मृत्यु के बाद भी है गरिमा और न्यायपूर्ण व्यवहार का अधिकार

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बेल्लारी में शवों को दफन करती स्वास्थ्य टीम।

महामारी के समय सरकार और समाज दोनों से ही संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है। खास तौर से जो इस महामारी से पीड़ित हैं, उनके प्रति संवेदनशीलता और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है। नोवेल कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी के दौरान जिस तरह से देश में कभी सरकार, कभी समाज तो फिर कभी संक्रमित मरीज के ही परिजनों का मरीज के प्रति उपेक्षापूर्ण और नकारात्मक रवैया सामने आया है, उसने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि समाज के अंदर मानवीय संवेदनाएं बची हैं या नहीं ? क्या वह मशीन में तब्दील होता जा रहा है ? उसके अंदर आखिर, यह संवेदनहीनता आती कहां से है? इंसानियत को शर्मसार करता ऐसा ही एक वाकया हाल ही में कर्नाटक से सामने आया है।

राज्य के बेल्लारी जिले में कोरोना संक्रमण से मरने वाले आठ लोगों की मौत के बाद, स्वास्थ्यकर्मियों ने उनको एक ही गड्ढे में डालकर दफन कर दिया। यह मामला शायद ही सामने आता, यदि इस घटना से संबंधित वीडियो वायरल नहीं होता। सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में पीपीई किट पहने कुछ स्वास्थ्यकर्मी एक गाड़ी में रखी, काली चादरों में लिपटी लाशों को एक-एक कर बड़े गड्ढे में फेंक रहे हैं। इसके बाद गड्ढे को ढक दिया जाता है। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ, राज्य में हड़कंप मच गया। सबसे अफसोसनाक स्थिति यह है कि बेल्लारी, कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री बी. श्रीरामुलु का गृह जिला है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में संक्रमित मरीजों के साथ यह अमानवीय, अपमानजनक बर्ताव है, तो बाकी राज्य में मरीजों के साथ क्या बर्ताव हो रहा होगा ?

बेल्लारी कलेक्टर ने अंतिम संस्कार की इस अमानवीय और असंवेदनशील प्रक्रिया पर अफसोस जताते हुए, जिला प्रशासन की ओर से ना सिर्फ माफी मांगी है, बल्कि इस पूरे मामले की जांच कराने के भी आदेश दिए हैं। जांच रिपोर्ट आने तक अस्पताल की संबंधित टीम को बदल दिया गया है। एक लिहाज से देखें, तो यह मामला सीधे-सीधे अंतिम संस्कार में प्रोटोकॉल के उल्लंघन का मामला है। मौत के बाद हर इंसान चाहता है कि उसकी अंतिम क्रिया, उसके धर्म के मुताबिक उसके परिजन करें। लेकिन इस वीडियो में दूसरे लोग कहीं नजर नहीं आ रहे और यह भी मालूम नहीं चल रहा कि अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया का उनके परिवार वालों को पता था या उन्होंने अपनी ओर से इसकी कोई सहमति दी थी ?

जाहिर है कि यह सारी बातें जांच के बाद ही सामने आएंगी। यदि कोई व्यक्ति किसी जानलेवा बीमारी से संक्रमित है या वह इस बीमारी से मर जाता है, तो किसी को भी यह हक नहीं मिल जाता कि वह उसकी लाश के साथ भेदभावपूर्ण या उपेक्षा का बर्ताव करे। उसकी लाश के साथ बदसलूकी करे। क्योंकि शवों के साथ भी गरिमापूर्ण व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। शवों का अनादर संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

