क्या भक्ति भाव में डूबी भीड़ भी भगदड़ के लिए जिम्मेदार?

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हालांकि प्रयागराज महाकुंभ हादसे की सही रपट नहीं आई है लेकिन मोबाइल से कैद वहां के लोगों द्वारा जो ख़बरें सामने आई हैं वे बहुत दुखद हैं। वहां से आए वीडियो और चित्र देखकर इसे बड़ा हादसा कहना अनुचित नहीं होगा। उत्तर प्रदेश की चाक-चौबंद योगी सरकार ने घटना के एक दिन पहले ही सारी व्यवस्थाओं को दुरुस्त बताया था।

यह हादसा इस बात की ताकीद करता है कि निश्चित तौर पर व्यवस्था पूरी तरह लचर थी। जब यह ज्ञात था कि नक्षत्रों के अनूठे संयोग का जिस तरह व्यापक स्तर पर प्रचार किया गया है उसके वशीभूत होकर करोड़ों लोगों का आगमन हो रहा है।

प्रयाग राज के विशेष घाट पर मौनी अमावस्या को अमृत बूंदें गिरने वाली हैं तो उस क्षेत्र में एकल पथ क्यों बनाया गया। जहां से लोग स्नान हेतु जा भी रहे थे और लौट भी रहे थे।

रात्रि में खचाखच होने से पूर्व इस पथ पर स्नानार्थी सुबह स्नान हेतु सो रहे थे जिन्हें पुलिस वालों ने नींद से जबरन उठाया और फिर इस संकरे पथ पर भीड़ का रेला आ पहुंचा बताते हैं कि सबसे पहले नींद से जगाए यात्री दबे फिर उन लोगों पर चढ़ते यात्री अंसतुलित होकर गिरते चले गए।

दबे यात्री तड़प रहे थे उनके साथी रो रहे थे भीड़ थी कि अमृतपान करने चली जा रही थी। स्नान कर लौटते साधुओं ने रास्ते के इस हादसे की ख़बर प्रशासन को दी जिसके बाद प्रशासन जागा। एंबुलेंसों का शोर सुनाई दिया फिर सब थम गया। आना-जाना खाना-पीना वगैरह। कोरोना काल जैसा हाल यहां बन गया।

रात 2 बजे अचानक भारी भीड़ की वजह से हुई भगदड़ के तत्काल बाद अखाड़ों ने एलान क‍िया है कि आज का अमृत स्‍नान नहीं करेंगे। भगदड़ में दर्जनों लोग घायल हुए हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने बसंत पंचमी पर स्नान की घोषणा की। निरंजनी अखाड़े के प्रमुख कैलाशानंद गिरी महाराज ने भी लोगों से ऐसी ही अपील की है।

दुख इस बात का है कि इतनी योगी-मोदी की मशक्कत के बाद सभी उपस्थित लोग मौनी अमावस्या के विशेष पुण्य के भागी नहीं बन सके। काश! इससे पहले ही यह बता दिया गया होता कि गंगा सिर्फ़ यहां नहीं जहां भी बह रही है पावन है अमृत कलश की बूंदें लिए हुए है। हालांकि उन बूंदों की प्रमाणिकता किसी धर्म ग्रंथ में मौजूद नहीं है। वे गिरी भी होंगी तो कब की समुद्र में समा गई होंगी।

विश्व का विशालतम मेला बनाने की जुस्तजू में धीरेन्द्र शास्त्री ने तो यहां तक कह दिया जो महाकुम्भ नहीं जाएगा वह देशद्रोही होगा। जबकि मुसलमानों को यहां प्रतिबंधित किया गया है। मोदी योगी के बड़े बड़े विज्ञापनों ने भी भीड़ को बढ़ावा दिया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करने यह भीड़ जोड़ी गई। क्या इस बिंदु पर भी कभी विमर्श होगा।

बहरहाल, सबसे बड़ी बात ये है कि धार्मिक आयोजनों में ही भगदड़ क्यों होती है यह सोचनीय है। विदित हो, अंग्रेज़ी शासन काल में 1820 में हरिद्वार कुंभ मेले में 450 लोग भगदड़ में मरे थे। 1906 इलाहाबाद कुंभ में 50 लोग मरे। आज़ादी के बाद आए 1954 के इलाहाबाद कुंभ में 500 लोगों की मौत अपने लाडले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को देखने में मची भगदड़ को बताई जाती है।

3 फरवरी 1954 मौनी अमावस्या को भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री नेहरू जनता के बीच कुंभ स्नान को पहुंचे थे। भाजपा इस घटना में नेहरू हादसे को लेकर फ्रंट पर आ गई है। जबकि दोनों घटनाओं में ज़मीन आसमान का फ़र्क है उस समय कोई वीआईपी घाट नहीं था। नेहरू की लोकप्रियता की वजह ही हादसे के मूल में थी। जनता भक्तिभाव से हटकर अपने भाग्यविधाता को देखना चाह रही थी।

हाल के वर्षों में धार्मिक कार्यक्रमों में भगदड़ की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है। पिछले साल दो जुलाई को उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हुई थी जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं याद करिए एक जनवरी, 2022 जम्मू-कश्मीर में प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए।

14 जुलाई, 2015 आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में ‘पुष्करम’ उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ मचने से 27 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए। तीन अक्टूबर, 2014 दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोग मारे गए और 26 अन्य जख्मी हो गए।

दतिया मंदिर और रामनवमी के दिन कुंए में भक्तों के गिरने जैसी सैकड़ों घटनाएं भगदड़ से जुड़ी मिल जाएगी। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले करीब 25 सालों में ही भारत में भगदड़ की 3900 से ज्यादा घटनाएं हुईं।

इन घटनाओं में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं। ये घटनाएं धार्मिक त्योहारों, राजनैतिक रैलियों या सेलिब्रिटी उपस्थिति की वजह से हुईं।

कुल मिलाकर आज भीड़ प्रबंधन नियंत्रण की टेक्नोलॉजी विकसित होते हुए महाकुम्भ जैसे हादसे होना चिंताजनक है। प्रशासनिक खामियों से इंकार नहीं किया जा सकता। किंतु भक्ति भाव में इस कदर डूबे जाना अनुचित कि नीचे पड़े हुए भक्त नज़र ना आएं और उनको रौंदते चले जाएं।

अमृत बूंदें पाने की चेष्टा हो या अपने इष्ट से मिलने की तीव्र इच्छा या किसी गुरुवर के दर्शन की अभिलाषा या उनका सानिध्य पाने की चाहत या किसी बाबा द्वारा फेंके सामान या सिक्के को भाग्य से जोड़ने की उत्कंठा ऐसी गलतियां हैं जो हादसों के लिए जिम्मेदार है।

इसके अलावा बाबाओं की भभूत, उनका आशीर्वाद, मनोकामना पूर्ण होने का दु:स्वप्न हमारे समाज में ऐसी घुसपैठ जमाए हुए हैं भक्त भक्तिन को कुछ नज़र नहीं आता। उन्हें यथार्थ के धरातल पर आके पहले इन्हें टटोलने की ज़रुरत है। भक्तिभाव में डूबी यह अंधी भीड़ ही सबसे प्रबलतम रुप से इन दुखद घटनाओं के लिए सबसे ज़्यादा जिम्मेदार है।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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