Tuesday, December 5, 2023

मानवाधिकार हनन पर चर्चा के बाद कार्यकर्ताओं ने बनायी रांची में मानव श्रृंखला

झारखंड अलग राज्य गठन के 22 साल हो गए, लेकिन जिस अवधारणा को लेकर अलग राज्य का गठन हुआ वह आज भी हाशिए पर है। कई सरकारें आईं और गईं लेकिन राज्य के आम जनजीवन में कोई बदलाव नजर नहीं आया है। राज्य में मानवाधिकार हनन के मामले निरंतर बढ़ते जा रहे हैं, पुलिस प्रशासन के दमनकारी रवैया भी जस का तस है। राज्य में नक्सल उन्मूलन के नाम पर आए दिन सुदूर गांवों में बसे आदिवासियों को निशाना बनाया जा रहा है। वहीं पुलिस उत्पीड़न के शिकार इन आदिवासियों के पक्ष में बोलने व उनके साथ खड़े होने वालों को भी निशाना बनाया जा रहा है।

राज्य के लातेहार जिलान्तर्गत गारू थाना क्षेत्र के पिरी गांव निवासी 24 वर्षीय ब्रम्हदेव सिंह की सुरक्षा बल द्वारा की गई हत्या का मामला हो या पश्चिमी सिंहभूम जिला के अंजेड़बेड़ा राजस्व गांव का टोला चिरियाबेड़ा का जहां पिछली 11 नवम्बर, 2022 को कथित सर्च अभियान के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार के तमाम नियमों को धता बताते हुए निर्दोष आदिवासियों के साथ मारपीट व तोड़फोड़ की घटना को अंजाम दिया गया। उल्लेखनीय है कि गत 12 जून, 2021 को झारखंड के लातेहार जिलान्तर्गत गारू थाना क्षेत्र के पिरी गांव निवासी 24 वर्षीय ब्रम्हदेव सिंह (खरवार जनजाति) समेत कई आदिवासी पुरुष नेम सरहुल (आदिवासी समुदाय का एक त्योहार) मनाने की तैयारी के तहत शिकार के लिए गनईखाड़ जंगल में घुसे।

तभी माओवादी सर्च अभियान पर निकले सुरक्षा बलों ने जंगल किनारे से उन पर गोली चलानी शुरू कर दी। हाथ उठाकर चिल्लाते रहे कि वे लोग पार्टी (माओवादी) के लोग नहीं हैं। वे लोग हाथ उठाए सुरक्षा बलों से गोली नहीं चलाने का अनुरोध करते रहे। लेकिन सुरक्षा बलों ने उनकी एक न सुनी और फायरिंग शुरू कर दी। सुरक्षा बलों की ओर से गोलियां चलती रहीं, नतीजतन दीनानाथ सिंह के हाथ में गोली लगी और ब्रम्हदेव सिंह की गोली लगने से मौत हो गयी। इस घटना का सबसे दुखद और लोमहर्षक पहलू यह रहा कि ब्रम्हदेव सिंह को पहली गोली लगने के बाद भी उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा थोड़ी दूर ले जाकर फिर से गोली मारी गई और उनकी मौत सुनिश्चित की गयी।

ब्रम्हदेव सिंह की पत्नी जीरामनी देवी ने अपने पति की हत्या में शामिल सुरक्षा बलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए 29 जून, 2021 को गारू थाना में आवेदन दिया थालेकिन पुलिस ने मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया। उसके बाद जीरामनी देवी ने कोर्ट का शरण लिया। वहीं मामले को लेकर पुलिस के खिलाफ लगातार आंदोलन भी होता रहा। आन्दोलन और न्यायालय में परिवाद दायर किए जाने के परिणाम स्वरूप लगभग एक साल बाद पुलिस द्वारा गारू थाना में सुरक्षा बलों के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता 156 (3) के आधार पर उक्त पुलिस पदाधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा।

वहीं पिछली 11 नवम्बर, 2022 की चिरियाबेड़ा की अमानवीय घटना के पहले भी विगत 15 जून 2020 को भी सुरक्षा बल के जवानों ने सर्च अभियान के दौरान इसी गांव के आदिवासियों को डंडों, बैटन, राइफल के बट और बूटों से बेरहमी से पीटा था। सुरक्षा बल की पिटाई से घायल हुए 20 लोगों में से 11 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे।

पीड़ितों ने कई बार विभिन्न स्तरों पर लिखित आवेदन दिया, लेकिन आज तक, न दोषी सुरक्षा बलों के विरुद्ध कार्रवाई हुई और न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला। न्यायालय में भी पीड़ितों का बयान दर्ज करवाने में जांच पदाधिकारी का रवैया नकारात्मक और उदासीन रहा है।

10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर झारखंड जनाधिकार महासभा और पीयूसीएल द्वारा संयुक्त रूप से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर ‘झारखंड में मानवाधिकार संबंधी वर्तमान चुनौतियां” को लेकर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें इस तरह के अनेकों मानवाधिकार हनन के मामलों पर चर्चा की गई।

गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि सरकार बदल जाने के बाद भी झारखंड में हो रहे मानवाधिकार हनन के मामले और पुलिस प्रशासन के दमनकारी रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। इस अवसर पर बहुत सारी घटनाओं का उद्धरण देकर बताया गया कि किस तरह पुलिस मनगढ़ंत कहानियां बनाकर गरीबों, आदिवासियों और ग्रामीणों को प्रताड़ित कर रही है। वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में लाने के बावजूद इन घटनाओं पर कार्रवाई नहीं हो रही। दोषियों को सजा देने की बात तो बहुत दूर, एफआईआर तक लॉज नहीं किए जा रहे हैं।

