Tuesday, March 19, 2024

ज्योति का गीत ही बन गया गुनाह!

(ज्योति जगताप हिंदुत्व, जातिवाद, असमानता के खिलाफ गाती थीं। सितंबर में यह निडर और दृढ़ लड़की भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार की गई। गिरफ्तार की जाने वाली अपने सांस्कृतिक समूह की वह तीसरी सदस्य और इस प्रकरण में गिरफ्तार की जाने वाली सबसे कम उम्र की आरोपी। अन्य 15 की तरह उन पर भी राजद्रोह और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप है।)

मुंबई: “तुम जेल में औैर कैदियों का मार्गदर्शन कर सकती होे। इस तरह तुम्हारा समय ज़ाया नहीं जाएगा।“

इन शब्दों के साथ रूपाली जाधव ने अपनी कबीर कला मंच की सहयोगी ज्योति जगताप को 8 सितंबर, 2020 को महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते के पुणे कार्यालय में विदा दी थी। एटीएस ने 33 वर्षीय जगताप को उसी सुबह गिरफ्तार किया था एक ट्रैफिक सिग्नल पर उनकी स्प्लेंडर मोटर साइकल रोककर जब वह जाधव से मिलने जा रही थीं। दोनों सहेलियों को दोपहर में मिलना था। पौने एक बजे जाधव को एटीएस से फोन आया कि वह अपनी सहेली की मोटरसाइकल व अन्य चीजें लेकर जाए।

9 अक्तूबर, 2020 को एनआईए ने 10,000 पृष्ठों का आरोपपत्र दाखिल कर जगताप व अन्य पर “भड़काऊ प्रस्तुतियां और भाषण देकर“ हिंसा भड़काने और सामुदायिक विद्वेष फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि इनके प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से संबंध हैं। आरोपपत्र से जो एक बात गायब थी, वह मूल आरोप जो पुणे पुलिस ने प्रथम पांच आरोपियों पर नवंबर 2018 में लगाया था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे थे।

हाल में झारखंड में गिरफ्तार किये गये 83 वर्षीय स्टेन स्वामी समेत आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता, 1860 की 10 धाराओं और गैरकानूनी गतिविधि प्रतिबंधक अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत आरोप लगाये गये हैं। जुलाई, 2020 के ‘आर्टिकल 14’ के एक विश्लेषण में जैसा कि बताया गया कि यूएपीए की कानूनी प्रक्रिया के लिए किसी व्यक्ति के अपराधी होने या निर्दोष होने के कोई मायने नहीं हैं।

पुणे के सर परशुराम भाऊ कॉलेज से मनोविज्ञान में एमए जगताप – जो इस समय मुंबई के भायखला जेल में हैं – पुणे के एक निजी संस्थान से परामर्श सेवा और रेशनल इमोटिव बिहेवियर थेरेपी का कोर्स कर रही थीं और इसके बाद उनकी अपना क्लीनिक खोलने की योजना थी।

8 अक्तूबर के आरोपपत्र में एनआईए ने जगताप और पहले गिरफ्तार दो कलाकारों को “भाकपा (माओवादी) का प्रशिक्षित कार्यकर्ता करार दिया था जिन्होंने पुणे में तीन साल पहले हुई एलगार परिषद के आयोजन के लिए बैठकों में हिस्सा लिया था।“

जगताप की वकील सुसैन अब्राहम के अनुसार जगताप की भूमिका इतनी ही बताई गई है कि वह एल्गार परिषद में एक प्रस्तुति का हिस्सा थीं। एक मजिस्ट्रेट के सामने एनआईए के दर्ज वादामाफ गवाहों के बयानों में जगताप पर यह आरोप भी लगाया गया है कि उन्हें माओवादियों से ‘जंगल में प्रशिक्षण‘ प्राप्त हुआ।

‘नई पेशवाई को समाप्त करें‘

जगताप, जो 2007 में 20 वर्ष की उम्र में कबीर कला मंच से जुड़ीं, मंच की भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार तीसरी सदस्य हैं। 

मामला भीमा कोरेगांव में भड़की हिंसा से संबंधित है, जहां 1 जनवरी, 2018 को अंग्रेजों और पेशवाओं के बीच युद्ध की 200वीं वर्षगांठ में हजारों दलित जमा हुए थे। 

