Tuesday, April 23, 2024

कोविड पर श्रीलंका की सैन्य प्रतिक्रिया ने एक राष्ट्र को कैसे  बर्बाद किया

(तुषार धारा द्वारा कोविड-19 के बाद श्रीलंका में आर्थिक और सामाजिक संकट पर लेखों की श्रृंखला में यह दूसरा लेख है। धारा देश में आखों देखी वहां की घटनाओं पर रिपोर्ट करने के लिए गए थे-संपादक)

18 मार्च, 2020 को – श्रीलंका में कोविड-19 का पहला स्थानीय मामला सामने आने के एक सप्ताह बाद – सरकार ने कोविड-19 प्रकोप की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय ऑपरेशन केंद्र ( NOCPCO ) की स्थापना की और इसका नेतृत्व करने के लिए एक सैन्य अधिकारी को नियुक्त किया। महज ऐसा-वैसा कोई अधिकारी नहीं, बल्कि लेफ्टिनेंट जनरल शैवेंद्र सिल्वा। सिल्वा, जो रक्षा कर्मचारियों के कार्यवाहक प्रमुख और सेना कमांडर थे, नवंबर 2019 में राष्ट्रपति बनने के बाद से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा सरकारी पद पर एक सेवारत या सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी की ग्यारहवीं नियुक्ति थी।

सिल्वा की नियुक्ति ने देश की कोविड प्रतिक्रिया का सैन्यीकरण करने की इच्छा का भी संकेत दिया । राष्ट्रपति अभियान के दौरान गोटाबाया की अपनी सैन्य पृष्ठभूमि और तकनीकी और सैन्य शैली के शासन के लिए उनकी स्पष्ट रूप से घोषित इच्छा को देखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं थी। सैन्य अनुशासन को लागू करने वाले एक मजबूत व्यक्ति के वादे को चुनावी स्वीकृति की मुहर मिली, विशेष रूप से क्योंकि इसे गठबंधन सरकार और 2019 ईस्टर संडे बमबारी के लिए एक मारक के रूप में प्रस्तुत किया गया था।

महामारी के शुरुआती दिनों में केंद्रीकरण और सैन्य शासन में वृद्धि देखी गई। इसने सेना के लिए न केवल साजो-सामान की सहायता प्रदान करने के लिए, बल्कि महामारी की प्रतिक्रिया के समन्वय और नागरिक अधिकारियों (civilian authorities) को दबाने के लिए दरवाजे खोल दिए। पहली लहर के दौरान महामारी को नियंत्रण में रखने की सरकार की क्षमता सिंहल-बौद्ध बहुमत द्वारा अच्छी तरह स्वागत की गई थी, जिसने गोटबाया राजपक्षे को 2020 के संसदीय चुनावों में भारी जीत दिलाई थी। इसे सैन्य शासन के ढांचे में और भी अधिक केंद्रीकरण के लिए अनुमोदन के रूप में व्याख्यायित किया गया था। कुछ ही हफ्तों के भीतर सरकार ने 20 वांसंशोधन विधेयक पेश किया, जिसने 2015-19 गठबंधन सरकार के दौरान पेश किए गए कई चेक्स और बैलेंसेज़ (checks and balances) वापस ले लिए। 20 वेंसंशोधन ने कार्यकारी अध्यक्षता को मजबूत किया, कानूनी चुनौती से प्रतिरक्षा प्रदान की, और स्वतंत्र संस्थानों को कमजोर किया। एक और बात हुई- संसद के माध्यम से पोर्ट सिटी बिल को जबरदस्ती ठेला गया। 

शंकिथा गुनारत्ने , ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, श्रीलंका के उप कार्यकारी निदेशक ने मुझे बताया कि बिल शुक्रवार को पेश किया गया था – सप्ताहांत से पहले और जिसके बाद सार्वजनिक छुट्टियों की एक श्रृंखला थी- जिसने नागरिकों को अदालत में इसे चुनौती देने के लिए सिर्फ एक दिन का समय दिया। यह विधेयक कोलंबो बंदरगाह से सटे समुद्र से निकाली गई भूमि पर चीनियों के साथ साझेदारी में बनाए जा रहे एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय जिले के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करने हेतु था ।

