Thursday, March 28, 2024

ख़ास रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश और बिहार में भीषण तबाही के रास्ते पर कोरोना

देश में कोविड-19 संक्रमितों की संख्या एक लाख के पार चली गई है। राज्यवार बात करें तो महाराष्ट्र में कोविड संक्रमितों की संख्या सबसे ज़्यादा है। यहां संक्रमितों की संख्या 35 हजार के पार है। देश के चार सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और तमिलनाड़ु से सबसे ज्यादा बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर लौटे हैं। 

आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश और बिहार कोरोना संक्रमण के मामले में महाराष्ट्र जैसे राज्यों को बहुत पीछे छोड़ने वाले हैं। दोनों राज्यों की सरकारों ने कोविड-19 महामारी को यूपी बिहार के गांव मोहल्ले आने का न्योता दे दिया है। 

आज की तारीख में उत्तर प्रदेश के समस्त 75 जिलों में कोविड-19 संक्रमित मरीज मिले हैं। आगरा, कानपुर लखनऊ, नोएडा गाजियाबाद जैसे नगरों तक सीमित रहा कोविड-19 संक्रमण का कुशीनगर, मिर्जापुर सुल्तानपुर, गोंडा, जैसे बेहद पिछड़े व ग्रामीण इलाके वाले जिलों में दस्तक देना चिंता की बात है। देवरिया, कुशीनगर जैसे पिछड़े इलाके में मिले कोविड-19 के अधिकांश केसों के ट्रवेल हिस्ट्री है। और ये सब दिल्ली-मुंबई जैसे कोविड-19 संक्रमित नगरों से आए हैं। 

महाराष्ट्र से आने वाले मजदूरों की नहीं हो रही प्रॉपर जांच

11 मई को मुंबई से बस्ती (उत्तर प्रदेश) के लिए एक श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन चली। उसमें यात्रा कर रहे एक यात्री विजय कुमार उपाध्याय की ट्रेन में मौत हो गई। मरने के बाद वो 24 घंटे तक सफर करते रहे। उस कोच में कुल 54 यात्री और थे। जब ट्रेन लखनऊ पहुंची तो यहां जीआरपी के दो सिपाहियों ने उनके शव को उतारा। 

इसके बाद डीएम व सीएमओ के निर्देश पर कामगार का केजीएमयू अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया गया। लापरवाही की हद देखिए कि उसकी कोरोना रिपोर्ट आए बगैर ही शव को उसके गृह जनपद अयोध्या भिजवा दिया गया। जहां उसका अंतिम संस्कार भी कोरोना प्रोटोकॉल के मुताबिक नहीं हुआ। बाद में कामगार की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव निकली तो रेलवे से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक किसी को जवाब देते नहीं बना। 

बता दें कि अयोध्या जिले के थाना गोसाईंगंज का रहने वाला 42 वर्षीय कामगार मुंबई में रहकर अपने साले के साथ गेट वे ऑफ इंडिया पर फोटोग्राफी कर परिवार पालता था। लॉकडाउन में काम बंद होने के बाद वह परिवार सहित मुंबई से बस्ती जाने वाली ट्रेन पर 11 मई सोमवार दोपहर डेढ़ बजे सवार हो गया। इटारसी के आस-पास उसकी मौत हो गई थी। परिवार को झांसी के पास पता चला, लेकिन शव को रास्ते में कहीं नहीं उतारा गया। ट्रेन जब मंगलवार को दोपहर दो बजकर 35 मिनट पर लखनऊ आई तो जीआरपी ने उसके शव को उतारकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। उस कोच में 54 यात्री और थे।  

जौनपुर के डीएम दिनेश कुमार ने बताया कि 15 मई को जाफराबाद थाना क्षेत्र के नाथूपुर निवासी प्रदीप कुमार गौतम (34) गुरुवार को मुंबई से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से प्रयागराज आया था। वहां से बस से लाकर मुंगराबादशाहपुर के सार्वजनिक इंटर कालेज के शेल्टर होम में क्वारंटाइन में रखा गया था। जहां उसकी मौत हो गई थी।

जौनपुर में कोरोना के सात नए पॉजिटिव केस आने से जिले में कोरोना एक्टिव की संख्या बढ़कर 24 हो गई है।