यहीं 500 महारों (अनुसूचित जाति के) ने अंग्रेजों की पेशवाओं से लड़ने में मदद की थी। डॉ. बीआर अंबेडकर ने जब 1927 में अंग्रेजों के बनाये स्मारक पर पहली बार श्रद्धासुमन अर्पित किये, तब से दलित हर वर्ष एक जनवरी को यहां आने लगे।  

हिंसा की जांच के लिए स्थापित दो सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग के समक्ष गवाहों और पीड़ितों की गवाहियों के अनुसार 1 जनवरी, 2018 को वहां जा रहे दलितों पर भगवा झंडे लिये भीड़ ने पथराव किया। बाद में हिंसा ने झड़पों का रूप ले लिया और गैर दलितों की संपत्तियां जलाई गईं व एक व्यक्ति की मौत हुई। 

डॉ. बीआर आंबेडकर।

1 जनवरी, 2018 के कार्यक्रम से एक दिन पहले सांस्कृतिक संगठन कबीर कला मंच, जो पिछले 18 वर्षों से महाराष्ट्र में सामाजिक न्याय के अपने संदेश का प्रसार कर रहा है, ने पुणे के शनिवार वाड़ा में 31 दिसंबर, 2017 को एक प्रस्तुति दी थी। 

दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों पीबी सावंत और बीजी कोलसे पाटिल की दलित व वाम समूहों की मदद से शनिवार वाड़ा मैदान में आयोजित परिषद में 35,000 लोग जमा हुए। 

घटना के आठ दिन बाद पुणे पुलिस की दर्ज प्राथमिकी में गीत के बोल दिये गये हैं:

भीमा कोरेगांव ने दिला धड़ा/

नवी पेशवाई मसनत गाड़ा/

उद्या ठिकऱ्या राई राई रे/

गाड़ून टाकवा पेशवाई रे/

गर्जना सिदनाकाची/आली नवी पेशवाई रे/

गरज तिला ठोकायची रे/सैनिका गरज तिला ठोकायची 

(भीमा कोरेगांव ने हमें सबक सिखाया है/नई पेशवाई को दफना दो/पेशवाई पर ण्ण्ण् /और इसे दफना दो/दहाड़ता है सिदनक/नई पेशवाई आई है/इस किस की जरूरत है/सैनिकों की इसे जरूरत है।) 

शिकायतकर्ता तुषार रमेश दामगुड़े, प्राथमिकी में जिन्होंने खुद को बिल्डर (“कार्य – पुनर्निमाण) बताया है,  हिंदुत्व नेता संभाजी भिड़े के स्वयंभू प्रशंसक हैं, ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि ज्योति जगताप, सागर गोरखे और रमेश घायचोर, सभी कबीर कला मंच के सदस्य हैं, ने इस गाने के जरिये “दुर्भावना और वैमनस्य“ फैलाया। 

‘नक्सल‘ लेबल

प्राथमिकी में दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले के भाषणों और वहां लगे “भड़काऊ नारों“ का भी ज़िक्र है। इन सभी बातों के कारण प्राथमिकी के अनुसार भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी, 2018 को जातीय संघर्ष हुए। 

प्राथमिकी में आरोप है कि भाकपा (माओवादी) की इस कार्यक्रम में “सांगठनिक“ भूमिका थी और यह सब दमित वर्गों में “माओवादी विचारधारा फैलाने और उन्हें असंवैधानिक हिंसक गतिविधियों की तरफ मोड़ने“ के लिए किया गया।

यही वह प्राथमिकी थी जिसके आधार पर 16 बुद्धिजीवियों, वकीलों और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां जून, 2018 से की गई हैं।

मंच के दो साथियों की तरह, जगताप पर भी अन्य आरोपों के अलावा राजद्रोह, भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने, दो वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाने, आपराधिक षड्यंत्र रचने और यूएपीए की आतंकवाद संबंधी धाराएं लगाई गई हैं।

वरवर राव।

8 सितंबर, जिस दिन जगताप को गिरफ्तार किया गया, एनआईए ने एक बयान जारी किया जिसमें कबीर कला मंच को “प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का एक फ्रंटल संगठन“ बताया गया। इसी तरह का जिक्र पुणे पुलिस ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स के लिए भी किया था, जिसके तीन सदस्य (सुरेंद्र गाडलिंग, सुधा भारद्वाज और अरुण फरेरा) भीमा कोरेगांव आरोपी हैं। फरेरा के वकील संदीप पसबोला ने अदालत में कहा कि पुलिस के पास इस निष्कर्ष तक पहुंचने का कोई आधार नहीं है क्योंकि उनके आरोपों को आधार देने के लिए कोई सामग्री नहीं है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एन साईबाबा को माओवादी संबंधों का दोषी ठहराने वाले अदालती फैसले का विश्लेषण करते हुए गौतम भाटिया ने लिखा था कि “कानून में कोई प्रावधान नहीं है कि किसी संगठन को फ्रंटल संगठन घोषित किया जाए।“

