Saturday, April 20, 2024

बिहार में सरकारी आंकड़ों से 20 गुना ज़्यादा मौतें कोविड की दूसरी लहर में हुयी हैं: माले

बिहार में कोविड से होने वाली मौतों का आधिकारिक सरकारी आँकड़ा 9646 है, जिसमें कोविड-19 की पहली लहर में हुयी 1500 मौतें भी जुड़ी हुयी हैं। लेकिन सीपीआई माले का दावा है कि असल में इससे 20-25 गुना ज़्यादा मौतें हुयी हैं। माले का ये दावा कोई हवा हवाई बयानबाजी नहीं है बल्कि इसके पीछे दो महीने की कड़ी मशक्क़त के बाद जुटाये गये आंकड़ों और प्रमाणिक तथ्यों की बुनियाद पर किया गया दावा है।

बता दें कि भाकपा (माले) की राज्य कमेटी ने बिहार के 13 जिलों के 607 पंचायतों के 1904 गांवों में जा जाकर 1 अप्रैल 2021 से 31 मई मई 2021 के दौरान मरने वाले कोरोना मृतकों को श्रद्धांजलि दी और साथ ही उनकी गिनती करने के लिये ‘अपनों की याद’ कार्यक्रम आयोजित किया। जिसके अंतर्गत 13 जिलों के 79 प्रखंडों के 1904 गाँवों में मृतकों की संख्या और उनके इलाज कोविड-19 बीमारी की जांच और सरकार की ओर से मृतकों के आश्रितों को दिये जाने वाले मुआवजे की स्थिति और साथ ही गाँव स्तर से लेकर जिला स्तर तक के सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था के बारे में तथ्य संग्रह करके “कोविड की दूसरी लहर का सच” नाम से 44 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।

भाकपा माले पोलित ब्यूरो की सदस्य कॉमरेड कविता कृष्णन, केन्द्रीय कमेटी सदस्य संतोष सहर और केंद्रीय मुख्यालय के सदस्य अरुण कुमार इस अभियान में शामिल होते हुये राज्य के कई जिलों का दौरा किया, कई गाँवों में गये और मृतकों के आश्रितों व परिजनों से बातचीत की और उसका ऑडियो वीडियो डॉक्यूमेंटेशन किया।

कोरोना से हुयी मौतों का जिलावार आँकड़ा

भाकपा माले ने पीड़ित परिजनों से बात करके 7200 कोविड लक्षणों वाली मौतों को दर्ज़ किया। जबकि इसी दौरान बिना लक्षण वाली 784 मौतें भी उन्होनें दर्ज़ किया। वहीं पूरे बिहार के 38 जिलों में कुल 9646 कोरोना मौतें हुयी हैं ऐसा बिहार की जदयू-भाजपा सरकार का कहना है। जाहिर है बिहार में बड़े पैमाने पर कोरोना से मौतें हुयी हैं। लेकिन जदयू-भाजपा ने लाशों की गिनती में भी हेर-फेर करके आँकड़ा कम करके दर्ज़ किया है।   

भाकपा माले की रिपोर्ट के मुताबिक- भोजपुरा जिले के 14 प्रखंडों के 344 गांवों में कोविड लक्षणों वाली 1936 मौतें हुयी हैं जबकि सरकारी आंकड़ा सिर्फ़ 159 है। इसी तरह पटना ग्रामीण के 12 प्रखंडों के 196 गांवों में 1098 लोगों की मौत कोविड लक्षणों के साथ हुयी है जबकि सरकारी आंकड़ा सिर्फ़ 2330 लोगों के मरने का है।

रोहतास जिले के 5 प्रखंडों के 340 गांवों में 805 लोगों की मौत कोविड लक्षणों के साथ हुयी जबकि यहां सरकारी आंकड़ों में 269 कोविड मौतें ही रजिस्टर्ड हैं। सिवान जिले की बात करें तो सीपीआई (माले) के लोगों ने 11 प्रखंडों के 266 गांवों से 992 कोविड मौतों का आंकड़ा जुटाया है जबकि सरकारी आंकड़ों का कहना है कि सिवान में सिर्फ़ 170 लोग ही कोरोना से मरे हैं।

