Thursday, March 28, 2024

किसान आंदोलनः सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के सदस्यों की निष्पक्षता पर उठ रहे हैं गंभीर सवाल

उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति के सदस्यों की निष्पक्षता को लेकर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गए हैं और उच्चतम न्यायालय की शुचिता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कमेटी के चार में से तीन सदस्य पहले से ही कृषि कानूनों के बारे में सरकार के पक्ष में अपनी राय जाहिर कर चुके हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति के चार सदस्यों में से एक अशोक गुलाटी (कृषि अर्थशास्त्री), जहां तीनों कृषि कानूनों के समर्थन में कलमतोड़ लेख लिखते रहे हैं, वहीं इसके एक अन्य सदस्य भूपिंदर सिंह मान (अध्यक्ष बेकीयू) सरकार के इन कानूनों के समर्थक हैं।

भूपिंदर सिंह मान उन किसान नेताओं में से एक हैं, जो मोदी सरकार के इन तीनों कृषि कानूनों का समर्थन करते रहे हैं, जिनके विरोध में किसान केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद हो चुके हैं। पिछले महीने, यानी 14 दिसंबर को उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखकर कुछ मांगें सामने रखी थीं।

पत्र में भूपिंदर सिंह मान ने लिखा था कि आज भारत की कृषि व्यसवस्था को मुक्तक करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जो तीन कानून पारित किए गए हैं हम उन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं। हम जानते हैं कि उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों  में एवं विशेषकर दिल्ली में जारी किसान आंदोलन में शामिल कुछ तत्व इन कृषि कानूनों के बारे में किसानों में गलतफहमियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

भूपिंदर सिंह मान कहते हैं कि हमारे अथक प्रयासों और लंबे संघर्षों के परिणाम स्वरूप जो आजादी की सुबह किसानों के जीवन में क्षितिज पर दिखाई दे रही है, आज उसी सुबह को फिर से अंधेरी रात में बदल देने के लिए कुछ तत्व आगे आकर किसानों में गलतफहमियां पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हम मीडिया से भी मिलकर इस बात को स्पष्ट करना चाहते हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों के किसान सरकार द्वारा पारित तीनों कानूनों के के पक्ष में हैं। हम पुरानी मंडी प्रणाली से क्षुब्ध और पीड़ित रहे हैं। हम नहीं चाहते कि किसी भी सूरते हाल में शोषण की वही व्यवस्था किसानों पर लादी जाएं।

शेतकरी संगठन और इसके अध्यक्ष तो बिलकुल खुला समर्थन सरकार के तीनों कृषि कानूनों को दे चुके हैं। जब किसान सड़कों पर बैठ कर इसका विरोध कर रहे थे, तो शेतकरी संगठन वाले कृषि क़ानूनों के समर्थन में रैलियां आयोजित कर रहे थे। पटाखे फोड़ रहे थे ओर इसे जश्न के तौर पर मना रहे थे। शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत इन बिलों को बड़ा सुधार बता चुके हैं और कह रहे हैं कि इससे किसानों को वित्तीय आजादी मिलेगी। घनवत ने पिछले दिनों ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा है कि उनके कृषि संगठन ने बिल का समर्थन करने का निर्णय लिया है, क्योंकि इन बिलों से किसानों को मदद मिलेगी।

अशोक गुलाटी तो पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने लेख में कह चुके हैं कि ‘इन कानूनों से किसानों को अपने उत्पाद बेचने के मामले में और खरीदारों को खरीदने और भंडारण करने के मामले में ज्यादा विकल्प और आजादी हासिल होगी। इस तरह खेतिहर उत्पादों की बाजार-व्यवस्था के भीतर प्रतिस्पर्धा कायम होगी। इस प्रतिस्पर्धा से खेतिहर उत्पादों के मामले में ज्यादा कारगर मूल्य-ऋंखला (वैल्यू चेन) तैयार करने में मदद मिलेगी, क्योंकि मार्केटिंग की लागत कम होगी, उपज को बेहतर कीमत पर बेचने के अवसर होंगे, उपज पर किसानों का औसत लाभ बढ़ेगा और साथ ही उपभोक्ता के लिए भी सहूलत होगी, उसे कम कीमत अदा करनी पड़ेगी। इससे भंडारण के मामले में निजी निवेश को भी बढ़ावा तो कृषि-उपज की बरबादी कम होगी और समय-समय पर कीमतों में जो उतार-चढ़ाव होते रहता है, उस पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

कमेटी के एक अन्य सदस्य डॉ. प्रमोद कुमार जोशी के बारे में कहा जा रहा है कि वे कॉरपोरेट समर्थक हैं।

दरअसल मंगलवार को उच्चतम न्यायालय  ने कृषि कानून के अमल पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में विवाद के समाधान के लिए एक चार सदस्यीय कमेटी बनाई है। इस कमेटी में भूपिंदर सिंह मान (अध्यक्ष बेकीयू), डॉ. प्रमोद कुमार जोशी (अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान), अशोक गुलाटी (कृषि अर्थशास्त्री) और अनिल धनवट (शेतकेरी संगठन, महाराष्ट्र) होंगे। यह कमेटी मामले की मध्यस्थता नहीं, बल्कि समाधान निकालने की कोशिश करेगी। ये कमेटी अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को ही सौंपेगी।

उच्चतम न्यायालय ने भी साफ किया कि कमेटी कोई मध्यस्थ्ता कराने का काम नहीं करेगी, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाएगी। कमेटी कानून का समर्थन और विरोध कर रहे किसानों से बात करेगी। दोनों पक्ष को सुना जाएगा।

अब उच्चतम न्यायालय ने जो समिति कोर्ट की मदद के लिए बनाई है, वह क्या रिपोर्ट देगी। इसे ही भांपकर किसान संगठनों ने सोमवार की रात को ही घोषणा कर दी थी कि वे प्रस्तावित समिति के पक्ष में नहीं हैं। मंगलवार की सुनवाई में किसान संगठनों के वकील अदालत से अनुपस्थित रहे और जिस एमएल शर्मा की याचिका पर सुनवाई हुई, वह आंदोलनरत 40 किसान संगठनों में से किसी का वकील नहीं है, बस आदती जनहित याचिका दाखिल करता रहता है। पूर्व में उच्चतम न्यायालय एमएल शर्मा पर जुर्माना भी लगा चुका है।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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