मराठी साहित्यकार नंदा खरे ने साहित्य अकादमी पुरस्कार को नकारा

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एक ओर जहां पुरस्कारों के लिए हर तरह के समझौते किये जा रहे हैं, पुरस्कार खरीदे जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर मराठी साहित्यकार नंदा खरे ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने से मना कर दिया है। गौरतलब है कि उन्हें एक दिन पहले ही साल 2014 में प्रकाशित उनके उपन्यास ‘उद्या’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है।

उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने से मना करते हुए इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि राजनीतिक कारणों से मैं पिछले 4 सालों से पुरस्कार लेने से इंकार करता आ रहा हूँ, समाज ने मुझे बहुत कुछ दिया है। अतः मैंने निर्णय किया है कि मैं अब और अधिक नहीं ले सकता हूँ। ये पूरा मामला व्यक्तिगत कारणों से है और इसे राजनीतिक संदर्भों में न देखा जाये।     

अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष और नंदा खरे को पुरस्कार के लिए चुनने वाली तीन एक्सपर्ट्स में से एक वसंत अबाजी डहाके ने कहा है,“ साहित्य अकादमी किसी साहित्यकार का चुनाव करने से पहले उसकी सहमति नहीं लेती है।”

बता दें कि कल शुक्रवार 12 मार्च को साल 2020 के लिए 20 भाषाओं में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा की गई थी।

हिंदी की मशहूर कवयित्री अनामिका को ‘टोकरी में दिगंत’ कविता संग्रह और अंग्रेजी भाषा में कवयित्री अरुंधति सुब्रमण्यम को ‘व्हेन गॉड इज ए ट्रेवेलर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चयनित किया गया।

सोशल मीडिया पर एक ओर जहां अरुंधति सुब्रमण्यम के आध्यात्मिक लेखन को साहित्य अकादमी पुरस्कार देने के लिए सवाल खड़े किये जा रहे हैं वहीं वरिष्ठ हिंदी कवयित्री अनामिका के साहित्य अकादमी पुरस्कार की स्वीकारोक्ति पर भी गंभीर सवाल खड़ा किया जा रहा है।

साहित्यकार और हिंदी साहित्यिक डिजिटल पोर्टल ‘जानकीपुल’ के संचालक संस्थापक प्रभात रंजन लिखते हैं, “अंग्रेज़ी कवयित्री अरुंधति सुब्रमण्यम को अपने कविता संग्रह ‘व्हेन गॉड इज ए ट्रेवेलर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।उनको मेरे जैसे बहुत से हिंदी वाले भी बधाई दे रहे हैं। देना भी चाहिए। अच्छी कवयित्री हैं। अरुंधति सुब्रमण्यम ने आध्यात्मिक गुरु सदगुरु जग्गी वासुदेव के ऊपर किताब लिखी है और उनके साथ भी किताब लिखी है।

सदगुरु अंग्रेज़ी में प्रवचन देते हैं, अरुंधति जी अंग्रेज़ी में लिखती हैं। अंग्रेज़ी में इन बातों को उतना महत्व नहीं दिया जाता। लेकिन हिंदी में भी किसी को यह बात नहीं खटकी। मैं सोच रहा था कि अगर किसी ऐसे हिंदी लेखक-कवि को कोई सम्मान/पुरस्कार मिल जाए जिसका किसी आध्यात्मिक गुरु के साथ ऐसा रचनात्मक संबंध हो तो हम हिंदी वाले ऐसी ही उदारता से उनका स्वागत करेंगे? 

मैं यह नहीं समझ पा रहा कि अंग्रेज़ी अधिक उदार भाषा है या हिंदी अधिक कट्टर!”

वहीं हिंदी भाषा के युवा व प्रतिबद्ध कवि अनामिका के साहित्य अकादमी पुरस्कार लेने पर एक कविता के जरिये उठाते हुए लिखते हैं-“ पुरस्कार वापसी का 

वो जमाना गुज़र गया है

किसान सड़क पर आये थे 

बीते बरस पूस में 

अब पतझड़ है 

बरसात को भी आना है 

सरकारी पुरस्कार की बधाई ही बधाई है 

कलबुर्गी की आत्मा 

यहीं कहीं है !!

न तो ……”

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