दरभंगा जिले के 8 प्रखंडों के 42 गांवों से 307 कोविड मौतों का आंकड़ा माले ने रिपोर्ट की है जबकि सरकारी आंकड़े में पूरे सिवान से कुल 366 कोविड मौतें ही दर्ज़ की गयी हैं। इसी तरह पश्चिमी चंपारण जिले के 3 प्रखंडों के 87 गांवों में कोविड लक्षणों वाली 470 मौतों को माले द्वारा दर्ज किया गया है जबकि पूरे जिले का सरकारी आँकड़ा 358 कोविड मौतों का है। वहीं अरवल जिले के 6 प्रखंडों के कुल 330 गांवों से 629 कोविड लक्षणों वाली मौतें माले की रिपोर्ट में दर्ज हुयी हैं जबकि सरकारी आंकड़ों का कहना है कि जिले में केवल 74 लोग ही कोविड-19 से मरे हैं।

बात करें कैमूर जिले की तो यहां के 4 प्रखंडों के 5 गांवों में 53 कोविड मौतें माले ने दर्ज़ किया है जबकि पूरे जिले में कोविड से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 147 है। औरंगाबाद जिले के 1 प्रखंड के 26 गांवों में जाकर 119 कोविड लक्षणों वाली मौत सीपीआई (माले) ने दर्ज़ की है जबकि पूरे जिले में सिर्फ़ 75 कोविड मौतें सरकार ने दर्ज़ किया है। जहानाबाद जिले के 7 प्रखंडों के 82 गांवों में जाकर माले ने 300 कोविड लक्षणों वाली मौत माले ने दर्ज़ की है जबकि सरकार का कहना है कि पूरे जिले में सिर्फ़ 109 लोग ही कोरोना से मरे हैं। इसी तरह गया जिले के 2 प्रखंडों के 27 गावों में माले के लोग गये और कुल 39 कोविड मौतें दर्ज की। वहीं सरकारी आंकड़ा जिले में 279 कोविड मौतों का है। बक्सर जिले के 5 प्रखंडों के 52 गावों से माले ने 210 कोविड लक्षण वाली मौतें दर्ज़ की हैं जबकि पूरे जिले में कोविड मौतों का सरकारी आंकड़ा 182 है। इसी तरह गोपालगंज जिले के 1 प्रखंड के 107 गांवों में माले के कार्यकर्ता गये और 242 कोविड लक्षणयुक्त मौतें दर्ज़ की। जबकि पूरे जिले में कोरोना मौत का सरकारी आंकड़ा 94 है।

 केस स्टडीज

भाकपा माले ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ़ संख्याओं को ही नहीं दर्ज किया बल्कि उन्होंने केस स्टडी भी किया है। उनकी रिपोर्ट से कुछ केस यूं हैं-

चकिया, पुनपुन पटना निवासी कृष्णा प्रसाद को बुखार आया। फिर उनके बेटे प्रकाश चंद्र भारती को भी खांसी बुखार होने लगा। सांस फूलने लगी। जांच में दोनों कोरोना पोजिटिव पाये गये। बेटे प्रकाशचंद्र भारती को पटना के एक निजी अस्पताल आस्था अस्पताल ले जाया गया। ऑक्सीजन के दो सिलिंडर ( प्रति सिलेंडर 45,000 रुपये) के बाद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। तो 1 मई को राजेंद्रनगर के ल्यूकेश अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। उसी दिन उनकी मौत हो गई। बेटे के इलाज के दौरान ही माता पिता की तबीअत खराब होती गयी। पिता कृष्ण प्रसाद ने 25 अप्रैल को और माता सुमंती देवी की 27 अप्रैल को मौत हो गयी।

सिवान जिले के मैरवाँ में डॉ बच्चा प्रसाद के परिवार में पांच लोगों की कोरोना से मौत हो गयी। अप्रैल 2021 में खुद डॉ बच्चा प्रसाद की कोरोना से मौत हो गयी। उसी दिन ही उनकी पत्नी सरस्वती देवी की भी मौत हो गयी। माता पिता की मौत के बाद ही उनके तीसरे बेटे मुनमुन प्रसाद (42 वर्ष) की मौत हो गयी। जबकि कोरोना की पहली लहर में 17 जुलाई 2020 को उनके बड़े बेटे लखी बाबू (48 वर्ष) और भाई और 25 जुलाई 2020 को उनके भाई पन्ना लाल प्रसाद की कोरोना से मौत हुयी थी।         

