Tuesday, April 16, 2024

अंतर्धार्मिक शादियों के बहाने सांप्रदायिकता का नया खेल

कानपुर में एक हिन्दू महिला ने पुलिस में रपट दर्ज करवाकर अपने मुस्लिम पति पर जबरदस्ती उसका धर्म परिवर्तन करवाने का आरोप लगाया। बाद में पता लगा कि कुछ हिन्दुत्ववादी संगठनों ने उस पर एफआईआर दर्ज करवाने के लिए दबाव डाला था। थाने पहुंचकर उसने पुलिस के सामने कहा कि उससे जबरन एफआईआर दर्ज करवाई गई है।

बेतवा शर्मा और एहमेर खान लिखते हैं, “उत्तर प्रदेश में हिन्दू राष्ट्रवादी समूह, धर्मांतरण निषेध कानून की आड़ में हिंसा और जोर-जबरदस्ती से अन्तर्धार्मिक दंपत्तियों के परिवारों को तोड़ रहे हैं और यह प्रचारित कर रहे हैं कि मुस्लिम पुरूष एक षड्यंत्र के तहत हिन्दू महिलाओं से विवाह कर रहे हैं।” पिछले कई दशकों से हिन्दू राष्ट्रवादी समूह गैरकानूनी तरीकों से अंतर्धार्मिक प्रेम संबंधों को तुड़वाते रहे हैं और इस सिलसिले में मुस्लिम पुरुषों को निशाना बनाया जाता रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल गैरकानूनी धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था। यद्यपि यह अध्यादेश हिन्दू-मुस्लिम विवाहों को प्रतिबंधित नहीं करता परंतु हिन्दू धर्म के स्वनियुक्त ठेकेदार पुलिस की सहायता से इसका प्रयोग अन्तर्धार्मिक दंपत्तियों को परेशान करने और मुस्लिम युवकों को कानूनी झमेलों में फंसाने के लिए कर रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से ‘लव जिहाद’ के नाम पर समाज को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत किया जा रहा है और महिलाओं और लड़कियों को उनकी जिंदगी के बारे में स्वयं निर्णय लेने से रोका जा रहा है। साम्प्रदायिक राजनीति अपने पितृ सत्तात्मक एजेंडे को आक्रामक ढ़ंग से लागू कर रही है। अन्तर्धार्मिक विवाहों और धर्मपरिवर्तन का हौव्वा खड़ा किया जा रहा है।

हमारे समाज में पितृसत्तात्मक मूल्यों का प्रकटीकरण अन्य स्वरूपों में भी हो रहा है। धार्मिक संकीर्णता और रूढ़िवाद के चलते अन्तर्धार्मिक विवाहों का विरोध किया जाता है और ऐसे विवाह करने वाले पुरूषों और महिलाओं को प्रताड़ित करने की घटनाएं आम हैं। अंकित सक्सेना की हत्या एक मुस्लिम परिवार के सदस्यों ने मात्र इसलिए कर दी थी क्योंकि वह उनकी बेटी से प्रेम करता था और उससे शादी करना चाहता था। कुछ समय पहले कश्मीर में दो सिख लड़कियों ने विवाह करने के लिए इस्लाम अपना लिया और मुस्लिम युवकों से शादी कर ली। ऐसा आरोप लगाया गया कि लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया है। परंतु दोनों ने इसका खंडन किया और कहा कि वे अपनी मर्जी से मुसलमान बनीं हैं। उनमें से एक की शादी जबरदस्ती एक सिख युवक से करवा दी गई।

मनमीत कौर बाली और धनमीत ने अपने प्रेमियों से विवाह करने के लिए अपना धर्म बदला। उनके शपथपत्रों से स्पष्ट है कि वे बालिग हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से धर्मपरिवर्तन किया है। मनमीत ने शाहिद से विवाह कर लिया और उसके पास दोनों के विवाह के सबूत के तौर पर वैध निकाहनामा भी था। जब वह अदालत जा रही थी तब कुछ सिख युवकों ने उसका अपहरण कर लिया। उसे दिल्ली ले जाकर एक सिख से उसका विवाह करवा दिया गया। यह इसके बावजूद कि वह पहले से विवाहित थीं और उसके पास निकाहनामा भी था।

दूसरी सिख लड़की धनमीत ने अपने मुस्लिम बैचमेट से शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन किया। कुछ रपटों के अनुसार दोनों का कुछ पता नहीं है। शायद सिख समुदाय की हिंसक प्रतिक्रिया से बचने के लिए वे फरार हो गए हैं। धनमीत ने अपना वीडियो जारी किया है जिसमें वह यह कहते हुए दिखलाई पड़ रही है कि उसने अपनी मर्जी से अपना धर्म बदला है और परस्पर सहमति से मुस्लिम पुरूष से विवाह किया है। अंकित सक्सेना और सिख लड़कियों दोनों के मामलों को साम्प्रदायिक ताकतों ने मुद्दा बना लिया।

