Friday, April 19, 2024

कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट मामले को अलग देश की मांग बताया जाना दुखद व तथ्य से परे: सामाजिक कार्यकर्ता

पश्चिमी सिंहभूम के सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने 28 जनवरी 2022 को एक बैठक करके यह साफ किया है कि 23 जनवरी 2022 को पश्चिमी सिंहभूम के मुफस्सिल थाना में हुई घटना दुखद है। लेकिन इस घटना एवं इससे सम्बंधित कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट मामले को मीडिया के एक हिस्से द्वारा लगातार अलग देश की मांग बताना और देशद्रोह से जोड़ना तथ्य से परे है, अत्यंत दुखद व निंदनीय है।

बता दें कि 23 जनवरी 2022 को उस वक्त अफरा तफरी का माहौल बन गया जब झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा में जिले के मुफस्सिल थाना अंतर्गत लादूरा गांव में कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट के नाम पर कथित सुरक्षा बल में नियुक्ति की जा रही थी। इतना ही नहीं उन्हें नियुक्ति पत्र भी दिया जा रहा था। इस फ़र्जी नियुक्ति पत्र बांटने के आरोप में पुलिस ने 17 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इन 17 लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में जनआक्रोश भड़क उठा। स्थानीय ग्रामीणों ने पारंपरिक हथियारों के साथ जिले के मुफ्फसिल थाने को घेर लिया। सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी की गई।

अवसर पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किया गया। आंसू गैस के गोले छोड़े गए। घटना में आम लोगों सहित कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। इनमें से एक को तीर लगा, जिसे बाद में निकाल दिया गया। इसे लगभग सभी मीडिया ने कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट को कोल्हान अलग देश की संज्ञा दे दी। जिसे लेकर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों की चिंता बढ़ गई। उसी चिंता के चलते उनके द्वारा 28 जनवरी 2022 को एक बैठक करके यह समझाने की कोशिश की गई है कि कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट को कोल्हान अलग देश न समझा जाय।

बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने बताया है कि ‘कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट’ की मांग क्षेत्र में कई दशकों से कुछ लोगों द्वारा होती आई है। इसका आधार 1837 का विलकिंसन रूल है एवं यह मांग आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन की मांग पर आधारित है, न कि अलग देश की मांग। यह भी समझने की ज़रूरत है कि संविधान की पांचवी अनुसूची व छठी अनुसूची प्रावधानों व सम्बंधित कई कानूनों (जैसे पेसा) व अनेक सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार वर्तमान शासन प्रणाली व देश के संघीय ढांचे के अन्दर ही आदिवासियों के पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था के अनेक प्रावधान हैं। आज के वर्तमान शासन व्यवस्था में कोल्हान में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की रूपरेखा कैसी हो, यह चर्चा का विषय है। इन्हीं प्रावधानों के तहत आदिवासियों के प्रतिनिधियों ने शासन-प्रशासन को निम्न मांगों के साथ एक मांग पत्र भेजा था। जो इस प्रकार है-

बताना जरूरी होगा कि पत्रांक संख्या: 01/2021 दिनांक: 17/11/2021 के तहत चम्पाय चंद्रशेखर डांगिल, कोल्हान शिक्षा गोमके, M.A (HO), MED, LLM गैर न्यायिक कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट, कार्यालय, चाईवासा की ओर से माननीय महामहिम रमेश बैस राज्यपाल से स्थानीय प्रशासन के माध्यम से एक पत्र भेजकर यह मांग की गई थी कि “गैर न्यायिक कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट की ओर से संवैधानिक अधिकार एवं उचित विभागों से प्राप्त प्रमाण पत्रों के मुताबिक कोल्हान क्षेत्र में विलकिंसन रूल 1837 के तहत मुंडा-मानकी स्वशासन विधि व्यवस्था व भारत का संविधान अनुच्छेद 13 (3), 28, 29 व 350 (क) के तहत हो भाषा वारंग क्षिति लिपि के स्थायी शिक्षक और शिक्षिकाओं कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट क्षेत्र के सभी प्राथमिक विद्यालय से लेकर कोल्हान विश्वविद्यालयों में दैनिक पाठ्यक्रम में प्रत्येक विद्यालय में एक-एक स्थायी शिक्षक को पदस्थापित की जा रही है, जिसे महामहिम को सूचित किया जा रहा है”।

