Tuesday, March 19, 2024

मेलोनी की बैकडोर पावर डील  के ज़रिए और राइट होता ‘यूरोप’ !

बात साल 1992 की है, जुलाई महीने में रोम में फार- राइट सोशल मूवमेंट पार्टी के यूथ फ्रंट की एक बैठक हो रही थी। उस मीटिंग में 15 साल की एक लड़की ने दरवाज़ा खटखटाया, उसे इस घोर दक्षिणपंथी फ्रंट में एंट्री चाहिए थी।कुछ वक्त बाद उसे एंट्री मिल भी गई। 30 साल बाद ये वाकया फिर से दोहराया गया। वह लड़की अब 45 साल की महिला थी और इस बार उसे एंट्री चाहिए थी। 

इटली के प्रधानमंत्री आवास में।अब जबकि ब्रदर्स ऑफ इटली की जियोर्जिया मेलोनी मुसोलिनी के बाद देश की दूसरी घोर दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं तो कयास अब यूरोप भर को लेकर लगने लगे हैं। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि महज़ चार साल पहले चुनाव में 4.5% वोट हासिल करने वाली पार्टी की नेता एकाएक सत्ता के केंद्र में कैसे आ गई? इस सवाल के जवाब के लिए एक मीटिंग का जिक्र ज़रूरी है, जहां इस पावर डील पर आखिरी मुहर लगी थी। 

इसी साल 21 जुलाई को प्रधानमंत्री मरियो द्रागी की सरकार गिर चुकी थी और तय हो गया था कि अब चुनाव सितंबर में होंगे। पीएम के इस्तीफे के महज़ 6 दिन बाद इटली की संसद के निचले सदन की बिल्डिंग के एक कमरे में तीन राजनेताओं की बैठक हुई। इस बैठक में एक पूर्व प्रधानमंत्री, एक पूर्व डिप्टी पीएम के अलावा जो तीसरा शख्स मौजूद था वो अगला पीएम बनने की दावेदारी ठोंक रहा था।ये तीसरी शख्स जियोर्जिया मेलोनी थीं। Politico की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेतियो साल्विनी के नेतृत्व वाली लीग और सिल्वियो बर्लुस्कोनी की अगुवाई वाली  फोर्जा इतालिया के साथ मेलोनी की इस अहम डील पर 4 घंटे तक बातचीत हुई, जिस कमरे में ये बात हो रही थी उस की एक दीवार पर  Battle of Lepanto की  पेंटिंग राजनेताओं से मुखातिब थी। इस युद्ध में पोप की सेना ने ऑटोमन साम्राज्य को हराया था।सिंबॉलिज्म के हिसाब से खासी असरदार इसी पेटिंग के तले मेलोनी ने इन दोनों राजनेताओं को अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर सबसे ज्यादा सीटें लाने वाले दल को पीएम बनाने का मौका नहीं दिया जाता है तो वो इस फ्रंट का हिस्सा नहीं रहेंगी। 

साल 2018 में साल्विनी की लीग को 17.4 % और फोर्जा इटालिया को 14 % वोट मिले थे और मेलोनी की पार्टी हाशिए पर थी। ऐसे में इन दोनों दिग्गज नेताओं ने गठबंधन को लेकर मेलोनी की शर्त आखिर क्यों मानी ? इसे लेकर विश्लेषकों की अपनी-अपनी थ्योरी है। एक थ्योरी कहती है कि इटली में 1990 के बाद बर्लुस्कोनी की अगुवाई में चली मध्यम दक्षिणपंथी सरकारों का पेंडुलम अब स्वाभाविक ढलान पर है यानि इटली में सरकार का और ‘राइट’ होना नेचुरल ही है।  वहीं दूसरी थ्योरी के मुताबिक इस तरह के अस्वाभाविक गठबंधन और सरकारें इटली के राजनीतिक कल्चर का हिस्सा रहीं हैं। 1946 से 1994 के बीच यहां सरकारें गिरने का इतिहास रहा है। ऐसे में दक्षिणपंथियों के गठबंधन को बहुत हैरानी के साथ देखा नहीं जा सकता है।