पीईडब्लू (प्यू) द्वारा भारत में करवाए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में सभी धर्मों के लोगों का अपने धर्म और उसकी परंपराओं और रूढ़ियों से नजदीकी जुड़ाव है। यह सर्वेक्षण 26 राज्यों में 17 भाषाओं में किया गया था और सर्वेक्षणकर्ताओं ने तीस हजार लोगों से बात की। यद्यपि सर्वेक्षण के नमूने का आकार बहुत बड़ा नहीं है लेकिन इससे यह तो पता चलता ही है कि भारत के समाज और उसके लोगों पर धर्म की कितनी मजबूत पकड़ है। इस सर्वेक्षण के अनुसार 80 प्रतिशत मुसलमानों और 64 प्रतिशत हिन्दुओं का मानना है कि अपने धर्म से बाहर विवाह को रोका जाना महत्वपूर्ण है।

अध्ययन से यह भी पता लगा कि कई हिन्दुओं के लिए उनकी धार्मिक और राष्ट्रीय पहचानें आपस में गुंथी हुई हैं। मुख्य सर्वेक्षणकर्ता लेबो डिसीको लिखते हैं “भारतीय धार्मिक सहिष्णुता के प्रति अपना उत्साह तो प्रदर्शित करते हैं परंतु साथ ही वे अपने धार्मिक समुदायों को अलग-थलग भी रखना चाहते हैं। वे एक साथ परंतु अलग-अलग रहते हैं।” हिन्दू-मुस्लिम विवाहों का विरोध रूढ़िवादी परिवारों द्वारा हमेशा से किया जाता रहा है और अब धर्मपरिवर्तन निषेध कानूनों के रूप में इनकी राह में नई बाधाएं खड़ी कर दी गईं हैं। ये कानून कथित तौर पर धोखाधड़ी और लोभ-लालच से धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए बनाए गए हैं और ये सीधे तौर पर अंतरर्धार्मिक विवाहों का निषेध नहीं करते।

कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि भारत में अंतरर्धार्मिक विवाहों की संख्या बहुत कम होती है। यह बात सभी दक्षिण एशियाई देशों के मामले में सही है। अमरीका जैसे देशों, जहां धर्मनिरपेक्षता मूलभूत सामाजिक मूल्यों का हिस्सा है, में सन् 2010 से 2014 के बीच हुए विवाहों में से 40 प्रतिशत अन्तर्धार्मिक थे। सन् 1960 के पहले यह प्रतिशत 19 था। यह माना जा सकता है कि अन्तर्धार्मिक विवाह ऐसे समाजों में अधिक होते हैं जिनमें लोगों पर धर्म की पकड़ कमजोर होती है। पूरी दुनिया में सामंती ढांचे के पतन और प्रजातंत्र के आगाज के समानांतर धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया भी चलती रही है।

अंतरर्धार्मिक विवाहों का विरोध चाहे साम्प्रदायिक राजनीति के कारण हो या धार्मिक कट्टरता के, दोनों का नतीजा एक ही होता है, अर्थात दम्पत्ति की प्रताड़ना, विवाह को आपराधिक कृत्य माना जाना, पुरूष को सजा देना और महिला का उसके धर्म के व्यक्ति के साथ जबरन विवाह करवाना। महिला की इच्छा को दबाया जाता है और नजरअंदाज किया जाता है। केरल में गैर-हिन्दू पतियों से मुक्ति पाने के लिए हिन्दू महिलाओं को प्रेरित करने हेतु एक योग केन्द्र स्थापित किया गया है।

इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि साम्प्रदायिकता के बढ़ने और लव जिहाद जैसे अभियानों के उभरने से धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवाद में भी बढ़ोत्तरी हुई हो। यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि साम्प्रदायिक राजनीति धार्मिक कट्टरता को बढ़ाती है।

दोनों ही कारणों से अन्तर्धार्मिक विवाहों के विरोध के मूल में है पितृसत्तात्मक मूल्य, जो हमें यह सिखाते हैं कि महिलाओं के जीवन पर पुरूषों का पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। धार्मिक परंपराओं और कर्मकांडों पर भी पितृसत्तात्मकता हावी रहती है। भारत में धर्म की पकड़ इसलिए मजबूत है क्योंकि यहां धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया कमजोर और धीमी रही है। जहां स्वाधीनता आंदोलन स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों का हामी था वहीं धार्मिक राष्ट्रवादी शक्तियां प्राचीन मूल्यों और जाति-लिंग आधारित पदक्रम और पितृसत्तात्मकता के ध्वज की वाहक थीं। जब पंडित नेहरू से पूछा गया कि आधुनिक भारत के निर्माण में उनके सामने सबसे बड़ी बाधा क्या है तो उनका उत्तर था धर्मनिरपेक्ष संविधान और धर्म की बेड़ियों में जकड़े लोग। क्या भारत की स्थिति का इससे बेहतर शब्दों में वर्णन संभव है? 

 (लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन्  2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं। अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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