Friday, March 29, 2024

जामिया मामले में दिल्ली हाईकोर्ट रूम में चीफ जस्टिस के खिलाफ लगे ‘शेम शेम’ के नारे

इलाहाबाद/प्रयागराज। मामला एक जैसा, दोनों में निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग लेकिन एक की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में और दूसरे की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में, फैसला अलग अलग, एक में केवल नोटिस पर दूसरे में नोटिस के साथ-साथ घायलों के समुचित उपचार और आर्थिक सहायता,एक को मार्च तक टालने के विरोध के बाद 4 फरवरी सुनवाई की तारीख तो दूसरे में स्वत: 2 जनवरी की तारीख। ये मामले हैं जामिया और अलीगढ़ विवि के लेकिन दिल्ली और इलाहाबाद हाईकोर्टों के नजरियों का फर्क सबके सामने है।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 15 दिसंबर को जामिया नगर में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर हुई पुलिस की बर्बरता पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया। यह याचिका घटना पर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित किए जाने की मांग को लेकर दायर की गई है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की पीठ ने गिरफ्तारी सहित दंडात्मक कार्रवाई से छात्रों को अंतरिम संरक्षण प्रदान करने से इंकार कर दिया। छात्रों को अंतरिम संरक्षण न मिलने पर वकीलों ने ‘शेम शेम’ के नारे लगाए।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज अलीगढ़ के डीएम को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) परिसर में 14 और 15 दिसम्बर को और उसके बाद हुई घटनाओं में लाठी चार्ज या किसी अन्य तरीके से घायल छात्रों और व्यक्तियों को सभी आवश्यक चिकित्सा सहायता और आर्थिक सहायता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस विवेक वर्मा की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार और एएमयू प्रशासन को भी नोटिस जारी किया और जवाब तलब किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 2 जनवरी 2020 को होगी।

जब दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की पीठ जामिया मामले पर सुनवाई कर रही थी। मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट से मांग की गई कि कोर्ट इस मामले में पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई को लेकर जांच कमेटी बनाने, दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने और घायल छात्रों को मुफ्त इलाज मुहैया कराया जाने को लेकर आदेश जारी करे।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि जामिया में पुलिस ने जामिया के छात्रों के खिलाफ बिना किसी जांच और ठोस आधार के कार्रवाई की, कुछ को हिरासत में लिया तो कैंपस में भी जाकर तोड़फोड़ की और लाठीचार्ज किया। इस पुलिसिया कार्रवाई में कई छात्र गंभीर रूप से घायल हुए और कुछ को इतनी गंभीर चोट लगी कि जीवन भर उसकी भरपाई नहीं हो सकती।

जिस दौरान कोर्ट में सुनवाई हो रही थी उस दौरान पुलिस के उच्च अधिकारी और जवान भी मौजूद थे। लेकिन याचिकाकर्ताओं की दलील पूरी होने के बाद जब कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले की अगली सुनवाई मार्च में करेंगे तो उसके बाद अचानक कोर्ट में हंगामा मचा शुरू हो गया। वकीलों की तरफ से मांग की गई कि मामले की अगली तारीख इतनी लंबी न दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने 4 फरवरी की तारीख तय कर दी लेकिन इससे भी वकील नाखुश दिखे। जैसे ही अदालत ने किसी और तरह की राहत देने से इंकार किया तो कोर्ट रूम में ही शेम शेम के नारे लगने लगे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि सीसीटीवी व अन्य फुटेज से साफ है कि दिल्ली पुलिस ने जामिया परिसर में घुसकर लाइब्रेरी व अन्य जगहों पर छात्रों के साथ हिंसा की। पुलिस बिना अनुमति के कैंपस में घुसी। इस मामले की सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर जज से जांच होनी चाहिए। पुलिस द्वारा छात्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाई जानी चाहिए। पिछले कुछ दिनों में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में घायल हुए छात्रों के लिए उपचार और मुआवजे की मांग संबंधी छह याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह फैसला सुनाया।