लॉकडाउन में बरती जा रही प्रशासनिक लापरवाही के चलते लगातार जिले में आंकड़े बढ़ रहे हैं। जौनपुर जिले में एक लाख से अधिक प्रवासी मजदूर दिल्ली, मुंबई, गुजरात से अपने गांव पहुंच चुके हैं। लेकिन ये सभी क्वारंटाइन के बजाय लगातार गांव से लेकर बाजार तक घूम रहे हैं। शिकायत के बाद ऐसा आरोप है ना तो उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराया जा रहा है ना ही उनको बाजारों और गांव में घूमने से पुलिस रोक पा रही है। जिसके चलते जिले में कोरोना पॉजिटिव की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है। शनिवार को 22 कोरोना मरीज प्रतापगढ़ के कुंडा, सांगीपुर, सदर, रानीगंज और पट्टी इलाके के रहने वाले हैं। वहीं सबसे अधिक पॉजिटिव केस कुंडा इलाके में मिले हैं।

महाराष्ट्र से आने वाले प्रवासी यात्रियों का प्रॉपर मेडिकल चेक अप नहीं हो रहा है। प्रयागराज टिकरी गांव सील रहे घरों के अंदर थाना उतराव अंतर्गत तहसील हंडिया ब्लाक सैदाबाद गांव टिकरी में मुंबई से आया हुआ एक लड़का कोरोना वायरस से ग्रसित पाया गया।

बस्ती जिले में 4 नए कोरोना पोजिटिव केस मिले हैं सभी महाराष्ट्र से आए थे। 

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में 16 मई शनिवार को 22 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। इस प्रकार प्रतापगढ़ में कोरोना मरीजों की संख्या 39 पहुंच चुकी है। प्रतापगढ़ के सीएमओ अरविन्द श्रीवास्तव ने बताया कि मुंबई से लौटे श्रमिक और पॉजिटिव मरीज के परिजनों में कोरोना की पुष्टि होने से आंकड़ा बढ़ा है।

वाराणसी में कल 5 नये केस मिले कुल आंकड़ा 101 हो गया। सबकी ट्रवेल हिस्ट्री है।

गौतम बुद्ध नगर में 31 नए कोरोना केस मिलने से आँकड़ा 286 हुआ।

संभल जिले में भी 4 नए केस मिले कुल आँकड़ा 55 हुआ। ये आँकड़े प्रवासी मजदूरों के लौटने के बाद बढ़े हैं। 

उत्तर प्रदेश का जिलेवार कोविड-19 केस

आगरा 827, मेरठ 331, कानपुर नगर 317, लखनऊ 306, गौतमबुद्धनगर 300, सहारनपुर 218, फिरोजाबाद 203, गाजियाबाद 194, मुरादाबाद 169, वाराणसी 117, अलीगढ़ 99, बस्ती 98, बुलंदशहर 95, हापुड़ 87, रामपुर 84, बहराइच 62, रायबरेली 58, संभल 55, मथुरा 51, बिजनौर 49, सिद्धार्थनगर 49, प्रयागराज 46, प्रतापगढ़ 45, गाजीपुर 43, जालौन 41, संत कबीर नगर 40 शामिल हैं।

इसके अलावा शामली में 37, गोंडा 36, लखीमपुर खीरी 35, सीतापुर 34, अमरोहा 33, बलरामपुर 32, जौनपुर 30, झांसी 30, मुजफ्फरनगर 30, बाराबंकी 29, कौशांबी 29, अयोध्या 7, सुल्तानपुर 28, अमेठी 26, बागपत 26, देवरिया 25 , कन्नौज 25, मिर्जापुर 24, पीलीभीत 24, फतेहपुर 23, महाराजगंज 23, श्रावस्ती 22, अंबेडकरनगर 21, बांदा 21, गोरखपुर 21, औरैया 20, बरेली 20, फर्रुखाबाद 20, हाथरस 20, हरदोई 19, बदायूं 17, चित्रकूट 16, आजमगढ़ 14, कासगंज 13, बलिया 12, चंदौली 12, एटा 11, भदोही 9, कानपुर देहात 7, कुशीनगर 7, शाहजहांपुर 7, उन्नाव 6, इटावा 4, मऊ 4, महोबा 3, सोनभद्र 3, हमीरपुर 2, और ललितपुर 1 केस कोरोना पॉजिटिव मिला है।