एनआईए ने यह भी कहा कि मंच के तीनों सदस्य “नक्सल गतिविधियों और माओवादी विचारधारा का प्रसार कर रहे थे और अन्य आरोपियों के साथ सह-षड्यंत्रकारी थे।“

कार्यक्रम से पहले एक मराठी समाचार चैनल के दिये इंटरव्यू में जगताप ने एल्गार परिषद कार्यक्रम के पीछे का कारण बताते हुए कहा था, “मुख्य रूप से पिछले तीन-चार सालों में स्थिति भयावह हो गई है। मनुवादी सोच एक बार फिर मजबूत हो गई है जब से वह सत्ता में आए हैं। जातीय और धार्मिक वैमनस्य बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है।“ उन्होंने कहा था, “इसलिए महाराष्ट्र में सक्रिय लगभग 200-250 संगठनों ने महसूस किया कि उन्हें एक बैनर तले आना चाहिए और संगठित तरीके से अपना प्रतिरोध दर्ज करना चाहिए। यह संगठन ‘भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान’ नामक मोर्चे के तहत एक साथ आए हैं। वह शनिवार वाड़ा में एल्गार परिषद करेंगे।“

जगताप की गिरफ्तारी भीमा कोरेगांव मामले में समय समय पर हुई गिरफ्तारियों के पैटर्न पर है, पहली गिरफ्तारी जून 2018 में हुई थी और मुकदमा अभी शुरू होना बाकी है। उन सभी आरोपियों ने इस दौरान जमानत याचिका दाखिल की है जैसे मानवाधिकार वकील और टीचर सुधा भारद्वाज और कवि वरवर राव, को जमानत देने से इंकार किया जाता रहा है। 22 अक्तूबर को, फादर स्टेन स्वामी की स्वास्थ्य आधार पर जमानत अर्जी खारिज की गई।

वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई, जो बांबे उच्च न्यायालय में इनमें से कुछ आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने ‘आर्टिकल 14’ को बताया कि रह-रहकर गिरफ्तारियां करने का यह तरीका “मुकदमे को टालने में मदद करता है ताकि आरोपियों को जितना ज्यादा समय संभव हो, तक जेल में रखा जा सके।“

कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार आखिर क्यों किया गया?

भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा को लेकर सिर्फ यह इकलौती प्राथमिकी नहीं थी। इस प्राथमिकी से पहले एक प्राथमिकी हिंसा भड़कने के तुरंत बाद 2 जनवरी को कार्यकर्ता अनिता सावले, जो भीमा कोरेगांव गई थीं, ने दर्ज कराई थी। सावले ने हिंसा भड़काने के लिए हिंदुत्व नेताओं संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगाया था।

प्राथमिकी के आधार पर एकबोटे को गिरफ्तार किया गया जब उच्चतम न्यायालय ने उनकी अग्रिम जमानत रद्द कर दी थी। वह इस समय जमानत पर बाहर हैं। भिड़े को कभी गिरफ्तार नहीं किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने उन्हें विधानसभा में क्लीन चिट दी थी।

26 मार्च, 2018 को भारिप बहुजन महासंघ नेता प्रकाश अंबेडकर ने भिड़े की गिरफ्तारी की मांग को लेकर मुंबई में एक मार्च निकाला जिसमें 20,000 के करीब लोग शामिल हुए। 18 अप्रैल, 2018 को जगताप समेत मंच के तीन कलाकारों के घरों पर पुणे पुलिस ने छापा मारा। जून में प्रकरण में पहली पांच गिरफ्तारियां हुईं।

गाना गाती ज्योति जगताप।

जगताप ने तब गिरफ्तारियों को भिड़े की गिरफ्तारी से जोड़ा था। उन्होंने कहा था, “यह भाजपा सरकार और कानूनी संस्थाओं की तरफ से सुनियोजित साजिश लग रही है। अंबेडकरवादी कार्यकर्ता भीमा कोरेगांव हिंसा के छह महीने बाद गिरफ्तार किये जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने हिंदुत्व नेता संभाजी भिड़े ‘गुरूजी‘, जो जनवरी 1 हिंसा में प्रमुख आरोपी हैं, की गिरफ्तारी की मांग की।