रविवार को जामियानगर से ओखला तक मार्च का आयोजन किया गया था जो कि आगे हिंसक विरोध-प्रदर्शन में तब्दील हो गया। इस घटना में पुलिस पर आरोप है कि वह बिना अनुमति के यूनिवर्सिटी परिसर में घुसी और स्टूडेट्स पर कार्रवाई की। पुलिस की बर्बर कार्रवाई में एक छात्र के आंख की रोशनी चली गई और कई गंभीर रूप से घायल हैं और अस्पताल में भर्ती हैं। जिसके बाद देशभर के कई यूनिवर्सिटी व शिक्षण संस्थान के स्टूडेंट्स जामिया स्टूडेंट्स के समर्थन में खड़े हो गए।

याचिकाकर्ता की तरफ से संजय हेगड़े ने कहा कि इस मामले में स्वतंत्र जांच की जरूरत है। इस मामले में एक जांच कमेटी का गठन किया जाना चाहिए। पुलिस ये बताए कि क्या उनको मस्जिद, लाइब्रेरी और टॉयलेट में घुसने के लिए किसी ने कहा था। किस स्थिति में ये परिस्थितियां पैदा हुई। अभी भी वहां की स्थिति सामान्य नहीं है। छात्र डरे हुए हैं। याचिकाकर्ता की तरफ से इंदिरा जयसिंह ने कहा कि हिंसा की किसी को इजाजत नहीं दी जा सकती, लेकिन लोकतंत्र में अपनी बात को रखना भी संवैधानिक अधिकार है। पूरा मामला जांच का विषय है।

इस बीच नागरिकता कानून पर हिंसा मामले में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और छात्रों को फिलहाल क्लीन चिट मिल गई है। दिल्ली पुलिस की ओर से गृहमंत्रालय को सौंपी शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया है कि जामिया कैंपस में फैली हिंसा में स्थानीय असामाजिक तत्वों का हाथ है। इस मामले में अब तक हुई 10 लोगों की गिरफ्तारी में कोई भी जामिया का छात्र नहीं है। मंगलवार को मंत्रालय के और दिल्ली पुलिस के उच्चअधिकारियों की ओर से की गई ब्रीफिंग में बताया गया कि देश के इस मामले में विदेशी या राजनीतिक हाथ होने के नजरिए से भी अंदरूनी जांच चल रही है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि याचिका में तमाम अनुतोष माँगा गया है, जिनमें कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जाँच की मांग भी शामिल है। याचिका में आरोप है कि 12दिसम्बर 2019 से 15दिसम्बर 2019 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में राज्य पुलिस और पैरा मिलिट्री फोर्सेज ने छात्रों के साथ हिंसा और मनमानी निरोधक गिरफ्तारियां की।

आदेश में के आरोपों को दोहराते हुए कहा गया है कि 15 दिसंबर, 2019 को पैरा मिलिट्री फोर्स और राज्य पुलिस ने बिना किसी जायज और वैध कारणों के लाठी चार्ज के साथ भारी मात्रा में टियर गैस, रबर बुलेट और पेलेट की फायरिंग की। बलों ने गेस्ट हाउस संख्या 2 और 3 में भी प्रवेश किया, जहां छात्र छिपे हुए थे। पूरी घटना सीसीटीवी में रेकार्डेड है। इस बात की आशंका है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के परिसर में हुई इस घटना के साक्ष्य से छेड़छाड़ और रिकार्डिंग मिटाई जा सकती है।

15 दिसंबर की देर शाम में, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के खिलाफ छात्रों के विरोध को कुचलने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों ने एएमयू के परिसर में प्रवेश किया था और आंसू गैस के गोले दागे थे। लाठीचार्ज और गोलीबारी के परिणामस्वरूप कई छात्र घायल हो गए और उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया गया।

छात्रों के विरोध और हिंसा के बीच, एएमयू के कुलपति ने विश्वविद्यालय को बंद करने का आदेश दिया था और छात्रों को निर्धारित शीतकालीन अवकाश से पहले हॉस्टल खाली करने के लिए कहा था। 17 दिसंबर, 2019 को, कुलपति ने एक बयान जारी किया था कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि वाहनों को नुकसान पहुंचाने सहित पुलिस की ज्यादती के आरोपों की पूरी जांच सक्षम अधिकारियों द्वारा की जाए ।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जामिया और अलीगढ़ के मामले की सुनवाई से इंकार कर दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ता सम्बन्धित हाईकोर्ट के पास जाएं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)

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