Wednesday, April 24, 2024

हर मामले में खुद ‘पप्पू’ साबित हो रही है मोदी सरकार

आजाद भारत के इतिहास में पहली बार देशवासियों को ऐसी सरकार मिली है, जो हर मामले में विपक्षी दलों की न सिर्फ खिल्ली उड़ाती है बल्कि कई बार तो वह विपक्षी नेताओं को देशद्रोही तक करार दे देती है। यह काम सिर्फ सरकार के मंत्री और सत्तारूढ़ दल के नेता ही नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री भी करते हैं। इसी सिलसिले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को तो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने लंबे अरसे से अपने प्रचार तंत्र तथा मीडिया के एक बड़े हिस्से के जरिए ‘पप्पू’ के तौर पर ही प्रचारित कर रखा है। कहा जाता है कि इस प्रचार की निरंतरता बनाए रखने के लिए भाजपा काफी बड़ी धनराशि खर्च करती है।

भाजपा के तमाम नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों का अक्सर कहना रहता है कि वे राहुल गांधी की किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन होता यह है कि राहुल गांधी जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के खिलाफ कुछ बोलते हैं, आरोप लगाते हैं या सरकार को कुछ सुझाव देते हैं तो सरकार के कई मंत्री और भाजपा के तमाम प्रवक्ता उसका जवाब देने के लिए मोर्चा संभाल लेते हैं।

पिछले डेढ़ साल से कोरोना महामारी को लेकर भी यही हो रहा है। राहुल गांधी सहित विपक्ष के तमाम नेता सरकार से लगातार चुभते हुए सवाल पूछ रहे हैं और कुछ मामलों में अपनी ओर से सुझाव भी दे रहे हैं। सरकार को और भाजपा को राहुल के सवाल बिल्कुल रास नहीं आ रहे हैं। राहुल के बयानों का कुतर्कों के साथ जवाब केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रवक्ता तो हमेशा की तरह देते ही रहे हैं, लेकिन कभी-कभी खुद प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष भी मोर्चा संभाल लेते हैं। यही नहीं, तमाम टीवी चैनलों पर उनके एंकर और एक खास किस्म के राजनीतिक विश्लेषक भी राहुल की खिल्ली उड़ाने में जुट जाते हैं।

लेकिन कई मामलों देखने में आता है कि राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता जो कहते हैं, उसे देरी से ही सही मगर सरकार को मानना पड़ता है। चाहे दुनिया के दूसरे देशों में बनी तमाम कोरोना वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी देने का मामला हो या 45 साल से ज्यादा उम्र के सभी नागरिकों को कोरोना की वैक्सीन लगाने का मामला हो या केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) की परीक्षाएं टालने की बात हो, सबकी मांग सबसे पहले राहुल गांधी ने ही की थी। शुरू में सरकार की ओर से इन मांगों को लेकर नाक-भौं सिकोड़ी गई लेकिन थोड़े दिनों के बाद आखिरकार सरकार को उनकी सभी मांगें मानना पड़ीं।

सबसे ताजा मामला है वैक्सीन नीति में तीसरी बार बदलाव का। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 जून को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में वैक्सीनेशन अभियान को फिर से केंद्र सरकार के हाथ में लेने और देश के सभी नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन देने का एलान किया है। इससे पहले अप्रैल महीने में जब देश में कोरोना की दूसरी लहर बेकाबू हो चली थी, लोग इलाज, दवाओं और ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे थे, वैक्सीनेशन अभियान पूरी तहर लड़खड़ा चुका था, तब चूंकि प्रधानमंत्री मोदी और उनके ज्यादातर मंत्री पांच राज्यों के चुनाव खासकर बंगाल जीतने के अपने महत्वाकांक्षी अभियान में व्यस्त थे, लिहाजा उन्होंने स्वास्थ्य को राज्यों का विषय बताते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झटक लिया था। सभी राज्य सरकारों से कह दिया गया था कि वे ही अपने यहां लॉकडाउन या कोरोना कर्फ्यू का फैसला करें, लोगों का इलाज भी वे ही कराएं और अपने नागरिकों के लिए वैक्सीन भी वे खुद ही खरीदें और वह भी कंपनियों की तय की गई कीमतों पर।