दिलचस्प बात यह है कि इसकी प्रतिलिपि जिले के दूसरे 8 जिम्मेदार अधिकारियों को भी भेज दी गयी थी जिसमें आयुक्त कोल्हान प्रमंडल और उपायुक्त पश्चिम सिंहभूम चाईबासा; उपायुक्त पूर्वी सिंहभूम जमशेदपुर; उपायुक्त, सरायकेला-खरसावां;  जिला शिक्षा पदाधिकारी, पश्चिम सिंहभूम चाईबासा; जिला शिक्षा पदाधिकारी, सरायकेला खरसावां; जिला शिक्षा पदाधिकारी, पूर्वी सिंहभूम; कोल्हान अधीक्षक सिंहभूम चाईबासा शामिल थे।

पिछले कुछ महीनों से ‘कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट’ के नाम से रक्षकों, शिक्षकों व मुंडा-मानकी की बहाली की प्रक्रिया चलायी जा रही थी। यह भी आम जानकारी है कि ईस्टेट के संचालकों द्वारा नियुक्ति फॉर्म बेचा जा रहा था और नियुक्ति के नाम पर कुछ पैसे लिए जा रहे थे। इस प्रक्रिया में कहीं-न-कहीं आदिवासियों को रोज़गार के नाम पर दिग्भ्रमित किया गया। साथ ही मुहिम के प्रमुख संचालकों द्वारा खुद को मालिक, खेवटदार नंबर एक आदि बताकर भी लोगों को दिग्भ्रमित किया गया।

बुद्धिजीवियों ने मीडिया के रैवये पर गहरी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि 23 जनवरी की हिंसा के बाद अधिकांश स्थानीय इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया द्वारा इस हिंसा के पीछे अलग देश की मांग को प्रमुखता से कारण बताया गया। कई रिपोर्ट में तो ईस्टेट को स्टेट बना दिया गया। यह मौका भी था कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट के पीछे के इतिहास व विलकिंसन रूल (जो 200 साल पहले की शासन व्यवस्था में बनी थी) में वर्तमान व्यवस्था अनुसार आवश्यक संशोधनों पर चर्चा करने का।

सोचने की बात है कि हिंसा के बाद चाईबासा पुलिस द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्तियों में कभी भी अलग देश की मांग या देशद्रोह का ज़िक्र नहीं था। इनमें फ़र्ज़ी बहाली और हिंसा के विरुद्ध कार्रवाई की बात की गई है। 25 जनवरी को सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने उक्त बातों व सम्बंधित मांगों के साथ मुख्यमंत्री को एक पत्र (संलग्न) लिखा एवं उपायुक्त से मुलाकात की। उपायुक्त ने भी दल को बताया कि प्रशासन की ओर से यह एक बार भी नहीं कहा गया कि हिंसा व ईस्टेट के नाम से बहाली मुहिम के पीछे अलग देश की मांग थी। उन्होंने कहा कि कार्रवाई फ़र्ज़ी बहाली और हिंसा के लिए की जा रही है। फिर भी मीडिया द्वारा लगातार अलग देश की मांग की कहानी गलत रूप से चलयी जा रही है।

समय की मांग थी कि मीडिया लोगों को फ़र्ज़ी बहाली, हिंसा की सच्चाई, प्रशासन द्वारा महीनों से इस मामले में चुप्पी एवं आदिवासी पारंपरिक स्वशासन के संवैधानिक प्रावधानों व सम्बंधित कानूनों के विषय में निष्पक्ष रूप से बताता। इससे लोगों में फैलाया गया भ्रम भी कम होता। लेकिन अधिकांश मीडिया द्वारा ऐसा नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि मीडिया के रवैये से कई सवाल उठते हैं। क्यों इस मामले को अलग देश की मांग के गलत आरोप से जोड़कर कोल्हान के आदिवासियों को देशद्रोही साबित करने की कोशिश की जा रही है? क्यों आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन के संवैधानिक अधिकारों पर चर्चा नहीं की जा रही है? क्यों वर्तमान शासन व्यवस्था में विलकिंसन रूल व इसमें आवश्यक संशोधनों पर चर्चा नहीं की गयी? क्यों व्यापक बेरोज़गारी पर चर्चा नहीं की गयी? मीडिया से यह अपेक्षा थी कि इनसे जुड़े सवाल सरकार व प्रशासन से भी किया जाता।