खैर वजह जो हो लेकिन ये सच है कि इटली में 20 साल तक मध्य दक्षिणपंथी सरकारों के बाद अब फार राइट विचारधारा का इकबाल बुलंद है, हाल के सालों में मेलोनी की पॉपुलैरिटी का ग्राफ़ बढ़ा है,यानि घोर दक्षिणपंथ को धीरे-धीरे ही सही मान्यता मिली है।यहां समझना ये होगा कि मेलोनी कोई आम राइट विंग लीडर नहीं हैं, उनका पॉलिटिकल कैनवास राइट होने के अतिवादी रंग से रंगा है,नौजवानी के दिनों के दौरान एक टीवी इंटरव्यू में वो फासिस्ट नेता मुसोलिनी की तारीफ़ कर चुकी हैं।ये अलग बात है कि इस इमेज को मैनेज करने के लिए पिछले साल उन्होंने कैंपेन के दौरान अपनी पार्टी के लोगों को एक मेमो सौंपा था, जिसमें उन्हें उन बातों से परहेज करने को कहा गया था जिन्हें फासीवादी सिंबल माना जाता है। इसमें अतिवादी बयान और रोमन सैल्यूट से बचने को कहा गया था। लेकिन उससे बड़ा सच ये है कि उनके चुनावी कैंपेन का नारा ‘ईश्वर, देश और परिवार’ है। पार्टी इमिग्रेशन, अबॉर्शन और गे राइट्स की कट्टर विरोधी हैं और ये सारे विचार इटालियन सोशल मूवमेंट (एमएसआई) से ही निकलते हैं, वही मूवमेंट जिसे मुसोलिनी के बाद इटली में निओ फासिस्टों ने खड़ा किया था। 

मेलोनी की जीत को यूरोप के संदर्भ में देखना ज्यादा ज़रूरी है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी की पॉलिटिकल थियोरिस्ट नादिया उर्बिनेती कहती हैं कि – मेलोनी अपने धुर दक्षिणपंथी मॉडल को सिर्फ इटली ही नहीं पूरे यूरोप में देखना चाहती हैं। वो यूरोप के दक्षिण पंथी नेताओं के साथ लगातार संपर्क में रहती हैं । उनका मॉडल और प्रोजेक्ट दोनों तैयार हैं। विश्लेषक मानते हैं कि अगर वो फ्रांस की धुर दक्षिणपंथी नेता मेरी ली पेने से ज्यादा उभार के साथ उग्र राष्ट्रवाद को सामने लाने में कामयाब हुई हैं तो इसकी वजह उनकी प्रैक्टिकल अप्रोच है, जो उन्हें बतौर यूरोप में दक्षिणपंथ का चेहरा की पहचान दिला सकती है।एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने फ्रांस और जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा था कि इन देशों में फार राइट पार्टियां सफल रहीं हैं, लेकिन इटली में यही बात एक स्कैंडल जैसी हो जाता है। 

वैसे यूरोप के 27 देशों के समूह ईयू में राइट विंग पार्टियों की मौजूदगी बढ़ी ही है हंगरी और पोलैंड में इस समय दक्षिणपंथी पार्टियां सत्ता में हैं। इसी साल अप्रैल में फ्रांस के राष्ट्रपति चुनावों में मैक्रों को दक्षिणपंथियों से खासी चुनौती मिली थी ।जहां ऑस्ट्रिया दक्षिणपंथी सरकार देख चुका है तो स्वीडन में भी पहली बार दक्षिणपंथी सरकार बनी है, अब इटली भी इसी रास्ते पर है। मेलोनी की हंगरी के घोर दक्षिणपंथी नेता विक्टर ऑर्बन से अच्छी दोस्ती है और मेलोनी की जीत पर सबसे पहला बधाई संदेश भी उन्होंने ही भेजा भी था।दरअसल यूरोप में इस वक्त दक्षिणपंथ की बयार बह रही है।जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और नीदरलैंड्स में दक्षिणपंथी पार्टियां खासी मज़बूत होती दिखाई दे ही हैं। ऐसा नहीं है कि रोज़ इंच दर इंच और राइट होते यूरोप को लेकर चिंताएं सामने नहीं आ रही। DW की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी के मुख्य विपक्षी सीडीयू के नेता यूर्गेन हार्ट साफ तौर पर मेलोनी की नीतियों को खतरनाक बताते हैं और कहते हैं। कि वो उम्मीद करते है कि बर्लुस्कोनी अपने अनुभव के ज़रिए नई सरकार को सही और संतुलित दिशा में रखेंगे।