अवश्य ही, कई देशों ने महामारी की शुरुआत से ही कोविड का मुकाबला करने के लिए अपनी सेनाओं का उपयोग किया है, क्योंकि सशस्त्र बलों के पास सैन्य अनुभव और तैनात करने के लिए विशाल संसाधन होते हैं। उदाहरण के लिए, चीन ने कथित तौर पर 10,000 सैन्य कर्मियों को तैनात किया, जबकि फ्रांस ने ऑपरेशन रेजिलिएंस (operation resilience) शुरू किया। दक्षिण कोरिया ने भी अपनी सेना जुटाई। राष्ट्रीय सैन्य प्रतिक्रियाएँ (responses) तीन प्रकार की होती हैं: न्यूनतम तकनीकी सहायता, मिश्रित नागरिक-सैन्य प्रतिक्रियाएँ और सैन्य-नेतृत्व वाली प्रतिक्रियाएँ। श्रीलंका की कोविड की प्रतिक्रिया तीसरी श्रेणी में आती है और यह और भी अधिक हैरान करने वाली है क्योंकि देश में एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र है। आमतौर पर, कम और मध्यम आय वाले देश, जिनके पास वित्त पोषित स्वास्थ्य प्रणाली है, ढिलाई से निपटने के लिए सेना पर निर्भर हो जाते हैं।

महामारी की प्रतिक्रिया के सैन्यीकरण का एक अन्य परिणाम राष्ट्रपति कार्य बलों (Presidential Task Forces) की स्थापना था। अप्रैल 2020 में अस्पष्ट शब्दों में “सेवाओं के निरंतर वितरण हेतु निर्देशन, समन्वय और निगरानी तथा समग्र सामुदायिक जीवन के निर्वाह के लिए” टास्क फोर्स की स्थापना की गई थी। जून में दो और स्थापित किए गए: “सुरक्षित देश, अनुशासित, सदाचारी और वैध समाज” बनाने के लिए एक टास्क फोर्स और एक अन्य “पूर्वी प्रांत में पुरातत्व विरासत प्रबंधन (archeological heritage management)” के लिए टास्क फोर्स। इन तीनों में सेवारत और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी कार्यरत थे इसके अलावा, पुरातत्व कार्य बल को तमिल और शैव इतिहास को मिटाते हुए, पुरातत्व स्थलों के संरक्षण के बहाने, उत्तर और पूर्व में, मुख्य रूप से तमिल क्षेत्रों में, भूमि के अधिग्रहण के लिए एक कदम के रूप में व्याख्यायित किया गया ।

वास्तव में, श्रीलंका की कोविड प्रतिक्रिया को NOCPCO और ‘सामुदायिक जीवन’ (‘community life’) टास्क फोर्स को सौंपा गया, जिन दोनों में कथित युद्ध अपराधी थे। लेफ्टिनेंट जनरल शैवेंद्र सिल्वा को संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 2009 में लिट्टे के खिलाफ अंतिम युद्ध के दौरान युद्ध अपराधों के लिए सैंक्शन किया गया था, जबकि टास्क फोर्स को राष्ट्रपति गोटाबाया के छोटे भाई, बेसिल राजपक्षे को सौंपा गया था, जिन्हें संभवतः युद्ध अपराधों की जानकारी हैइतना ही नहीं, श्रीलंका की सेना ने संपर्क ट्रेसिंग (contact tracing), निगरानी (surveillance), निर्माण और संगरोध सुविधाओं (quarantine facilities) को चलाने और आवश्यक सेवाओं के वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर सरकार की कोविड प्रतिक्रिया का नेतृत्व किया। प्रमुख नागरिक पद तो खाली रह गए थे। उदाहरण के लिए, महामारी में कई हफ्तों तक श्रीलंका में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कोई महानिदेशक नहीं था। अन्य पद स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव और आपदा प्रबंधन केंद्र के महानिदेशक सहित सेवारत या सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों द्वारा भरे गए थे।

