Friday, March 29, 2024

वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत को मिली पाताल की जगह!

किसी भी देश की जनता या वहां का समाज तभी खुश रह सकता है,जब वह अपने वर्तमान समय में हर तरह से सुखी हो, आत्मसंतुष्ट हो और अपने भविष्य के प्रति किसी भी प्रकार से आशंकित या सशंकित न हो, आज भारत के लोगों में वर्तमान समय के सत्ता के कर्णधारों की दुर्नीतियों और गलत नीतियों से उपर्युक्त वर्णित ये दोनों चीजें भारत में बिल्कुल सिरे से गायब हैं, आज भारत की समस्त जनता अपने वर्तमान जीवन की दुरूहताओं और परेशानियों से भी दुःखी, परेशान और निराश है तथा मानसिक रूप से बेहद तनाव में है तथा भविष्य के प्रति भी बुरी तरह से सशंकित व भयाक्रांत है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 के अनुसार दुनिया में शीर्ष पर रहने वाले देशों जैसे फीनलैंड, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क आदि देशों में वहां की सरकारें अपने लोगों के जीवन का रास्ता सुगम और आरामदेह बनाने के लिए जितना संभव हो सकता है, उससे भी ज्यादा प्रयत्नशील हैं। उदारणार्थ उन देशों में ज्यादातर देशों में हफ्ते में केवल 5 दिन का कार्यदिवस और प्रतिदिन सिर्फ 4 घंटे के कार्य का समय होता है, कार्यस्थल पर उनको दी गई काम की जिम्मेदारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए हर तरह से आरामदायक और उनकी शारीरिक व मानसिक क्षमता के अनुरूप होता है।

इन खुशहाल देशों में भविष्य में काम की गारंटी, बुढ़ापे में पेंशन मिलने की गारंटी, छुट्टियों की सुविधा और वेतन इतनी ज्यादा कि वहाँ सभी लोग अपना जीवन खूब बढ़िया और खुशहाल होकर जीते हैं, वहां कोई भ्रष्टाचार नहीं, कोई रिश्वत नहीं, कोई जातिवादी वैमनस्यता नहीं, कोई धार्मिक कटुता से दंगे-फसाद नहीं, कोई मॉब लिंचिंग नहीं, वहां के किसान अपनी फसलों की जायज कीमत पाते हैं, अपवाद स्वरूप किसान को खुले बाजार में उनके फसल की कीमत उस फसल के लागत मूल्य से कम मिलती है, तो उस स्थिति में वहां की सरकारें सब्सिडी के रूप में स्वयं उनकी भरपाई किसानों को कर देतीं हैं, इसीलिए वहाँ अपनी फसल की साल-दर-साल उचित मूल्य न मिलने की स्थिति में एक भी किसान खुदकुशी को भारतीय किसानों जैसे बाध्य नहीं है।

वहाँ अपने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए कोई भी अभिभावक परेशान नहीं है, वहाँ शोषण के लिए एक भी पब्लिक स्कूल मतलब प्राइवेट स्कूल नहीं है, वहाँ के सभी बच्चे हर सुख-सुविधा से सम्पन्न सरकारी स्कूलों में लगभग निःशुल्क या नाममात्र की फीस में और पौष्टिक और स्वच्छ आहार के साथ प्राइमरी से 12 वीं तक की कक्षाओं में पढ़ते हैं। उसके बाद भी उच्च शिक्षा संस्थानों में फीस इतनी ही निर्धारित की जाती है कि वहां हर बच्चे उच्च शिक्षा भी प्राप्त कर लें। वहां हर छात्र को ऐसी तकनीकी या उपयोगी शिक्षा दी जाती है कि वे शिक्षा पूर्ण करते ही किसी न किसी रोजगार में लग जाते हैं। वहां की सरकारें अपने हर नागरिक की अच्छी शिक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और रोजगार की सुनिश्चित गारंटी देती हैं।

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 इस दुनिया के सबसे टॉप के सुखी देशों के नीतियों के ठीक विपरीत भारत में वर्तमानसमय की सरकार के कर्णधार इस संपूर्ण देश की जनता को तनाव, बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, भुखमरी, दंगे-फसाद आदि के नरक में धकेलने के लिए पूरी तरह आमादा और उतावले हैं, हजारों सालों से छिटपुट अपवादों को छोड़ दें तो यहां सभी धर्मों और जातियों के लोगों के मिल-जुलकर रहने की गंगा-जमुनी संस्कृति में भी पलीता लगाकर इस देश को जातिवाद व धार्मिक वैमनस्यता तथा धार्मिक संकीर्णता की आग में झोंककर दंगे कराकर हिन्दू-मुस्लिम समुदायों का ध्रुवीकरण करके यहां की बहुसंख्यक धर्मभीरु, अशिक्षित व मूढ़ हिन्दुओं के वोटों के बल पर सत्ता में बने रहना चाहते हैं, वे शिक्षा में सुधार करने के कदमों के ठीक विपरीत यहां के शिक्षा का निजीकरण करके, ऊँची फीस बढ़ाकर, सरकारी स्कूलों के भवन नीलाम करके बहुसंख्यक, गरीब व मध्यवर्ग को शिक्षा से वंचित करने की अक्षम्य साजिश कर रहे हैं, रोजगार पैदा करने के बजाय तमाम सरकारी व सार्वजनिक प्रतिष्ठित संस्थानों को बेचकर, उसमें कार्यरत करोड़ों कर्मचारियों और अधिकारियों को बेरोजगारी के दलदल में धकेल रहे हैं।