बिहार में संक्रमण बढ़ने की दर हुई तेज, दिल्ली से बिहार लौटा हर चौथा प्रवासी मजदूर कोविड-19 पॉजिटिव

बिहार सरकार पहले ही संसाधनों का रोना रो रही है। वहीं राज्य में कोरोना बेकाबू होता दिख रहा है। बिहार में कोरोना ने तेजी से पांव फैलाते हुए डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों को शिकार बना लिया है। वहीं राज्य के सभी जिले वायरस की मार से कराह रहे हैं। राज्य में मिलने वाले कोविड-19 संक्रमितों में से अधिकतर प्रवासी मजदूर हैं जो हाल ही में कहीं न कहीं से यात्रा करके अपने घर लौटे हैं। 

18 मई तक बिहार लौटे 8337 प्रवासी मजदूरों की कोविड-19 टेस्टिंग की गई, जिनमें आठ फीसदी लोगों को कोविड-19 संक्रमण की पुष्टि हुई है। ये राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना पुष्टि की दर 4 प्रतिशत से ठीक दोगुना है इनमें से दिल्ली से लौटे 835 प्रवासी मजदूरों के नमूने लिए गए जिनमें 218 के संक्रमण की पुष्टि हुई। कोरोना की पुष्टि की ये दर 26 फीसदी से ज्यादा है जबकि राष्ट्रीय राजधानी में ये दर करीब सात फीसदी है।

वहीं पश्चिम बंगाल से लौटे 265 मजदूरों के नमूने लिए गए, जिनमें से 33 को संक्रमण की पुष्टि हुई है। कोविड-19 की ये दर 12 फीसदी है जबकि बंगाल में पॉजिटिविटी दर तीन फीसदी है। 

हरियाणा से 390  प्रवासी मजदूरों की टेस्टिंग में 36 को कोविड-19 की पुष्टि हुई। यहां कोविड-19 संक्रमण पुष्टि की दर 9 फीसदी रही जबकि हरियाणा में यह महज 1.16 फीसदी है। 

इसी तरह गुजरात से लौटे प्रवासियों के 2,045 नमूनों में से 139 की टेस्टिंग पॉजिटिव रही। यहां पॉजिटिविटी दर 6.8 फीसदी थी और गुजरात में यह 7.9 फीसदी है। उत्तर प्रदेश से लौटे प्रवासियों के 704 नमूनों में से 21 को कोरोना की पुष्टि हुई जो 3 फीसदी की दर बैठती है और राज्य में यह दर 2.59 फीसदी है।

वहीं बिहार राज्य में कोविड-19 संक्रमितों की संख्या 1,579 हो गई है। जबकि राज्य के सभी 38 जिलों में पॉजिटिव लोग मिले हैं। बिहार में कोरोना के जिलावार आंकड़े-

पटना 167, मुंगेर 133, रोहतास 91, बेगूसराय 82, नालंदा 78, मधुबनी 79, खगड़िया 70, सीवान 45, बक्सर 64, गोपालगंज 64, भागलपुर 59, जहानाबाद 58, बांका 51, कैमूर 44, नवादा 41, भोजपुर 38, कटिहार 35. पूर्णिया 31, मुजफ्फरपुर 30, सुपौल 27, औरंगाबाद 26, पश्चिमी चंपारण 25, शेखपुरा 24, दरभंगा 22, सहरसा 22, मधेपुरा 20, पूर्वी चंपारण 19, अरवल 17, समस्तीपुर 16, वैशाली 15, जमुई 15, लखीसराय 14, किशनगंज 14, सारण 14, गया 11, सीतामढ़ी 9, शिवहर 5, अररिया 4

 क्वारंटाइन सेंटर में भी नहीं रखा जा रहा सबको

क्वारंटाइन सेंटर सिर्फ हाथी के दिखाने के दांत साबित हो रहे हैं। सरकार ने समुचित तैयारी नहीं की जिसके चलते अधिकांश क्वारंटाइन सेंटर सिर्फ़ आँकड़े में गिनाने के लिए नामांकित किए गए संख्या भर हैं। 

