कश्मीर बताता है कि भारत कैसे विक्षिप्त जुनूनी तत्वों की गिरफ्त में है!

ओफ! कश्मीर अब पूरी तरह से एक जुनूनी ताकतवर व्यक्ति की विध्वंसकता का शिकार बन चुका है। मोदी कश्मीर का उद्धार करने का दंभ भरते हैं और दिन प्रति दिन उसकी पूरी बर्बादी की कहानी रच रहे हैं। वे भारत के एक अंग को नष्ट करके पूरे भारत को पंगु बना देने की जिद पर उतरे हुए हैं।

मनोविश्लेषण में जुनूनी विक्षिप्तता का यह प्रमुख लक्षण बताया गया है कि इसके शिकार व्यक्ति हमेशा किसी अभिनेता की तरह, किसी बोध-शून्य मृत व्यक्ति की तरह का आचरण करता है। वह हमेशा अपने को मौत से बचाने की धुन में ऐसा आचरण करता है जैसे वह अपराजेय हो। अपना प्रभुत्व दिखाना ही उसका जैसे अंतिम लक्ष्य हो जाता है। इसी के आधार पर अन्य सब के साथ वह अपने रिश्ते बनाता है, हमेशा किसी भी हद तक चले जाने का डर पैदा करता रहता है। अन्य सब को अपने सामने तुच्छ बताने का यह खेल वह कुछ इस प्रकार खेलता है, मानो वह तो इसका महज एक उपभोक्ता दर्शक है। सच्चाई यह है कि वह अपनी वास्तविक स्थिति से गैर-वाकिफ होता है। यही उसका अवचेतन है। वह अपने काम के लिए बहाने ढूंढ कर ऐसा दिखावा करता है कि वह कोई खेल नहीं खेल रहा है, लेकिन सचाई है कि वह हमेशा एक खेल में शामिल रहता है। मनोविश्लेषण में कहते हैं कि स्त्री को प्रभावित करना उसका लक्ष्य होता है, लेकिन एक प्रच्छन्न लक्ष्य। उसके लिए अपनी विध्वंसक शक्ति का प्रदर्शन; एक विफल शासक के द्वारा जनता को डरा कर जीतने का उपक्रम।

पूरे कश्मीर को जेल में तब्दील कर वहां के लोगों को बंदी बना कर रख दिया गया है, और दुनिया को कहा जा रहा है कि वहां के लोगों को मुक्त किया जा रहा है! कश्मीर के सारे उद्योग-धंधों को तबाह करके वहां निवेश बढ़ाने की बात की जा रही है! जनतंत्र को पूरी तरह से नष्ट करके सच्चे जनतंत्र की स्थापना का दावा किया जा रहा है! और तो और, दुनिया के मंचों पर लगातार झूठा प्रचार करके उसे ही भारत की सच्चाई मान लेने का अभिनय किया जा रहा है।

संवेदनहीनता की यह पराकाष्ठा आदमी में बिना किसी विक्षिप्तता के संभव नहीं है। कश्मीर ही नहीं, अब तो पूरे भारत के हर मोर्चे पर बिगड़ते हुए हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह देश पूरी तरह से विक्षिप्त जुनूनी तत्वों की विध्वंसक साजिशों में फंस गया है। हाल के महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में जनता ने इस पागलपन से मुक्ति की करवट के संकेत दिए हैं, लेकिन राजनीति की दुनिया की अपनी कुछ आत्म-बाधाएं अब भी टूटनी बाकी है, ताकि इन दरारों से जनता में हो रहा आलोड़न अपने को पूरी तरह से प्रकट कर सके। हिरण्यकश्यप के वध के लिए नृसिंह देव के नख-दंत सभी आवरणों को फाड़ कर सामने आने के लिए मचलने लगे हैं।

अरुण माहेश्वरी
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अरुण माहेश्वरी