काउप, गड़हनी, भोजपुर के 43 वर्षीय लालजी चौधरी ताड़ छेदने का काम करते थे। 2 मई 2021 को सांस फूलने की दिक्कत के चलते मर गये। उनको 3-4 दिनों से बुखार था। बहुत दिनों तक ग्रामीण डॉक्टरों से इलाज करवाया। जब हालत बिगड़ने लगी तो उनकी पत्नी सुनीता देवी उन्हें गड़हनी अस्पताल ले गयीं। जहां उनकी मौत हो गयी। सप्ताह भर बाद ही उनकी मां लालमुनि कुँवर (70 वर्ष) की 8 मई को मौत हो गयी। लाल जी के तीन बच्चे अंशु (4 वर्ष), बिट्टू (16) करण (10) की कोई सुध लेने नहीं आया। 

पसौर, चरपोखरी, भोजपुर के कृषि मजदूर करण साह (45 वर्ष) को खांसी और तेज बुखार था, सांस भी फूल रही थी। संगिनी आरती देवी पहले उनको डुमराँव में दिखाया। आराम नहीं मिला तो आरा लेकर गयीं। वहाँ डॉक्टर ने पटना लेकर जाने को कहा। लेकिन पैसे के अभाव में इलाज नहीं मिल पाया। आरती देवी बताती हैं कि पति कृषि मजदूर थे, घर के अकेले कमाने वाले। घर में चार छोटे बच्चे हैं। पहला 12 वर्ष का दूसरा 10 वर्ष का, तीसरा जन्मजात विकलांग है।

घुसियां कला विक्रमगंज रोहतास के दिनेश शर्मा (39 वर्ष) गुजरात के एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। उनको खांसी बुखार आया। डॉक्टर ने बताया टाइफाइड हुआ है। साधाराण दवाइयां लिख कर दे दी। लेकिन उनकी तबियत खराब होती गयी। तो पहले डिहरी फिर आरा में इलाज के लिये ले गये। उनका सुगर लेवल बहुत बढ़ा हुआ था। और आरा में इलाज के दौरान ही उनकी मौत हो गयी। 70 हजार का कर्जा चढ़ गया सो अलग। परिवार में एक बेटा और 2 बेटी हैं।

दमोदरा, गुठनी सिवान की कौशल्या देवी बताती हैं कि मेरे पति हरिहर भगत (35 वर्ष) को एक रात अचानक सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी। उनके सीने में दर्द भी हो रहा था। मैं उनके लिये कुछ भी नहीं कर सकी। गांव वालों ने कहा कि ऑक्सीजन ख़रीदना पड़ेगा। लेकिन मेरे पास पैसा नहीं था। मैंने किसी तरह से गाड़ी के भाड़े भर का पैसा जुटाया और उनको लेकर अस्पताल के लिये निकलीं लेकिन रास्ते में ही उनको दम तोड़ते देखा। इससे पहले मैंने किसी को मरते नहीं देखा था। मैं उन्हें घर ले आयी और और अंतिम क्रिया संस्कार किया। हर कोई इतना डरा हुआ था कि किसी ने अंतिम संस्कार में मदद तक नहीं की। मेरे दो बच्चें हैं। करने खाने को अब कुछ नहीं है।

सलेमपुर, पोखरा, विक्रमगंज, रोहतास की कांति देवी बताती हैं कि उनके पति मनोज राम (35) को पहले हल्की खांसी आयी तो गांव के डॉक्टर को दिखाया। खांसी कम हो गयी। उन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं थी। फिर उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। लेकिन उन्होंने अच्छे से खाना खाया तो मुझे चिंता नहीं हुयी। लेकिन रात में मैं बुरी तरह डर गयी। मैंने कभी किसी को उनकी तरह तड़पते नहीं देखा था। वो तड़प तड़पकर मर गये। मेरे तीन छोटे बच्चे कृष्ण, सुदामा, और रानी हैं। मेरी झोपड़ी में अंधेरा है। ये बारिश में टपकता है। मैं अपने बच्चों को कैसे पढ़ा पाऊंगी मुझे कुछ नहीं सूझ रहा।      