बिहार के कटिहार में बाहर से आए कुछ युवक बस से उतरकर क्वारंटाइन सेंटर जाने की बजाए अपने गांव जाने लगे। ग्राम रक्षा दल के दलपति ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए बारसोई SDO को फोन करके इसकी जानकारी देनी चाहिए। SDO साहब को उसकी बात रास नहीं आई और उहोंने दलपति को फोन पर धमकी और गालियां दी।

बता दें कि बिहार पंचायत राज अधिनियम और बिहार पंचायत ग्राम रक्षा दल नियमावली के तहत ग्राम रक्षा दल के दलपति को कई जिम्मेदारियां दी गई हैं। जिनमें से एक किसी आपात स्थिति में SDO को रिपोर्ट सौंपने की है। इस घटना से दलपति के आत्मसम्मान को इतनी ठेस पहुंची है कि वो आत्महत्या तक की बात कर रहा है।

कई मजदूरों का कहना है कि वो जिस बस से आए वो उन्हें  हाजीपुर चौक पर छोड़कर चली गई। प्रशासन से हमने संपर्क किया तो वो बोले कि कुछ नहीं होगा घर जाओ। तो हम लोग रामस्ती चौक पर आए। और भाड़ा देकर घर आ गए। बस में कोई अधिकारी नहीं था।

एक बस कुछ यात्रियों को मुजफ्फरपुर से लेकर आई और पासमान चौक पर छोड़ दिया। 25-30 आदमी को, कुछ सराय में कुछ को बरौन में छोड़ दिया। बोला घर जाओ हमने कहा नहीं हम घर नहीं जाएंगे बिना चेकअप करवाए वो बोले नहीं चले जाओ कुछ नहीं होगा। तो हम लोग 12 बजे रात पैदल ही 7-8 किलोमीटर सदर अस्पताल गए।    

वहीं बिहार के रून्नीसैदपुर के शिवनगर गांव में मुंबई से पैदल चलकर आए प्रवासी मजदूरों को प्रशासन ने क्वारंटाइन सेंटर भेजने से इनकार कर दिया है। प्रशासन ने इन लोगों को होम क्वारंटाइन में रहने की नसीहत दी है। जब ये प्रवासी मजदूर अपने घर पहुंचे तो इनके परिजनों ने इन्हें घर में रखने से इनकार कर दिया। स्थानीय सरपंच द्वारा भी प्रशासन को इस मामले की जानकारी दी गई बावजूद इसके भी इन लोगों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। ऐसे में इन लोगों को जंगल में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। मुंबई से लौटे प्रवासी मजदूर, महिलाएं और बच्चे कड़ी धूप में रहने के लिए मजबूर हैं। दो वक्त का खाना भी इन्हें बड़ी मुश्किल से मिल रहा है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ जंगल में रह रहे इन लोगों को जंगली जानवरों का खतरा भी है।

लॉकडाउन उल्लंघन की सजा से बचने के लिए अपनी पहचान छुपाते हैं लोग

प्रवासी मजदूरों को जहां हैं वहां खाने, रहने या उन्हें वापस उनके गृह जिले में लाने के लिए यूपी और बिहार की सरकार ने कोई समुचित प्रणाली नहीं विकसित की। न ही कोई इच्छाशक्ति दिखाई। नतीजा ये हुआ कि पैदल और निजी साधनों, ट्रकों में भर भरकर लोग अपने गृह-जिले के लिए निकल लिए। 

एक क्रूर प्रशासक सौ समस्याओं को जन्म देता है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ़ सख्त रवैया अपनाने और सख्त दंड का प्रावधान किया है। ताकि लोग अपने घरों से बाहर न निकलें और जहां हैं वहीं रहें। लेकिन मरता क्या न करता वाली तर्ज़ पर जान का जोखिम लेकर प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र और दिल्ली जैसी कोविड-19 संक्रमित कैंटोनमेंट जोन से पैदल और जोखिमपूर्ण तरीके से ट्रकों पर ठूंस-ठूंसकर अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ़ लॉकडाउन उल्लंघन के केस दर्ज करके कार्रवाई की जा रही है ऐसे में लोगों की सजा से बचने के लिए यथासंभव कोशिश रहती है कि वो अपनी जानकारी प्रशासन से छुपा ले जाते हैं। 

