तीस्ता सीतलवाड़ को रिहा कर उनके खिलाफ आरोपों को वापस ले भारत: ह्यूमन राइट्स वॉच 

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न्यूयॉर्क। ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारतीय सरकारी तंत्र को प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को तुरंत रिहा करना चाहिए, उनके खिलाफ सभी आरोप वापस लेने चाहिए और उन पर लगातार हमलों को बंद करना चाहिए। पुलिस ने कहा है कि वह सीतलवाड़ और व्यवस्था के भीतर से आवाज उठाने वाले दो पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ गुजरात में मुसलमानों को निशाना बनाकर की गई 2002 की भीड़ हिंसा की जवाबदेही तय करने संबंधी उनकी गतिविधियों में आपराधिक साजिश और जालसाजी की जांच कर रही है। 

 2002 के दंगों, जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे, के पीड़ितों की मदद करने वाली सीतलवाड़ एक जानी-मानी शख्सियत हैं। वह तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, जो 2014 में प्रधानमंत्री चुने गए, समेत वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कोशिश करने वाली शख्सियत के बतौर भी जानी जाती हैं। गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज शिकायत में दो पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों – संजीव भट्ट और आरबी श्रीकुमार को भी नामित किया गया, जिन्होंने दंगों के दौरान अधिकारियों की मिलीभगत का मामला उठाया था। वर्ष 2002 में, गुजरात में हिंदू भीड़ ने एक ट्रेन पर हुए हमले, जिसमें 59 हिंदू तीर्थ यात्री मारे गए थे, का बदला लेने के लिए मुसलमानों को निशाना बनाया था। 

 ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “ये गिरफ्तारियां  स्पष्ट रूप से गुजरात दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने की कोशिश के विरुद्ध बदले की कार्रवाई है। कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता कि हिंसा हुई थी या कि न्याय की आवश्यकता है, फिर भी सरकारी तंत्र सीतलवाड़ को चुप कराने की खातिर उनके खिलाफ वर्षों से आपराधिक आरोप लगा रहा है।” 

 दंगों के बाद, भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीतलवाड़ सहित अन्य कार्यकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर, न्याय दिलाने में विफल रहने के लिए गुजरात सरकार की कड़ी निंदा की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार लोगों को बचाने के लिए सरकारी तंत्र और स्थानीय न्याय प्रणाली को फटकार लगाई थी, नए सिरे से जांच का आदेश दिया था और सरकार को गवाहों एवं पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था। 

इन दंगों पर 2002 की ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में यह पाया गया कि गुजरात का सरकारी तंत्र हिंसा ख़त्म करने के लिए पर्याप्त कदम उठाने में विफल रहा और उसने कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर जांच में हस्तक्षेप किया। 2005 में, अमेरिकी सरकार ने मोदी को संयुक्त राज्य की यात्रा के लिए राजनयिक वीजा देने से इनकार कर दिया था और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का हवाला देकर उनके मौजूदा 10 साल के व्यापार या पर्यटक वीजा को रद्द कर दिया था। 

गुजरात सरकार लगभग दो दशकों से सीतलवाड़ को निशाना बनाती रही है। उसने उन पर कई झूठे आरोप दायर किए हैं, जिनमें से कई लंबित हैं और उसने आपराधिक न्याय प्रणाली के साथ छेड़-छाड़ कर इसे खतरे के रूप में पेश किया है। इनमें कुछ मामलों में अदालतों ने सीतलवाड़ के पक्ष में फैसला सुनाया है। 2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था कि सीतलवाड़ ने झूठे सबूत देने के लिए एक गवाह को मजबूर किया था। फरवरी 2012 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य मामले, जिसमें उन पर दंगा पीड़ितों के शवों को अवैध रूप से खुदाई कर निकालने का आरोप लगाया गया था, में कहा था कि यह “पूरी तरह से उन्हें उत्पीड़ित करने का झूठा मामला” है और इस तरह के मामले से “किसी भी तरह से गुजरात राज्य की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती है।” 