‘हम सिर्फ गीत ही तो गाते हैं‘

कबीर कला मंच 2002 गुजरात दंगों के बाद पुणे में कुछ युवाओं ने बनाया था। वह पुणे की बस्तियों में हिंदुत्व, जातिवाद, असमानता और गरीबों के खिलाफ राजसत्ता के अत्याचारों के खिलाफ व अंबेडकर की दी शिक्षाओं की सराहना में गाते थे।

‘नवायना’ के संपादक एस आनंद के शब्दों में, “उनके गीतों के बोल अंबेडकर और वाम को मिलाते थे।“ पटवर्धन के वृत्तचित्र के साथ मंच को लोकप्रियता भी मिली और उन पर पुलिस की नजर भी।

2011 में, मंच सदस्यों दीपक ढेंगले और सिद्धार्थ भोसले की गिरफ्तारी हुई। उनकी गिरफ्तारियों ने समूह के जगताप समेत अन्य सदस्यों को अंडरग्राउंड जाने को मजबूर किया। ‘कबीर कला मंच रक्षा समिति’ का गठन 2012 में पटवर्धन के नेतृत्व में हुआ और इसका समर्थन वरिष्ठ समाजवादी भाई वैद्य और रत्ना पाठक शाह जैसे बुद्धिजीवियों ने किया।

ढेंगले और भोसले को जनवरी, 2013 में जमानत मिली। जमानत में न्यायाधीश ए एम थिप्से ने कहा कि कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति आकर्षित होना या सामाजिक परिवर्तन की इच्छा व्यक्त करना अपराध नहीं है और भाकपा (माओवादी) के सदस्य होने का आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका है। अंडरग्राउंड हुए कार्यकर्ता दो बैच में शासन के समक्ष पेश हुए। जगताप अप्रैल 2013 में सामने आईं। उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया।

2011 में शुरू हुई मंच की पुलिस निगरानी कभी सुस्त नहीं पड़ी।

2009 में मंच से जुड़ने वाली 34 वर्षीय रूपाली जाधव कहती हैं, “हम गाने ही तो गाते हैं। गीत ठोस नहीं होता। इसलिए हमारे गीतों की ऊर्जा भर देने वाली ताकत होगी जिसने पुलिस को हैरान कर दिया।“

वह कहती हैं, “जहां कहीं अन्याय होता है, हम प्रस्तुति देते हैं। लवासा के खिलाफ हमारी प्रस्तुति को जबरदस्त प्रतिसाद मिला था। चूंकि हम किसी पार्टी का हिस्सा नहीं हैं, हम आसान लक्ष्य हैं।“

कोलसे पाटिल ने कहा, “वह लोग मुझसे अपनी मुश्किलें और दुख साझा करते थे। उनके पास कपड़ों के लिए तो क्या भोजन के लिए भी पैसा न होता था। इसके बावजूद मंच पर उन्होंने कभी इसका अहसास नहीं होने दिया। मुझे नहीं आता उनमें इतनी ताकत कहां से आती है। सरकार का उनका विरोध वैचारिक है, वह मनुवाद औैर पैसा-वाद के खिलाफ बोलते हैं। पर वह इस सरकार को बर्दाश्त नहीं।“

मंच को थामे रखना

2013 में मंच के तीन सदस्यों के यूएपीए के तहत जेल में होने ओर अन्य के पुलिस की नजर में होने के कारण मंच बिखर सकता था। पहले से पैसे का अभाव झेल रहे थे, प्रस्तुतियों के मौके सूख रहे थे क्योंकि पुलिस उन्हें आमंत्रित करने वालों को धमकाने लगी थी।

ऐसे हालात में सिद्धार्थ भोसले, दीपक ढेंगले, रूपाली जाधव और ज्योति जगताप ने सुनिश्चित किया कि मंच जिंदा रहे। ढेंगले के अनुसार, मंच को चलाए रखने में जगताप सबसे ज्यादा दृढ़ संकल्प थीं।

अब तक जगताप कोरस में ही गाती थीं, मुख्य गायिका नहीं थीं। जाधव और ढेंगले के अनुसार उनकी प्रतिभा नाटक लिखने और निर्देशन की थी। वह अच्छी सूत्रधार भी थीं, दर्शकों को मंच का परिचय देने में, दर्शकों से सवाल पूछने में।