उसी देशव्यापी हाहाकार के बीच राहुल गांधी ने 24 मई को ट्वीट किया था, ”वैक्सीन की खरीद का काम केंद्र करे और उसका वितरण राज्य सरकारें। तभी वैक्सीनेशन अभियान सफल होगा।’’ हमेशा की तरह भाजपा प्रवक्ताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों ने राहुल गांधी के इस बयान का मजाक उड़ाया। सोशल मीडिया पर भी उन्हें ट्रोल किया गया। लेकिन जब इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए सख्त सवाल किए तो सरकार से कोई जवाब देते नहीं बना। केंद्र सरकार के सबसे बड़े वकील यानी सॉलिसिटर जनरल ने जो लचर दलीलें पेश कीं उन्हें सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से साफ-साफ बताने को कहा कि देश के हर नागरिक को वैक्सीन देने की उसकी कार्ययोजना क्या है और उसे वह कब तक पूरा कर लेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार कोई सुसंगत जवाब नहीं देती है तो फिर अदालत को आदेश जारी करना पड़ेगा। अदालत के इस सख्त रवैये के बाद ही प्रधानमंत्री को टीवी पर आकर एलान करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि देशव्यापी वैक्सीनेशन का जिम्मा केंद्र सरकार उठाएगी और राज्यों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं डाला जाएगा।

इससे पहले भी देशभर में वैक्सीन को लेकर मचे हाहाकार के बीच राहुल गांधी ने 9 अप्रैल को कहा था कि सरकार को दुनिया भर में इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए मंजूर की गई वैक्सीन को भारत में मंजूरी देनी चाहिए। राहुल का यह बयान आते ही केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेन्स करके कहा कि पार्ट टाइम नेता के तौर पर फेल होने के बाद राहुल गांधी अब फुल टाइम लॉबिस्ट यानी दलाल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि राहुल वैक्सीन बनाने वाली विदेशी फार्मा कंपनियों के लिए दलाली कर रहे हैं। राहुल के खिलाफ अहंकारी तेवरों के साथ अक्सर बदजुबानी करने वाली एक अन्य केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी राहुल को ‘फेल्ड पोलिटिशियन एंड फुल टाइम लॉबिस्ट’ कहा। सोशल मीडिया पर भाजपा की ट्रोल आर्मी ने भी राहुल के खिलाफ खूब अनाप-शनाप लिखा।

लेकिन महज तीन बाद ही यानी 13 अप्रैल को भारत सरकार ने अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूर सभी वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। लेकिन अपनी सरकार के इस फैसले के बाद राहुल गांधी को विदेशी फार्मा कंपनियों का लॉबिस्ट कहने वाले मुंहबली केंद्रीय मंत्रियों को अपने बयान पर जरा भी शर्म नहीं आई। शर्म आने का सवाल भी कहां उठता है, क्योंकि सरकार ही पूरी तरह शर्मनिरपेक्ष हो चुकी है।

वैक्सीन जैसा ही मामला कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच पश्चिम बंगाल में हो रही चुनावी रैलियों का रहा। उस समय कोलकाता हाई कोर्ट ने कुछ जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए रैलियों और रोड शो के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने का जो निर्देश दिया था, उसका जरा भी पालन नहीं हो रहा था और रैलियों का सिलसिला पहले की तरह जारी था। लेकिन जब राहुल गांधी ने बंगाल में अपनी शेष रैलियां रद्द करने का ऐलान किया तो भाजपा पर भी इसका दबाव बना।

हालांकि शुरुआत में केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा नेताओं और उनकी ट्रोल आर्मी ने राहुल के रैलियां रद्द करने के ऐलान का भी मजाक उड़ाया था। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि राहुल के रैली रद्द करने का मतलब है कि उनको अपनी हार का अंदाजा हो गया है। एक अन्य केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि राहुल की रैलियों में आता ही कौन है? इन गैरजरूरी और मसखरे बयानों के बावजूद जब आम लोगों ने राहुल की इस पहलकदमी की सराहना की और भाजपा की चौतरफा आलोचना होने लगी तो उसे भी अपनी रैलियों की संख्या सीमित करने और रैलियों में कम भीड़ जुटाने का एलान करना पड़ा। हालांकि इस एलान के बावजूद चुनाव प्रचार के अंतिम क्षणों तक उसकी रैलियां और रोड शो होते रहे।

