मंदिर बनने भर से विकास होता तो सासाराम भी होता ‘स्मार्ट सिटी’!

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प्रधानमंत्री द्वारा जैसे ही अयोध्या में भूमि पूजन संपन्न हुआ वहां भव्य राम मंदिर के निर्माण का काम औपचारिक रूप से शुरू हो गया। वैसे अनौपचारिक रूप से वहां मंदिर निर्माण में आने वाले खंबों को तराशने का काम वर्षों से हो रहा है। ज़्यादातर नेताओं ने खास कर सत्ताधारी पक्ष के लोगों द्वारा मंदिर निर्माण के शुरू होने को एक बड़ी जीत बताया है, और साथ ही साथ यह भी प्रचारित किया गया कि इसके निर्माण से अयोध्या का बहुत विकास होगा। देश की ज्यादातर मीडिया ने भी मंदिर निर्माण को अयोध्या की प्रगति में एक जरूरी कदम बताया। मीडिया द्वारा दिखाए जा रहे अयोध्या के दृश्यों को देख कर मुझे मेरी अयोध्या यात्रा याद आ गई।

मेरी मां धार्मिक प्रवृति की हैं। अयोध्या जाने की इच्छा वर्षों से कर रही थीं। दो साल पहले मैंने उनकी यह इच्छा पूरी की। तीन दिन के अयोध्या प्रवास में मां को खाने एवं रहने की थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन मां ने इसे कष्ट के रूप में नहीं माना। मां के साथ हम उस जगह पर भी गए जहां रामलला विराजमान थे। वहां पहुंचने में थोड़ी देर हो गई थी। हम सब के अंदर जाने के बाद लोगों का अंदर जाना बंद कर दिया गया था। उस दिन हम सब अंतिम व्यक्ति थे, इसलिए भीड़ नहीं थी।

मां जब रामलला के स्थान पर गईं तो मैंने उन्हें बताया कि यहीं पर बाबरी मस्जिद थी, जिसे तोड़ दिया गया था। अब यहीं पर राम मंदिर का निर्माण होगा। मेरी आवाज थोड़ी तेज थी, यह बात वहां पर मौजूद पुजारी के कानों में भी सुनाई पड़ गई। उस पुजारी ने यह सुनते ही मेरी बात पर आपति जताई और कहा, आप यह क्यों नहीं बता रहे हैं कि पहले राम मंदिर यहीं था।

कोई कितनी भी अपनी नाराजगी जाहिर कर ले, लेकिन आने वाली पीढ़ी यह जरूर एक बार कहेगी कि बाबरी मस्जिद यहीं पर थी जिसे ढाह दिया गया। हम भले ही भव्य मंदिर का निर्माण कर लें, लेकिन इतिहास को मिटाना आसान नहीं होगा और इतिहास हमें यही बताएगा कि बाबरी मस्जिद को तोड़कर ही राम मंदिर का निर्माण हुआ है।

जिस तरह से इस महामारी के समय भूमि पूजन किया गया और मंदिर निर्माण को अनिवार्य बताते हुए यह कहा गया कि अब अयोध्या की ‘किस्मत’ बदल जाएगी। मेरे सामने कई सवाल घूमने लगे। क्या किसी भी क्षेत्र में मंदिर बनाने से उस जगह का विकास हो जाता है?  अभी ढाई लाख आबादी वाले मेरे शहर सासाराम के शहरी क्षेत्र में छोटे-बड़े मिलाकर चालीस से ज्यादा मंदिर का निर्माण विगत तीस सालों में हुआ है।

इतना ही नहीं अभी करोड़ों की लागत से एक भव्य मंदिर का निर्माण का काम चल रहा है और आगे कई मंदिर की योजना भूमि के गर्भ मे दबी हुई है, लेकिन मेरे शहर का विकास इतने सारे मंदिर के बनने के बाद भी नहीं हुआ। चालीस साल पहले इस कस्बानुमा शहर की जो स्थिति थी, वही कमोबेस आज भी है। साधारण रोग के इलाज के लिए भी बनारस या पटना जाना पड़ता है। माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए भी शहर से बाहर जाना पड़ता है। उच्च शिक्षा की तो बात करना ही बेकार है। यह केवल एक उदाहरण है।

देश में कई ऐसी जगह है, जहां बहुत प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण तो हुआ है, लेकिन शहर का विकास नहीं हो पाया है। राजस्थान के सालासर, झुनझुनु, मेहंदीपुर, झारखंड का देवघर, उत्तर प्रदेश का विंध्याचल समेत अन्य ढेरों स्थान हैं, जो देश में अपने मंदिर के नाम जाने जाते हैं, लेकिन क्या इन जगहों का विकास हो पाया? अगर मंदिर के निर्माण से जगह का विकास हो जाता तो आज सासाराम को देश के एक विकसित शहरों में गिना जाता।

निःसंदेह अयोध्या के प्रति देश की आस्था है, लेकिन मैंने देखा है कि किसी चीज या व्यक्ति के प्रति आस्था किस तरह से ‘पैदा’ की जाती है और इसमें राजनीतिक दल और मीडिया के बड़ी भूमिका होती है। वैसे मंदिर की भूमिका इस कोरोना संक्रमण के समय साफ दिखाई पड़ती है, जब देश के सारे मंदिर अप्रवासी मजदूरों के लिए बंद कर दिए गए और वहीं दूसरी तरफ इस संकट काल में देश के कई जगहों पर गुरुद्वारों ने गरीबों और मजदूरों को भोजन आदि की व्यवस्था में अपनी एक मजबूत भागीदारी सुनिश्चित की।

  • अमित चमड़िया

(लेखक एक संस्थान में मीडिया विषय पढ़ाते हैं।)

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