पुरस्कार प्राप्त लेखक व अनुवादक मिलिंद चंपानेरकर के अनुसार, “उनकी हल्की शुष्क आवाज और गैर शहरी लहजा उन्हें ग्रामीण दर्शकों के साथ तालमेल बिठाने में मदद करता था।“

 2013 में बदले हालात ने लेकिन उन्हें मंच प्रस्तुतियों में मुख्य भूमिका निभाने पर मजबूर किया। जाधव कहती हैं, जगताप में नेतृत्व के गुण शुरू से थे। वह कहती हैं, “उनकी बॉडी लेंग्वेज उनका आत्मविश्वास दर्शाती थी। हम महिलाओं में मौकों पर पुरुषों के सामने हथियार डालने की प्रवृत्ति होती है यह सोचकर कि कुछ चीजें वह बेहतर संभाल सकते हैं। ज्योति ने ऐसा कभी नहीं किया।“

कबीर कला मंच के कलाकार।

चंपानेरकर ने उनके तमाशा प्रस्तुति में सूत्रधार की भूमिका का जिक्र किया, पारंपरिक रूप से भूमिका पुरुष ही निभाते हैं। परभणी जिले के एक गांव में देर रात प्रस्तुति के दौरान अचानक बिजली चली गई पर ज्योति एक मिनट के लिए भी विचलित न हुई।“

जब मंच ने भारतीय फिल्म एवं टीवी संस्थान में अगस्त, 2013 में प्रस्तुति (जिसकी परिणिति हिंसा में हुई) दी, जगताप ने परिचय यूं दिया: “हम ग्वालियर, या जयपुर या आगरा घराने से प्रशिक्षित संगीतकार नहीं हैं। हम बस्ती, कारखानों और खेत मजदूर घरानों के श्रमिक वर्ग से हैं। हम परफेक्ट नोट नहीं प्रस्तुत कर पाएंगे न हम कोई वाद्य परफेक्शन से बजा पाएंगे लेकिन अगर हमारे शब्दों को आप गौर से सुनेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि हम जो कहना चाहते हैं, आपको रुचेगा।“

परिचय का यह अंदाज दर्शाता है कि जगताप कबीर कला मंच के सदस्य के रूप में कितना आगे निकल गई थीं।

लोगों की भाषा सीखना

जब 2007 में वह मंच से जुड़ी थीं, जगताप की कला के के बारे में पारंपरिक समझ थी। जैसा कि उन्होंने महाराष्ट्र में सांस्कृतिक आंदोलनों पर अनुसंधान कर रहीं अरित्रा भट्टाचार्य को बताया, “कबीर कला मंच में मैंने पहली बार महसूस किया कि आप आम लोगों की जुबान में बहुत खूबसूरत बातें कह सकते हैं। और यह भी कि आपको आम लोगों की जुबान में ही बोलना चाहिए…..जब मैं मंच पर पहली बार गई….मैं सोचती थी कि क्या इन गीतों को सचमुच प्रतिसाद मिलता होगा… और तब मैंने देखा, हां, यह लोगों की आवाज है।“

जगताप ने भट्टाचार्य को बताया था कि वह किशोरावस्था में राष्ट्र सेवा दल से जुड़ीं। 1941 में समाजवादी स्वतंत्रता सेनानियों साने गुरूजी और एसएम जोशी और अन्य के स्थापित संगठन के जेंडर व धर्मनिरपेक्षता के मुद्दों व नुक्कड़ नाटकों से वह आकर्षित थीं। कभी मुंबई मिल मजदूर रहे और बाद में जेजुरी के निकट बेलसर गांव में लौटकर खेती करने वाले उनके पिता ने उदार व समतावादी तरीके से जिस तरह परवरिश की थी, उसकी भी उनके निर्माण में भूमिका थी।

जब जगताप 2007 में मंच से जुड़ीं, उससे पहले भी वह छात्रों के लिए बसों की मांग व महिला अधिकारों को लेकर छात्रों के प्रदर्शनों का हिस्सा बन चुकी थीं। उन्होंने भट्टाचार्य को बताया कि मंच ने दो बातों को लेकर उनकी आंखें खोलीं: शहरी झुग्गियां, जहां मंच के सदस्य रहते थे और जो उन्होंने कभी नहीं देखी थीं, और जाति का प्रश्न, माली (अन्य पिछड़े वर्ग) से होने के कारण जो उन्होंने कभी अनुभव नहीं किया था। राष्ट्र सेवा दल में इसकी चर्चा भी कभी नहीं हुई थी।