उन्होंने कहा कि हम फिर से अपनी मांगों को दोहराते हैं। ‘कोल्हान गवर्नमेंट ईस्टेट’ के नाम से वर्तमान मुहिम में अगर कुछ गैर-कानूनी कार्रवाई हुई है (जैसे फ़र्ज़ी बहाली, हिंसा में भूमिका आदि), तो उस अनुसार इसके संचालकों पर न्याय संगत कार्रवाई करें और न कि आम आदिवासियों पर। कोल्हान के युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर सुनिश्चित की जाए। सरकार पांचवीं अनुसूची प्रावधानों व पेसा को पूर्ण रूप से लागू करे, जल्द-से-जल्द पेसा नियमावली बनाएं एवं वर्तमान शासन प्रणाली अनुसार विलकिंसन रुल को संशोधित कर लागू करे।

इस बाबत युवा जुमुर पश्चिमी सिंहभूम चाईबासा के संयोजक मानकी तुबिद कहते हैं कि “इस घटना में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अलग देश की मांग किसी ने नहीं की है। लेकिन बहाली के नाम पर बेरोजगार युवाओं को नौकरी के नाम से राशि ठगी जा रही है इसलिए इस कार्यक्रम के संचालक पर नियमानुसार कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए। लेकिन कार्रवाई के नाम पर निर्दोष युवाओं को कदापि निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। क्योंकि इससे क्षेत्र में प्रशासन के खिलाफ नकारात्मक संदेश आग की तरह फैलेगी।”

तुबिद कहते हैं कि “इस घटना में प्रशासन की भी बहुत बड़ी लापरवाही है अतः उन पर भी  विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए। चूंकि सूचना रहने के बाद भी जानबूझकर माहौल को बढ़ाने के बाद कारवाई की गई। दूसरी तरफ ऐसी घटनाओं पर अचानक कार्रवाई करने की बजाय संवाद के माध्यम से भी निष्पादन किया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। साथ ही प्रशासनिक अधिकारी भी नियुक्ति प्रमाण पत्र बांटने में साथ देकर संचालक का हौसला बढ़ाया।”  मानकी तुबिद बताते हैं कि “कार्यक्रम स्थल पर संचालकों ने कोल्हान पुलिस व शिक्षक की बहाली नियुक्ति पत्र अपने हाथों से बांटने के लिए अंचल अधिकारी चाईबासा पश्चिमी सिंहभूम के श्री गोपी उरांव को आमंत्रित किया था। ऐसी स्थिति में जब नियम के विरुद्ध बहाली की जा रही थी तो उसी समय प्रशासन को यानी अंचल अधिकारी गोपी उरांव को मना करना चाहिए था। लेकिन ऐसा न करके इस कार्यक्रम के संचालकों का साथ दिया गया। और जब स्थिति ने विकराल रूप धारण कर लिया तब उसके बाद कार्रवाई की गई”।

मानकी तुबिद ने बताया कि जब इस मामले पर डीसी पश्चिमी सिंहभूम के अनन्या मित्तल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमारे यहां किसी का कोई भी कम्पलेन अलग देश की मांग को लेकर या देशद्रोह को लेकर नहीं है। अतः किसी पर देशद्रोह का चार्ज नहीं लगाया गया है। उन्होंने कहा कि मीडिया की अपनी स्वतंत्र भूमिका है उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्त्ता सिराज दत्ता मीडिया की भूमिका पर कहते हैं कि समय की मांग थी कि मीडिया लोगों को फ़र्ज़ी बहाली, हिंसा की सच्चाई, प्रशासन द्वारा महीनों से इस मामले में चुप्पी एवं आदिवासी पारंपरिक स्वशासन के संवैधानिक प्रावधानों व सम्बंधित कानूनों के विषय में निष्पक्ष रूप से बताया जाता। इससे लोगों में फैलाया गया भ्रम भी कम होता। लेकिन अधिकांश मीडिया द्वारा ऐसा नहीं किया गया। मीडिया समाज का आईना होता है, उसे अपनी भूमिका में चाहिए।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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