कुछ घटनाओं में न्यायालय की शरण में जाने से एफआईआर दाखिल हो गया है, लेकिन आगे की कार्रवाई बहुत धीमी चल रही है और पुलिस प्रशासन ऐसे दोषियों को जो सरकारी कर्मचारी हैं, उन्हें बचाने में लगा रहता है। ऐसे में ग्रामीणों का मनोबल टूटता है और गिरफ्तार हो जाने के बाद बेल लेने में ही उनके ₹50,000 से ₹1,00,000 तक खर्च हो जाते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी बदतर हो जाती है। यह दमन का सिलसिला बरसों से चल रहा है। जो उम्मीद थी कि सरकार बदलने से झारखंड में कुछ राहत होगी उस दिशा में भी कुछ खास देखने को मिल नहीं रहा है।

वक्ताओं ने महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और उनके मूलभूत मानवाधिकार हैं उनका नहीं मिलना, इस विषय पर भी चर्चा की। झारखंड जैसे प्रदेश में जहां संपत्ति हथियाने के लिए डायन बिसाही का बहाना बनाकर महिलाओं को मौत के घाट उतारा जा रहा है और समाज भी उसमें साथ दे रहा है, ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख करते हुए नंदिता जी ने बताया कि ये तभी रुक सकता है जब लोगों में इसके बारे में जागरूकता फैलाई जाए और इन क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर बढ़ाया जाए। कानूनों में सुधार लाकर संपत्ति में महिलाओं को अधिकार मिलेगा तो उनके रिश्तेदार मौत के बाद संपत्ति के मालिक नहीं बन पायेंगे।

झारखंड और पूरे देश में मूलभूत स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का जिक्र करते हुए डॉक्टर करुणा झा ने इस तथ्य पर रोशनी डाला कि अगर बच्चों को समय से टीका और पोषण नहीं दिया जाएगा तो वह जीवन भर कमजोर और बीमार रहेंगे और अपना जीवन यापन ढंग से नहीं कर पाएंगे। इसलिए पोषण, टीकाकरण और मूलभूत स्वास्थ्य व्यवस्था मानवाधिकार की पहली सीढ़ी है।

खासकर हिंदुस्तान जैसे देश में जहां पर बड़ी संख्या में लोग गरीब हैं, खुद से यह सुविधा प्राप्त नहीं कर सकते, ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जहां सुविधाएं बिना सरकार के नहीं पहुंचाई जा सकती। इसलिए देश की जनता को मानवाधिकार के लिए सजग करने की जिम्मेवारी सामाजिक संगठनों की बनती है। हमें सरकार पर दबाव डालना पड़ेगा कि प्राथमिकता के आधार पर सभी नागरिकों को स्वास्थ्य, टीका और पोषण की सुविधा मिले तब हम आगे की मानवाधिकार की बात करें तो वह तर्कसंगत होगा।

वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास ने पत्रकारिता में पिछले तीन दशकों में जिस तरह के बदलाव हुए हैं उन पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि किस तरह पत्रकारिता एक सामाजिक दायित्व से हटकर पूरी तरह व्यवसाय हो गया है। सभी अखबार, पत्रिकाएं और टीवी चैनल के मालिक अब पूंजीपति बन गए हैं, जिनके कई तरह के व्यापार हैं और अपने मुख्य व्यापारों को बचाने के लिए या उन्हें सुचारू ढंग से चलाने के लिए वह इन माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं।

आज जो समाचार और विचार दिखाया जाता है, जो पत्र-पत्रिकाओं में लिखा जाता है उसको जिस तरह हम पहले आंख मूंद कर सही मान लेते थे, उससे परहेज करना पड़ेगा। हर पाठक को, हर नागरिक को सही खबर ढूंढने में खुद भी मेहनत करनी पड़ेगी। कुछ नए तरीके आए हैं खासकर सोशल मीडिया में जिनमें समाचारों के बारे में विचारों के बारे में आसानी से आदान प्रदान किया जाता है लेकिन वहां भी गलत सूचनाओं का प्रसार और गलत धारणाओं के बारे में लोगों को उकसाना यह एक आम बात हो गई है और इससे सामाजिक ताना-बाना और सामाजिक विमर्श काफी हद तक दूषित होता जा रहा है।

अपने अध्यक्षीय भाषण में एडवोकेट अशोक झा ने बताया कि उनके लंबे अनुभव के दौरान पीयूसीएल जैसे संगठनों के साथ काम करने में आज कितनी परेशानी हो रही है। बहुत सारे राज्यों में आप बैठक भी नहीं कर सकते, उसके लिए भी सरकार की अनुमति चाहिए। आपकी हर कार्यवाही को शक की नजर से देखा जाता है और सरकार प्रताड़ना करने में भी देर नहीं करती। आज मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को पहले से कई गुना अधिक जोखिम उठाया पड़ता है।

सभा का संचालन एलीना होरो ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रवीण पीटर ने किया।

गोष्ठी के बाद शाम को अल्बर्ट एक्का चौक पर सभी संगठनों ने मिल कर मानव श्रृंखला का निर्माण किया। करीब एक सौ कार्यकर्ताओं ने मानव अधिकार संबंधित पोस्टर और बैनर के साथ लोगों और मीडिया के साथ संवाद किया।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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