इससे पहले राहुल गांधी और कुछ अन्य विपक्षी नेताओं ने देश में बढ़ते कोरोना संकट और वैक्सीन की कमी को देखते हुए सरकार से वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगाने को कहा था तो स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने संसद में कहा था कि भारतीयों की जरुरत को नजरअंदाज कर वैक्सीन का निर्यात नहीं किया जा रहा है। मगर कुछ ही दिनों बाद विभिन्न राज्यों की ओर से वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने की शिकायतें आने लगी तो सरकार ने हालांकि वैक्सीन के निर्यात पर रोक तो नहीं लगाई लेकिन निर्यात को धीमा करने का फैसला लेते हुए कहा गया कि घरेलू जरुरतों को पूरा करने के बाद ही अन्य देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की जाएगी।

राहुल गांधी पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने 45 साल से ज्यादा उम्र वाले हर नागरिक को कोरोना का टीका लगाने की मांग की थी। टीकाकरण के पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाया गया था। उसके बाद से ही राहुल गांधी मांग कर रहे थे कि 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को भी टीका लगाना शुरू करना चाहिए। थोड़ी हीला-हवाली के बाद सरकार ने उनकी यह मांग भी मान ली और एक अप्रैल से 45 से ऊपर की उम्र वालों को भी टीका लगाना शुरू कर दिया। यही नहीं, उसके बाद राहुल गांधी की मांग के मुताबिक सरकार ने 18 वर्ष से अधिक उम्र वालों को भी एक मई से टीका लगाने का ऐलान कर दिया। यह और बात है कि तब तक देश के ज्यादातर राज्यों में वैक्सीन के अभाव में वैक्सीनेशन अभियान लड़खड़ा चुका था।

इसी तरह राहुल गांधी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए लगातार कह रहे थे कि सरकार को सीबीएससी की परीक्षाएं स्थगित कर देनी चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस आशय की मांग की थी। लेकिन भाजपा के तमाम प्रवक्ता, नेता और टीवी चैनलों के एंकर तक इस मांग को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कह रहे थे कि बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। लेकिन 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ बैठक की और 10वीं की परीक्षा रद्द करने तथा 12वीं की परीक्षा टालने का फैसला किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा जरूरी है लेकिन उससे ज्यादा जरूरी बच्चों का स्वास्थ्य है। उनके इस फैसले का जब व्यापक तौर पर स्वागत हुआ तो कुछ ही दिनों बाद उन्होंने दूरगामी राजनीतिक लक्ष्य साधते हुए 12वीं की परीक्षा भी रद्द करने का एलान कर दिया।

इन चंद उदाहरणों के अलावा भी कोरोना वायरस की महामारी को लेकर शुरू दिन से राहुल गांधी जो भी कह रहे हैं, वही हो रहा है। राजनेताओं में राहुल पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने इस महामारी को लेकर सरकार को आगाह किया था। उन्होंने पिछले साल जनवरी महीने में ही सरकार को सचेत किया था, जबकि भारत में कोरोना वायरस का प्रवेश भी नहीं हुआ था। लेकिन उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पूरी सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति का खैरमकदम करने की अंतरराष्ट्रीय तमाशेबाजी में जुटी हुई थी और गृह मंत्री अमित शाह विपक्ष शासित राज्य सरकारों को गिराने के अपने प्रिय खेल के तहत मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराने में मशगूल थे। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और भाजपा के तमाम प्रवक्ता टीवी चैनलों पर बैठकर राहुल गांधी की चेतावनी की खिल्ली उड़ाते हुए उन पर लोगों को गुमराह करने और डराने का आरोप लगा रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को मार्च महीने के आखिरी में कोरोना महामारी की गंभीरता का अहसास तभी हो पाया था, जब कोरोना महामारी भारत में प्रवेश कर अपने पैर फैलाने लगी थी और जिसकी खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आने लगी थीं।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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