मेलोनी की पार्टी महज़ दस साल पुरानी है और ऐसे में विश्लेषकों को लगता है कि पॉलिटिकल ब्लैकमेलिंग के कल्चर में लोकल राजनीति की ही टर्फ पर काम करने वाले उनकी पार्टी नेताओं के लिए राह आसान नहीं। फॉरेन पॉलिसी सामने खड़ी चुनौती है। मिलोनी खुले तौर पर यूक्रेन के पक्ष में खड़ी हैं, लेकिन उनके साथियों की सोच इसमें एकदम अलग है। जहां साल्विनी की लीग मॉस्को के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखना चाहती है तो बर्लुस्कोनी  पुतिन के दोस्त रहे हैं।उनकी दोस्ती इतनी गाढ़ी है कि वो एक साथ छुट्टियां भी मना चुके हैं। 

मेलोनी ये कहती ज़रूर हैं कि वो फासीवादी नहीं हैं और यूथ फ्रंट के समय उनके  साथी कहते हैं कि बतौर युवा राजनेता, उन सभी ने चे गेवेरा के लेखन के रोमांटिसिज्म को भी महसूस किया है। लेकिन 2021 में आई अपनी आत्मकथा में    I am Giorgia. My roots, my ideas में मेलोनी  कुछ अलग ही कहती दिखाई पड़ती हैं। वो कहती हैं कि हम इतिहास के बच्चे हैं, जो यात्रा हमने तय की है वो बेहद जटिल है, इतनी जटिल कि शायद ज्यादातर इसे जगजाहिर भी नहीं करना चाहेंगे। यानि इटली और फासिस्म के इतिहास को वो पूरी तरह नकारती दिखती नहीं हैं।

चलिए जून की एक रैली में कहे उनके भाषण पर एक बार नज़र डालते हैं, वो कहती हैं  कि वो ईसाई स्वाभाविक फैमिली के पक्ष में हैं, एलजीबीटी लॉबी के नहीं। वो Chritianity की सार्वभौमिकता को मानती हैं, सुरक्षित सीमाएं चाहती हैं और प्रवासियों के खिलाफ़ हैं। यानि मेलोनी का एजेंडा साफ़ है राजनीतिक व्यवहारिकता की परत के तले निओ फासिस्ट पॉलिसी कितने दिन छुप पाएगी, ये मेलोनी और सरकार को सपोर्ट करने वाले उनके राजनीतिक साथियों के हाथ में ही है।

मेलोनी अब पीएम हैं, और कभी खुले में मुसोलिनी की तारीफ़ कर चुकी हैं, ऐसे में जर्मन जर्नलिस्ट को 1932  में दिए इंटरव्यू में मुसोलिनी ने कहा था- मैं महिलाओं को गुलाम बनाना नहीं चाहता, लेकिन अगर मैंने उन्हें वोट करने का अधिकार देने की कोशिश की, तो लोग मुझ पर हसेंगे ।यानि दक्षिणपंथ की जिस तंग गली में चलकर मेलोनी इटली और यूरोप में अपना और पार्टी का प्रभाव बढ़ाना चाहती हैं, विडंबना ये हैं कि वो आगे जाकर कितनी संकरी हो जाए वो शायद अभी वो खुद भी नहीं जानती।

(अल्पयु सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं।)

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