राष्ट्रीय राजधानी में अस्पतालों, मोर्चरी और श्मशान घाट में कोविड-19 बीमारी से मरे लोगों के अनियंत्रित शवों के ढेर दिखाने वाली रिपोर्टों के बाद, दिल्ली उच्च न्यायालय के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी शवों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार को लेकर स्वतः संज्ञान लिया था और सरकार को जरूरी निर्देश दिए थे। कोरोना रोगियों के शवों का अनादर संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। ‘पंडित परमानंद कटारा मामले’ (साल 1995) में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में स्पष्ट तौर पर कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और न्यायपूर्ण उपचार का अधिकार केवल एक जीवित व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उसके शरीर को भी उपलब्ध है, उसकी मृत्यु के बाद भी।

यही नहीं एक अन्य मामले, ‘आश्रय अधिकार अभियान बनाम भारत संघ (2002) में भी शीर्ष अदालत ने किसी व्यक्ति के शव को सभ्य तरीके से दफन करने या दाह संस्कार को अपनी मान्यता दी थी। इन्हीं परिस्थितियों के मद्देनजर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी ’कोविड-19 से संबंधित सामाजिक कलंकों’ और ’शव प्रबंधन’ के संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। बावजूद इसके कोरोना महामारी के दौरान शवों के साथ दुर्व्यवहार के अनेक मामले सामने आए हैं। कुछ दिन पहले ही पुडुचेरी में भी एक 44 वर्षीय कोरोना संक्रमित का शव गड्ढे में फेंके जाने का असंवेदनशील मामला सामने आया था।

इसके अलावा देश में कुछ ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिसमें इस बीमारी से मरे व्यक्ति को कब्रिस्तान में दफनाने से रोका गया। उनके परिजनों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। चेन्नई में जब एक डॉक्टर के शव को दफनाने के लिए कब्रिस्तान ले गए, तो वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। भीड़ ने एम्बुलेंस पर हमला बोल दिया। वजह, 55 वर्षीय डॉक्टर साइमन हरक्यूलिस की चेन्नई के एक निजी अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। वे अपने मरीजों के इलाज के दौरान कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे। लोग इसलिए विरोध कर रहे थे कि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति का शव उनके क्षेत्र में दफनाने से वहां भी संक्रमण फैल जाएगा।

कुछ ऐसी भी रिपोर्टें सामने आईं, जहां परिवार के लोगों ने ही अंतिम संस्कार के लिए मरीज का शव लेने से इंकार कर दिया। जबकि डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का इस संबंध में  साफ कहना है कि कोरोना वायरस शवों से नहीं फैल सकता, बशर्ते गाइडलाइन्स का पालन हो। मसलन शव को छूना, गले लगाना, उसे चूमा नहीं जाना चाहिए। यही नहीं उसे नहला-धुलाकर, नए कपड़े भी नहीं पहनाने चाहिए, जैसा कि हमारे देश में कुछ मजहब की यह मान्यता है। इसके अलावा शव को एक सील पैक बैग में ही रखा जाना जरूरी है। अंतिम संस्कार की जगह बहुत सारे लोग इकट्ठे नहीं होने चाहिए। कोविड-19, रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिक्विड-कफ, लार वगैरह से फैलता है।

ये वायरस खांसी या छींक के माध्यम से एक-दूसरे में फैलता है। लिहाजा शवों के अंतिम संस्कार से कोई खतरा नहीं है। शव के जलाने पर ये वायरस हवा में भी नहीं फैलता। फिर भी लोगों के अंदर कोरोना वायरस को लेकर इतनी भ्रांतियां और डर हैं कि वे कोरोना संक्रमित मरीज के शव के साथ भी अपमानपूर्ण बर्ताव करने से बाज नहीं आते। बेल्लारी में जिस तरह से शवों को दफनाया गया, वह सीधे-सीधे उनका अनादर था। मानवीय गरिमा के खिलाफ था। इस पूरी घटना में जो लोग शामिल हैं, उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया है। जो भी इस मामले में दोषी हैं, उन पर कानूनी कार्यवाही जरूरी है। ताकि इस तरह के शर्मनाक मामले दोबारा सामने ना आएं।

(जाहिद खान वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल मध्य प्रदेश के शिवपुरी में रहते हैं।)

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