Saturday, April 20, 2024

न्याय की उल्टी व्यवस्था: कृषि कानून के पैरोकार बताएंगे किसान आंदोलन का हल!

केंद्र सरकार के प्रतिनिधि मंत्रियों और किसान यूनियन के नेताओं के बीच हुई तमाम बैठकों में केंद्र सरकार की ओर से लगातार कमेटी बनाने का प्रस्ताव किसानों को दिया गया, जिसे किसान लगातार खारिज करते आए थे। 8 जनवरी की पिछली बैठक में कृषि मंत्री द्वारा किसान यूनियनों से स्पष्ट कहा गया कि अब आप लोग सुप्रीम कोर्ट के पास जाइए, और आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कमेटी गठित कर ही दी। अहम यह है कि कमेटी के चारों सदस्य कृषि कानूनों के समर्थक हैं।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने  भी साफ किया कि कमेटी कोई मध्यस्थ्ता कराने का काम नहीं करेगी, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाएगी। कमेटी कानून का समर्थन और विरोध कर रहे किसानों से बात करेगी। दोनों पक्ष को सुना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो कानून सस्पेंड करने को तैयार हैं, लेकिन बिना किसी लक्ष्य के नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसान समस्या का हल चाहते हैं तो उन्हें कमेटी में पेश होना होगा।

सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के जोशी शामिल हैं। ये कमेटी अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को ही सौंपेगी, जब तक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आती है, तब तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक जारी रहेगी।

अब बात इन चार लोगों की, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी में रखा है और जिनकी रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट फैसला देगी।

क़ानून वापसी के पक्ष में नहीं हैं अनिल घनवत
अनिल घनवत शेतकारी संगठन के नेता हैं। घनवत कृषि कानून वापसी के पक्ष में नहीं रहे हैं। बीते दिनों घनवत ने कहा था कि सरकार किसानों के साथ विचार-विमर्श के बाद कानूनों को लागू और उनमें संशोधन कर सकती है। हालांकि, इन कानूनों को वापस लेने की आवश्यकता नहीं है, जो किसानों के लिए कई अवसर को खोल रही है।

चार सदस्यीय कमेटी में रखे जाने पर मीडिया से बात करते हुए शेतकारी किसान संगठन के अशोक घनवत ने कई त्रुटियां बताई हैं, कृषि क़ानून में। साथ ही किसान संगठनों से कमेटी के सामने प्रस्तुत होने को कहा है। मौजूदा कृषि व्यवस्था में सुधार की बात कही है। उनका कहना है कि किसान को अपनी उपज की बिक्री का अधिकार दिया जाए। कृषि सुधार ज़रूरी है, कमेटी में चर्चा करेंगे।

कृषि क़ानून के पैरोकार हैं अशोक गुलाटी
अशोक गुलाटी की सलाह पर ही मौजूदा कृषि क़ानून को अमली जामा पहनाया गया है और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में रहे हैं। अशोक गुलाटी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि इन तीनों कानून से किसानों को फायदा होगा, लेकिन सरकार यह बताने में कामयाब नहीं रही। उन्होंने कहा था कि किसान और सरकार के बीच संवादहीनता है, जिसे दूर किया जाना चाहिए।

कृषि अर्थशास्त्री के तौर पर जाने जाने वाले अशोक गुलाटी 1999 से 2001 तक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य थे। उन्हें मौजूदा मोदी सरकार ने साल 2015 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा है। अशोक गुलाटी फिलहाल भारतीय कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) के पूर्व अध्यक्ष हैं।

सीएसीपी खाद्य आपूर्ति और मूल्य निर्धारण नीतियों पर भारत सरकार का सलाहकार निकाय हैं। वर्तमान में वे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर भारतीय अनुसंधान परिषद (ICRIER) में कृषि के लिए इंफोसिस के अध्यक्ष हैं। वे नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित कृषि कार्य पर टास्क फोर्स के सदस्य और कृषि बाजार सुधार पर विशेषज्ञ समूह (2015) के अध्यक्ष भी हैं।

हाल ही में अशोक गुलाटी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि कृषि कानूनों से किसानों को फायदा होगा, लेकिन सरकार ये बात किसानों को समझा नहीं सकी।

प्रमोद जोशी ने एमएसपी व्यवस्था को खत्म करने की पैरवी की है
डॉक्टर प्रमोद के जोशी दक्षिण एशिया अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के निदेशक हैं। इससे पहले उन्होंने राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी हैदराबाद के निदेशक का पद संभाला था। उनके अनुसंधान के क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी नीति, बाजार और संस्थागत अर्थशास्त्र शामिल हैं। वे नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज और इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स के फेलो हैं। डॉक्टर जोशी ने ढाका, बांग्लादेश में सार्क कृषि केंद्र के गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है।

अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के जोशी ने हाल में एक ट्वीट करके कहा था, “हमें MSP से परे, नई मूल्य नीति पर विचार करने की आवश्यकता है। यह किसानों, उपभोक्ताओं और सरकार के लिए एक जैसा होना चाहिए, एमएसपी को घाटे को पूरा करने के लिए निर्धारित किया गया था। अब हम इसे पार कर चुके हैं और अधिकांश वस्तुओं में सरप्लस हैं। सुझावों का स्वागत है।”

भूपिंदर सिंह मान
15 सितंबर 1939 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए सरदार भूपिंदर सिंह मान को किसानों के संघर्ष में योगदान के लिए भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा 1990 में राज्यसभा में नामांकित किया गया था। उन्होंने 1990-1996 तक सेवा की। उनके पिता एस अनूप सिंह इलाके के एक प्रमुख जमींदार थे।

सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यीय कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपिंदर सिंह मान को भी शामिल किया है। आंदोलन कर रहे किसान संगठन की मानें तो भूपिंदर सिंह मान पहले ही कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे संगठन क्रांतिकारी किसान यूनियन के डॉ. दर्शन पाल ने बुधवार को कहा कि मैं भूपिंदर सिंह मान को जानता हूं, वो पंजाब से हैं और वह कृषि मंत्री से मिलकर कानून का समर्थन कर चुके हैं।

3 सितंबर 2020 को वयोवृद्ध किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में कहा, ‘इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि किसानों को एमएसपी मिलेगी और कम दाम में खरीद करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।’ उन्होंने पत्र में कहा था कि मौजूदा रूप में इन अध्यादेशों से किसानों को कोई मदद नहीं होगी, बल्कि इसने एक डर पैदा कर दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को दूर किया जा रहा है।

उन्होंने मोदी को लिखे पत्र में कहा था, ‘अध्यादेश लाकर इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि किसानों को एमएसपी मिलेगी। एमएसपी पर परचेज करने के लिए सभी खरीददार कानूनी तौर पर बाध्य होने चाहिए। चाहे वे सरकारी हों या फिर निजी। उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।’

इसके अलावा 9वें शेड्यूल में संशोधन होना चाहिए और कृषि जमीनों को इसके दायरे से बाहर करना चाहिए, ताकि किसान न्याय के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटा सकें, जबकि कानून की मौजूदा स्थिति वह हालात पैदा करती हैं, जिनमें किसानों को अभी तक आजादी नहीं मिली ‘आजाद देश के गुलाम किसान’।

एक बार फिर से बता दें कि किसान संगठन लगातार कमेटी के प्रस्ताव को खारिज करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से पहले यह प्रस्ताव सरकार की तरफ से भी आया था, लेकिन उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया था। अब किसान नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमेटी के सामने पेश होने से इनकार कर दिया है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव का लेख।)

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