उनके शब्दों में, “जब मैं कबीर कला मंच में आई, मैंने उन्हें जाति के बारे में बातचीत करते सुना और मुझे आश्चर्य होता था कि वह ऐसी चीज के बारे में बात क्यों कर रहे हैं जो हजारों वर्ष पुरानी है।“

 उन्होंने भट्टाचार्य को बताया कि तब तक जगताप बी आर अंबेडकर को संविधान के लेखक और महारों के नेता के रूप में ही जानती थीं। पर उनकी ‘स्टेट्स एंड माइनॉरिटीज‘ पढ़ने के बाद उन्हें लगा कि अंबेडकर ऐसे विचारक थे जिनके रास्ते पर चलना चाहिए।

उनके साथियों के अनुसार वह प्रक्रिया जगताप की अपनी थी। ढेंगले युवा साथी के लिए ‘पढ़ाकू’ शब्द इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं, “वह केवल खुद ही नहीं पढ़ती थीं औरों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती थीं। वह गंभीर थीं, हंसी-ठिठोली में वक्त ज़ाया करने वाली नहीं।“

जनवरी, 2017 में दो सदस्यों के जमानत पर छूटने के तुरंत बाद मंच में दो फाड़ होने पर जगताप ने सवालों के जवाब दिये थे।

जाधव बताती हैं, “ज्योति पर अपने हर मिनट का इस्तेमाल करने का जुनून था। इसलिए पुलिस जब उन्हें ले जा रही थी तो उनका (जाधव का) आखिरी संदेश था: चिंता मत करो, तुम जेल में कैदियों को परामर्श दे सकती हो, तुम अपना समय ज़ाया नहीं करोगी।“

भट्टाचार्य के अनुसार मंच के सभी सदस्यों में से जगताप सबसे अंतर्मुखी और शिक्षा के प्रति रुझान रखने वाली थीं। वह चर्चाएं करतीं, उनमें हिस्सा लेतीं और अकादमिकों से संवाद उनकी विशेषता थी।

जाधव कहती हैं, उनके व्यक्तित्व में अंतर ही कारण है कि वह अपने रिश्ते को “कॉमरेडशिप“ करार देती हैं। बहुत मुश्किल समय में वर्षों समय गुज़ारने के बाद, चाहे अंडरग्राउंड हों या मराठवाड़ा के गांवों में प्रकाश अंबेडकर की राजनीतिक पार्टी बहुजन वंचित अघाड़ी के लिए 2019 लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान (कबीर कला मंच ने एक समूह के रूप में अंबेडकर की पार्टी को समर्थन का फैसला किया था, जगताप की गिरफ्तारी के बाद इस लेखिका के संदेशों या कॉल का जवाब उन्होंने (अंबेडकर ने) नहीं दिया। जाधव कहती हैं, वह “सहेलियां“ नहीं हैं।

वह कहती हैं, “हम कॉमरेडशिप साझा करते थे, हम लड़कियों की तरह दोस्त नहीं हैं। मेरे अपने दोस्त हैं लेकिन कॉमरेड के रूप में हम दिन हो या रात हमेशा एक दूसरे के लिए उपलब्ध थे।“ जब 8 सितंबर को उन्हें गिरफ्तार किया गया तो एटीएस को जगताप ने जाधव का नंबर दिया।

ढेंगले और जाधव के अनुसार जगताप पुलिस को कभी अपने किसी पारिवारिक सदस्य का नंबर नहीं दे सकती थीं क्योंकि वह अपने परिजनों को अपनी एक्टविज्म के कारण परेशान नहीं होने देना चाहतीं। ढेंगले के अनुसार, “वह ग्रामीण लोग हैं और पुलिस वहां जाती तो उनके लिए परेशानी की बात होती।“

“जाधव जब आखिरी बार उनसे मिली थीं तो क्या कैद की आशंका को देखते हुए जगताप रोई थीं?“

जाधव पूछती हैं, “रोई थीं? हम रोने से दूर जा चुके हैं। जब हमने व्यवस्था की पोल खोलनी शुरू की थी हम जानते थे कि सत्ता हमारे पीछे पड़ेगी। हम यह भी जानते थे कि हमने कुछ गलत नहीं किया, संविधान से परे किसी बात की वकालत नहीं की।“

(ज्योति पुनवानी मुंबई से स्वतंत्र पत्रकार हैं। और उनका यह लेख ‘आर्टिकल14’ में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था।)

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