बेरोजगारी से त्रस्त युवाओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, ठेके के शिक्षकों आदि द्वारा रोजगार मांगने पर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में वहां का मठाधीश कथित योगी मुख्यमंत्री द्वारा उन पर पुलिस की लाठियों से सिर फोड़कर उनका बुरी तरह दमन किया जाता है, श्रम सुधार के नाम पर वर्तमान 8 घंटे के कार्यसमय को घटाने के बजाय उसे 12 घंटे कर दिया गया है, उन कंपनियों को, जिनमें 300 तक कर्मचारी या मजदूर हैं अब उन्हें यह अमानवीय अधिकार दे दिया गया है कि वे जब चाहे अपने कर्मचारियों और मजदूरों को निकाल बाहर कर उन्हें भूखों मरने के लिए सड़क पर छोड़ सकते हैं। यहां वर्तमान समय की सरकार के कर्णधारों को आम जनता, किसानों, मजदूरों के जीवन और उनके सुख-दुःख से कोई मतलब ही नहीं है, उन्हें केवल अडानी और अंबानी जैसे पूँजीपतियों के खरबपति बनवाने में रूचि है।

आज अंबानी की एक मिनट की आमदनी 23 लाख रूपये है मतलब महीने में उसकी आमदनी 99 अरब 36 करोड़ रुपये है, उधर अपनी फसल की कई दशकों से लागत मूल्य भी न मिल पाने की वजह से पिछले तीन दशकों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार इसी देश के 4 लाख किसान और लगभग इतने ही बेरोजगारी से त्रस्त विद्यार्थी खुदकुशी करके मौत के मुँह में चले गए, इतना होने के बावजूद भी इस देश में अंबानी और अडानी की सम्पत्ति गुणात्मक तौर पर बढ़ रही है। जीडीपी का कुटिल खेल देखिए, अगर उन 4 लाख खुदकुशी कर चुके किसानों और अंबानी के प्रतिमाह 99 अरब 36 करोड़ प्रतिमाह का औसत निकाल दें, तो प्रति किसान की प्रतिमाह औसत आमदनी भी एक लाख पैसठ हजार नौ सौ रूपये प्रतिमाह बैठती है, जबकि वे आमदनी के बजाय हर साल घाटे होते रहने से आत्महत्या करने को बाध्य हुए। यही जीडीपी के आँकड़ों का छद्म और कुटिल कथित अर्थशास्त्र है। वैसे भी भारत जीडीपी के मामले में भी -23.9 के आंकड़े के आधार पर फिसड्डी बन चुका है ।

अभी पिछले दिनों वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2021 जारी हुई है, जिसके अनुसार आम जनता की खुशहाली के मामले में हमारा कथित आर्थिक महाशक्ति बनने के बॉर्डर पर खड़ा देश कुल 149 देशों की सूची में 139 वें नंबर के दयनीय पायदान पर खड़ा है। हमारे देश के सत्ता के बेशर्म कर्णधारों को अगर जरा भी हया बची हो, तो उन्हें अपने आर्थिक नीतियों और इस देश को चलाने के लिए अपनी अन्य नीतियों पर भी एकबार पुनर्विचार जरूर कर लेना चाहिए कि आखिर हमारे देश की इतनी दयनीय स्थिति आखिर क्यों हो गई है, कि हमारे सभी पड़ोसी देश यथा पाकिस्तान, नेपाल, बाँग्लादेश, श्रीलंका तक भी हमसें आगे हैं ही, शर्म की और डूब मरनेवाली बात यह भी है कि इस खुशहाली की सूची में भुखमरी से त्रस्त सोमालिया और युद्ध से जर्जर देश फिलिस्तीन तक आज हमारे देश से बेहतर स्थिति में हैं।

भारत जैसे बड़े आकार की उपजाऊ और उर्वर भूमि अमेरिका, चीन, रूस और आस्ट्रेलिया तक में नहीं है, यहाँ के उन्नत मस्तिष्क वाले टेक्नीशियन, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में जाकर अपनी प्रतिभा से नोबेल पुरस्कार जैसे पुरस्कार से सम्मानित हो रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि यहां की समस्त आवाम और जनता इतनी गरीब, दुःखी, क्षुब्ध और व्यथित है। इसका बहुत कुछ जबाब इस लेख में ऊपर वर्णित किया जा चुका है। पुनः इस बात को रेखांकित करना बहुत जरूरी है कि आज भारत की समस्त जनता वर्तमान समय के कर्णधारों के जनविरोधी दुर्नीतियों की वजह से अपने वर्तमान समय में तो अत्यंत दुःखी है ही, अपने भविष्य के लिए भी डरी हुई है, पूरे देश का माहौल नारकीय बना हुआ है। इस भयावह स्थिति में इस देश की जनता खुश कैसे रह सकती है?

(निर्मल कुमार शर्मा, पर्यावरण संरक्षक व स्वत्रंत लेखक हैं)

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