एक दूसरा कारण ये भी है कि क्वारंटाइन सेंटरों की जो तस्वीरें, जो वीडियो सामने आए हैं उससे लोगों में एक धारणा ये बनी है कि क्वारंटाइन सेंटर नए किस्म का यातनागृह हैं। कई लोगों की क्वारंटाइन सेंटर में मौत और कई लोगों द्वारा क्वारंटाइन सेंटर में आत्महत्या की घटनाएं कुछ ऐसा ही तस्वीर बनाती हैं लोगों के दिल-ओ-दिमाग में।  

क्वारंटाइन सेंटर संक्रमित या संदेहास्पद लोगों के लिए बनाए गए थे प्रवासी मजदूरों के लिए नहीं

देश के तमाम नगरों से जितनी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का अपने घर की ओर पलायन हुआ है उतने का अनुमान सरकार और प्रशासन ने लगाया ही नहीं था या यूँ कहें बिल्कुल ही नहीं लगाया था। दूसरी और सबसे प्रमुख बात ये है कि देश में क्वारंटाइन सेंटर संक्रमित या संक्रमित के संपर्क में आए लोगों (संदेहास्पद मरीजों) को ध्य़ान में रखकर बनाए गए थे प्रवासी मजदूरों के पलायन को रखकर नहीं। तो क्वारंटाइन सेंटरों की संख्या और क्षमता सीमित है। 

जबकि अपने गृह जिलों की ओर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या लाखों में है। जाहिर है सरकार और प्रशासन के पास प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन करने के लिए न तो संसाधन है न ही व्यवस्था। ऐसे में वो लोगों को होम क्वारंटाइन में रहने की सलाह भर ही दे सकती है। जबकि सच्चाई ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के पास न तो इतनी जगह होती है न ही सामर्थ्य कि उनके घर में एक भी कमरा फालतू हो। तो किसी ग्रामीण प्रवासी मजदूर के लिए जिसका पूरा परिवार एक झोपड़ी या छप्पर के नीचे रहता हो होम क्वारंटाइन शर्तों को पूरा कर पाना मुमकिन ही नहीं है।  

सरकार ने 2 महीने में प्रवासी मजदूरों के सुरक्षित घर वापसी का कोई मेकैनिज्म क्यों नहीं विकसित किया

उत्तर प्रदेश और बिहार के सबसे ज़्यादा मजदूर प्रवासी बनकर देश के तमाम शहरों में अपना अमूल्य श्रम देते हैं। कल कारखाने, कंपनियां चलाते हैं। बाजार, दुकान, यातायात चलाते हैं। डिलीवरी पर्सन बनकर घर-घर सामान पहुँचाते हैं। लेकिन लॉकडाउन थोपने के बाद न तो इनकी मदद को वो सरकार आगे आईं जहां रहकर ये अपनी सेवा अपना श्रम दे रहे थे न ही वो राज्य जहां से ये आए थे। केंद्र सरकार की तो बात ही क्या करें। 2 महीने के लॉकडाउन में शुरू में अगर सरकारें चाहतीं तो इन मजदूरों के खाते में नगद पैसे, राशन और कंपनी कारखाने आवास में रहने वाले आश्रयहीन मजदूरों को आश्रय देकर उन्हें भूख, आशंका, और अविश्वास से बचा सकती थी। दो महीने कोई थोड़ा समय नहीं होता।

इन 2 महीने के समय में भी प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचाने का कोई मेकैनिज्म सरकार ने नहीं विकसित किया। उसका एक कारण ये भी था कि केंद्र और तमाम राज्य सरकारों की प्राथमिकता में प्रवासी मजदूर थे ही नहीं। नतीजा ये हुआ कि तमाम राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूर भूख, आशंका और अविश्वास से भयभीत हो उठे। और पैदल, ट्रक, ऑटो, साइकिल ठेला रिक्शा जिसका जैसा जुगाड़ बना वैसे ही अपने घर की ओर चल पड़ा। इस दौरान फिजिकल डिस्टेंसिंग का ख्याल रख पाना गरीब गुरबे के मजदूरों के लिए संभव ही नहीं था। एक एक ट्रक में भूसे की तरह भरकर गए वो। कंकरीट मिक्सर मशीन और कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों में बैठकर गए वो और उनके साथ कोविड-19 का संक्रमण भी यूपी बिहार के हर जिले में पहुंचा। लेकिन इसके लिए मजदूर नहीं सरकारें जिम्मेदार हैं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।) 

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