केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने पिछले दिनों बरेली में ज्ञान दिया कि देश में रोजगार की नहीं, काबिल युवाओं की ही कमी है। उन्होंने कहा कि देश में मंदी की बात समझ में आ रही है लेकिन रोजगार की कमी नहीं है। आज देश में नौकरी की कोई कमी नहीं लेकिन उत्तर भारत के युवाओं में वह काबिलियत नहीं कि उन्हें रोजगार दिया जा सके। रोजगार की कोई समस्या नहीं है, बल्कि जो भी कम्पनियां रोजगार देने आती हैं उनका कहना होता है की उन युवाओं में वो योग्यता नहीं है। अब मंत्रीजी को कौन बताए कि उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के हर क्षेत्र में योग्य व अच्छे शिक्षकों की कमी है। विश्वविद्यालय व आईआईएम जैसे संस्थान भी अच्छे शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं।
अब श्रम मंत्री कोई केंद्रीय मानव संशाधन विकास मंत्री तो हैं नहीं कि उन्हें इसका अंदाज़ा हो कि देश में घटिया शिक्षा व्यवस्था है, बिना योग्य फेकल्टी के मेडिकल कालेज, इंजीनियरिंग कालेज,एमबीए कालेज,चल रहे हैं, केंद्रीय विवि हो या राज्य विवि, दोनों जगहों पर शिक्षकों के 30 से 45 फ़ीसद पद खाली पड़े हैं, अटल सरकार में काबिल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी के कार्यकाल में कुकुरमुत्ते की तरह उग आये ढेर सारे डीम्ड विवि बिना काबिल फेकल्टी के फ़र्ज़ी डिग्रियां बांट रहे हैं ,दूरस्थ शिक्षा भ्रष्टाचार का पर्याय बन गयी है ,निजी गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाएं ज्यादातर कागजों पर चल रही हैं और घर बैठे डिग्रियां दे रही हैं, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के भ्रष्टाचार से देश भर में लेटर हेड लॉ कालेजों की भरमार है, एक और आईआईएम है तो दूसरी ओर तमाम घटिया कालेज हैं जिनसे प्राप्त एमबीए, एमसीआई की डिग्रियों पर 5 से 8 हज़ार की नौकरियां नहीं मिल रही हैं। ऐसा ही हाल मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षण संस्थानों का है। ऐसे सिनेरियो में युवा अयोग्य नहीं निकलेंगे तो क्या निकलेंगे?
डीम्ड विश्वविद्यालयों का मामला वर्ष 2006 से ही विप्लव शर्मा बनाम यूनियम ऑफ इंडिया (142/2006 रिट सिविल) का चल रहा है है। डीम्ड विश्वविद्यालयों द्वारा गुणवत्तायुक्त पठन-पाठन के बजाय यूजीसी और दूरस्थ शिक्षा विभाग के नियमों का खुला उल्लंघन करके पूरे देश में फर्जी डिग्रियां बांट कर प्रतिवर्ष अरबों रुपयों का वारा-न्यारा करने के मामले में उच्चतम न्यायालय से अभी तक अंतिम निर्णय अथवा निर्देश नहीं आया।
नतीजतन डिग्रियों के फर्जीवाड़े का खेल अब भी बदस्तूर जारी है। देश के सभी डीम्ड विश्वविद्यालयों के कामकाज की समीक्षा करने के लिए टंडन समिति बनाई गयी थी, जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक देश के 130 में से 44 डीम्ड विश्वविद्यालय इस खास दर्जे के अयोग्य हैं, इन्हें पारिवारिक कारोबार की तरह चलाया जा रहा है और इनके पीछे कोई अकादमिक नज़िरया नहीं है। उच्चतम न्यायालय में मानव संसाधन मंत्रालय ने 18 जनवरी 10 को उच्चतम न्यायालय में दायर एक हलफ़नामे में 44 डीम्ड विश्वविद्यालयों की मान्यता रद्द करने की बात कही थी, जो टंडन समिति की रिपोर्ट पर आधारित थी। इस पर 25 जनवरी 2010 को उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी थी। वर्ष 2015 में उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई पर मामला जस का तस पड़ा हुआ है और डिग्रियां बंट रही हैं।
फ़रवरी, 2017 में एक आरटीआई से खुलासा हुआ था कि आईआईटी जैसे शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थान भी टीचरों की कमी से बुरी तरह जूझ रहे हैं। देश की 23 आईआईटी में शिक्षकों के औसतन लगभग 35 प्रतिशत स्वीकृत पद खाली पड़े हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार एक अक्टूबर 2016 तक की स्थिति के मुताबिक देश के 23 आईआईटी में कुल 82,603 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं और इनमें काम कर रहे शिक्षकों की संख्या 5,072 है, जबकि इन संस्थानों में अध्यापकों के कुल 7,744 पद स्वीकृत हैं यानी 2,672 पद खाली रहने के कारण इनमें 35 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है।
मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी को लेकर इंडियन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) कई बार आपत्ति व्यक्त कर चुकी है। खासकर राजकीय मेडिकल कॉलेज बेमें शिक्षकों की काफी कमी है। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) ने मानकों पर खरा न उतरने के कारण उत्तर प्रदेश के 16 प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में से सात मेडिकल कॉलेज में वर्ष 2015 में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इन कॉलेजों में एमबीबीएस की 900 सीटें थीं।
(लेखक जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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