Friday, April 19, 2024

हिंदू-मुस्लिम झगड़े की आड़ में मोदी सरकार कर रही है राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथों के हवाले

पता नहीं हम कब समझेंगे कि मोदी सरकार जनता को हिन्दू-मुस्लिम बाइनरी में उलझा कर देश की संपत्ति को एक-एक कर के निजी हाथों के हवाले करती जा रही है। कल ही रेलवे के निजीकरण का रास्ता साफ कर दिया गया। केंद्र सरकार की एक उच्च स्तरीय समिति ने देश में 100 रेलमार्गों पर लगभग 150 प्राइवेट ट्रेनों के परिचालन को मंजूरी दे दी है। आज हमारे शहर के पेपर में भी जिक्र हैं कि यहां से दिल्ली और पटना के लिए दो निजी ट्रेन चलाई जाएगी।

न सिर्फ देशी कम्पनियों को बल्कि विदेशी कंपनियां को रेलवे ने आमंत्रित किया है। समिति की सिफारिश है कि भारतीय कंपनियों के साथ-साथ उन विदेशी कंपनियों को भी इसमें हिस्सा लेने की मंजूरी दी जाए, जिनका रेलवे तथा पर्यटन सेक्टर्स में काम करने का अनुभव हो और कम से कम 450 करोड़ रुपये की पूंजी हो।

रेलवे कह रहा है कि जिस रूट पर चलेगी उस रुट पर प्राइवेट ट्रेन के खुलने के लिए निर्धारित समय के 15 मिनट के भीतर कोई दूसरी रेगुलर ट्रेन नहीं चलाएगा। और वह यह भी कह रहा है कि इस योजना के मुताबिक, किसी रूट पर अपने गंतव्य तक पहुंचने में प्राइवेट ट्रेन उतना ही समय लेगी, जितना उस रेलमार्ग पर सबसे तेज चलने वाली सरकारी ट्रेन लेती है।

यानी साफ है कि प्राइवेट ऑपरेटर की सुविधा के लिए रेलवे अपनी ट्रेन को लेट कराएगा और ऐसा भी नहीं है कि प्राइवेट ट्रेन जल्दी अपने गंतव्य तक पहुंचेगी। वह भी सरकारी ट्रेन जितना ही समय लेगी तो यही काम क्या रेलवे अपने संसाधनों के साथ नहीं कर सकता था ?

सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन प्राइवेट कंपनियों को मनमाना किराया तय करने और अपनी मर्जी से स्टॉपेज तय करने की सुविधा दी जा रही है, प्राइवेट ऑपरेटर को यह छूट है कि वह किसी भी कंपनी से कोच और इंजन खरीदने के लिए स्वतंत्र है यानी जिस तरह से सस्ते चीनी सामानों से देश के मार्केट भरे हुए हैं ऐसा ही रेलवे के क्षेत्र में होने जा रहा है। ये नयी कंपनियां सीधे विदेशी कारखानों से सामान खरीदेंगी ओर यहां के रेलवे कारखानों पर ताला डाला जाएगा।

जिन 100 रेलमार्गों पर 150 ट्रेनें चलाए जाने की बात की जा रही है वह सब फायदेमंद रुट हैं और फायदेमंद मार्गों पर निवेश को प्रोत्साहित करने की सरकारी नीति अनिवार्य रूप से कम यात्री वाले मार्गों पर सेवाओं को बंद करने से और उन पर बढ़ते किराए का कारण बन जाएगी। यह रेल के निजीकरण के अंतर्राष्ट्रीय अनुभव को देखते हुए कहा जा सकता है।

विश्व के जिन देशों ने रेलवे का निजीकरण किया, उन्हें पुन: राष्ट्रीयकरण के लिए विवश होना पड़ा है। ब्रिटेन ने भी रेलवे का निजीकरण किया था लेकिन अब वहां भी जोर-शोर से एक एक करके रेल ट्रैक का राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है। अर्जेटीना को भी दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी के बाद वर्ष 2015 में रेलवे का फिर से राष्ट्रीयकरण करना पड़ा है। न्यूजीलैंड ने वर्ष 1980 में रेलवे का निजीकरण किया, लेकिन भारी घाटे के बाद वर्ष 2008 में पुन: राष्ट्रीयकरण के लिए उसे मजबूर होना पड़ा। यही स्थिति आस्ट्रेलिया में भी देखी गई, जहां ‘गिव अवर ट्रैक बैक’ आंदोलन के बाद सरकार ने रेलवे को फिर से अपने हाथों में लिया है।

विश्व मे जो रेलवे के निजीकरण के अनुभव हैं वह यही बताते हैं कि रेलवे के निजीकरण के पक्ष में दी गई कोई भी दलील सच नहीं होती है। प्राइवेट ऑपरेटर को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है, उसे यात्रियों के जेब से पैसा निकालना आता है। वह जानता है कि जब सबसे ज्यादा अर्जेंसी होगी तब वह सबसे ज्यादा किराया आसानी से वसूल कर लेगा। इस साल दिवाली पर देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस का किराया उसी रुट के हवाई किराए को टक्कर दे रहा था।

निजीकरण के समर्थक भी अच्छी तरह से जानते हैं कि प्राइवेट ऑपरेटर को जनता की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने से कोई मतलब नहीं है और न ही उसके लिए सामाजिक लक्ष्य हासिल करना कोई जिम्मेदारी होती है। बल्कि वह सिर्फ और सिर्फ मुनाफा कमाना जानता है लेकिन उसके बाद भी आपके आस पास ऐसे लोग पाए जाते हैं जो रेलवे जैसी आधारभूत सेवाओं के निजीकरण की कोशिशों पर खुश हो रहे होंगे।

(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ जंग का एक मैदान है साहित्य

साम्राज्यवाद और विस्थापन पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में विनीत तिवारी ने साम्राज्यवाद के संकट और इसके पूंजीवाद में बदलाव के उदाहरण दिए। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर शोषण का मुख्य हथियार बताया और इसके विरुद्ध विश्वभर के संघर्षों की चर्चा की। युवा और वरिष्ठ कवियों ने मेहमूद दरवेश की कविताओं का पाठ किया। वक्ता ने साम्राज्यवाद विरोधी एवं प्रगतिशील साहित्य की महत्ता पर जोर दिया।