सीवान के राधेश्याम अपनी बीवी को खो कर अवसाद ग्रस्त हैं। तीन बच्चे हैं छोटे-छोटे। कहते हैं जहर खाकर मर जाने का जी होता है। न भूख लगती है न प्यास। दरअसल बीवी को कोरोना के सारे लक्षण थे लेकिन पैसे के अभाव में इन्होंने इलाज का कोई प्रयास ही नहीं किया। उनके छोटे भाई की पत्नी बिंदा देवी की भी कोरोना से मौत हो गयी।

भोजपुरा जिले की पसौर चरपोखरी निवासी राधिका देवी बताती हैं कि उनकी 16 वर्षीय बेटी सुमंती को सर्दी बुखार खांसी हो गयी थी। पटना ले जाने के पैसे नहीं थे। स्थानीय डॉक्टरों ने जो दवा बताया दिया। पिछले साल लॉकडाउन में काम छूट गया। हर दिन 100 रुपये कमाते हैं उसमें 50-60 रुपये दवा में चले जाते। पेट पालने के लाले पड़ गये। 

अवगिला सहार भोजपुर निवासी चुनचुन ख़ातून बताती हैं कि मेरी डेढ़ साल की पोती जो पिछले साल 4 जनवरी को पैदा हुयी थी। वो 21 अप्रैल को कोरोना से मर गयी। डॉक्टरों ने उसे छुआ तक नहीं। बुखार होने पर उसे सरकारी अस्पताल ले गये थे। वहां उन्होंने कहा कि हम इलाज नहीं कर पायेंगे। तो पटना के एक प्राइवेट अस्पताल में ले गये। वहाँ ऑक्सीजन नहीं था। ऑक्सीजन मिल जाता तो वो बच जाती। उस दिन पांच और लोग कोरोना से मरे थे उस अस्पताल में। अख़बार में ख़बर छपी थी- खुर्शीद मिस्त्री की पोती कोरोना से मरी। उसके बाद ही डॉक्टरों ने बताया कि उसे कोरोना है। लेकिन उसको कोरोना पोजिटिव होने का सर्टिफिकेट नहीं मिला।

शेखपुरा, पुनपुन, पटना निवासी कमला देवी बताती हैं कि उनके ठेला चालक पति शत्रुघ्न पासवान को सर्दी खांसी बुखार था। चामूचक के एक देहाती डॉक्टर से वे इलाज करवा रहे थे। उस दिन वो जानीपुर बाज़ार से पड़ोस के गाँवों में सामान ढो रहे थे। उस दिन बीमारी की हालत में वो जानीपुर गये और वहां से गांव के एक आदमी का पलंग और अन्य सामान लादकर ले आये। सामान उतारने के दौरान ही उनके सीने में ज़ोर का दर्द उठा और वो ज़मीन पर गिर गये। उसी पल उनकी मौत हो गयी। अकेले कमाने वाले शत्रुघ्न पासवान के परिवार की माली हालत खराब है। उनके 6 बच्चे हैं। सुलेखा (13), रागिनी (11), राधिका (8) पांचू कुमार (6) और सोनी व जूली।   

13 जिलों के 1904 गावों में जाकर भाकपा माले ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसका निष्कर्ष ये है-

1-       कोविड मौतों का सरकारी आँकड़ा सही नहीं है। सीपीआई माले के घर घर जाकर इकट्ठा किये गये आंकड़ों के मुताबिक सरकारी आंकड़ों से कम से कम 20-25 गुना ज़्यादा मौतें हुयी हैं। ज़्यादातर बीमारी जुकाम खांसी बुखार से शुरु हुयी और सांस लेने में दिक्कत तक पहुंच गयी जिसके दो तीन दिन के अंदर मुत्यु हो गयी। 

2-       बहुत कम लोग अस्पताल पहुंच पाये। काफी लोग अस्पताल जाने के रास्ते में या अस्पताल पहुंचते ही गुज़र गये। सरकारी अस्पतालों की जर्जर स्थिति, ऑक्सीजन व अन्य उपचार की कमी, क्वारंटीन के डर और मौत के बाद मरीज का शव परिजनों को न देने के भय से लोग इलाज के लिये सरकारी अस्पताल नहीं गये। अधिकांश लोग गरीबी और धनाभाव के चलते या तो अस्पताल गये ही नहीं या उन्हें इलाज़ ही नहीं मिला।              

