजीकृत विक्रेताओं के कुल 11990 बिक्री केन्द्र हैं। आज एक तरफ पंजाब में लगभग 67 प्रतिबंधित कीटनाशक बेचे जा रहे हैं और दूसरी तरफ 16 लाख ट्यूबवेल अभी भी विभिन्न जगहों पर ‘धरती माँ’ के सीने को भेदकर बचा-खुचा भूजल बाहर निकाल रहे हैं। शहरों के गटर की सारी गंदगी को पानी में बहाकर नदियों को विशालकाय सीवर में बदल दिया गया है। सतलुज के जिस तट पर दशमेश पिता ने चिड़ियों को बाजो से लड़ाने की शपथ ली थी उस सतलुज ने जगराओं पहुंचकर दम तोड़ दिया है। लगभग यही हाल पंजाब की तमाम नदियों का है।

पंजाब सरकार या निजी कारखाने अपने दूषित पानी को नदियों में बहा रहे हैं। लुधियाना शहर ने अपनी गंदगी और रंगाई कारखानों ने जहरीला पानी बहाकर ‘’बूढ़े दरिया’ को ‘बूढ़े नाले’ में बदल दिया है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से बचने के लिए क्रोम प्लेटिंग करने वाले कारखाने अपना सारा जहरीला पानी कारखानों के अंदर खोदे गए कुओं में डाल देते हैं। यह विष भूजल में घुल जाता है। आर्सेनिक, यूरेनियम और लेड जैसी भारी धातुओं से मिला हुआ यह पानी, जिसे रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) की मदद से भी साफ नहीं किया जा सकता है, ‘आम आदमी’ के खून में जहर बनकर दौड़ रहा है।

जल और शीतल पेय उद्योग फलफूल रहा है। घर में छोटा सा फंक्शन हो, शादी हो, सम्मेलन हो, अखंड पाठ का भोग हो या पानी की बोतल और ठंडे पानी की झलक किसी भी राजनीतिक दल में देखी जा सकती है। बोतलबंद पानी और शीतल पेय की इकाइयों से कितना भूजल बर्बाद होता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आधा लीटर बोतलबंद पानी तैयार करने में करीब दो सौ लीटर पानी की खपत होती है। जिन क्षेत्रों में शीतल पेय संयंत्र स्थापित किए गए हैं, उन क्षेत्रों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है और उसकी कीमत कष्ट भोगकर वहां के बाशिंदों को चुकानी पड़ रही है। सूरज की रोशनी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए जितनी फायदेमंद है उतनी ही बोतलबंद पानी के लिए हानिकारक है। गर्मी के सीधे संपर्क में आने पर,  प्लास्टिक पानी में एंटीमनी, बिस्फेनॉल-ए या बीपीए नाम रसायन छोड़ते हैं। एक ग्राम बीपीए का एक खरबवां हिस्सा भी आपकी कोशिकाओं के काम करने के तरीके को बदल सकता है, जिससे स्तन कैंसर, मस्तिष्क क्षति, नपुंसकता और हृदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

पंजाब भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां बठिंडा से जोधपुर जाने वाली एक रेलगाड़ी का नाम ही लोगों ने ‘कैंसर ट्रेन’ रख दिया है क्योंकि पंजाब में ‘माड़ी मुस्तफा’ जैसे कई गांव हैं जहां हर तीसरा व्यक्ति कैंसर से जूझ रहा है और कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां हर पांचवां व्यक्ति काला पीलिया से पीड़ित है। पंजाबवासियों के शरीर में यह विषाक्त पदार्थ इतनी तेजी से फैल रहे हैं कि कोई भी मां जो अपने बच्चे को स्तनपान करा रही है, वह वास्तव में विषैला दूध (एंडोसल्फान और क्लोरोपायरोफॉस) ही पिला रही है। यह विष मां के दूध में उसके खाने पीने की तमाम चीजों में मिले ज़हर के जरीय ही घुल जाता है। कीटनाशकों के प्रभाव से न सिर्फ़ दमा, प्रजनन सम्बन्धी रोग, अल्ज़ाइमर, पार्किन्सन, मधुमेह, ऑटिज्म जैसे रोग पंजाबियों को अपनी चपेट में ले रहे हैं बल्कि कई तरह के कैंसर का भी शिकार हो रहे हैं। बड़ी संख्या में शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चे पैदा हो रहे हैं। संतान न होने की समस्या बढ़ती जा रही है। जानकारों की मानें तो साल 2050 तक पंजाब प्राकृतिक रूप से बच्चे पैदा नहीं कर पाएगा।

मनुष्य द्वारा उत्पन्न सभी संकटों का समाधान मनुष्य के हाथ में है। लेकिन यह सरकारों की नेकनियती के बिना संभव नहीं है। इसके लिए बिना एक भी दिन गंवाए युद्धस्तर पर प्रयास करना जरूरी है। फिर से तालाब और दरिया जीवित हो सकते हैं। तमिलनाडु के चेन्नई शहर ने 2001 में पानी की आखिरी बूंद खो दी थी और कुछ ही दिनों में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की मदद से आईएएस अधिकारी शांता शीला नायर द्वारा किए गए चमत्कार से सबक लेकर पंजाब की धरती को भी पानी से भरा जा सकता है। राजस्थान से अरवारी नदी गायब हो गई थी। पर्यावरण कार्यकर्ता राजिंदर सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने खुद नदी को पुनर्जीवित किया है। अभिनेता आमिर खान की पानी फाउंडेशन के प्रयासों और जनता के श्रमदान से इस देश में एक ‘डार्क जोन’ के 45 दिन में पानी भर जाने के उदाहरण भी हैं। सिक्किम कैसे शत-प्रतिशत जैविक राज्य बना, उससे भी सीखने की जरूरत है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग का कार्य युद्धस्तर पर शुरू करने से सब कुछ संभव है।

लोग केजरीवाल को संदेह की नजर से देखते हैं लेकिन भगवंत मान पर उन्हें भरोसा है और उम्मीद करते हैं कि वह कुछ करेंगे। वैसे भरोसा बड़ा नाज़ुक होता है, बड़ी जल्दी टूट जाता है और आवाज़ भी नहीं होती। मगर अहम सवाल तो पंजाबवासियों के अस्तित्व का है, वह कैसे बचेगा?

(देवेंद्र पाल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल लुधियाना में रहते हैं।)

देवेंद्र पाल
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