इसके अलावा, कोविड से संबंधित मुद्दों पर दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए कई विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया था। इनमें से एक को दिसंबर 2020 में नियुक्त किया गया था, जिसने अनिवार्य दाह संस्कार की सिफारिश की थी, जिसे मुस्लिम समुदाय पर लागू किया गया था। वैज्ञानिक योग्यता में कमी और डब्ल्यूएचओ (WHO) के दिशानिर्देशों के विपरीत होने के बावजूद, दफनाने को हतोत्साहित किया गया। कुछ महीने बाद ही घरेलू और अंतरराष्ट्रीय समूहों द्वारा आलोचना के बाद नियमों में संशोधन किया गया था। मुसलमानों का हाशिए पर होना महामारी से पहले की बात है, जैसा कि 2014 में अति राष्ट्रवादी बौद्धों द्वारा इस समुदाय के खिलाफ दंगों के समय  रेखांकित किया गया था। महामारी ने सरकार को एक बहाना मुहैय्या करा दिया कि इस समुदाय को और कलंकित करे ।

सार्वजनिक स्वास्थ्य से अधिक सेना को प्राथमिकता राष्ट्रीय बजट में परिलक्षित होती है। 2021 के बजट में, जिसे दिसंबर 2020 में पारित किया गया था, स्वास्थ्य क्षेत्र को LKR 235 बिलियन (सरकारी व्यय का 6.34%, GDP का 1.3%) आवंटित किया गया था, जबकि रक्षा को LKR 348 बिलियन (खर्च का 9.2%, GDP का 1.98%) मिला था। ) गाले फेस ग्रीन्स में प्रदर्शनकारियों के साथ मेरी बातचीत में, सैन्य और रक्षा खर्च की भूमिका का विषय शायद ही कभी सामने आया। कोलंबो में विकास के क्षेत्र में काम करने वाले एक तमिल व्यक्ति ने कहा कि “कोई भी” श्रीलंकाई समाज में सेना की भूमिका के बारे में बात नहीं कर रहा है, न तो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी और न ही प्रदर्शनकारी। नाम न छापने की शर्त पर बात करने वाले व्यक्ति ने कहा, “श्रीलंका के पास 300,000 की स्थायी सेना है, जो यूक्रेन से बड़ी है।”

कोविड की प्रतिक्रिया का सैन्यीकरण और पहली लहर को नियंत्रित करने में इसकी स्पष्ट सफलता के साथ-साथ मजबूत गोटबाया राजपक्षे के “नो नॉनसेंस ” शासन देने के वादे के साथ-साथ चेक्स और बैलेंसेज़ के हट जाने से सरकार को हिम्मत दे दी कि वह निर्णय लेने की प्रक्रिया को और अधिक केंद्रीकृत करे। यह अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने के लिए ‘वूडू अर्थशास्त्रियों’ (voodoo economists) के एक समूह पर निर्भर था, जिसके परिणामस्वरूप कई ऐसे निर्णय हुए, जो दिवालिएपन की ओर ले गए।

सरकार के पास अपने विदेशी ऋणों और खाद्य, ईंधन और उर्वरक के आयात का भुगतान करने के लिए धन की कमी हो गई है। नतीजा यह है कि सैन्य शासन के वादे से प्रभावित होकर गोटाबाया के शासन को चुनावी बहुमत देने वाले लोग अब शासन के खिलाफ हो गए हैं। श्रीलंका में राजनीतिक और आर्थिक संकट आंशिक रूप से इन प्रवृत्तियों का परिणाम है, जिन्होंने श्रीलंका को अपने पूरे स्वतंत्र इतिहास में किसी न किसी रूप में त्रस्त किया है, और अभी तक इसका समाधान नहीं किया जा सका है।

(तुषार धारा एक पत्रकार और शोधकर्ता हैं जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मामलों पर लिखते हैं। काउंटर करेंट में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था जिसका हिंदी अनुवाद कुमुदिनी पति ने किया है।)

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