दंगों के दौरान मारे गए सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी की याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के एक दिन बाद, 25 जून को सीतलवाड़ को हिरासत में लिया गया। जाफरी ने सीतलवाड़ के संगठन सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस की मदद से दायर अपनी याचिका में विशेष जांच दल की उस रिपोर्ट को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि मोदी की दंगों में कोई भूमिका नहीं थी। 

अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “मामले को सुलगाए रखने के लिए…छुपे हुए उद्देश्यों के लिए” याचिका दायर की गई है। इसने कहा कि “प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल तमाम लोगों को कटघरे में खड़ा करना चाहिए और कानून के अनुसार आगे कार्रवाई करनी चाहिए।” इसके तुरंत बाद, मोदी सरकार में गृह मंत्री अमित शाह ने सीतलवाड़ पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने और उनके संगठन ने “पुलिस को दंगों के बारे में आधारहीन जानकारी दी थी।” 

सीतलवाड़ पर जालसाजी करने, झूठे आरोप दायर करने, आपराधिक साजिश रचने और किसी व्यक्ति को मृत्युदंड का दोषी ठहराने के इरादे से झूठे सबूत गढ़ने का आरोप है। शिकायत के बाद श्रीकुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया। भट्ट पर भी नए आरोप लगाए गए हैं, जो 2019 में 30 साल पहले के एक मामले, जो राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है, में हत्या के दोषी करार दिए गए थे। सीतलवाड़ और श्रीकुमार को दो जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है। 

 2016 में, भारत सरकार ने विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम के तहत सीतलवाड़ के संगठन का पंजीकरण भी रद्द कर इसे विदेशी अनुदान प्राप्त करने से रोक दिया। अधिकारियों ने सीतलवाड़ के घर और कार्यालय पर अनेकानेक बार छापेमारी की, उनके बैंक खातों से लेन-देन पर रोक लगाई और सार्वजनिक रूप से उन्हें बदनाम किया। गिरफ्तार होने के बाद, सीतलवाड़ ने शिकायत दर्ज की कि “गुजरात पुलिस की दुश्मनी के कारण मुझे अपनी जान पर गंभीर खतरा है।” 

विपक्षी राजनीतिक दलों, मीडिया संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने सीतलवाड़ की गिरफ्तारी की निंदा की है। मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने सीतलवाड़ की गिरफ्तारी पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, “मानवाधिकारों की रक्षा करना कोई अपराध नहीं है। मैं उनकी रिहाई और भारत राज्य द्वारा उनका उत्पीड़न ख़त्म करने की मांग करती हूं।” 

 ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया है कि गुजरात में दंगों के मामलों की जांच और अभियोजन को रोकने के प्रयास किए गये और कार्यकर्ताओं और वकीलों को परेशान किया गया और धमकाया गया। कार्यकर्ताओं और पीड़ितों के परिवारों की अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बार-बार हस्तक्षेप किया और आदेश दिया की फिर से जाँच हो। कुछ मामलों में कोर्ट ने जांच की स्वतंत्र निगरानी करने या न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामलों की सुनवाई को गुजरात से बाहर स्थानांतरित करने का भी आदेश दिया। इन मामलों में 100 से अधिक लोगों का जुर्म साबित हुआ है, हालांकि अनेक लोगों को अपील लंबित रहते रिहा कर दिया गया। 

गांगुली ने कहा, “पीड़ितों और गवाहों के साथ काम करने वाली सीतलवाड़ जैसी कार्यकर्ताओं के प्रयासों के बदौलत ही गुजरात में भीड़ हिंसा मामले में न्याय मुमकिन हुआ है। सीतलवाड़ की गिरफ्तारी भारत में नागरिक समाज और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बढ़ते हमलों की एक कड़ी है, जिसका उद्देश्य जवाबदेही सुनिश्चित करने का साहस करने वालों में खौफ़ पैदा करना है।” 

(ह्यूमन राइट्स वॉच की प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।) 

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