Saturday, April 20, 2024

मोदी-शाह के मनमाफिक करने और डर की सियासत पर लगा अंकुश

राम मंदिर निर्माण का मामला हो या हिंदुत्व का मामला हो, धारा 370 हटाना हो, तीन तलाक या फिर नागरिकता संशोधन कानून, हर मामले में भाजपा का एकमात्र एजेंडा मुस्लिमों के खिलाफ माहौल बनाकर अपने परंपरागत हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करना रहा है। जामिया यूनिवर्सिटी में पुलिस का कहर भी इसी बात को दर्शाता है। भाजपा के गठन से लेकर अब तक की राजनीति की समीक्षा करें तो उसकी पूरी सियासत हिन्दुओं के वोटबैंक को बांधे रखने पर केंद्रित रही है।

भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को उदारवादी हिन्दुओं की श्रेणी में रखकर देखा जाता रहा है। लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा में जो पौध तैयार की वह कट्टर हिन्दुत्व की राह पर चलने वाली है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह आडवाणी की पौध के सबसे अधिक कटीले पेड़ माने जाते हैं। राजनीति की गहरी समझ रखने वाले लोग तभी समझ गए थे, जब मोदी ने राजनाथ सिंह को गृहमंत्री पद से हटाकर अपने पुराने सहयोगी अमित शाह को गृहमंत्री बनाया था कि अब ये दोनों मिलकर गुजरात का एजेंडा पूरे देश में लागू करेंगे। मतलब मोदी के दूसरे शासनकाल में आरएसएस का एजेंडा पूरी तहर से लागू होगा।

वही हुआ, जिसकी आशंका व्यक्त की जा रही है। जब देश में बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे विकराल समस्या का रूप धारण कर चुके हैं, ऐसे समय में मोदी सरकार ने सारे मुद्दों को दरकिनार कर उन मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर लिया जो सीधे मुस्लिमों के खिलाफ जाकर हिंदुओं की सहानुभूति बटोरने वाले थे।

धारा 370 हटाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह की भाषा उनके भाषण में देखिए तो वह बार-बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि 370 धारा के हटने पर विपक्ष कह रहा था कि ‘देश में खून की नदियां बह जाएंगी पर देश में तो एक पटाखा भी नहीं फूटा है।’ उनका मतलब साफ था कि उन्होंने विपक्ष के साथ ही देश के मुसलमानों को भी इतना डरा दिया है कि अब ये लोग कुछ भी करेंगे तब भी कोई कान तक नहीं फड़फड़ाएगा।

दूसरी बार प्रचंड बहुमत आने के बाद भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको साथ लेकर चलने की बात कही हो। बाबा साहेब और संविधान की तारीफ करते हुए एक नये भारत के निर्माण की बात कही हो पर उनके दूसरे कार्यकाल में अब तक जो कुछ भी हुआ है वह धर्म और जाति के आधार पर हुआ है। कहने को तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बार-बार हिन्दुस्तान के मुस्लिमों को डरने की कोई जरूरत नहीं कहते हों पर जमीनी हकीकत यह है कि मोदी सकार में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे देश का मुसलमान अपने को सुरक्षित महसूस करता।

यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री का थोड़ा सा भी ध्यान देश के भाईचारे पर होता तो सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर बनने का रास्ता प्रसश्त करने के तुरंत बाद ये लोग नागकिरता संशोधन कानून न लाते। दरअसल ये लोग अति आत्माविश्वास में वह सब कुछ करके दिखा देना चाहते थे, जो लोग सोच भी नहीं सकते। प्रचंड बहुमत का मतलब यह नहीं है कि आप कुछ भी कर सकते हैं। इन लोगों ने यह सोच लिया था कि अब उनके डर से पूरा देश सहमा हुआ है। जो मर्जी आए करो। देश और संविधान की रक्षा के लिए बनाए गए तंत्रों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया के साथ ही देश के राष्ट्रपति भी उनकी कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं। विपक्ष तो देश में न के बराबर ही है।

विपक्ष ही क्यों मोदी और शाह ने भाजपा में भी सांसदों और दूसरे नेताओं को अपनी कठपुतली बनाकर रखा हुआ है। खुद भाजपा के अंदर जो बातें निकलकर सामने आती रही हैं, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार में मोदी-शाह के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति का कोई वजूद नहीं।

जो लोग नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को मुस्लिमों का विरोध समझ रहे हैं वे गलती कर रहे हैं। इस आंदोलन में मुस्लिमों के साथ ही दलित, पिछड़ों के अलावा सवर्ण समाज के लोग भी हैं। दरअसल यह वह गुस्सा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दमनकारी नीतियों के चलते दबा रखा था। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में बेरोजगार युवा हैं, जो मोदी सरकार से नाराज हैं।

पूर्वोत्तर के बाद जब यह आंदोलन दिल्ली और उत्तर प्रदेश में आया तो इसने विकराल रूप ले लिया है। उत्तर प्रदेश में 18 लोगों के मरने की खबर है। दिल्ली में जामिया मिलिया, जाफराबाद, सीलमपुर, जामा मस्जिद पर हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, संभल, मेरठ, अलीगढ़, बिजनौर, मुजफ्फरनगर में भी आंदोलन हिंसक हो गया है। वैसे भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों की संपत्ति नीलाम करके वसूलनी की बात कही है। बिहार में भी आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया है।

बिहार में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। इस आंदोलन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सक्रिय भागीदारी रही है। भाजपा तो सोनिया गांधी के ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ वाले बयान को आंदोलन से जोड़कर देख रही है। असददुदीन ओवैसी को भाजपा ने आज का जिन्ना करार दिया है।

(चरण सिंह पत्रकार हैं और आजकल नोएडा से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक में कार्यरत हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।