3-       ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादातर लोगों का इलाज ग्रामीण डॉक्टरों ने किया। आम तौर पर पंचायत स्तरीय स्वास्थ्य उपकेंद्रों पर इलाज की कोई सुविधा उपलब्ध ही नहीं थी। ऑक्सीजन तो ब्लॉक स्तरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर भी उपलब्ध नहीं था। एंबुलेंस की सुविधा बहुत खराब थी।

4-       सरकारी अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी का हवाला देते हुये मरीजों को भर्ती करने से इन्कार कर दिया गया। मजबूरन लोगों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ा। जहां वो इलाज का खर्च जुटाने में पूरी तरह निचोड़ दिये गये। निजी अस्पतालों में इलाज़ का औसतन खर्च डेढ़ से दो लाख रुपया था। कुछ मामलों में यह खर्च 10-12 लाख रुपये तक पहुंच गया। ऐसे कई परिवार हैं जो इलाज कराने में भारी कर्ज़ के नीचे दब गये।

5-       कोविड लक्षणों वाले अधिकांश मरीजों को कोविड टेस्ट नहीं किया गया। उन्हें एंटीजन, आरटी पीसीआर या अन्य सुविधायें अस्पताल में नहीं मिली। कई मामलों में यह भी हुआ कि कोविड लक्षणों के साथ हुयी मौतों में भी निगेटिव रिपोर्ट थमा दी गयी।

6-       कई कोविड मरीजों को अस्पताल में टाइफाइड का मरीज बताकर इलाज किया गया। और अस्पताल के कागजों में मौत के कारणों का कोई जिक्र ही नहीं है। कई परिवारों ने तो मरीज की मौत के साथ ही अस्पताल के कागज भी जला दिये या फेंक दिये।

7-       कुछ लोगों ने सरकार द्वारा घोषित मुआवजे के लिये आवेदन किया है। लेकिन इनमें से बहुत कम लोगों को मुआवजा मिला है। इस संदर्भ में एचआरसीटी रिपोर्ट व इलाज को आधार बनाने की बिहार सरकार का फैसला अख़बारों में आया है। लेकिन देहाती डॉक्टरों से इलाज करवाने वालों के पास न तो कोई कागज ही नहीं है। ऐसे में सरकार को बिना कोई कागजी सबूत मांगे स्थानीय जन प्रतिनिधियों और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा मरीज की मौत सर्दी खांसी जुकाम, बुखार और सांस लेने में तकलीफ़ जैसी पुष्टि के आधार पर मुआवज़ा देना चाहिये।     

8-       ज़्यादातर मृतक अपने परिवारों के अकेले कमाने वाले थे। कुछ उम्रदराज़ जो कोरोना से मरे वो पेंशनर थे। और पूरा परिवार उनकी पेंशन पर पलता था। इलाज का खर्च और कर्ज़ देखते हुये हर कोविड मौत पर मुआवज़ा देना चाहिये।

9-       मृतकों के परिजन खास तौर पर वो महिला पुरुष जो अपने साथी को खोकर अवसाद में जी रहे हैं। उन्हें तत्काल देख रेख की आवश्यकता है, जोकि उन्हें फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

10-   कोविड के आने के एक साल बाद भी लोगों में कई तरह की भ्रामक धारणाये हैं। मास्क पहनने, हाथ धोने का महत्व और प्रतिरोधी दवाइयां लेने की आवश्यकता धरातल तक नहीं पहुंची है। टीकाकरण को लेकर भय भी व्याप्त है। इसका एक बड़ा कारण नीतीश-मोदी सरकार के प्रति अविश्वास है। डर के बावजूद बहुत सारे लोग टीका लगवाना चाहते हैं लेकिन सरकार उनको टीका उपलब्ध करवाने में नाकाम है।

11-   कोविड की दूसरी लहर कहर बरपा कर गुज़र गयी है। लेकिन इसके कहर के निशान अब भी ग्रामीण बिहार में मौजूद है। जनता में बेबसी और पीड़ा अत्यंत घातक स्तर तक पहुंच गयी है। मौतें जितनी कोरोना वायरस से हुयी हैं उससे ज़्यादा बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की जर्जर हालत और से, अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की आपराधिक कमी से हुयी हैं। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)   

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